उलझन - 7 Amita Dubey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उलझन - 7

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

सात

अभिनव को बहुत दुःख हुआ। वह सौमित्र का हाथ पकड़कर कहने लगा- ‘सोमू ् अगर बादल ने मेरे सिर पर बैट मार कर गलती की थी तो मैंने भी उसके साथ कौन सा अच्छा व्यवहार किया ? मैंने भी तो अपने डैडी की हैसियत का घमण्ड दिखाकर उसके पिताजी को सीधे-सीधे अपशब्द कहे थे। उसे उसकी औकात बतायी थी। उसकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी। उसकी जगह मैं होता तो मैं भी यही करता जो उसने किया बल्कि शायद इससे भी कुछ अधिक कर जाता। जब गलती दोनों की थी तो अकेले सजा उसी को क्यों ? मेरी गलती की सजा भी उसे दी जाय यह मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूँ।

‘तुमने क्या गलती की अभि ! लेकिन यह जरूर है कि अब जब तुम भगवान की कृपा से ठीक होकर आ गये हो तो बादल को भी राहत मिलनी चाहिए। उसका अपराध बहुत बड़ा था लेकिन इतना बड़ा नहीं कि उसका जीवन ही नष्ट हो जाय। इस तरह तो वह अच्छा इंसान तो क्या इंसान ही नहीं बन पायेगा।’ सौमित्र ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए अपनी ओर से बादल की सिफारिश करने की कोशिश की।

एक घण्टा बैठकर सौमित्र लौट आया था। लौटते समय हाथ मिलाते हुए अभिनव ने इतना ही कहा था - ‘सोमू ! इस बात से हमारी दोस्ती खत्म नहीं होनी चाहिए। हमारी क्रिकेट टीम को बादल की जरूरत है। कितनी अच्छी बाॅलिंग और फिल्डिंग वह करता है उसके बिना हम मैच कैसे खेलेंगे ? परीक्षाओं के बाद हमें क्रिकेट कोच से विधिवत टेªनिंग लेनी है और साईं क्रिकेट ग्रुप के साथ मैच भी खेलना है और जीतना भी है। मैं तुमसे वायदा करता हूँ कि बादल बहुत जल्दी घर लौट आयेगा और तुम उसको लेकर मेरे घर आना। क्योंकि तुम मेरे और बादल दोनों के बहुत अच्छे दोस्त हो। दोनों का भला चाहते हो। भगवान तुम्हारे जैसा दोस्त सबको दे।’

और, दो दिन बाद बादल घर लौट आया। अभिनव ने अपना वायदा निभाया। उस दिन बादल के मामा ने सभी बच्चों को पराग के पेड़े खिलाये लाल-लाल स्वादिष्ट खोये के पेड़े। ये पेड़े सबने भगवान का प्रसाद समझकर खाये। बहुत बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गयी। अगर अभिनव समझदार न होता तो....।’ इसके आगे कुछ नहीं सोचना चाहता सौमित्र।

कल रविवार है छुट्टी का दिन। रोज की तरह स्कूल जाने की जल्दी तो नहीं है लेकिन फिर भी आज सौमित्र जल्दी तैयार हो गया है। पापा ने रात को ही उसे बताया था कि अभिनव के पापा का फोन आया था। अभिनव बादल से मिलना चाहता है और सौमित्र को उसे लेकर जाना है। दस बजे बादल अपने मामा की दुकान पर उसका इंतजार करेगा। सौमित्र चिन्तित था कि अभिनव ने तो अपना वायदा पूरा किया लेकिन वह बादल को उससे किस प्रकार मिलाने ले जा सकेगा। अभि ने स्वयं ही सारी व्यवस्था कर ली।

मारे एक्साइटमेंट के सौमित्र दस मिनट पहले ही बादल के मामा की दुकान पर पहुँच गया। बादल अभी आया नहीं था। थोड़ी देर बाद बादल अपने पिता के साथ आता दिखायी दिया। सिर में चोट अभिनव के लगी थी लेकिन महीनों का बीमार बादल लग रहा था। अन्य दिनों की अपेक्षा उसे साफ सुथरे और नये से कपड़े पहन रखे थे। बादल के पापा मामा की जगह दुकान पर बैठ गये और मामा दोनों के साथ अभिनव के घर की ओर चल पड़े। वे रास्ते भर बादल को समझाते जा रहे थे कि तुम जाकर सबसे पहले अभिनव भइया के पैर छू लेना। उससे हाथ जोड़कर माफी माँगना और मैं तो कहूँगा कि तुम उसके पैर तब तक मत छोड़ना जब तक वह तुम्हें माफ न कर दें। अगर उसके डैडी मिलें तो उनके भी पैर पकड़ लेना गुस्से में अगर वे कुछ डाँटें या मारें तो तुम बिल्कुल भी कुछ नहीं बोलना। देवता लोग हैं वे, हम लोगों को माफ कर दिया। बादल के मामा तब तक समझाते रहे जब तक अभिनव का घर नहीं आ गया। गेटकीपर ने मामा को गेट पर ही रोक लिया और दोनों बच्चों को अन्दर भेज दिया। उसे इसी प्रकार के निर्देश प्राप्त थे।

