बड़े बाबू का प्यार - भाग 12 14: मेवाती लॉज  Swapnil Srivastava Ishhoo द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 12 14: मेवाती लॉज 



भाग 12/14: मेवाती लॉज

थोड़ी देर बाद महिपाल और मनोज एक साधारण से रेस्टोरेंट में बैठे खाना खा रहे होते है| तभी महिपाल का फ़ोन बजता है|

“जी सर!…ओके सर!…मानसरोवर मेट्रो स्टेशन….मेवाती लॉज…ओके सर…बस अभी निकल रहे है सर….जी सर….जय हिन्द!” महिपाल अपने अधिकारी से फ़ोन पर बात करते हुए कहता है|

मनोज खाना खाते हुए पूछता है, “क्या हुआ सर….कोई नया कलेश….”

महिपाल बोलता है, “अरे अपनी जिंदगी में सुकून कहाँ…चल फटा फट ख़तम कर…सुसाइड केस है..तफ्तीश करनी है….” थोड़ा रुक कर बोलता है, “एक काम कर टीम वही बुला ले…फोरंसिक को भी बोल दे..एड्रेस व्हाट्सएप कर रहा हूँ.” महिपाल मेसेज टाइप करते हुए बोलता है|

अरे सर दो मिनट रुक जाओ सुकून से खाना तो खा लो…लाश को कहाँ जाना है….सब फ़ोन कर देता हूँ…आप खाना खाओ” मनोज बोलता है|

तभी मनोज का फ़ोन बजता है…खाना खाते खाते फ़ोन पर बात करता है फिर फ़ोन काट देता है|

“एड्रेस सही है….चार दिन पहले जयपुर आया था तब से घर नहीं आया…एफ.आई.आर. भी कराई है उसकी बीवी ने…वो जोधपुर थाने से फ़ोन था” मनोज महिपाल को बताता है|

महिपाल हाथ धोते- धोते कुछ सोचता रहता है और फिर मनोज को उठने का इशारा करता है|

थोड़ी देर बाद मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास वाली गली में दोनों रुकते है, पुराना बाजार है यो चहल पहल काफी थी| महिपाल पीछे से उतरता है और पूरे एरिया पर एक सरसरी निगाह दौड़ता है…एक पान वाले से एड्रेस पूछता है, फिर बताए हुए एड्रेस पर चल पड़ता है|

एक छोटी सी बेहद ही साधारण लॉज के रिसेप्शन पर मनोज और महिपाल पहुचते है|


“फ़ोन आया था…कौन सा कमरा?” महिपाल रिसेप्शन पर खड़े एक आदमी से पूछता है

“हां सर मैंने ही फ़ोन किया था…आइए ….इधर फर्स्ट फ्लोर…आइये सर” वह आदमी उन्हें कमरे की तरफ ले जाता है|

गैलरी में एक कमरे के सामने 8-10 लोग जमा होते है और दरवाज़ा आधा खुला होता है..सभी नाक पर हाथ रखे खड़े होते है| महिपाल पहले उनको अलग करवाता है फिर धीरे से दरवाज़ा धकेलता है..अन्दर एक हलकी गंध महसूस होती है तो नाक पर रुमाल रखते हुए महिपाल और मनोज कमरे में दाखिल होते है|

“अन्दर कौन- कौन घुसा था?” महिपाल सख्त आवाज़ में पूछता है

“सर ये कमरा कोई तीन दिन से नहीं खुला था…न खाने का आर्डर न पानी का..आज सफाई के लिए खटखटाया तो भी कोई आवाज़ नहीं आई…अन्दर से बदबू भी आ रही थी तो लड़के ने मास्टर की से खोल लिया….तो ये…” रिसेप्शन वाला आदमी बोला|

“दरवाज़ा किसने खोला था?” महिपाल पूछता है

“”सर मुकेश ने…यहीं काम करता है….वो रहा”

मनोज मुकेश की तरफ देखता है, एक 17-18 साल का लड़का घबराया हुआ खड़ा था|

“सर मै तो….मेरे को बोला तो मैंने खोला था…” मुकेश बोलता है

“और कौन कौन अन्दर गया था?” महिपाल पूछता है

“सब गए थे सर…हम सब अन्दर गए थे..” मुकेश फ़ौरन बोलता है

महिपाल सावधानी से कमरे का मुआयना करता है, फिर मनोज से पूछता है, “फॉरेंसिक वालों को बोल दिया था?”

