अनकहा अहसास - अध्याय - 2 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनकहा अहसास - अध्याय - 2

अध्याय -2

लगभग ढाई वर्ष पूर्व रमा, अनुज और कॉलेज के कुछ और दोस्तों का कितना बढ़िया ग्रुप था। एक साथ एम.एस.सी. किए थे और लगभग हर शनिवार और रविवार को साथ में अपना अड्डा जमाते थे। सभी लोग रोजगार की तलाश में थे। तो अकसर उनका टॉपिक यही होता था।
क्या भाई मनोज अब क्या करने का इरादा है ? अनुज ने पूछा।
मैं तो सोच रहा हूँ कि आई.ए.एस. की तैयारी करूँगा। मेरे पापा तो मुझे दिल्ली भेजने के लिए तैयार भी हो गए हैं। तू बता तू क्या करने वाला है
मैंने तो सोच लिया है भाई कि मैं पापा के बिजनेस को ही आगे बढ़ाऊँगा।
तो फिर तुमने एम.एस.सी. किया ही क्यों ? रमा ने बीच में ही पूछा।
बस तुम्हारा साथ पाने के लिए। रमा झेंप गई।
आई मीन तुम सब लोगों का साथ पाने के लिए।
ये साथ तो हमारे जीवन का स्वर्णिम पल है दोस्तों, आगे जीवन में कभी ऐसे मिल भी पायेंगे कि नहीं ईश्वर जाने ? इसलिए मैंने जानबूझकर एम.एस.सी में एडमिशन ले लिया था ताकि कॉलेज लाईफ भी एंजाय कर सकूँ। अनुज बोला।
अनुज तो पहले से ही रमा को पसंद करता था। परंतु उससे कभी कहने की हिम्मत नहीं हुई थी, पर अब तो बिछड़ने का वक्त था।
तुम क्या करने वाली हो रमा ? अनुज ने पूछा
मैं तो आस-पास के सभी जिलो में प्राइवेट कॉलेज का डेटा निकाल ली हूँ सभी जगह अप्लाई करूँगी तो कहीं ना कहीं नौकरी मिल ही जाएगी। फिर वहीं रहते-रहते नेट दिलाऊँगी और पीएससी फाईट करूँगी।
मतलब तुम ये शहर छोड़कर चली जाओगी ? अनुज ने उदास होते हुए पूछा।
अब जॉब मिलेगा तो जाना ही पड़ेगा ना अनुज। रमा को ये एहसास था कि अनुज उसे पसंद करता है वो भी उसे पसंद करती थी परंतु ये चाहती थी कि अनुज ही पहल करे।
आधे घंटे की गपशप के बाद जब सब लोग जाने लगे तो अनुज ने धीरे से आकर रमा को कहा।
रमा क्या आज शाम डिनर करोगी मेरे साथ ?
डिनर ? रमा ने आश्चर्य से पूछा। पहले तो तुमने कभी नहीं पूछा, आज अचानक ?
बस यूँ ही। आ पाओगी क्या ? बताओ ना प्लीज ?
और नहीं बोल दी तो ? रमा ने मुस्कुरा कर पूछा।
बस मेरा मन उदास हो जाएगा और क्या ? अनुज बोला
क्यों उदास हो जाएगा मन ?
बस यूँ हीं !!
तुम्हारा ये “बस यूँ ही” कुछ ज्यादा नहीं हो रहा है। रमा ने उसे छेड़ा।
आओ ना प्लीज। देखो आज से पहले मैंने मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं मांगा। मान जाओ ना।
अच्छा ठीक है मैं कोशिश करूंगी। क्योंकि मम्मी-पापा घर पर रहतें हैं तो मै ज्यादा वक्त नहीं दे पाऊँगी, बस एक घंटा सात से आठ।
चलेगा यार। अनुज खुशी से चहकते हुए बोला।
कहाँ आना है बताओ ? रमा ने पूछा ।
सिटी हार्ट होटल में। तुम कहो तो मैं तुम्हें लेने आ जाऊँगा अपनी कार में।
नहीं उसकी कोई आवश्यकता नहीं है। मै स्कूटी से आ जाऊँगी । रमा बोली।
ठीक है फिर मै सिटी हार्ट के सामने शाम को सात बजे तुम्हारा इंतजार करूँगा। अनुज खुशी से बोला।
ठीक है अब मैं चलती हूँ कहकर रमा अपनी स्कूटी से निकल गई।
अनुज वहीं खड़े होकर उसके ओझल होने तक उसे देखता रहा। फिर वो भी निकल गया।
शाम को रमा ने अपनी मम्मी से कहा-
मम्मी मुझे आज शाम सात से आठ एक पार्टी में जाना है। जाऊँ ?
किसके यहाँ पार्टी है रमा ? मम्मी ने पूछा।
मेरी एक क्लासमेट है मम्मी उसका आज जन्मदिन है तो उसने सबको सिटी हार्ट में डिनर पार्टी दिया है। मैं बस जाकर अटैण्ड करके आ जाऊँगी।
ठीक है देर मत करना और तुरंत आ जाना।
ठीक है मम्मी। जल्दी आ जाऊँगी कहकर रमा तैयार हुई और घर से निकल गई। सिटी हार्ट उसके घर से नज़दीक था।
इधर अनुज साढ़े छः बजे से सिटी हार्ट के बाहर खड़े होकर रमा की प्रतीक्षा कर रहा था।
अचानक उसे दूर से रमा आती हुई दिखी। वो उत्साहित हो गया। उसकी मुस्कान एक इंच चौड़ी हो गई। वह आज अपने दिल की बात बताने को आतुर था। तभी वहाँ रमा आकर रूकी।
कितने समय से यहाँ खड़े हो अनुज ? रमा ने पूछा।
बस अभी थोड़ी देर पहले ही आया।
अच्छा मुझे आने में देर तो नहीं हुई।
अरे नहीं। बल्कि तुम तो वक्त की पाबंद हो। मैं ही थोड़ा लापरवाह हूँ। वो तो तुमसे मिलने के लालच में पहले ही पहुँच गया वरना .............
क्या बोले रमा बीच में ही पूछी।
मतलब तुमको देर ना हो करके वक्त पर आ गया हूँ बोला।
अच्छा चलो फिर अंदर।
हाँ
हाँ आओ ना। मैने टेबल बुक कर रखा है।
होटल के अंदर मद्धिम सी रौशनी थी। लाईट्स का काम्बीनेशन माहौल को और भी खूबसूरत बना रहा था। रमा ने देखा कुछ टेबल पर पारिवारिक माहौल था और कुछ पर कपल्स बैठे हुए थे। अनुज ने एक्वेरियम से लगा हुआ एक टेबल बिलकुल कार्नर पर बुक कर रखा था।
टेबल पर बैठते ही रमा को लगा मानो जीवंत मछलियां उसके बगल में ही तैर रही हो, और ये बहुत खुशनुमा सा अहसास था।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप