वो कौन थी....!!! भाग - 2
इन पद चापों ने हमें परेशान कर दिया था।
हम रात में घबराये से रहते । सोते वक्त रात में हर समय यही खटका मन में लगा रहता था वह कि कहीं फिर से
आवाज सुनाई ना दे दे । सुकून बस इस बात का था कि
उससे हमें कोई हानि नहीं हो रही थी । अभी हम इस सब
से उबरे भी नहीं थे कि एक और घटना हो गई ।
हम सब अपने अपने कमरे से सोए थे । अभी रात के करीब एक या दो बजे का वक्त ही हुआ होगा । मैं भी पढ कर बिस्तर पर
लेटा ही था । आंखें बंद कर कर सोने की कोशिश कर रहा था । अभी मेरी आंखें लगी हीं थी कि मुझे जैसे महसूस हुआ किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा हो । मैं ने पहले तो सोचा मामीजी होगी वो अक्सर ये देखने आती थी कि हम सब ठीक से ओढ़ कर सो रहे हैं या नहीं । यही सोच कर मैं
ने आखे नहीं खोली और पूर्ववत ही सोता रहा । जैसे ही मैं गहरी नींद में सो गया किसी ने फिर से मेरे कंधे पर हाथ रखा । अब मैंने अपनी आंखें खोल दी और झट से उठकर
लाइट जला दी पर कुछ न दिखा । इन सब में सुबह के चार
बज गए । फिर उस रात मैं सो नहीं सका ।
सुबह मुझे जल्दी उठा देख मार्निंग वॉक से लौटते मामाजी ने पूछा
"अरे ! आज तो तुम बहुत जल्दी जाग गए । बहुत अच्छा
जल्दी उठना सेहत के लिए अच्छा है ।" मैंने सोचा मामीजी या मामाजी किसी को रात वाली बात बताऊं पर ये सोच कर रूक गया कि सब मुझे डरपोक समझेंगे । फिर मेरा मजाक भी उड़ाएंगे ।
दो दिन ठीक ठाक बीते बिना किसी परेशानी के । तीसरे दिन फिर से मैं जल्दी सो गया क्योंकि आज मैं स्कूल में कुछ ज्यादा ही थक गया था । इस कारण से जल्दी खाना खाकर सो गया । एहतियातन मैं उसी रोज से दरवाजा बंद कर के सोने लगा था । आज भी मैं दरवाजा बंद करना नहीं भूला । ठीक से दरवाजा बंद किया और फिर निश्चिन्त होकर सो गया । अभी सोए मुझे दो घंटे ही हुए होंगे कि किसी ने फिर से मुझे कंधे से पकड़ कर हिला दिया । मैं चौंक कर जाग गया । उस सर्दी के मौसम में भी मैं पसीने से लथपथ हो गया था । जल्दी से उठकर लाइट जला दी ।
पर कहीं कोई नहीं दिखा और दरवाजा भी जैसे मैंने बंद
किया था उसी भांति बंद था । मैं भौंचक्का सा बैठा रहा कि
आखिर बंद दरवाजे से कैसे कोई भीतर आ सकता है ।
पर कोई तो था मैंने साफ़ साफ़ महसूस किया था । उस रात मैं फिर सो नहीं पाया ।
मेरे कमरे में पूरी रात लाइट
जलती रही । सुबह मामाजी बहुत प्रसन्न थे । नाश्ते की
टेबल पर हंसी ,खुशी और मुस्कान को बताने लगे "देखो
तुम सब रात भर सो रहे थे ।पर विनय ने रात भर जग के पढ़ाई की है । सीखो कुछ भाई से ।" दरअसल वो रात को लाइट जलती हुई देख समझा कि मैं पढ़ाई कर रहा हूं । यह सब सुनकर भी मैं खामोश रहा किसी से कुछ नहीं कहा ।
मेरे मन में दहशत सी हो गई थी । इसलिए मुझसे कुछ खाया नहीं गया । मामी जी को दिखाने के लिए थोड़ा सा खाना खा कर मैं सब के साथ स्कूल चला गया ।
उस दिन मैं
खाना खाने के बाद भी अपने कमरे में सोने नहीं गया । बारामदे में ही बैठा रहा । मुझे बारामदे में बैठा देख मामीजी ने पूछा "बेटा यहां क्यू बैठे हो? अंदर चले जाओ वरना सर्द लग जाएगी ।" अब मैं मामी जी को क्या बताता "जी मामीजी" कहता हुआ कमरे के अन्दर चला गया । उस पूरी रात मैं कंबल लपेट कर सोफे पर ही बैठा रहा । पता
नहीं कब बैठे बैठे ही आंखें लग गई । उस रात कुछ भी न
हुआ ।
अगला एक हफ्ता चैन से बीता । कोई कमरे में तो नहीं आया पर छत से धम्म की आवाज सुनाई देती रही ।