अभिनव का इंतजार करते हुए सौमित्र और बादल को अभिनव के पापा की आवाज सुनायी दी वे अभि की मम्मी से कह रहे थे- ‘देखिये, आप बच्चों के आने के बाद ड्राइंग रूम में मत जाइयेगा। हो सकता है उस बच्चे को हाँ क्या नाम है उसका-बादल को देखकर आप अपने गुस्से पर नियंत्रण न रख सकें और हमारे अभिनव की बात खराब हो जाये। कितने बड़े दिल वाला है हमारा बेटा।’

अभिनव के आने की आहट के साथ दोनों की बातचीत बन्द हो गयी। बादल और सौमित्र दोनों अपनी जगह पर खड़े हो गये। अभिनव ने आगे बढ़कर दोनों से हाथ मिलाया और बादल के बगल में बैठ गया। थोड़ी देर कोई कुछ भी नहीं बोला। पहल अभिनव ने ही की - ‘मैं बहुत शर्मिंदा हूँ बादल !’ मेरी वजह से तुम्हें बहुत परेशानी हुई। तुमको जेल जाना पड़ा। बहुत मुश्किल है मुझे माफ करना लेकिन मेरे दोस्त ! मुझे माफ कर देना और आगे भी अपना दोस्त समझते रहना।’

अभिनव की बात सुनकर बादल रोने लगा। उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे वह कुछ भी बोल नहीं पा रहा था।

सौमित्र और अभिनव ने उसे चुप कराया। अभिनव ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर बादल ने बरसना बन्द नहीं कया तो वह उठकर चला जायगा।

थोड़ा संयत होकर बादल ने दोनों हाथ जोड़कर सौमित्र की ओर देखा मानो कह रहा हो जो मैं नहीं कह पा रहा हूँ उसे तुम कह दो।

सौमित्र ने भी मानो बादल के मन की बात समझ ली। उसने कहा ‘अभि! बादल तुमसे ‘साॅरी’ कहना चाहता है। उसकी गलती की वजह से तुम्हें जो कष्ट हुआ उसके लिए वह शर्मिन्दा है। उसने संकल्प लिया है कि वह खूब मन लगाकर पढ़ेगा और अपने गुस्से पर पूरा नियंत्रण रखेगा। आगे कभी किसी को कोई शिकायत का मौका उसकी ओर से नहीं मिलेगा।’

अभिनव ने कहा - ‘छोड़ो सौमित्र ! पुरानी बातें याद करने से क्या लाभ? बादल हम दोनों से उम्र में बड़े हैं गलती हमारी है कि हम उन्हें बादल-बादल कहकर बुलाते हैं तभी इनके दिमाग में बिजली कौंध्ज्ञती है। जब बिजली कौंध्ज्ञेगी तो गरजेगी भी और जब गरजेगी तो किसी न किसी के ऊपर गिरेगी भी। आज से हम इन्हें बादल भइया कहेंगे और बड़ा भाई मानेंगे। है न बादल भइया।’

बादल की आँखे फिर बरसने लगीं। अबकी बार ये आँसू खुशी के थे। तभी अभिनव के मम्मी-पापा आ गये। सौमित्र और बादल ने उन दोनों के पैर छुए। पीछे से नौकर नाश्ते से भरी हुई ट्राली ले आया। अभिनव की मम्मी दोनों बच्चों को आग्रह करके नाश्ता करवा रहीं थी इस तरह सबने मिलकर नाश्ता किया। अभिनव के पापा ने बादल को सम्बोधित करते हुए कहा - ‘बेटा ! परीक्षाएँ समाप्त होने के बाद तुम लोग फिर से क्रिकेट खेलना अबकी बार मैं भी तुम लोगों के साथ खेलूँगा। बचपन से मेरे मन में यह तमन्ना थी कि मैं भी सुनील गावस्कर की तरह चैका-छक्का मारुँ सेंचुरी बनाऊँ लेकिन आज तक कभी खेल ही नहीं सका। अब तुम लोगों के साथ अपना खेलने का शौक पूरा करूँगा। देखो भइया, इस उम्र में हराना मत थोड़ी बेईमानी कर लेने देना जिससे जीत जाऊँ और शेखी बघार सकूँ वाह क्या छक्का मारा।’

