आवारा अदाकार - 3 Vikram Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आवारा अदाकार - 3

आवारा अदाकार

विक्रम सिंह

(3)

उसने कहा, ’’अब तुम दोनों निकल जाओ।’’

वह चुप रहा। बबनी ने ही कहा,’’बस दीदी! थोड़ी देर में चले जायेंगे।’’

यह सुन बबीता अपना क्लास करने चली गई। दोनो फिर दुनिया जहान में खो गये। थोड़ी देर बाद बबनी ने उसे पूछा,तुम मुझे कभी छोड़ोगे तो नहीं?

उसने सिर हिला कर ना किया।

उसने दूसरा सवाल दागा,’’हम दोनो शादी कब करेंगे।’’

वह हक्का-बक्का सा रह गया। उसे कोई जवाब ही नहीं सूझा। बिना कुछ सोचे समझे कह दिया,’’दस साल बाद कर लेंगे।’’

बबनी ने बड़े आष्चर्य से कहा,’’दस साल बाद। तब तक तो बुढे हो जायेंगे।’’

गुरूवंश को यह समझ नहीं आया कि अपनी 14-15 साल की उम्र थी। दस साल में तो पैरो पर खड़े होंगे। मतलब शादी का सही समय। खैर गुरूवंश को ऐसा लगा कि वो अपने उम्र से दस साल आगे चल रही है। उसने बात को बदलते हुए कहा,’’जब मेरी नौकरी हो जायेगी, शादी कर लेंगे।’’

उसे गुरूवंश की यह बात पसंद आई और वो मुस्कुरा दी।

एक बार फिर बबीता आ गई। कहा,’’अभी तक गये नहीं? कब जाओगे?’’

बबनी ने कहा,’’थोड़ी देर में चले जायेंगे। आपको हो क्या रहा है?’’

उसके गुस्से को देख वो वापस चली गयी।

वो दोंनो फिर अपनी दुनिया में खो गये। उन दोनों के सिवा क्लास में कोई नहीं था। क्या आप सोच सकते हैं कि एक अकेली लड़की उसके पास बैठी थी और वह उसे एक किस तक नहीं कर पा रहा था। शायद इसलिए भी कि प्यार में सेक्स नहीं होता और जहाँ सेक्स होता है वहाँ प्यार नहीं ठहरता। उन दोनों के बीच प्यार किसी गहराई तक मोजूद था। इसलिए सेक्स तो था ही नहीं। खैर वो दोंनो किस्से-कहानियों में इस तरह खो चुके थे कि बाहर सूरज लाल हो चला था। अचानक एक चपरासी आया और उन दोनों को कहने लगा,’’अब रात यहीं बिताने का इरादा है क्या?

वो दोनो वहाँ से निकल पडे। चूंकि बबीता ने पहले ही कह रखा था कि शाम तक उसका क्लास है। इसलिए वह दोनों रिक्शे तक साथ गये। फिर वो रिक्शे मैं बैठ जाने लगी। रिक्शा में बैठकर वो पीछे ही देखती रही।

ठीक सप्ताह भर बाद गुरूवंश ने दोबारा मिलने का प्लान किया तो पता चला कि कॉलेज का वह लव प्वाइन्ट हमेशा के लिए बंद हो गया। अर्थात वहाँ ताला लग गया। उसे हंसी आ गई कि कॉलेज के पहली मुलाकात में हम सबने ऐसा करामात कर दिया। मगर वह सोच में भी पड़ गया कि अब कहाँ मुलाकात करे। उन दिनों नवीं की परीक्षा नजदीक थी मगर कई बार किताबें हाथ में होने के बाद भी वह प्लान बनाता रहता कि आखिर कहाँ जाकर मिला जाये।

