पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 21 harshad solanki द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 21

पर इस बार उन आदिम लोगों ने अश्रुगेस से बचने का तरीका निकाल लिया था. वे इस वक्त दो दो, तीन तीन के झुंड में छितरबितर हो कर लड़ रहे थे. इसलिए अश्रुगैस वाली तरकीब इस बार काम न आई. और राजू की टीम के दो साथियों को आदिम लोगों ने पकड़ लिया. पर बाकी लोग सामान के साथ वापस खोह की और भागने में सफल रहे.
उन्होंने खोह पर वापस लौटकर सारा घटनाक्रम अपने साथियों को बताया. और दो लोगों के पकड़े जाने का हाल भी कह सुनाया. पकड़े जाने वालों में पिंटू और दीपक थे. अब उनको कैसे छुड़ाया जाए, इस फिक्र में सब पड़े.
पर तभी वे आदिम लोग पिंटू और दीपक को उठाये खो के सामने आ पहुँचे. उनके हाथ पैर बंधे हुए थे. दोनों को एक ख़ास जगह पर लेटाया गया. साथ ही उनके पास से छीनी गई धन की पोटलियाँ भी बगल में रखी गई.
"ओह! ये तो बलि स्थान है! ये हरामखोर उसे बलि चढ़ा देंगे! जल्दी कुछ करो!" वक्त को भाँपते हुए रफीकचाचा जोर से चिल्ला उठे.
अब बड़े संघर्ष की परिस्थितियाँ पैदा हो चुकी थी. आगे होने वाले टकराव की अगवाई भीमुचाचा ने संभाल ली. वही तो ऐसी विकट परिस्थितियों के लिए एकमात्र काबिल था. वे आदिम लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे, पर अब वे वक्त के हाथों मजबूर थे. फिर भी भीमुचाचा ने कुछ सोचकर तुरन सभी को कुछ निर्देश दिए. सब त्वरा से भीमूचाचा के कहे मुताबिक एक्शन में आ गए.
यहाँ तीन चार आदिम लोगों ने चाबुक से पिंटू और दीपक को मारना पीटना आरम्भ कर दिया. और चार लोग कमान पर तीर चढ़ाए सामने खड़े हो गए. अन्य लोग भी तीर कमान, पत्थर, लकड़ी इत्यादि जो भी था, हाथों में थामे तैयार थे.
पिंटू और दीपक के सामने खड़े वे चारों तीरों को छोड़ने की तैयारी में ही थे. पर तभी उन्होंने कुछ ऐसा देखा कि उनके हाथों से तीर फिसल गए. और वे खुद अपनी जान की फिक्र में पड़ गए.
भीमुचाचा का निर्देश पाते ही उनके साथियों ने तुरंत तीर कमान थामे लोगो की और पटाखों के रोकेट छोड़ दिए. इस विचित्र चीज को आग उगलते हुए अपनी और तेजी से बढ़ता देख उन चारों के हाथों से तीर कमान गिर पड़े. और पीछे हटकर मुश्किल से उन्होंने अपने आप को रोकेट से बचाया. दूसरी और अन्य आदिम लोग कुछ करते, इससे पहले ही अश्रुबम के गोले उनके झुंड पर बरस पड़े. काफी लोग अपनी आंखों को मलते रह गए. पर कई आदिम लोग इस बार अश्रुबम की करामात से परिचित थे. अतः, वे छितरे हुए खड़े थे. और इसलिए उनपर अश्रुबम का कोई असर न हुआ.
पर वे कुछ हरकत में आते, इससे पहले एक जबरदस्त धमाका हुआ. और आंखों के सामने धुंध छा गई. कुछ भी देखना मुश्किल हो गया. सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी. और जब धुंध हटी, तो उन्होंने देखा, जिन दो लोगों को वे उठा लाए थे, वे सामान सहित गायब थे. वे सारे भौचक्के रह गए.
