आवारा अदाकार
विक्रम सिंह
(2)
सही मायने में वह सुबह में दिखती ही नहीं थी। क्योंकि वह सुबह देर से उठती थी। दरअसल वो सुबह से ही उसे तलाशने लगता था। हालत तो यह हो गई थी कि ठंड के मौसम में भी किताब लेकर छत पर हाजिर हो जाता। धूप सेंकते हुए किताब की हर चार लाइन पढने के बाद उसे बरांमदे में देखता अर्थात पाँचवी लाईन बरांमदा हो जातीा। हाँ, वह कई बार बरामंदे में आती भी। वो भी हल्के-फुल्के काम के लिए। जैसे कभी झूठे बर्तन बाहर रखने,कपड़े रखने इत्यादि। दरअसल उसके घर के बरामदे में एक छोटी सी पानी की टंकी थी जिसमें प्लाॅस्टिक की टोंटी लगी हुई थी। उसके घर एक काली,दुबली सी मैली सी साड़ी पहने एक बंगालन कामिन आती थी जो टंकी के टोंटी के पास बैकर सारे काम करती रहती थी। वह काफी तेजी से काम करती रहती थी। उसे अपना काम निपटा कर दूसरे घर जाने की जल्दी रहती थी। दरअसल हमारे कॉलोनी के पास मांझियों की छोटी सी बस्ती थी। यहाँ के लोग सुअर पालने का काम करते थे। वो छोटा-मोटा काम कर के अपनी जीविका चलाते थे। खैर अब कहानी की तरफ रुख करते हैं। यूँ तो बबनी उसे कभी देखती नहीं थी। मेरा मतलब छत की तरफ। हो सकता है उसे पता ही नहीं चलता हो कि वह छत पर खड़ा है। मगर गुरूवंश की सोच एक दिन बदल गई। इत्तेफाक से उस दिन वह टयूशन पढ़ रहा था। रीता उसके घर आकर उसकी बहन के साथ गप मारने लगी। तब तक मारती रही जब तक गुरूवंश टयूशन पढ़ कर उठ नहीं गया। उसके टयूशन से उठते ही वह उसके पास आई और कहा,’’आज कल छत पर बहुत पढ रहे हो।’’ यह सुनते ही उसकी हक्का-बक्का रह गया। वह सोच में पड़ गया कि इसे कैसे पता चला? जब कि यह तो बबनी को भी पता नहीं होगा। खैर वो झट से उसके हाथ में एक कागज का पर्चा थमा कर चलती बनी। उसने जब उस पर्चे को खोल कर देखा तो उस पर मात्र तीन शब्द लिखे थे। वही तीन शब्द जिसे पूरी दुनिया बनी थी। यही तीन शब्द किसी भी जोड़े को एक दूसरे के करीब लेकर आते हैं। जब तक पृथ्वी में मेल फीमेल हैं। तब तक यह तीन शब्द जिन्दा रहेेंगे। और वो तीन शब्द थे। आई.लव.यू। गुरूबंश ने भी उसे तीन शब्द ही लिखकर भेजा था। आई.लब.यूँ। इन तीन शब्द ने फिर प्यार को विस्तार दिया। जब वो पहली बार मिले तो बबनी ने गुरूवंश से कहा,’’तुमने जो मुझे लिखकर भेजा था ,वह मैं तुम्हारे मुँह से एक बार सुनना चाहती हूँ। फिर उसके मुँह से दबी सी आवाज निकली थी। ’’आई.लव.यूँ।’’ बबनी ने झट गुरूवंश से कहा,’’नहीं ठीक से कहो।’ गुरूवंश ने धीरे-धीरे विराम दे-दे कर सांसें ले-लेकर कहा,अई.........लव......यू.......। फिर गुरूवंश ने पूछा,’’अब ठीक’’ वह मुस्कुराई। शायद उसे गुरूवंश के लिखे पर उतना विश्वास नहीं था जितना उसके मुँह से सुन कर हुआ था। वह भी उसके मुँह से सुनना चाहता था। उसने भी उसे वही लाइन बोलने के लिए कहा, जो उसने कहीं थीं। वह थोड़ा शर्माई मगर वह लाइन कह डाली। इस लाइन ने गुरूवंश के शरीर में स्टारायड सुई की तरह काम किया। पूरे जिस्म में प्यार ही प्यार भर दिया। या यूँ कहों कि गुरूवंश प्यार के समुन्दर में डुबकी लगाने लगा। प्यार का बीज सिंचने लगा था। उसके बाद हर