अंकल की बात सुनकर सभी हँसने लगे। अभिनव की मम्मी ने कहा - ‘तुम लोग इनकी बातों में मत आना। इन्हें कहाँ फुर्सत है क्रिकेट खेलने की, हाँ मैं जरूर तुम लोगों के साथ खेलूँगी।’

अभिनव ने बेतहाशा हँसते हुए कहा - ‘आप मम्मी, क्या आप हमारे साथ क्रिकेट खेलेंगी।’

‘और नहीं तो क्याा ? मैं क्रिकेट नहीं खेल सकती। बचपन में मैं खूब रस्सी कूदती थी। अपने स्कूल की एथलीट थी।’

‘एथलीट होना अलग बात है और क्रिकेट खेलना अलग बात है। दोनों में कोई समानता भी है भला।’ अंकल बोले

‘आप तो एथलीट भी नहीं थे, फिर भी क्रिकेट खेलने को तैयार हैं तो मैं क्यों नहीं खेल सकती ?’ आण्टी ने मुँह बनाया

‘मुझे तो सौमित्र, बादल अपना अभि और उसके दूसरे दोस्त सिखायेंगे।’

‘तो क्या मैं नहीं सीख सकती क्यों बादल बेटा ! मुझे भी सिखाओगे न।’ आण्टी ने प्यार से बादल की ओर देखा। बादल शरमा गया। अभिनव ने कहा- ‘अच्छा मम्मी, पहले एक्जाम्स तो होने दो। अभी हमें बहुत पढ़ना है।’ सौमित्र और बादल ने जाने की आज्ञा माँगी। अभिनव के पापा ने गम्भीर स्वर में कहा - ‘बच्चो ! कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती और न ही किससे शिक्षा प्राप्त की जा सकती है और किससे नहीं इसका ही कोई निश्चित फार्मूला होता है। जिससे अच्छी बात सीखने को मिले उससे सीखनी चाहिए। आज मैं जान सका कि किसी को सजा दिलवाना कितना आसान है लेकिन अपनी गलती को स्वीकार करना कितना कठिन है। बादल ! तुम्हारे मामले में मैंने जल्दबाजी की। केवल अपने बेटे के बारे में सोचा उन माँ-बाप के बारे में नहीं सोचा जिनके तुम बेटे थे। अपने बेटे की चिंता में मैं तुम्हारे भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जा रहा था। ये तो कहो सौमित्र बेटे ने आकर अभिनव को सारी बातें बता दीं और मैं एक बड़ी भारी गलती करते-करते बच गया। मुझे माफ करना बेटा कभी-कभी हम बड़े भी ऐसी बचकानी गल्ती कर जाते हैं जिसके परिणाम घातक होते हैं। आज मैं सोच सकता हूँ कि मेरी जिद्द के कारण तुम्हारे साथ क्या-क्या अनिष्ट हो सकता था। थैक्यू अभिनव एण्ड सौमित्र, साॅरी बादल बेटा !’

बादल और सौमित्र बाहर आ गये।

सौमित्र की बुआ की बेटी कलिका के कारण आजकल सब परेशान हैं परेशानी का कारण यह है कि कलिका दीदी के काॅलेज से कुछ बच्चों को विदेश भेजा जा रहा है साइंस से सम्बन्धित कोई प्रोग्राम है। दीदी का बहुत मन है कि वह इस कार्यक्रम में भाग लें लेकिन बुआ जी उसे जाने नहीं देना चाहती हैं। कलिका दीदी जिद्द किये हुए हैं कि उनकी बेस्ट फ्रेण्ड जा रही है इसलिए वे भी जाकर रहेंगीं नहीं तो पढ़ने ही नहीं जायेंगी। बुआ जी ने ये बातें दादी को बतायीं। जब से दादी इस घर में आयी हैं तब से बुआ जी से उनकी फोन पर लगभग रोज ही बातें होती रहती हैं। जिससे दूरी का पता नहीं चलता। दादी बड़ी हैं इसलिए बुआ जी उनसे पूछती हैं दादी भी उन्हें राय देती रहती हैं।