यह भीमुचाचा की करामात थी. उसने अपने साथियों को कुछ संकेत करते हुए एक हथगोला मिट्टी के टीले पर पटक दिया. इससे जबरदस्त धूल मिट्टी का गुबार उठा. और इससे हवा बिलकुल छन गई. जब तक हवा साफ़ होती, तुरंत अन्य साथी दौड़ कर पिंटू और दीपक को सामान की पोटलियों सहित उठा लाए. उनके बंधन खोल दिए गए. अब वे भी उठकर आदिम लोगों का सामना करने के लिए तैयार थे.
वे अब खोह में वापस घुस गए. और आगे क्या किया जाए, इसके बारें में सोचने लगे. अभी भी चार संदूकों के सामान की धुलाई बाकी थी. अब इसे कैसे निकाला जाए, सोचने लगे. क्यूंकि धन की धुलाई के दौरान, मार्ग में उनका जो हाल हुआ था, वह भी सोचने योग्य था.
पर तभी खोह के दोनों मुहानों से तीरों की बरसात शुरू हो गई. सारे आदिम लोगों ने मिलकर तीरों की बौछार कर दी थी. सभी नौ साथियों को खोहद्वार से हटकर आड़ में छिपना पड़ गया. अभी तो तीरों की बौछार जारी ही थी कि पत्थरों की भी बौछार होने लगी. थोड़ी देर तक यह हाल जारी रहा. फिर खोह के मुहानों पर कोई भारी चीज गिरने की आवाज़ सुनाई देने लगी.
यह क्या हो रहा है, यह जानने के लिए राजू ने जरा खोह के मुहाने पर झांक कर देखा. "ओह! ये लोग तो बड़े बड़े पत्थरों से खोह का मुहाना बंध कर रहे हैं!" राजू चौंकते हुए चिल्लाया.
"मतलब ये लोग हमें खोह में ही बंध कर देना चाहते हैं!" भीमुचाचा ने कुछ सोचते हुए कहा.
"कहीं हमने खोह में वापस घुसकर गलती तो नहीं कर दी?" राजू ने चिंतित होते हुए पूछा.
"वो तो वक्त ही बताएगा. पर ये गंवार लोग भी युद्ध कला में बड़े उस्ताद हैं!" भीमुचाचा ने आदिम लोगों की तारीफ में स्वर निकाला.
अब खोह का छोटा मुहाना बिलकुल बंध हो गया था. और बड़ा मुहाना भी सिर्फ ऊपर से थोड़ा खुला था. सभी लोग चिंतित हो गए.
"अब तो जल्दी ही कुछ सोचना पड़ेगा. वर्ना हम यहीं घुट के मर जाएंगे." राजू ने व्यग्र स्वर में कहा.
"देखो, हम सिर्फ नौ लोग हैं. हमें धन की धुलाई करनी हैं. इस दौरान मार्ग में आदिम लोगों से सुरक्षा भी करनी हैं. और खोह पर रहकर उन आदिम लोगों को खोह में दाखिल होने से रोकना भी हैं. यह सभी कार्य हम इतने लोग एक साथ नहीं कर सकते!" भीमुचाचा ने चिंतित होते हुए कहा.
"तो फिर क्या किया जाए?" राजू ने पूछा.
बाकी के मेम्बर्स भी दोनों की बातें बड़ी व्यग्रता से सुन रहे थे.
"पहले तो हम यहाँ से निकलने का कोई बंदोबस्त करते हैं. और ये जो चार संदूकें रह गई हैं, उसे भी सामान सहित खोह से बाहर निकाल लेते हैं. फिर जो होगा सो देखा जाएगा." भीमुचाचा ने कहा.
सब भीमुचाचा के साथ सहमत हुए.
फिर भीमुचाचा ने छोटे मुहाने पर पत्थरों के बीच तीन हथगोले लगा दिए. और सब को खोह में अन्दर की और सुरक्सित दूरी पर कर दिया. फिर एक हथगोला हाथ में ले उस मुहाने के पत्थरों पर दे मारा. वह हथगोला फट पड़ा. इसकी चिंगारी से पहले वाले तीन हथगोले भी फट पड़े. इससे अत्यंत भीषण धमाका हुआ. और काफी पत्थर अन्दर बाहर बिखर गए. पूरी गुफा हिल उठी. सारे साथी भय से कांप उठे. ऐसा लगा, जैसे अभी गुफा की छत गिर पड़ेगी. ऊपर से धूल मिट्टी और कंकरों की भारी बौछार होने लगी. पर इससे छोटे मुहाने का बड़ा हिस्सा खुल गया.
