आजकल की छोरियां टीना सुमन द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आजकल की छोरियां

यह आजकल की छोरियां

"सुना भागवान तुमने, तुम्हारा बेटा क्या कह रहा है, अपनी मर्जी से शादी करेगा, पढ़ी-लिखी नौकरी वाली बहू लाएगा, तुम्हें नहीं पता आजकल की छोरियां, शर्म हया तो इनमें होती ही नहीं है, इस पर ना बड़ों का आदर सत्कार है, ना कुछ घर का काम काज है, दिन भर बस अंग्रेजी में पटर-पटर | अरे ऐसी लड़कियां खुद को तो नहीं संभाल सकती, घर परिवार की इज्जत क्या संभालेगी, कह देता हूं सूरज बहू आएगी तो हमारी ही मर्जी से"

शोभा जी अपने पति की बात सुन बेचैन हुए जा रही थी, एक तरफ बेटे की ख्वाहिश है और दूसरी तरफ अपने पति का आदेश, शोभा जी खुद एक ग्रामीण परिवेश से है ऐसे में शहर की पढ़ी-लिखी नौकरी वाली लड़की, सोच-सोच कर ही शोभा जी के पसीने छूट रहे थे, तभी सूरज की आवाज गूंजी- मैंने कह दिया - पापा शादी करूंगा तो अपनी पसंद वाली लड़की से ही |वरना आप मेरी शादी का सपना भूल जाइए, जा रहा हूं मैं इस घर को छोड़कर फिर आपको जो अच्छा लगे वह करें, एक ही तो बेटा है ऐसे में वह भी घर छोड़कर चला जाएगा तो क्या होगा, यही सोचकर मां बाप ने शादी के लिए हां कर दी |

लीजिए आ गई मुस्कान शोभा जी की बहू बनकर, मुस्कान जैसा नाम वैसे ही गुण, चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट, रूप भी भगवान ने फुर्सत में दिया है और साथ ही गुण भी, ऊपर वाले ने कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी, मॉडर्न परिवार की बेटी और यहां पर सभी पुरानी सोच रखने वाले पर अपने मां-बाप के संस्कारों के साथ मुस्कान ने हर वह कोशिश की जिससे अपने सास-ससुर का दिल जीत सके |

बहू चाय में शक्कर कम क्यों है, यह चपाती देखो गोल क्यों नहीं बनाई, आए दिन शोभा जी मुस्कान के काम में कमियां निकालते रहते हैं, साथ ही घर के तरह तरह के काम बता कर उसको परेशान करती, मुस्कान का सूट पहनना शोभा जी और उनके पति को गंवारा नहीं था पर सूरज के सामने एक शब्द नहीं बोल पाते, सूरज ने ही कहा था मुस्कान को सूट पहनने के लिए क्योंकि साड़ी में उसको दिक्कत होती थी |

सुबह घर का सारा काम करती और फिर मुस्कान ऑफिस निकल जाती, शाम को वापस आकर फिर घर का सारा काम करती | सूरज ने जैसे-तैसे मां को मना कर एक कामवाली रख ली, मुस्कान को थोड़ा सहारा मिला, मुस्कान का हंस - हंस कर बातें करना, सूरज को नाम लेकर बुलाना और घर के हर फैसले पर अपनी राय रखना, सूरज के मां-बाप को बुरा लगता,सूरज के आस-पास ना होने पर शोभा जी कोई भी मौका नहीं छोड़ती मुस्कान को खरी खोटी सुनाने में, जैसे तैसे मुस्कान ने शुरू में तो सारी बातों को इग्नोर किया पर आखिर कब तक मुस्कान भी अब समझ चुकी थी |

धीरे-धीरे मुस्कान ने शोभा जी की बातों का विरोध करना शुरू किया, शोभा जी मुस्कान को हर एक बात में सुनाती- हम तो हमारे समय में ऐसा करते थे और तुम आजकल की छोरियां ऐसे करती हो, हम तो ऐसे करते थे हम तो वैसे करते थे, हम तो ऐसे रहते थे सिर पर पल्लू लेकर और तुम देखो जरा सी लाज शर्म नहीं है, घर में रहने का तुम्हारा मन नहीं होता जब देखो घर से बाहर जाने के बहाने ढूंढती हो, रुपयों पैसे का लेन देन करना मर्दों का काम होता है औरतों का नहीं पर तुम्हें तो ना ज़रा सी शर्म नहीं है, हर बात में सूरज से बहस करती हो, ना घर की फिक्र है ना लाज शर्म ना रीति रिवाज है, तुम आजकल की छोरियां क्या समझोगी घर परिवार को |