दिन ही पत्र आने लगे। शुरूरआत में एक लाइन की फिर दो लाइन की फिर लम्बे पत्र आने लगे। उनके लाइनो को गिनना मुश्किल था। हर चैथे पाॅचवे दिन एक पत्र गुरूवंश को मिल जाता था और उसे भी। धीरे-धीरे पत्रो से वो दोनो उबने लगे थे। क्योंकि एक तो पत्र का इंतजार सम्भव हो नहीं पाता था। दूसरे पत्र भी कोई और लेकर आ जा रहा था। डर लगा रहता कि कहीं कोई बात लीक न हो जाये। खैर इस बात का डर गुरूवंश से कहीं ज्यादा बबनी को रहता था, क्योंकि बबनी लड़की थी और वह यह बात अच्छी तरह समझती थी कि स्त्री जाति की पेट में कोई बात पचती नहीं है। सिर्फ पत्र ही नहीं उनके बीच गिफ्ट का भी लेन-देन भी होता था। रीता ने बबनी का गिफ्ट,जो फूल का एक छोटा सा कीमती गुलदस्ता था। मगर रीता का उस दिन मूंड ठीक नहीं था। गुरूवंश को गिफ्ट देते हुए बोली,’’लो बबनी ने तुम्हे गिफ्ट भेजा है। उसके इस रूखेे स्वभाव पर वह बोला,’’क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगा?’’ दरअसल उस दिन रीना का मूड ठीक नहीं था।
’’वो बात नहीं उसने मेले में कुछ अच्छा नहीं किया। एक रूपया भी अपने ऊपर खर्च नहीं किया ना कुछ खाया ना पिया बस तुम्हारे लिए गिफ्ट ही खोजती रही।’’
यह सुन उसने आगे कुछ नहीं कहा और बस उस गिफ्ट को रात भर देखता रहा। जैसे उसे कोई नायाब चीज मिल गई हों। वो उस रात ही नहीं उसे हर दिन भी देखता था। खैर उस दिन के बाद हुआ ये कि रीता ने आना बंद कर दिया। काफी समय तक बबनी का कोई पत्र नहीं आया। गर्मीयो के दिन थे। वो दोपहर को स्कूल से आ रहा था तो अचानक बबनी ने उसे हाथ का इशारा किया। दरअसल बबनी ने उसे इशारे से आंगन के गेट के पास आने के लिए कहा,वो जैसे ही गेट के पास पहुँचा वो अपनी मुठठी में बंद एक फोल्ड कागज उसके हाथों में थमाकर चली गई। वो घर आकर बाथरूम में घुस गया और पत्र पढ़ने लगा।
’’काफी दिनों से तुम्हें यह लेटर देने की कोशिश कर रही हूं मगर दे नहीं पा रही थी। इश्क ने डरना सीखा दिया। आज तक कॉलोनी से लेकर स्कूल तक किसी से नहीं डरी। मगर अब जाना की कम्बख्त इश्क डरपोक होता है। इस डर ने तुम्हें पत्र देने से हमेशा रोका। लेकिन यह सोच कर हर दिन दरवाजे के गेट पर खड़ी होती कि कभी ना कभी लेटर देने का मौका जरूर मिलेगा। लेटरर देने से कहीं ज्यादा मुझे तुम्हारे लेटर का इंतजार था। अब रीता को कुछ मत देना वह मुझसे नाराज है। अब हम इसी तरह लेटर देते-लेते रहेंगे।’’ मोटी बात यह थी कि रीता से उसकी बात-चीत ही बंद हो गई थी। मिला जुलाकर बस यही था कि उसने इशारा किया था कि अब उसके भरोसे नहीं रहना है। उसके अगले दिन ही वह दोपहर दो बजे पाॅकेट में लेटर लेकर घूमने लगा। क्या टाइमिंग थी कि दो बजे ठीक बबनी भी गेट पर आकर खड़ी हो गई। वह उसे पत्र देकर चला गया। उन दिनों वो यही सोचा करता था कि काश कोई ऐसी व्यवस्था होती कि कहीं भी जाकर वो आराम से बात कर सकते। उन दिनों मोबाईल नहीं था।.हाँ दिनों टेलीफोन जरूर उपलब्ध था। पर हम इतना जानते थे कि टेलीफोन बड़े घरो में होता है। हमारे कॉलोनी में उन दिनों बी.एम.