अब मेरे मन का डर कुछ कम हो गया था । हम सब अपने अपने कमरे में बिस्तर में रजाईयो में दुबके हुए थ । उस रात ठंड बहुत ज्यादा थी । कुछ अजीब सी आवाजें सुनकर बारी बारी से सभी की नींद खुल गईं । ध्यान देने पर समझ आया कि ये तो गार्डेन में लगे हुए झूले की है । पहले मामाजी , मामीजी और फिर हंसी, खुशी और मुस्कान के साथ मैं भी बाहर आ गया ये देखने की इतनी रात को झूला कौन झूल रहा है । मामाजी नाराज होते हुए बोले "दिन भर कोर्ट की थकान के बाद रात में सोने में भी परेशानी होती है तो गुस्सा आता है ।" कोशिश करने पर हमें बाहर लगा झूला
जोर जोर से हिलता दिखा पर उसपे कोई बैठा नहीं था । मामाजी ने सोचा शायद उन्होंने चश्मा नहीं लगाया है । इसलिए उन्हें नहीं दिख पा रहा । वो जोर से चिल्लाए "कौन
झूल रहा है ज़रा देख तो विनय बेटा । मैंने और बाकी सभी ने मामा जी को बताया कि कोई नहीं है । सिर्फ झूला ही हिल रहा है । अनहोनी के डर से मामीजी सब को लेकर अंदर चली आई ।
इसी भांति दिन बीतते रहे । हमारे यहां गणेश चौथ की बड़ी मान्यता है । हर पुत्रवती स्त्री इसे जरूर
करती है । सुबह से मामीजी ने निर्जला व्रत रखा था । सारी
तैयारी हो रही थी । मामीजी को रात में चांद की पूजा करने के बाद ही पानी पीना था । सब तैयारी कर के जो नौकर था वो आज अपने घर चला गया क्योंकि उसकी बच्ची बीमार थी । मामी जी ने भी इजाजत दे दी कि रात के लिए हम सबका खाना बनाकर और मामीजी की पूजा की तैयारियां कर वो जा सकता है ।
आज चांद भी बड़े नखरे कर रहा था । हम सब बार बार बाहर जाते और देख कर आते चांद निकला या नहीं । काफी इंतजार करवाने के बाद चांद नजर आया ।
हम सब ने मामीजी को बताया कि चांद निकल आया है ।
मामी जी को पूजा शुरू कर दी । जब पूजा करने के बाद हवन की बारी आई तो उन्होंने देखा हवन के लिए उपले
(गाय के गोबर से बना कंडा) तो है ही नहीं । वो बोली "विनय
बेटा जा जरा बाहर से उपले तो उठा ला । बिना हवन के पूजा कैसे पूरी होगी । हंसी तू भी जा भाई के साथ टाॅर्च
दिखा देना ।"
मैं और हंसी टाॅर्च लेकर जाने लगे तो साथ में छोटी मुस्कान भी हो ली , "भैया मै भी चलूंगी ।" "अच्छा ठीक है" कहते हुए मै उसे भी अपने साथ ले गया । हंसी टाॅर्च
दिखा रही थी । मैं सबसे आगे था । और मुस्कान सबसे पीछे । उपलों के पास पहुंच कर मैं उन्हें उठाने लगा । जैसे ही मैंने हाथ लगाया । किसी की हूं .. हूं... हूं.....की आवाज सुनकर चौंक गया । सामने देखा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गई । एक औरत सफेद साड़ी पहने झूले पर बैठी
है । उसके बाल चेहरे पर आगे की ओर लटक रहे हैं ।
बालों के बीच से उसकी जलती हुई आंखे किसी भेड़िए
के जैसी लग रही थी । मैंने हंसी के हाथ से टाॅर्च ले लिया ।
और उस ओर जलाना चाहा पर फिर वही हू...... हूं...... हूं कि डरावनी आवाजें आने लगी । मुस्कान तो भय से रोने लगी । उसे झूले से उतरते देख अब हमारी डर से हालत खराब हो गई और हम टाॅर्च वहीं फेक चिल्लाते हुए घर के
अंदर भागे । हमें चिल्लाते देख मामीजी भी बाहर आ गई ।
उसे देख वो भी घबरा गई और जल्दी से हम सब को अंदर कर दरवाजा बंद कर दिया ।
इस घटना के बाद हम सभी
इतना ज्यादा डर गए कि वहां रहना कठिन हो गया । अब संदेह नहीं रह गया था । सभी ने उसको अपनी आंखों से
देख लिया था ।
मामाजी ने इस घटना के बाद वहां एक भी दिन हम सब को
वहां नहीं रहने दिया।
हम सभी को लेकर गांव आ गए।
फिर वापस जाकर दूसरे बंगले का प्रबंध होने पर फिर हमें
ले आए।
दूसरे बंगले में आकर हमें कुछ दिन हुए थे कि पास की एक महिला काम मागने आई ।
मामी जी ने उसकी जरूरत को समझते कम पर रख लिया।
कुछ दिन जब उसे पता चला कि हम सात नंबर बंगले में रह
चुके है , तो उसने बेहद आश्चर्य व्यक्त किया की आप लोग कैसे उस बंगले में सुरक्षित रह सके, भगवान की आप पर असीम कृपा रही उसके बाद उसने उस बंगले की उसने जो कहानी बताई कि हम सब हिरण रहे गए ।
उस बंगले की कहानी पढ़िए अगले भाग में।