सपने - अवचेतन का प्रतिरूप Annada patni द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सपने - अवचेतन का प्रतिरूप

सपने - अवचेतन का प्रतिरूप

अरे, अरे ! यह क्या, लग तो अम्माँ जैसी रही हैं ।सूती साड़ी, माथे पर बड़ी बिंदी, बाल पीछे बाँधे हुए । हाँ, अम्माँ ही तो हैं । दौड़ कर जाकर उनसे लिपट गई । पूछा बाबूजी कहाँ हैं तो बोलीं," आ रहे हैं पीछे सामान निकलवा रहे हैं।"

बाबूजी को देखते ही उनसे भी लिपट गई और रोने लगी । " कितने दिन बाद मिल रहे हैं। मेरी ख़बर भी नहीं ली । "

“अच्छा पहले बढिया सी चाय पिला, अदरक वाली बाद में कुछ और ।"

मैंने अपने हाथों से चाय बनाई । अम्मा कहती भी रहीं कि बाई बना देगी पर मैं अपनी ख़ुशी को रोक नहीं पा रही थी और लग रहा था उनके लिए क्या क्या नहीं कर दूँ ।

चाय की चुस्की लेते लेते मैंने पूछा " कहाँ चले गए थे आप लोग कितना खोजा पर कुछ पता नहीं चला । अख़बारों में दिया, रेडियो,टीवी कुछ भी नहीं छोड़ा पर निराशा ही हाथ लगी । इधर उधर लोग भेजे पर सब बेकार । " और मेरी आँखों से आँसू बह निकले । मैं हिचकियाँ भर-भर कर रोने लगी।

माँ ने मुझे अपनी तरफ़ खींचा और भींच कर मुझे चुप कराते कराते ख़ुद भी रोने लगीं । बाबूजी भी विचलित हो गए और मुझे गले से लगा कर बोले," बेटी, अब तो हम आ गए हैं । चल हाथ मुँह धो कर आ । ऐसा करते हैं सभी नहा धो लेते हैं, फिर तरोताज़ा होकर गपशप करेंगे।"

नाश्ता तैयार था । सब फ़्रेश होकर खाने बैठे । तभी बाबूजी बोले," अरे, सुकेतु कहाँ हैं ? तुम लोगों के रोने धोने के चक्कर में ध्यान ही नहीं आया । चलो बच्चे तो बाहर पढ़ रहें होंगे और पढ़ाई में व्यस्त होंगे।”

मैं फिर रोने लगी तो बाबूजी बोले," तेरी यह आदत बहुत बुरी है, बात बात पर रोने लगती है । क्या हो गया ?"

जब मैंने बताया कि सुकेतु (मेरे पति ) तो नहीं रहे तो बाबूजी अम्माँ हतप्रभ रह गए । उनके चेहरे पीले पड़ गए और वे कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे । मैंने कहा," वह भी आप लोगों को खोजते खोजते परेशान हो गए थे । किसी से कुछ कहते नहीं थे पर मन ही मन घुटते रहे । फिर थोड़े बीमार पड़े और चले गए ।" बच्चों ने बहुत सहारा दिया । और बच्चे पढ़ नहीं रहे बल्कि पढ़ लिख कर योग्य बन कर बडे-बड़े ओहदों पर काम कर रहे हैं।”

बाबूजी अम्माँ थोड़े सँभलने के बाद बोले, अच्छा, इतना समय बीत गया ? सुकेतु नहीं रहे, यह सुनकर तो हमारे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई । हम तो तेरी हालत भी नहीं देख पाते । यह सुन कर बहुत तसल्ली हुई कि बच्चों ने तुझसे संभाल लिया । बच्चे तो हमारी जान हैं । होनहार, योग्य होने के साथ-साथ बहुत संस्कारवान हैं यह देख आत्मा बड़ी तृप्त होती है । "

तभी अम्माँ बोलीं," अब अच्छी लड़कियाँ देख उनकी शादी कर दे । हमारी बड़ी तमन्ना है कि बहुओं का मुँह देख लें और पडनातियों को गोद में खिला सकें ।"

" अरे, आप लोग भूल रहे हैं । आपके नातियों की तो शादी हो चकी है । दोनों के बच्चे भी हैं । बड़े की दो लड़कियाँ और छोटे के एक बेटा "

"तो उन्हें ख़बर कर दे, आ जांय । कम से कम सबसे मिल तो लें । अपने हाथ से आशीर्वाद दे दें ।" वे दोनों बोले ।

मैं बोली, छोटा तो मेरे पास रहता है पर अभी सपरिवार गोवा घूमने गया है, एक दो दिन में आ जायेगा । पर बड़ा तो अमेरिका रहता है, उसका आना तो मुश्किल है । "

इतना सुनना था कि दोनों का मुँह उतर गया । बोले,"पता नहीं फिर कब उनसे मिलना होगा । हमारे यहाँ रहते उनसे मिल पाते तो कलेजे को शांति मिल जाती । इतनी मुश्किल से तो यहाँ आ पाए हैं "