दुर्गापुर में एक पार्क हुआ करता कुमार मंगलम पार्क जो प्रेम पार्क में तबदील हो चुका था। दूर दराज से आकर प्रेमी जोड़े यहीं अपना समय बिताया करते। उन्हीं दिनो गुरूवंश को भी इस पार्क का पता चल गया। हमारे कॉलोनी से वह पार्क करीब 30 कि.मीटर की दूरी पर था। उसने बबीता को बता दिया कि वह बबनी को लेकर इसी पार्क में जाया करेगा। अब होता यूँ कि बबीता कॉलेज के समय उसे बस स्टाॅप पर छोड़ देती और वो दोनों पार्क में चले जाते। ठीक कॉलेज खत्म होने के समय वह दोनों वापस आ जाते। महीने में एक दो बार वह पार्क जरूर हो आते थे। कभी कभार गुरूवंश मुझसे भी 100 रूपये उधार लेकर जाया करता था। उन दिनो सौ रूपये काफी हुआ करते थे। वैसे भी बंगाल में बस से लेकर रिक्शा तक का किराया काफी कम था। सही मायने में इस पार्क ने दोनों को और नजदीक ला दिया था। इस पार्क में बैठे वो कई तरह के स्वप्न सजाते रहते थे। खास कर साथ जीने मरने के स्वप्न। स्वप्न में होता था उनका अपना घर,गाड़ी,बच्चे,। पार्क में वह असल जिंदगी से बहुत दूर होते। जब दोनों पार्क में होते तो फिर दिन जल्दी बीतता जाता था। पर दोनो यही चाहते कि दिन कभी खत्म ही न हो। मगर उनका चाहा कुछ भी नहीं हो पाता था। मुँह लटकाये वापसी करनी होती थी।

पार्क से आने के बाद कुछ देर तक ऐसा लगता जैसे वो पार्क में ही हों। एक दूसरे की बात सोचकर मुस्कुराते रहते। कई बार गुरूवंश हम मित्रों के पास होता। मतलब शरीर हमारे पास होता और मन कहीं और। वो अपने आप मुस्कुराने और मन ही मन बड़बड़ाने भी लगता। ऐसे हाल में देखकर हम सब उसे बावला समझते। हाँ, तो इस बावलेपन की वजह से वह नवीं की परीक्षा में किसी तरह खींच तान कर पास हो गया। उसके बाद भी उसके बावलेपन में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। ऊधर बबनी का भी यही हाल था वह भी किसी तरह खीच-तान कर पास हुई थी। मगर उसका बावलापन कुछ जरूर उतर गया था। मगर प्यार का भूत अभी उतरा नहीं था। अब आगे इसका परिणाम यह हुआ कि दसवीं में गुरूवंश थर्ड डिवीजन में पास हुआ। बबनी मेथ में कम्पार्टमैंट हो गई। इस तरह बबनी और गुरूवंश के क्लास में ही नहीं बाकि दोनो के बीच गैप हो गया। घर में माँ-पापा से लेकर बबीता तक उसे पढ़ने के लिए कहने लगे। बबीता ने तो फेल का रिजल्ट देखते ही कहना शुरू कर दिया था। ’’मैं तुम्हे शुरू से समझा रही थी कि अपने प्यार को अपने उपर इतना हाबी मत होने देना कि तुम्हारी पढ़ाई ही खराब हो जाये। अब देखो हो गया न सब कुछ गड़बड़।’’

कुल मिलाकर बहुत सारी नसीहते मिलने के बाद भी वह दूसरी बार भी कम्पार्टमैंट हो गई। नसीहतों का असर इतना था कि मिलना जुलना,चिट्ठी पत्री तो बंद थी मगर दिमाग में चल रही प्यार की हलचल को नहीं रोक पाई थी। घर वालों ने उसे तीसरी बार भी परीक्षा देने की इजाजत दी मगर उसके जमीर ने उसे परीक्षा देने की इजाजत नहीं दी। घर वालों ने उसे सिलाई-कढ़ाई सीखने में डाल दिया। इधर गुरूवंश खींच-तान कर थ्रर्ड डिवीजन से 12 वीं भी पास हो गया । उसने कॉलेज में दाखिला ले लिया। कुछ मित्रों का मानना था कि प्यार में जितना गुरूवंश पागल नहीं था उससे कहीं ज्यादा बबनी पागल थी। इस वजह से वह पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाई। खास कर यह बात बबनी की दीदी बबीता ही कहती थी। उसका तो यह भी कहना था कि अगर गुरूवंश ने कभी बबनी को छोड़ दिया तो वह पागल हो जायेगी। मगर मित्रों! जहाँ तक मैं जानता था। बबनी तो बबनी गुरूवंश भी उतना ही पगलाया हुआ था। क्योंकि कुछ लोगों का पागलपन दिखता नहीं महसूस होता । जो मैंने अक्सर किया था। यह सबको तब पता चला जब बी.ए पास कर हम सबने एम.ए में नाम लिखाया था। एक दिन टाटा सुमो से भरी गाड़ी बबनी के घर के बाहर खड़ी हो गई। बबीता को देखने के लिए लड़के वाले आये थे मगर बबीता की जगह बबनी पर उनकी नजर टिक गई। कुछ दिनों बाद ही अगुवा ने यह कहा कि,देखिये लड़के की माँ को तो बबनी ज्यादा पसंद आई है। कह रही थी छोटी का रिश्ता दे तो तैयार हैं।’’

……..