एस के कार्यकर्ता रहते थे बाद में जो वहाँ के प्रेसिडेंस हो गये थे। उनके घर टेलिफोन था। पूरी कॉलोनी के लोगो का फोन उन्हीं के घर आता था। उनका लड़का फोन आने पर कहता’’ पाॅच मिनट बाद कीजिएगा।’’ फिर वह उन लोगोे को बुला कर लाता जिनका फोन आया होता था। खैर वह और बबनी गर्मियो में दोपहर के वक्त और जाड़े में करीब रात 8 बजे एक दूसरे को लेटर दिया करते थे। यह सिलसिला दो साल तक चला। हाँ गुरूवंश का एक मित्र भी हुआ करता था जिसका नाम था अजय प्रताप सिंह। उसकी अजय के साथ खूब छनती थी। गुरूवंश ने उसे अपने और बबनी के बारे में बता रखा था। अजय प्रताप सिंह की एक बड़ी बहन रीना थी। उसकी दोस्ती बबनी की बड़ी बहन बबीता से थी। फिर बबनी ने बबीता को ही अपना मिडिऐटर बना लिया। एक दिन अचानक ही अजय ने उसे दिया जो हाथ की घड़ी गिफ्ट कर दी। सही मायने में गुरूवंश पहले बबीता से डरता था और हमेशा यह सोचता था कि कहीं इसे पता न चल जाये। दरअसल गुरूवंश के प्यार को पिक तो बबीता ने ही दिया। और उन्हें अलग कराने में उसका ही बहुत बड़ा हाथ भी था। खैर यह सब बाद में। उन दिनों बबीता टी.डी.बी कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष में पढती थी। हम अभी नवीं के छात्र ही थे। फिर कई दिन तक बबीता ही पत्र लेकर आती रही। अब हालत ऐसी हो गई थी कि वह हर शाम अजय के घर चला जाता उसी वक्त बबीता भी वही चली आती थी। बस न जाने क्यों वह अजय के घर बैठ जाता और अजय से गप्पें मारता रहता मगर उसका ध्यान ज्यादातर बबीता पर ही रहता। बस इस वजह से ही कि शायद बह बबनी के बारे में कुछ कहे। मगर वह कुछ कहती नहीं थी। बस इतना था कि बात-चीत होती और कई विषयों पर होती । खास कर शाहरुख खान की फिल्मों की । उन दिनों शाहरुख खान एक रोमान्टिक हीरो की तरह हर युवा लड़की-लड़कियों के दिलों पर छाया हुआ था। उन दिनों दिलवाले दुल्हनिया ले जायेगे फिल्म आई थी। कॉलोनी के हम सभी लड़के-लड़कियाँ फिल्म देखने गये थे। गुरूवंश और बबनी ने पहली और आखिरी दफा वह फिल्म देखी थी। फिर कभी मौका नहीं मिला। या यूँ समझिए कि मौका लगने पर फिल्म देखने के बजाए एक-दूसरे को देखना उन्हें ज्यादा मुनासिब लगा। एक दिन बबीता ने गुरूवंश को यह कहते हुए पत्र दिया कि ’’यह लो बबनी ने दिया है।’’ बेताबी में पत्र को तत्काल खोलकर पढने लगा। बबीता मुस्कुराकर चली गई।
’’कैसे हो। क्या तुम्हे कभी मुझसे मिलने का मन नहीं करता। तुम टी.डी.बी कॉलेज कल 8 बजे सुबह पहुँच जाना। कल हम वहाँ मिलेगे।’’ पत्र में बस इतना लिखा था। अक्सर मिलने की प्लानिंग उसके हिसाब से ही होती थी। खैर गुरूवंश को उस रात भर नींद नहीं आई। अगले दिन सुबह उसने हल्दी और बेसन से रगड-रगड़ कर नहाया। दरअसल उसकी माँ और दीदी भी ऐसे ही नहाती थीं। उसे ऐसा लगता कि वह इससे ज्यादा खूबसूरत दिखने लगेगा। सच कहूँ तो जब भी उसे मिलना होता वह ऐसे ही नहा कर जाता था। वह सही समय पर कॉलेज पहुँच गया। मेंन गेट पर बबीता उसका इन्तजार कर रही थी। बबीता उसे और बबनी को एक क्लास रूम में बैठा कर चली गई। जो पहले से शायद लव पाॅइन्ट बना हुआ था। क्लास के सामने लगे ब्लैक बोर्ड पर लिखा हुआ था ’’ पिंकी! आई.लव.