बड़े बाबू का प्यार - भाग 10 14: जनरल इंक्वारी Swapnil Srivastava Ishhoo द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 10 14: जनरल इंक्वारी


भाग 10/14: जनरल इंक्वारी

करीब दो-तीन घंटे बाद महिपाल और मनोज थाने के बाहर चाय की दुकान पर खड़े चाय पी रहे होते हैं, तभी मंदार आता दिखता है|

“मंदार! इधर!” मनोज जोर से आवाज़ देता है|

मंदार सधे क़दमों से चाय की दुकान तक आता है|

“चाय पिओगे, मंदार?” मनोज पूछता है

मंदार मना कर देता है और जेब से सिगरेट निकाल कर जलाता है|

“तुम्हारे बड़े- बाबू ने खुदखुशी कर ली है..” मनोज मंदार से बोलता है|

मंदार चौंक कर मनोज को देखता है, “तो… इसका मतलब….”

“इसका मतलब उन दोनों की मौत के जिम्मेदार तुम हो!” महिपाल सधे शब्दों में मंदार से बोलता है| फिर मंदार की जलती सिगरेट हाथ में लेता है थोड़ी देर देखता है फिर उसमें से एक लम्बा कश लेता है|

“क्या बोल रहे है सर…मैं कैसे…मैं तो ….आप तो सब जानते है…” मंदार अपनी बात रखता है|

महिपाल उसकी सिगरेट उसे वापस पकड़ाता है फिर चाय पीते हुए बोलता है, “….न तुम दिवाकर के घर जाते…न प्यार का जिक्र होता…..न उसकी खोई महबूबा…जो तुम्हारी पत्नी थी…मिलती ..न उसे ये सब करना पड़ता|”

मनोज बोलता है “अपने प्यार को दुबारा देख कर पागल हो गया होगा…और जब लगा नहीं मिल पाएगी तो उसको मार कर खुद भी मर गया….और तुम्हे रंडवा कर गया|”

महिपाल मनोज को घूरता है, मानों गलत शब्दों के प्रयोग के लिए रोकना चाहता हो|

“सॉरी सर” मनोज अपने शब्दों के लिए अफ़सोस करता है|

महिपाल चाय का ग्लास रखता है और सौ का नोट चाय वाले की तरफ बढ़ाता है| बिना फुटकर का इंतज़ार किए थाने की ओर बढ़ जाता है और बोलता है, “मनोज जल्दी अन्दर आ जा और फुटकर वापस ले लेना…फटा फट पेपर तैयार करना है..”

“यस सर!” मनोज जल्द चाय पीते हुए बोलता है…

थाने के अन्दर महिपाल अपने डेस्क पर बैठा होता है, मंदार उसके सामने बैठा महिपाल को देख रहा होता है, तभी मनोज एक रजिस्टर ले कर आता है|

“यहाँ साइन कर दो” मनोज मंदार से बोलता है|

मंदार महिपाल को देखता है, मानों जानना चाह रहा हो की ये क्या है….

“साइन कर दो, NOC है….इस पेपर के बिना बॉडी नहीं मिलेगी” महिपाल समझाता है|

मंदार चुपचाप साइन करता है, एक पेपर लेता है और चला जाता है|

तीन दिन बीत जाते है| दोनों ही घर में क्रियाकर्म हो चुका होता है| और थाने में एक सामान्य दिन होता है| मनोज महिपाल के सामने बैठा सही तरीके से कपालभाती करने का तरीका बयां कर रहा होता है, महिपाल वहां होते हुए भी कुछ अलग सोच रहा होता है फिर अचानक बोलता है, “यार मनोज कुछ तो अटपटा है….जब पिछले दस साल में कुछ नहीं किया तो अचानक खून और फिर खुदखुशी…कुछ तो गड़बड़ है|”

मनोज तीन दिन बाद अचानक आए इस सवाल से थोड़ा चौंकता है फिर बोलता है, “सर क्या सोच रहे हैं…सिंपल रिवेंज केस था….इतने साल बाद अपनी महबूबा को देख अरमान जागे होंगे और जब मिलने गया होगा और वो नहीं मानी होगी तो मार दिया….फिर अपराध बोध में खुद को मार लिया| मोबाइल मैसेज और नेटवर्क लोकेशन भी तो यही बताती है कि उस रोज़ दिवाकर मंदार के घर गया था|”

“चल बाइक निकल…रजिस्टर में एंट्री कर ….दिवाकर के घर हो कर आते है….मैं सर को बोल कर आता हूँ” महिपाल उठते हुए बोलता है|

“यस सर!” मनोज भी उठ जाता है| फिर चलते हुए भुनभुनाता है… “क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हो…”

थोड़ी देर बाद दिवाकर के घर पर….

दिवाकर के माता पिता सोफे पर बैठे होते है, बहन पानी ले कर आती है| सामने सोफे पर महिपाल और मनोज बैठे होते है| महिपाल पानी पीता है और पूछता है, “कभी किसी से दुश्मनी…कोई रंजिश?”

दिवाकर के माता पिता थोड़ा चौकते है फिर दिवाकर के पिता बोलते है, “नहीं बहुत सीधा था हमारा बेटा..बचपन से कभी कोई शिकायत नहीं थी…सिर्फ काम से काम…”

तभी दिवाकर की माँ बोलती है, “रोज़ बात करता था घर पर…दिन भर की पूरी बात बताता था….आज तक उसने कोई बात नहीं छिपाई..”

महिपाल गौर से उनकी हर बात सुनता है फिर बोलता है, “और दोस्त…दोस्त कौन कौन थे…वो लड़का जिसकी बीवी का कत्ल हुआ बता रहा था दिवाकर के दो-तीन ख़ास दोस्त थे…पुराने|

“हाँ युसूफ, दिलीप और बंटी,….युसूफ तो बचपन का दोस्त था…घर भी आता जाता था,…दिलीप और बंटी जयपुर में ही मिले थे…ग्रेजुएशन में…एक दो बार कोटा भी आए थे…अच्छे लड़के थे..पर उस लड़की के चक्कर में सब दोस्तों से अलग हो गया था मेरा बेटा|” यह बोलते दिवाकर की माँ के आसूं निकल आते हैं|

“वैसे ये सब आप अब क्यूँ पूछ रहे है ….कोई ख़ास बात?” दिवाकर के पिता महिपाल से पूछते है|

“नहीं, वैसे ही, जनरल इंक्वारी….वो केस क्लोज़र रिपोर्ट बनानी है उसकी फॉर्मेलिटी है” महिपाल बात टालता है|

दिवाकर की माँ, दिवाकर के पिता के कान में कुछ कहती है…फिर दिवाकर के पिता बात को टालने का भाव लाते है, तभी महिपाल बात बताने के लिए जोर डालता है|

“इंस्पेक्टर साहब एक बात थी सोचा बता दूँ…वो लड़का दिलीप….एक बार उस लड़की को लेकर दिलीप और दिवाकर में झगड़ा हो गया था” दिवाकर की माँ कहती है|

“अरे वो तो बहुत पहले की बात थी….ज़रा सी गलत फहमी थी…बाद में सब ठीक हो गया था…” दिवाकर के पिता बात ख़त्म करने की लिहाज़ से बोलते हैं|

महिपाल और मनोज अब कुछ ज्यादा सतर्क हो जाते है, महिपाल बोलता है, “थोड़ा डिटेल में बताएँगे…”

स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव(ईशू)
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भाग 10/14 : वजह