पिता जी ने कहा,बड़ी बेटी कुँवारी हो तो छोटी की शादी कहाँ से कर दूँ।’’ फिर बात बनी नहीं। ऐसे ही करीब तीन-चार बार बात नहीं बनी। हर बार बात ना बनने की वजह बबनी ही होती। यह देख माँ ने दुखी हो यह कह दिया,’’पहले बबनी का ही व्याह कर देते हैं।’’

आये दिन हर चबूतरे और चाय दुकान तक बबीता के व्याह की ही चर्चा होने लगी थी। अक्सर बबनी की माँ शाम के वक्त औरतों के साथ टहलने जाया करती थी। वो लोग भी अक्सर बबनी की माँ से बबीता के रिश्ते के बारे में पूछ लेते थे। हर बार बबनी की माँ कुछ न कुछ बहाना मार देती थी। जैसे कि लड़के वाले दहेज ज्यादा मांग रहे थे, लड़के का रंग बहुत काला था, लड़का पीता भी था वगैरह.....वगैरह...। सही मायने में बबनी की माँ को औरतों के वाक्यों के भीतर ताने छिपे लगते थे। इसलिए बबनी की माँ भी हर बार चिढ़ कर यह सब कह देती थी। हर बार वह वो यही कहती थी कि रिश्ते उन्होंने ही ठुकराया है। मगर किसी ने सही कहा है कि सांच को आंच नहीं। लड़कों के बीच यह बात फुदकते-फुदकते गुरूवंश तक भी गई कि बबनी का व्याह उसके मम्मी-पापा जल्द कर देंगे। जब बबली ने पढ़ाई छोड़ी थी तो मम्मी-पापा को उसकी चिंता ज्यादा सता रही थी। मगर ईश्वर ने गणित ऐसा चला दिया कि बबनी की चिंता कम और बबीता की ज्यादा होने लगी थी। जब गुरूवंश को यह बात पता चली की बबनी की शादी कहीं जल्द हो जायेगी। तो वह उसके घर के बाहर चहलकदमी करने लगा कि कब उसके मम्मी-पापा घर से बाहर निकले और वो उसे फोन लगा कर बात करे। दरअसल जब से बबीता के लिए लड़का ढूँढना शुरू हुआ था। उनके पिता ने एक फोन कनेक्शन अपने घर भी लगा लिया था। नही तो इसके पहले वह सारा काम पी.सी.ओ से करते थे। मगर पी.सी.ओ में कोई गुप्त बात करने से वह घबराते थे कि कहीं कोई सुन न ले। खैर दूसरी सबसे जरूरी कि वह कोलियरी में हाजरी बाबू थे। तो ऐसे लोग जो डूयटी ना जा कर पैसे देकर हाजरी बना लेते थे। वह फोन पर ही बता देते हाजिरी बाबू हाजिरी लगा दीजिएगा। पैसे घर पहुंच जाते। उस दिन गुरूवंश उसके घर के बाहर काफी देर तक चक्कर लगाता रहा। मगर मौका नहीं लगा। कई दिन चक्कर लगाने के बाद जाकर एक दिन मौका लगा। उस दिन उसने पी.सी.ओ से उसे फोन लगाया। इत्तेफाक से फोन बबनी ने ही उठाया। ’’हैलो उत्तम जी हैं। कह दीजिएगा हाजिरी बना देने के लिए।’’

’’किसकी हाजिरी बनाने के लिए कहूँ गुरूवंश की या उसके पापा की।’’

’’पहचान गई?’’

’’तो क्या?,तुम्हारी आवाज पहचान नहीं पाऊँगी।’’

’’और बताओ कैसी हो?’’

’’मैं ठीक हूँ। अपनी बताओ।’’

’’बहुत अच्छा हुआ तुम्हारे पापा ने फोन लगा दिया।’’

’’हाँ तुम्हारे लिए लगाया है।’’

’’गुरूवंश हंसा। ’’चलो अब से चिट्ठी-पत्री देने का झमेला भी खत्म। मैंने सुना है तुम्हारी शादी की बात चल रही है?’’