"तो फिर जाने की बात क्यों कर रहे हैं । अब आप कहीं नहीं जायेंगे । मैं आपको अब कहीं नहीं जाने दू्गी । बड़ी मुश्किल से मेरी पकड़ में आप आए हैं । "मैंने व्याकुल हो कर कहा ।

"नहीं बेटी, जाना तो होगा । हम आ गये यही बहुत है । हमारा आना तभी संभव हो पाया है जब हमने वापस लौटने का वचन दिया था। " वे बोले ।

"ऐसा कुछ नहीं है । आप मुझे डरा रहे हैं । हाँ, आपने यह तो बताया ही नहीं कि आप लोग कहाँ चले गए थे और कहाँ से आ रहे है । और अब कहाँ लौटने की बात कर रहे हैं ?" मैंने घबरा कर पूछा ।

अम्माँ बोलीं," बेटी, तेरी एक भी बात का हमारे पास जवाब नहीं हैं । ये सब रहस्य है और हम कुछ भी बताने से मजबूर हैं।”

मैंने ज़्यादा पूछने की ज़िद नहीं की यह सोचकर कि हमेशा की तरह उनका कार्यक्रम आगे बढ़ा देंगे और उन्हें रुकने को मजबूर कर देंगे ।

दो दिन ख़ूब बातें हुईं। अपबीती भी जगबीती भी ।

दो दिन बाद छोटा बेटा गोवा से लौट आया । उफ़, वह दृश्य देखते ही बनता था । किस तरह अम्माँ ने उन्हें छाती से लगाया और छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी । नाती को तो बार बार चूमे जा रही थीं । बाबूजी ने कस कर सबको भींच लिया और चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था । आँखों से अश्रुधाराएं बह रही थी । बेहद भावुक क्षण थे । अम्माँ बाबूजी को देख कर लग रहा था जैसे उनके कलेजे में ठण्डक पड़ गई हो ।

अगले दिन सब ने पूरा दिन सबने साथ बिताया । बहु के हाथ का खाना खाकर दोनों गदगद हो गए । आशीर्वाद के साथ साथ उसे नगद और सोने का सेट दिया । रात को जब सोने के लिए सब उठने लगे तो बाबूजी बोले, " हम बहुत ख़ुश हैं। हमारा मन तुम सबसे मिल कर बहुत तृप्त हो गया हैं । बेटी, तेरी चिंता सबसे ज़्यादा हैं पर विश्वास है कि बेटा और बहु तेरा ख़ूब ध्यान रखेंगे ।"

फिर बहु की ओर उन्मुख होकर बोले, बेटी, मम्मी का ध्यान रखना, कभी उनका मन न दुखाना । उन्हें अपनी माँ समान समझना ।"

मैं रोने लगी कि " आप यह सब क्यों कह रहे हैं ।"

बोले, "बेटी हमारी मजबूरी है, हमें जाना होगा ।"

मैंने रोते हुए कहा," आपको मेरा ख़्याल नहीं है । अब तो ये भी नहीं हैं ।"

"तेरा ख़्याल तो सबसे ज़्यादा है। इसीलिए तो जा रहे हैं । वहाँ पहुँचते ही सुकेतु को ढूँढेंगे और प्रयत्न करेंगे कि किसी तरह वह भी हमारी तरह तुम सबसे मिलने आ सकें । भगवान भी सच्चे प्यार को समझते हैं । हमारा सबसे मिलना हो गया बस बड़े पोते और उसके परिवार से नहीं मिल पाए पर कोई बात नहीं जल्दी मिल लेंगे । "

मैं उनसे लिपट गई और रोते रोते कहने लगी," मैं आपको नहीं जाने दूँगी ।" और खूब कस कर उन्हें पकड़े रही । वे छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे पर मैं थी कि छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी । अचानक एक झटके से उन्होंने अपने आपको मुक्त कर लिया और अदृश्य हो गए ।

मैं बुरी तरह से रो रही थी कि बेटे ने जगाया. " मम्मी क्या हुआ, कोई बुरा सपना देख रहीं थीं क्या ?"

मैं झटके से उठी बोली,” हाँ सपना देखा पर सपना बुरा नहीं बहुत सुखद था, बहुत कुछ दे गया ।"

अगले दिन अमेरिका से बेटे का फ़ोन आया," मम्मी, रात को बड़ा अजीब सा सपना आया । नाना जी और नानी आकर कह रहे थे," बेटा अभी अभी तुम्हारी मम्मी, अंकुर,बहु और टिंकू से मिल कर आ रहे हैं । बस तुम और तुम्हारे परिवार से मिलना रह गया था, सोचा यह काम अधूरा क्यों छोड़ा जाय इसलिए तुमसे मिलने आ गए । तुम्हारे पापा से ऊपर ही मिलना हो जायेगा ।" रुके भी नहीं, बस आशीर्वाद दे कर चले गए ।"

मैं आँसू नहीं रोक सकी । वह सपना मेरी कितनी बरसों की मुराद पूरी कर गया ।

*****