इसके साथ ही बाहर चीख पुकार मच गई. धमाके की वजह से बिखरे पत्थर टॉप के गोले की तरह छुट पड़े थे. और उसने बाहर खड़े कई आदिम लोगों को घायल कर दिया था. मुहाने के नजदीक खड़े लोग ज्यादा चोटिल हुए थे. कई लोग उनके पास इकठ्ठा हो गए. सब का दिमाग सन्न रह गया था. ये क्या हो गया? ये लोग कौन है? और कहाँ से आये है? बड़े आफत की पूड़ियां मालुम हो रहे है? ऐसा ही कुछ वे सोच रहे थे.
फ़ौरन भीमुचाचा ने बाहर निकल कर एक बेकप तैयार किया. उसने पटाखों, फ़व्वारों और चक्रियाँ छोड़ कर बाहर खड़े आदिम मनुष्यों को चौका दिया.
अब आदिम लोगों का ध्यान घूमती और आग बरसाती इस चक्रियों और फ़व्वारों पर जा टिका. वे गभराए. और पीछे हटे. वे बड़े ताज्जुब से इसे देखने लगे. क्या करे क्या न करे, वे इस दुविधा में पड़े हुए थे. तब तक अन्य साथी संदूकों सहित सलामत बाहर निकल आए.
जैसे ही सब बाहर निकले, उन्होंने भी रास्ता रोके खड़े आदि मनुष्यों को मार्ग से हटाने के लिए पटाखों के फ़व्वारे एवं चक्रियाँ छोड़ना आरम्भ कर दिया. फ़व्वारों और चक्रियों से निकलते आग के गोले आदिम लोगों के पैरों और बदन पर गिरने लगे. इस आफत के गोलों ने बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया. बदन पर लगते ही वे आदिम मनुष्य हाथ पैर उछालते पटकते और चीख पुकार मचाते भागे. और थोड़ी दूर जा खड़े रहे.
अब रास्ता साफ़ था. संदूकों को उठाए सब आगे बढ़े.
भीमुचाचा किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार थे. रात भी बहुत हो चुकी थी. और उन आदिम लोगों के कुछ लोग घायल भी थे. अतः, उन्हें उनकी फिक्र ज्यादा थी. और वे उस वक्त ज्यादा प्रतिकार करने की हालत में भी नहीं थे. इसलिए राजू और उनके साथियों को भाग निकलने का मौका मिल गया.
फिर भी उन्हें ऐसा जरूर लगा कि वे आदिम लोग छिपते छिपाते उनका पीछा कर रहे हैं. पर रात के दौरान नई कोई आफत पैदा न हुई.
अब उन्होंने संदूकों से सारा धन निकाल, अन्य धन के साथ जमीन में गाड़ दिया. और अपने पड़ाव पर जाते वक्त मार्ग में खाली संदूकों को जंगल में छोड़ दिया.
उन्हें ऐसा विश्वास था कि वे आदिम लोग इस संदूकों को खोजते हुए जरूर आएँगे. और इस संदूकों को पा, वे उनका पीछा छोड़ देंगे. पर उन्हें क्या पता था कि वे जिसे गंवार मान रहे हैं, वे इतने नादान नहीं थे. और दिमाग के मामले में तो वे उनके भी बाप साबित होने वाले थे. उनसे पीछा छुड़ाना भी उन लोगों के लिए इतना आसान साबित नहीं होने वाला था.
क्रमशः
अब कौन सी नयी मुसीबत राजू और उनकी टीम के लिए वे आदिम लोग पैदा करने वाले हैं? राजू और उनके साथी क्या उनसे पीछा छुड़ा पाएंगे? अगले हप्ते पढ़े.
कहानी अब अत्यंत रोमांचक हो चुकी है, अतः आगे पढ़ते रहे.
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी.