डायन - 3 Kaamini द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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डायन - 3

-"हाँ... बहुत भयंकर देखा है। वो... चां...द...नी... वो... चाँ...द...नी..."
-"क्या हुआ..? क्या हुआ चांदनी को..? मुसु...बोल..!"
-"चां...द...नी...के साथ..." (मुस्कान के होंठ कांप उठे, सौरवने उसका हाथ अपने हाथ मे लिया और बोला:)
-"मुस्कान क्या हुआ चांदनी के साथ...? तू इतना घभरा क्यों रही है? क्या देखा ऐसा..?? बता मुझे प्लीज़ ।"
(मुस्कानने फिर शुरुआत से बात बतानी शुरू की)
-"सौरव हम सब चांदनी को जंगल मे ढूंढ रहे थे न तब में थोड़ा आगे चली गई थी, जब में आगे बढ़े जा रही थी तब मुझे एक पुरानी कुटिया या...यूह कहूँ तो...मुझे एक पुराना झोपड़ा ...टूटा फूटा सा...नज़र आया। मेने सोचा चांदनी रास्ता भटक गई होगी तो शायद यहीं कहीं होगी। इसलिए में धीरे धीरे उस झोपड़ी की ओर आगे बढ़ने लगी, पर झाड़ियों के बीच से, मेने कुछ पास जा कर देखा तो...वहां पर चांदनी बैठी हुई थी और ठीक उसके सामने एक भयंकर सी बुढ़िया बैठी हुई थी। दोनो के बीच कुछ ही दूरी थी, जहां पे कुछ जल रहा था, और वो बुढ़िया कुछ बड़बड़ा रह थी। उस बुढ़िया के लम्बे सफेद बाद, लाल बेसुद सी आँखे, चहेरा और शरीर मानो...मानो...कोई कोई ममी जैसा...इतनी बूढ़ी औरत थी वो..।"
-"फिर क्या हुआ..?"
-"वो औरत कुछ बोल रही थी और उस आग में जोर से कुछ डाल रही थी। फिर अचानक...चांदनी हवा में ऊपर उड़ी और जोर से चिल्लाई...और...फिर मेने देखा...तो...वो वहाँ नही थी...?! सौरव मुझे डर लग रहा है...कुछ...कुछ...बहोत भयंकर हुआ है चांदनी के साथ। कुछ भयंकर...वो काला जादू सा कर रही थी शायद..?! तुमने देखा नही..चांदनी बदली सी लग रही है।
प्लीज़ सौरव बचा लो उसे, प्लीज़। "
(सौरव यह सब सुनकर हक्का बक्का रह गया। उसके दिलदिमाग में एकसाथ कई सारे ख्याल आ गए। उसने मुस्कान का हाथ कोहनी से पकड़कर झंझोड़ कर, गुस्से में बोल पड़ा...)
-"इडियट... तू यह अब बता रही है? रात के 10 बीज चुके है, हम यहां से अभी, अब रात में, नहीं जा सकते। तुझे समझ मे नही आया....?? इतना सब होने के बाद...बताने की जगह...वहां चुपचाप बैठकर सब देख रही थी..? तू पागल है क्या...??"
(मुस्कान की ऑंखे भर आई, सौरव एकसाथ गुस्सा, चीड़, चिंता जैसी अनेक भावनाओ के भंवर से कांप उठा और अपनी गलती का एहसास होते ही उसने मुस्कान को कहा:)
-"सोरी... मुसु...यार...इतनी बड़ी बात हो गई, मेरेको गुस्सा आ गया। सोरी..!! तेरी हालात समझ सकता हूँ, तू नही कह पाई क्योंकि तू सदमे में थी। सोरी।"
(इतना कहकर वो मुस्कान को गले लगाता है तब मुस्कान ने भी उसको ऐसे कस के पकड़ा होता है मानो वो सौरव से अलग होना न चाहती हो, फिर उसे अपने से अलग करते हुए, सौरव दिलासा देता है )
-"हमे अब चांदनी और हम सबको इस मुसीबत से निकलना होगा। हमे यहां से निकलना होगा। बस...जैसे तैसे यह रात कट जाए...। तुजे याद होगा तूने किस जगह पे उस बुढ़िया की कुटिया देखी थी? अगर वो आस पास में ही हुई तो हमारे लिए खतरा बढ़ सकता है..?!"
-"नही...अभी....याद नही..?! जब वो दोनों गायब हुए तो में इतनी घभरा गई थी कि...मेने वह उस बुढ़िया की कुटिया में जाना चाहा पर मेरे कदम डगमगा गए। में डर गई थी। इसलिए वापिस की दिशा में दौड़ पड़ी, में हड़बड़ाहट में रास्ता भूल गई, बहुत मुश्किल से वापिस लौटीं तो देखा, चांदनी तुमलोगो के साथ बेहोशी की हालत में..!"
-"ठीक है, बस यह रात कट जाए...?!! सुबह यहाँ से निकलते है, चांदनी को तभी कुछ याद नही आ रहा है..?!! आई विश कुछ बुरा न हुआ हो उसके साथ..!?!"
(क्रमशः)