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बड़े बाबू का प्यार - भाग 11 14: वज़ह 



भाग 11/14: वज़ह

दिवाकर के पिता बोलते है, “अरे वो कुछ नहीं….एक बार वो लड़की…क्या नाम था…हाँ डॉली….हाँ उसको ले कर दिवाकर और दिलीप में झगड़ा हो गया था…दिलीप भी डॉली को पसंद करता था लेकिन उसने बोला किसी को नहीं था….वो तो एक बार पता नहीं कैसे दिवाकर को पता चल गया और बात बढ़ गई थी….हालांकि बाद में सब ठीक हो गया था…छोटी सी बात थी|”

महिपाल और मनोज ऐसे सुन रहे थे मानों उन्हें कुछ खटक रहा हो|

तभी दिवाकर की माँ बोली, “और एक बात…लेकिन दिलीप और दिवाकर में अभी हाल ही में बात भी हुई थी….इतने सालों बाद…दिवाकर बता रहा था|”

महिपाल हामी में सर हिलाता है…वो यह बात जानता था|

“वो आने वाला था…दिवाकर से मिलने…” दिवाकर की माँ खोए –खोए बोलती है|

“कब?….कब की बात है?” महिपाल चौकते हुए पूछता है|

दिवाकर की माँ बोलती है “उसी दिन..जिस दिन ये सब हुआ….दिवाकर का फ़ोन आया था….बोल रहा था इतने साल बाद दिलीप आ रहा है…खुश था बहुत|”

महिपाल को कुछ खटकता है, कुछ सोचते हुए बोलता है, “नंबर है किसी का दिलीप, यूसुफ…बंटी|”

दिवाकर के पिता एक पॉकेट डायरी निकाल कर देखते है फिर बोलते हैं, “दिलीप….9823…”

मनोज अपने मोबाइल पर डायल करता है|

दिवाकर के पिता आगे बोलते हैं, “यूसुफ का नंबर…9836…”

“दिलीप का नंबर स्विच ऑफ आ रहा है” मनोज बोलता है| “एक बार यूसुफ का नंबर फिर से दीजिए..”

दिवाकर के पिता फिर से डायरी खोलते हैं, और बताते है, “9836…”

तभी महिपाल मनोज को अपने नजदीक बुलाता है और कान में कुछ कहता है| मनोज नंबर लगा कर बाहर चला जाता है और बात करने लगता है|

महिपाल दिवाकर की बहन की तरफ देखता है और पूछता है, “ये कौन?”

“हमारी बेटी है, मंज़री” दिवाकर के पिता बोलते है|

“क्या करती हो?” महिपाल मंजरी से पूछता है

“जी मैं C.A कर रही हूँ…फाइनल इयर”

“गुड!…दिवाकर की कोई बात जो तुम्हे पता हो और बताना चाहो….कुछ भी…” महिपाल आगे बोलता है

“नहीं, मेरे भईया बहुत अच्छे थे….कोई बुरी आदत नहीं थी….डॉली के चक्कर में इतना बड़ा कदम….” मंजरी बोली|

“अस्थमा था तुम्हारे भाई को….सिगरेट की आदत तो थी|” महिपाल मंजरी की तरफ आते हुए बोलता है| फिर बेहद नज़दीक आ कर मंजरी के कान में धीरे से बोलता है, “और ये आदत तुम्हे भी है…”


मंज़री घबरा जाती है, लिकिन इस बात का जवाब नहीं देती है, फिर बात घुमाते हुए बोलती है, “हाँ भईया पहले पीते थे..सबको पता था…पर अस्थमा का अटैक आने के बाद छोड़ दी थी”

महिपाल हामी में सर हिलाता है फिर बोलता है, “मैंने भी छोड़ दी है…काफी साल हो गए…पर टेंशन ज्यादा होती है तो छुप छुपा कर पी लेता हूँ ..एक या दो…,पत्नी को पता नहीं चलता” महिपाल मुस्करा कर कहता है और दिवाकर के माँ बाप को देखता है|

तभी मनोज बाहर से अन्दर आता है और महिपाल के कान में कुछ कहता है…सुनते सुनते ही महिपाल के चेहरे के भाव बदल जाते हैं|

