दरिंदगी से इंसाफ़... Dear Zindagi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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दरिंदगी से इंसाफ़...

दुख दर्द और जख्मी जिस्म ,
तड़प रही रूह दुनिया के सामने,
जूझ रहा कायनात का हर वक़्त,
नन्ही कली को कैद बना रख घर ,
बिखरा हुआ हर एक शक्श जहा से,
निखर जाए जो लड़ा जाए इस सोच पर,

सुनना एक दर्दनाक कहानी,
जो हर बार बनती और दफन हो जाती है।

जिस्म के भूखे नंगे आज खुले शहर में,
घूम रहा हर शहर में गंदी नजर लड़िकयों में,
चहेरा देख के कपड़े से नजरे बिगाड़ता,
पहचाना नहीं जाता हर समाज में छुपा राक्षाशी रूप में।

निकल नहीं सकी फुल जैसी कली,
घर के आंगन में घुम ना सकी ना खेल सकी,
बंध कर दिया दुनिया ने कैद कमरों में,
क्यू हुआ ऐसा क्यों हो रहा है ऐसा हर वक़्त,
लड़की को क्यू हर बार अपनी दहलीज से बाहर पैर ना रखा सकी..!

तैयारी कुछ इस कदर की थी उस शक्श ने,
बाहर निकली थी पूरी दुनिया में आमतौर पे,
हर दफा टूट जाता खुलेआम आम फिरना,
ये कैसी बदुआ लगी जिस्म के हैवान की,

नज़रे मिलाता था दूर रहकर गुरता था,
वक़्त मिलने पर उसे उठाने का सोचता था,
गुमनाम कर उसे जीने में बारबार उसे दर्द देता था,
उसे मौत सी सजा के कई बार जख्म अदा करता।

कभी घर के आंगन में कभी समाज के बीच कभी दुनिया के सामने,
हर बार तरसता था प्याशा बन एक बे लिहाज बेशरम बन लड़की को चुनता था,
नशे में खुद डूब उसकी हालत पर ना सोच उसे आबरू से बेआबरू कर इज्जत दाव पर लगाता था।

कपड़े एक एक निकाल नोच रहा है नादान से फुल को,
टूट पड़ा था एक एक जिस्म को चोट दे खुश होने पर,
हवश ना मिटे तब तक दर्द नाक मौत का मशवरा करता,
उस चीखते चिल्लाते अपनी खुशी को मदहोश बनाता,

तवायफ बना दिया सारे जहा के सामने,
रूह से रों रही है वो लड़की हर वक़्त,
क्यू नही मिलता उसको इंसाफ हर बार,
क्या बेजुबान बन जायेगे खुद की बेटी हो या बहेंन तब भी..?

दासता बड़ी थम नहीं रही,
उसकी रूह से जलने की आवाज की,
कानो में गूंज रही दरिंदगी ,
आज भी सुनके रूह कापती है जिस्म की,

नन्ही सोचना बड़ी बेकार ज्ञान है,
नन्हा सोच कपड़े छोटा ना कहना,
बलात्कार करता रहता है हर एक दिन,
क्यों वह बलात्कारी नहीं ? और,
क्यू लड़की को चरित्रहीन कहा जाए?
हो सके तो एक कदम आप बढ़ावा दो,
उस शक्श को दुनिया से नाबुद किया जाए,

इज्जत से रहने वाली कलिया,
दुपट्टा डाल गुमती हर एक के समाने,
फिर ना जाने क्यों उसे दुपट्टे में ही गोन्धा गया,
उस सिगरेट का जख्म, हड्डियों को तोड़ा गया,
फिर भी चुप है देश क्यों की उसकी मा बहेन नहीं थी।

आखिर उसकी सांस ना रुकी तब तक उसे आजमाया गया,
अपनी नामर्दांगी का हिस्सा सारे आम फैलाया गया,

नजरो से नज़र डाल अंदर तक गहराई से जिस्म को नोचता रहा,
फिर भी ना जाने दुनिया में उसे इस बलात्कार का इलाज नहीं लाया गया?

अब हर किसी के जिस्म में दहक रहे है अंगारे ,
अब नहीं बैठेंगे जख्म को मरहम लगाने तक,
तारीख से तारीख मिलती रहती अदालत से,
हम नहीं बैठेंगे अब मारे बिना उसे हर हाल पर,

हिफाजत अगर नहीं हो रही तो सरकार से?
हाथ में मशाल और आंखो में अंगारे ले बैठा हर एक एक नौजवान,
कमजोरी नहीं है समाज के और दुनिया के हाथो में,
अगर प्राण लेंगे उसके जिस्म को जलाकर तो खुश हो जायेगा हमारा समाज,
ताकतवर एक साथ बन अगर कर दिया हमला,
तो नहीं सुनेगी दरिंदो की जिंदगी की जान लेकर,

गलियों, सड़कों, सहर में गुमनी चाहिए बेफिकर,
हमारी लड़किया बेखोफ गुम सके हर बार,
चाहे तो बंदूक देदो हमारी खुद की जान को बचाने पर,
हम खुद की जिंदगी को बचा लेंगे हावसियो से,

वजूद मिटाओ, ये मेरी जनता से प्राथना है,
उसके ना मर्द होने का ताल्लुक बतादो,
जिस तरह चाहे उस शक्श को मिटाओ,
चाहे खुद क्यों ना लड़ना पड़े लड़ जाओ,
हिन्दू हो या मुस्लिम हर किसी को एक होने दो,
लाचार बेबस लड़कियों को उनका इंसाफ दिलाओ।

हर कहानी कुछ कह जाएगी,
हर रात के बाद सुबह जरूर आएगी।

एकरोज होगा ये सिलसिला ख़त्म,
और हर बेटी की सुरक्षा होती जाएगी।

आज उठाई है कलम शिक्षित बन कर,
कल हथियार ना उठे हर एक जंग पर,
सुरक्षा नहीं मिली सरकार के दम पर,
गलत कदम उठाया जाएगा हर एक वक़्त पर,

अत्याचार करना पाप है ,
अत्याचार शहना भी पाप है,
समय पर रोका ना जाए पाप है ,
और उसे रोका ना जाए महापाप है।

जय हिन्द जय भारत