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स्त्री

एक स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
कभी कभी बिना गलती के भी रोती है,

समाज के तानो से डरती है,
फिर भी पीछे ना हटती है,


एक स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
अपने आप में ही संसार होती है,

तुम्हारे जीवन को संवारती है,
तुममें ही अपने आप को तलाशती है,

एक स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
तुम्हे क्या पता तुम्हे पाने के लिये क्या क्या खोती है,

तुम्हारी एक हंसी के लिये ,
जरा सी मुस्कुराहट के लिये ,
अपना मजाक बना देती है,

तुम्हे खुश देखने के लिये,
तुमसे प्यार पाने के लिये,
ना जाने उसने कितने दुख सह लिये,

उसे कहां फर्क पड़ता है जमने से,
भुल जाती है सारा गुस्सा ,
तुम्हारे मनाने से,

जरा जरा सी बात पर रूठने वली,
कभी मस्करा , तो आई लाईनर,
कभी दोस्तों तो कभी रिस्तेदरो से घीरे रहने वली,
तुमसे एक ही सवाल पूछती है ,
कब मिलेगा तुम्हरा समय मुझे खाली?

मन से मन जोडने आयी थी,
नये सपने सजाने आयी थी,
तुम क्या जानो तुम्हारे लिये क्या क्या पीछे छोड आयी थी,


एक स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
थोडा सा तुमसे समझदरी में बड़ी होती है,

जिस नाम को सुनकर इत्रराती थी कभी,
मन ही मन मुस्कुराती थी कभी,
ऐसा क्या हो गया जो हुआ था तभी?

साथ निभाने का वादा किया था उम्र भर,
ऐसा क्या हो गया जो दे ना पाये अपने जीवन के पल भर?

एक स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
थोडी सी खुशी के लिये कुछ ज्यादा ही सह रही होती है,

इतने शृंगार का मतलब क्या है,
जब तुमने सोचा ही नही की उसके मन में क्या है,

साथ ना हो तुम्हरा,
तो कैसे दिन गुजरेगा उसका,
यह तो सोच भी ना सक्ती दोबारा,

स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
कभी कभी बिना गलती के रोती है,
मानते हो ना बहुत खूब होती है,

जिन आँखो में तुम कभी खो जाते थे,
यकीन मानो वही आँखें हैं येह जिन्हे देखे बगैर ही तुम कही और ही खो जाते हो,

चिड्या तो वो भी थी,
गुडिया तो वो भी थी,
शायद बाबूल की नजरें में कुछ खराबी होगी,
जिन्हे लगता था तुम मे ही उनकी बिटियाँ की खुशियों की चाभी होगी,
उसे क्या पता था,
उसे क्या पता था,
ये सारी बातें कितबी होगी,

स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
तुम्हे क्या पता तुम्हे पाने के लिये क्या क्या खोती है,

तुम करती क्या हो दिन भर?,
पड़ीं रहती हो घर पर,
कब तक खडी रहोगी मेरे सर पर,

अब पछ्ताती है वोह,
मांगती थी जो पल भर,
तुमने तो सुना दिया मन भर,


तुम आओगे तो साथ खाएंगे ,
करेंगे दो बातें,
याद करेंगे कई मुलाकातें,
खोलेंगे एक दूसरे के पुराने खातें,
एक दूसरे को पूरी रात ताकते ताकते,

लेकिन ना हुआ कुछ ऐसा,
सोचा था उसने जैसा,

एक बार फिर कर दिया तुमने दुखी,
जिसे कहते थे तुम चन्द्रमुखी,

खा लिया उसने ठंडी रोटी,
जो शायद तुम्हारे साथ गरम होती,

स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
कभी कभी बिना बात के रोती है,

जरा सा जो उसने उठाई आवज,
अपनी सम्मान का किया आगाज,
तुम तो होगए नाराज,

जैसे तैसे जोड़ा उसने अपने टूटते हुये घर को,
अपने टूटते हुये मन को,

फिर से व्यस्थ होने लगी,
अपने आप में ही नये सपने सँजोने लगी,
हो ना हो अब वो अपने आप में ही खुश रहने लगी,

स्त्री में बहुत शक्ती होती है,
कभी कभी बिना वजह रोती है,
क्या करोगे वोह तो ऐसी ही होती है।


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