यू।’’ ’’राधिका मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।’’ प्यार के साथ-साथ बोर्ड में नफरत भी फूट रहा था। ’’राजू आई हैट यू!’’गुडडू अब अपनी शक्ल मुझे मत दिखाना। ’’इत्यादि ना जाने इस तरह की कितनी बातो से बोर्ड भरा पडा था। वह और बबनी एक बेंच के कोने में बैठ गये। दोनो बोर्ड की तरफ देखने लगे। वो दोनो चुपचाप बैठे रहे। इस बीच कई प्रेमी जोड़े आते और कुछ देर बैठ कर चले जाते। वो दोनो उस प्रेमी जोड़ो को देखने लगते। मगर कोई भी जोड़ा उन दोनों को नहीं देखता था। बीच की चुप्पी को बबनी ने ही तोड़ा,’’क्या इसी तरह चुप बैठने के लिए आये हो।’’
गुरूवंश फिर मुस्कुराकर चुप हो गया। ना जाने क्यों वो दोनो जब भी साथ होते तो शरमाते हीे रहते थे। गुरूवंश ने कहा,’’चुप तो तुम भी बैठी हो।’’
’’जब तुम ही चुप बैठे हो तो मैं क्या कहूँ।’’
’’अच्छा ठीक है बताओ। तुम कैसी हो।’’
’’मैं ठीक हूँ अपनी सुनाओ।’’
’’मैं भी ठीक हूँ।’’
’’तुम्हारा मुझसे मिलने को दिल नहीं करता था।’’
’’क्यों नहीं?’’
’’फिर कभी,कहा क्यों नहीं।’’
’’समझ में नहीं आया कि कैसे, कहाँ और कब, मिलें?’’
’’चलो, कोई नहीं। हर दिन तो तुम्हे देख ही लेती थी।’’
’’कहाँ देख लेती थी?’’
’’हर दिन शाम को गेट पर आकर खड़ी हो जाती हूँ।’ फिर जब भी तुम रास्ते से गुजरते हो मैं तुम्हें देख कर चली जाती हूँ।’’
गुरूवंश उसके गेट के सामने से अक्सर श को गुजरा करता जब तक कि वह गेट के पास आ ना जाये। इस वजह से अक्सर गुरूवंश कॉलोनी में ही रहता था। कॉलोनी के बाहर कहीं नहीं जाता था। सही मायने में मौसम के हिसाब से काँलोनी के दोस्त कुछ ना कुछ खेल खेलने मैदान में जाया करते थे। जैसे की क्रिकेट फुटबाल इत्यादि। कॉलोनी में हर किसी की कोई ना कोई हाॅबी थी। हर कोई किसी न किसी को अपनी हाबी से जोड़ता रहता था। उसे भी लोग अपनी किसी हाॅबी से जोड़ना चाहते थे। पर वो जुड़ नहीं पा रहा था। प्यार में पड़ने के बाद उसने फिर नाटक भी नहीं किया। हाँ तो बबनी के घर के बरामदे में पाँच फुट का लौहे का गेट था। उस गेट के पीछे खड़ी हो जाती थी। जिससे बाहर की तरफ सिर्फ उसका सिर निकला रहता था। बबनी करीब पाँच फुट तीन इंच की थी। जितनी ज्यादा उसकी हाइट थी उसके बाल उतने ही छोटे थे। दरअसल वो अपने बाल ब्लैड कट रखती थी। सिर पर हमेंशा हेयरबैंड लगाकर रखती। कमर उसकी पतली और हिप चैडी थी। सड़क के किनारे ही एक छोटी सी गुमटी थी। उसकी विशेषता यह थी कि सालों साल बंद रहती थी। सिर्फ और सिर्फ होली के दिन खुलती थी। वो भी सुबह-सुबह। यह गुमटी कॉलोनी में ही रहने वाले की थी जिसका नाम भगना था। कॉलोनी के लोग उसे भगना मामा कहते थे।
जैसे ही वह बबनी को गेट पर देखता तो इसी गुमटी के पास कुछ पल के लिए रूक जाता था।
उस दिन वो दोनों लव पाइन्ट पर काफी देर तक बैठे रहे। दोनो एक दूसरे की कम और दुनिया जहान की बातें ज्यादा कर रहे थे कि मेरे गर्ल फ्रेंड का दोस्त ऐसा है,वैसा है। वह उसे ऐसा कहता है। उसका उसके साथ चक्कर है। वगैरह....वगैरहं....। हाँ इस बीच बबनी की दीदी आई और उसे देख कर बोली ’’अरे तुम दोनो अभी तक गये नहीं?’’