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डायन - 2

पिछले भाग में हमने देखा के चांदनी को होश आता है। अब चलते है आगे की कहानी की ओर...
चाँदनी खुदको सम्भालते हुए बैठती है और कुछ याद करने की कोशिश करती है...। राहुल चांदनी को खंदे से पकड़कर कहता है..."चाँदनी कुछ बताओ भी क्या हुआ था? कोई जानवर देखा था क्या? और तुम चिल्लाई क्यों? बेहोश कैसे हुई? "(एक साथ सौरव और राहुल दोनो पूछ बैठे। मुस्कान एक तरफ कोने में बैठे बैठे सब सुन तो रही थी पर वो कुछ बोल नही रही थी, सहमी हुई या डरी हुई थी!?)
"राहुल.....मुझे...मुझे...कुछ याद नही आ रहा है...के..क्या हुआ था!? में चिल्लाई थी?? मुझे नही पता राहुल...नही पता...(अपने सिर को पकड़ते हुए चांदनी की आंखों के आंसू आ गए और वो चक्कर खाने लगी। तभी सौरव और राहुल दोनो ने उसे सम्भाला। राहुल ने अपना सहारा देकर बैठाया। सौरव मुस्कान के पास पहुँचा और पूछा: )
"मुसु...तुझे क्या हुआ है ? तू जबसे जंगल में चाँदनी को ढूंढकर वापिस आई है तब से चुपचाप, खामोश बूत की तरह बैठी है। कहीं कोई भूत वूत तो नही देख लिया ना?? ( अपने बैग से टोर्च निकालकर लेम्प जलाते हुए, मुस्कान को हाथ से टल्ला मारते हुए, इतना कहकर जोर जोर से हँसने लगता है। मुस्कान उसे अलग ही नज़र से देखती रही होती है। )
"शट अप..सौरव ! तू देख नही रह है यह दोनों लड़कियों की हालत? इनलोगो को शायद किसी चीज़ का सदमा लगा है?! शायद सच मे डर गई है, कोई जानवर वगेरह देख के।? दोनों को रिलैक्स होने दे फिर जान लेंगे । अभी रात होने को है, चल जल्दी से यह टोर्च लेकर टेंट के बाहर खाने का कुछ बन्दोबस्त कर यार...मुझे बहुत भूख लगी है और इन दोनों को भी कुछ खिलाये ताकि यह थोड़ी ठीक हो सके। में यहीं टेंट में इन दोनों का खयाल रख रहा हूँ। कुछ हेल्प चाहिए तो बता देना।"
"ठिक है...! तुम इनलोगो का ख़याल रखो, में खाने का इंतजाम करता हूँ।"
(इतना कहकर सौरव अपने साथ लाये सामान के साथ टेंट के बाहर निकलकर , टेंट के पास ही बैठ गया और एक बड़े से बेग में से छोटा सा गेस स्टोव विथ अटैच्ड सिलेंडर निकलता है और उसे जलाता है। फिर एक पतिली उस पर रखकर पानी डालकर चाय बनाने की सामग्री एक पुडे में से निकाल कर उसमें कुड देता है।
रात के आठ बज चुके थे, पुरादिन जंगल के इधर उधर घूमते हुए चारो थक चुके थे...भूखे थे...। सौरव फटाफट चाय और पोहे बना के चारो के लिए डिस्पोज़ल प्लेट्स में लेकर आता है। राहुल और चांदनी को देने के बाद वो मुस्कान को देता है तब वह सहमी हुई, बावरी सी वही बैठी होती है, वह खाने की प्लेट भी नही पकड़ती, तब सौरव उसका हाथ पकड़ते हुए ...उसकी हथेली में प्लेट धर देता है और कहता है...)
"मेडम...काम नही करवाना तो मत करवाओ। पर यह नोटंकी मत कर यार...!! डर लगता है, तेरी ऐसी हरकतों से। तू तो ऐसे बिहेव कर रही है जैसे सच मे तूने कोई चुड़ैल ही देख ली..!!?? बस कर अब...! तुम दोनों लड़कियों का नाटक बहुत हो चुका। हम दोनों जानते हैं, तुम दोनों पहले भी कई बार ऐसा भद्दा मज़ाक हम लड़को के साथ कर चुकी हो। चल, अब खाले यार...दे दिया मेने भाषण...!!"
(खुद मुस्काता हुआ वही मुस्कान के पास बैठ जाता है)
-"खा यार...क्या हुआ तुझे..??"