’’नहीं ऐसा कुछ नहीं है। तुम चिंता मत करो। पहले दीदी की होगी फिर पापा मेरे बारे में सोचेेंगे। कह रहे थे दीदी के व्याह के बाद मेरा व्याह जल्द कर देंगे।’’

यह सुनते ही गुरूवंश का जी मिचलाने लगा। उसे ऐसा लगने लगा जैसे वो किसी चीज को जोर से पकडने की कोशिश कर रहा है और वह उसके हाथ से फिसलती जा रही है। ठीक ऐसा ही गुरूवंश के पिता भी महसूस करने लगे थे कि लड़का हाथ से निकलता जा रहा है। दरअसल उस दिन के बाद से गुरूवंश का पढ़ने लिखने से मन उठ गया। वो नौकरी की तलाश मे लग गया। कई सारी नौकरियों के फार्म भरने लगा। मगर फार्म भरने के बाद इतनी जल्दी नौकरी मिलने वाली नहीं थी। उसे अपने जीवन में बहुत जल्दी कामयाब होना था। वो फाइल लेकर कई प्राइवेट कम्पनियों में नौकरी खोजने लगा। वह कई प्रोडक्शन कम्पनी में भी नौकरी के लिए जाता और वापस आ जाता। कई-कई कारणो से नौकरी नहीं मिल पा रही थी। पिता उसे आगे पढ़ने के लिए कहते कि अभी तो में नौकरी कर रहा हूँ। तुम एम.ए कर आगे की पढ़ाई करो। मगर एम.ए से आगे की पढ़ाई तो दूर वह एम.ए की पढ़ाई छोड़ बैठा। कई दोस्त-यार गुरूवंश से पूछते,’ तुमने पढ़ाई क्यों छोड़ दी?’’ पर उसके पास कोई वाजिव जवाब न होने के कारण वह इतना ही कहता,’’बस ऐसे ही यार।’

बबनी के घर गाड़ियों का आना-जाना लगा रहा। मगर इसी बीच एक रिश्ता पक्का भी हो गया। मगर लड़का एम.एस.सी पास था और नौकरी की तलाश में था। मगर फिलहाल टयूशन पढ़ा कर काम चला रहा था।

हमारे इस कोलफील्ड बेल्ट में कई प्राइवेट कम्पनियाँ कोयला निकालने का काम करती थीं। अब आप को एक सच बात बता दूँ। कॉलोनी के कई ऐसे बेरोजगार जिन्हें कही नौकरी नहीं मिल रही थी। वो सब ऐसे ही प्राइवेट कम्पनियों में नौकरी करने लगते थे। कुछ तो ऐसे भी थे, जिन्होने किराना दुकान से लेकर चाय-पान की दुकान तक खोल ली थी। ऐसे चाय-पान की दुकानों में कॉलोनी के कई बेरोजगार बैठे मिल जाते थे। कुछ तो ऐसे भी थे। पिता के रिटायर होने के बाद फंड के पैसे से छोटा हाथी से लेकर टाटा हायवा डम्पर तक ले लिया था। प्राइवेट कोयला खद्यानों में उनकी गाड़ियाँ कांन्टेक्ट में चलती थीं। कुछ ऐसे थे जिनके पिता उनकी नौकरी होते ही स्वर्ग सिधार गये थे। उनके एवज में किसी एक बेटे को नौकरी मिल गयी थी। ज्यादातर ग्रेजुएट लड़के सहारा जैसी चिटफन्ड कम्पनी के ऐजेंट बन गये थे। देखते ही देखते कुकुरमुत्तों की तरह कई चिटफन्ड कम्पनियाँ खुल गई थीं। ग्रेजुएट एजेंट साइकिल पर सवार सुबह से शाम तक चाय-पान की दुकान से लेकर चाट और ठेले वालों से दस बीस रूपये का कलेक्शन करते रहते थे। कुछ मित्रों ने उसे ऐजेंट बन जाने को कहा। मगर इस काम में तरक्की मिलने में लम्बा समय लगता इस वजह से उसने यह काम स्वीकार नहीं किया। खैर चाय दुकान में ही गुरूवंश की नौकरी पक्की हुई थी। उसे प्राइवेट कोयला खद्यान में मुंशी की नौकरी मिल गयी थी। उसने उसे स्वीकार कर लिया। मगर जल्द ही वह इस नौकरी से उकता गया। दरअसल हुआ यूँ कि फील्ड में डम्पिंग के वक्त वह डम्पर के ट्रिप लिख रहा था उसी वक्त एक बुल-डोजर आॅपरेटर ने फेस मार कर डोज खड़ा कर उसके पास आ गया। उसे पूछा,’’नये आये हो क्या?’’