महिपाल थोड़ा सख्त लहजे में बोलता है, “क्या- क्या छुपाया है?…और क्यों?…पुलिस से किसको बचा रहे हो…अपने बेटे के कातिल को…”

“क्या बात कर रहे हैं इंस्पेक्टर साहब?” दिवाकर के पिता चौंक कर पूछते है|

मंज़री और दिवाकर की माँ का चेहरा घबराया हुआ रहता है|

“दिवाकर और प्रदीप के झगड़े की वज़ह डॉली नहीं…. आपकी बेटी थी…मंजरी” महिपाल पूरे रौब से बोलता है|

दिवाकर के माँ बाप और मंज़री तीनो चौंक जाते है| थोड़ी देर सन्नाटा रहता है फिर दिवाकर के पिता बोलते है, “अरे नहीं इंस्पेक्टर साहब ….वो तो छोटी सी बात थी…बच्चों की नादानी…वैसे भी उस बात को बहुत अरसा हो गया इंस्पेक्टर साहब| अब तो….”

“मैंने पहले ही बोला था, कानून से कुछ भी नहीं छुपाना..बताइए पूरी बात बताइए…और याद रखिए हम पुलिस वाले है…खबर सूंघना और सूंघ कर निकालना हमारे खून में होता है….तो फिर…” महिपाल सख्त लहजे में ताना मारते हुए बोलता है|

“असल में एक बार गर्मियों में दिलीप, दिवाकर के साथ आया था और हमारे घर ही रुका था…मंज़री तब दसवीं में थी..पता नहीं कैसे दोनों करीब हो गए..दिवाकर को जब पता चला तो बात बढ़ गई थी….लेकिन उसके बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ….भगवान् कसम…आप पूछ लीजिए..” दिवाकर के पिता रुहसे हो कर बोलते है|

महिपाल मंज़री को देखता है, पर मंज़री कुछ भी नहीं बोलती|

“साहब हम लोग मिडिल क्लास शरीफ लोग है…छोटी सी बात थी…बात फ़ैल जाती और समाज में उठना बैठना दूभर हो जाता….देखिए लड़की सयानी हो गई है…शादी की बात चल रही है|” दिवाकर के पिता हाथ जोड़ कर, आँख में आसूं रखते हुए कहते है|

“छोटी सी बात….अरे ऐसा भी हो सकता है, दिलीप यहाँ आया हो और उसने ही दिवाकर को….”

दिवाकर के घरवाले अचंभित हो उठते हैं|

“कुछ भी हो सकता है…पुलिस की थ्योरी है….कानून का काम है मुजरिम को पकड़ना और पीड़ितों को न्याय दिलाना…आप की छोटी सी बात से हो सकता है अपराधी बाहर घूम रहा हो” महिपाल तल्ख़ अंदाज़ में कहता है|

फिर मनोज की ओर देखते हुए पूछता है, “बात हुई…. दिलीप से?”

“नहीं सर, फ़ोन अभी भी बंद आ रहा है….” मनोज बोलता है|

“आप लोगों को दिलीप का एड्रेस पता है …या कोई और नंबर?” महिपाल दिवाकर के पिता की ओर देख कर पूछता है|

“सर युसूफ से पूछता हूँ….शायद उसे पता हो…” मनोज बोलता है

“जोधपुर का है…पर एड्रेस नहीं पता…” दिवाकर के पिता बोलते है

मनोज यूसुफ़ को फिर से फ़ोन करता है और बात करते हुए पॉकेट डायरी में कुछ लिखता है

थोड़ी देर बाद मनोज उत्साहित हो कर बताता है, “सर एड्रेस मिल गया है…”

“ठीक है…नजदीकी थाने से संपर्क करो और बोलो दरियाफ्त कर के खबर करें….बोलना अर्जेंट है|” महिपाल मनोज को बोलता है

मनोज बात करने बाहर निकल जाता है

“आप लोग हो सके तो जयपुर ही रुकिए..ज़रुरत पड़ी तो एक दो बार मिलना पड़ सकता है| महिपाल बोलता है और उठ कर जाने लगता है|

“तो क्या दिवाकर को किसी ने…?” दिवाकर की माँ पूछती है

“हो सकता है….अभी कुछ भी नहीं कह सकते..” महिपाल बोल कर बाहर चल देता है

स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव(ईशू)
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भाग 12/14 : मेवाती लॉज

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