मुस्कान नकार में सिर को हिलाती है...धीरे से चम्मच उठा कर पोहे को प्लेट में इधर उधर हिलाती है। पर उसकी नज़र चांदनी पर अटकी हुई होती है...राहुल और चांदनी वहीं बैठे खा रहे होते है। वह चांदनी को एक टूक देखे जा रही थी।
-"मुसु...एक बात बता यार...में कबसे देख रहा हूँ तू चांदनी को घूरे जा रही है..! क्या हुआ है? तुम दोनों का जंगल मे कोई झगड़ा बगड़ा हुआ क्या??"
फिर से वह न में सिर हिलाकर उत्तर देती है।
-"फिर तुम उसे ऐसे क्यों देख रही हो?? तू ठीक तो है ना यार..? हम यहां चांदनी की ज्यादा फिक्र कर रहे है तो क्या तुझे इससे कोई प्रॉब्लम या जलन...?? इसलिए घूर रही है!? आई नो चांदनी बहुत बहुत खूबसूरत है पर तु भी..."
(मुस्कान अब बोल पड़ती है।)
-" क्या बकवास कर रहा है?"
-"बोली.....बोली.....थेंक गॉड...!! अब बता, ऐसा पागलो जैसा बिहेव क्यों कर रही है?!"
-"कुछ नही।"
-"अरे.....क्या कुछ नहीं?? बोल ना...! मुझे तो बता यार..!"
-"तुम यकीन नहीं करोगे सौरव !?!"
-"ओय...तुझे किसने कहा कि में यकीन नहीं करूंगा..? पहले बता तो सही क्या हुआ?"
(यह चारो दोस्त एक दूसरे के चड्डी बड्डी होते है, हा.. लड़कियां भी। बचपन से साथ मे रहे हमेशा, लेकिन लड़ाई मस्ती और दोस्ती के अलावा इनकी लाइफ में आपस मे कभी प्यार नही हुआ। क्योंकि चारो बेस्ट फ्रेंड्स थे, एकदूसरे को जानते, समझते और खयाल रखते थे, पर इनको आपस मे प्यार व्यार के चक्कर मे पड़ना, यह बात यह लोग मज़ाक में उड़ा देते थे। किंतु टेंट में दूसरी ओर बैठे चांदनी और राहुल एक दूसरे के करीब आ रहे थे। जिस तरह वो साथ मे खा रहे थे, राहुल चांदनी का जिस तरह खयाल रख रहा था, उससे चांदनी भी मोहित हो उठी थी। चांदनी जमीन बिछी चटाई पर बैठी थी, राहुल के ठीक पास में, अपना हाथ उसके हाथ के बाजू में डाले हुए, उसका हाथ थामे हुए, खंधे पर सिर रख कर ऐसे बैठी थी मानो राहुल के अलावा वहाँ कोई नहीं। एकदम शांत...चुप सी...लग रही थी।)
-"मुसु.....बोलेगी..?"
(मुस्कान हाथ से...चांदनी और राहुल की और इशारा करते हुए बताती है। सौरव वहाँ देखता है और कहता है..)
-"हाँ।...बैठे है दोनों। पर इनको देखकर अब ऐसा लग रहा है, जैसे प्यार में पड़ गए..?!!"(जोर से हँसने लगता है)
-"ओय...कमीने...तू चुप कर...साले, क्या वाहियात बात कर रहा है? ऐसा कुछ भी नही है। में और चांदनी प्यार...?? नो...नेवर...! इडियट... बाहर निकल तू...ऐसी बकवास..? यक..।"
-"हा...हा... हा... मुझे बाहर भगा के तेरे को मस्ती करनी है...!? हा, जानता हूँ मै..!"
(हसता हुआ सौरव मुस्कान का हाथ पकडकर उठता है और कहता है, "चलो मुस्कान हम थोड़ी देर बाहर बैठते है, इनलोगो को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ देते है।" राहुल चिल्लाते हुए कहता है: "तू पागल हो गया है, कुछ भी बोल रहा है..?" सौरव और मुस्कान बाहर निकल जाते है, फिर धीरी आवाज़ में सौरव मुस्कान से...)
-"चल, अब बता...क्या प्रॉब्लम है? कबसे देख रहा हूँ तू सहमी सहमी लग रही है, जैसे कुछ भयंकर..."
-"हाँ..." सौरव की बात बीच मे से काटते हुए मुस्कान बोल पडी।
-"हाँ..... बहुत भयंकर देखा है... वो... चां...द...नी... वो... चां...द...नी..."
-"क्या हुआ..? क्या हुआ चांदनी को..? मुसु.. बोल...!!

(क्रमशः)
अंदाजा लगाइएगा दोस्तो, कुछ भी हो सकता है, कृपया आगे के भाग की प्रतीक्षा करे। धन्यवाद



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