मनोज हां में सर हिलाता है

“टीम आ जाए तो पोस्टमार्टम के लिए भेज देना|” महिपाल बोलता हुआ कमरे से बाहर निकलता है

बाहर रिसेप्शन वाले आदमी से पूछता है, “नाम?”

“सर…मदन…मदन मीणा” रिसेप्शन वाला लड़का बोलाता है

“रजिस्टर दिखाओ….” बोलते हुए महिपाल उसके साथ रिसेप्शन पर आता है

रिसेप्शन पर वह रजिस्टर महिपाल के सामने रख देता है| महिपाल रिसेप्शन रूम को ध्यान से देखता है फिर पूछता है, “कैमरा नहीं है…. CCTV?”

“वो सर…लॉज है…” रिसेप्शन वाला लड़का शर्मिंदगी में बोलता है

“इसमें तो नाम दिलीप लिखा है….तू तो मदन बता रहा था..” महिपाल नाराज़ होते हुए बोलता है

“नहीं सर.. मदन मेरा नाम है….इसका नाम तो …..मुझे लगा आप मेरा….”

महिपाल अजीब सी नज़रों से उसे देखता है फिर लॉज के बाहर निकल जाता है|

महिपाल बाहर चाय की दुकान पर खड़ा मनोज को फ़ोन करता है और नीचे बुलाता है, फिर मार्केट के चारो ओर नज़र घुमाता है| थोड़ी देर में मनोज बाहर निकल कर आता है|

मनोज महिपाल के पास आता है और बोलता है, “सर क्या लगता है सुसाइड या मर्डर?”

महिपाल कोई ज़वाब नहीं देता बस सोचता रहता है फिर बोलता है, “कोई मोबाइल मिला?”

“नहीं सर मोबाइल तो नहीं मिला….पर एड्रेस वही है ..जोधपुर का|” मनोज बोलता है

“टीम कब तक आ रही है?” महिपाल चाय ख़त्म करते हुए बोलता है

“सर ऑन द वे है.. आधे घंटे में पहुँच जाएंगे” मनोज बोलता है

तभी महिपाल के सीनियर का फ़ोन आता है और वह सिचुएशन का अपडेट देता है…साथ ही मनोज को बिल चुकाने का इशारा भी करता है|

अगले दिन थाने में सुबह- सुबह का वक़्त…

महिपाल अपनी कुर्सी पर बैठा मोबाइल पर गेम खेल रहा होता है, तभी मनोज बाहर से अन्दर आता है और बोलता है, “रिपोर्ट आ गई है…..सुसाइड लगता है….नींद की गोली का हैवी डोज़” फिर कुछ रुक कर पूछता है, “आप का क्या सोचना है…”

“देख मेरी थ्योरी से एक साथ दो पुराने यार सुसाइड करें पॉसिबल नहीं है…शायद दिवाकर ने पहले उस लड़की को मारा होगा फिर दिलीप को….रीज़न भी है..पर पैटर्न बिलकुल अलग है” महिपाल मोबाइल पर गेम खेलते खेलते बोलता है|

“ऐसा भी हो सकता है दिलीप और दिवाकर मिले हों फिर उसकी बहन वाली बात पर…” मनोज अपनी बात रखता है|

“कॉल डिटेल्स और नेटवर्क लोकेशन रिपोर्ट आ गई?” महिपाल पूछता है

“हाँ सर वो कंप्यूटर रूम में है….चलिए..” मनोज बताता है

दोनों उठ कर कंप्यूटर रूम में चले जाते है|

थोड़ी देर बाद महिपाल और मनोज थाने के बाहर चाय की दुकान पर खड़े चाय पी रहे होते है|

“सर अब तो सब साफ़ है…दिलीप जोधपुर से दिवाकर के घर आता है…वहां उसको मारता है फिर शराब खरीद कर लॉज आता है…अपराध बोध और ज्यादा नशे में खुदखुशी कर लेता है” मनोज पूरे कॉन्फिडेंस से बोलता है|

“और वो लड़की?” महिपाल धीरे से बोलता है

‘वो तो पहले से क्लियर है….दिवाकर डॉली के घर जाता है उससे झगड़ा होता है दिवाकर उसे मार कर घर लौटता है…दिलीप उसके घर आता है..शराब के नशे में दिवाकर उसे बता देता है..दोनों में बहस होती है और दिलीप उसे नशे की गोली देकर मार देता है…फिर अपराध बोध में खुद भी….वैसे भी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था..नशे की गोली कौन सी बड़ी बात थी|

महिपाल चाय के पैसे देता है और मनोज को बाइक निकालने को बोलता है|

स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव(ईशू)
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भाग 13/14 : बरसात की वो शाम