मुस्कान के सब्र का बांध टूट चुका था आखिरकार उसने पलटवार कर ही दिया "सही कहा मांजी हम आजकल की छोरियां आपके पुराने रीति रिवाज पुराने ख्यालात क्या जाने पर हम आजकल की छोरियां है, तो हम आज के ही रीति रिवाज और आज के ही ख्यालात जानेंगे ना,आज जिस तरह से जमाना बदल रहा है उसी के अनुसार चलेंगे | आज के हिसाब से जो सही होगा हम वही करेंगे, क्योंकि हम आजकल की छोरियां हैं | इतना कहकर मुस्कान अपने काम में लग गई और शोभा जी बडबडाती हुई बाहर चली गई |

एक महीने बाद सूरज की कंपनी बंद हो गई, कंपनी बंद होने से सूरज घर पर बैठ गया, अब घर की सारी जिम्मेदारी मुस्कान पर आ गई, घर का राशनपानी, बिजली का सारा खर्च मुस्कान अपनी सैलरी से उठाती, इन सारी मुसीबतों के बावजूद मुस्कान ने कभी भी सूरज या फिर अपने सास-ससुर को कुछ भी नहीं कहा, मुस्कान तो हमेशा सूरज का हौसला बढ़ाती | शोभा जी भी यह सब देख रही थी अब शोभा जी को मुस्कान का काम करना बुरा नहीं लगता|

अभी एक मुसीबत दूर नहीं हुई थी उस पर दूसरी मुसीबत आ गई, सूरज घर पर नहीं था नौकरी ढूंढने के सिलसिले में दूसरे शहर गया हुआ था, तभी अचानक किसी ने घर पर फोन किया शोभा जी ने फोन उठाया | सूरज के पापा का एक्सीडेंट हो गया है और कोई उन्हें लेकर हॉस्पिटल गया है, जल्द से जल्द शोभा जी को हॉस्पिटल बुलाया गया, अब शोभा जी सोच में पड़ गई बेटा यहां पर है नहीं, रुपया पैसा घर में है नहीं कैसे काम होगा | शोभा जी ने मुस्कान को फोन लगाया "मुस्कान तुम्हारे पापा का एक्सीडेंट हो गया है जल्दी से हॉस्पिटल जाओ" शोभा जी और मुस्कान जल्द से जल्द हॉस्पिटल पहुंचे, डॉक्टर ने कहा "हाथ और पैरों की हड्डी टूट चुकी है, जितना जल्दी हो सके कृपया पैसे का इंतजाम कर लीजिए ऑपरेशन करना पड़ेगा |

सूरज की नौकरी छूटे 6 महीने हो चुके थे, ऐसे में घर में एक पाई नहीं थी, ऑपरेशन कैसे होगा, यह सब सोचकर शोभा जी परेशान थी? तभी मुस्कान ने कहा "मम्मी जी आप परेशान मत होइए मैंने अपनी एक ऍफ़ डी करवा रखी है, जिसमें मैं और सूरज पहले अपनी अपनी तनख्वाह से कुछ रूपए जमा करवाते थे, तकरीबन ₹500000 होंगे आप चिंता मत कीजिए सब ठीक हो जाएगा "मुस्कान ने ऍफ़ डी से हॉस्पिटल का सारा खर्चा, दवाई, ऑपरेशन का खर्चा, सब कुछ चुकाया | सूरज को फोन किया उसे 3 दिन लगेंगे आने में, इन 3 दिनों तक मुस्कान को ही सब कुछ संभालना था, ऑफिस से छुट्टी ली घर का और हॉस्पिटल का सारा काम संभाला | साथ ही मां-बाबूजी की देखभाल का सारा जिम्मा भी बखूबी निभाया, एक हफ्ते बाद बाबू जी घर पर आए, शोभा जी को पढ़ना लिखना नहीं आता ऐसे मैं बाबूजी को दवाई देने का जिम्मा, हॉस्पिटल लाना ले जाना और साथ ही एक्सरसाइज सारी जिम्मेदारी मुस्कान ने अपने कंधों पर ले ली और बड़ी ही समझदारी और कुशलता से सारी जिम्मेदारी निभाई साथ ही घर के काम भी किए |

मुस्कान को जिम्मेदारी के साथ सभी काम करते देख अब सूरज के मां-बाप को भी समझ में आने लगा था, पढ़ना - लिखना, नौकरी करना, घर और बाहर की जिम्मेदारी उठाना,आजकल की लड़कियों के लिए शौक से बढ़कर जरूरत बन चुका है |

जिस हिसाब से समय बदल रहा है वक्त बदल रहा है, अब हमें भी बदलना है और वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है, तभी हम अपने आप को सफल बना पाएंगे |

तकरीबन 2 महीने बाद सूरज - मां बाबूजी आप लोगों के लिए खुशखबरी है मुझे नौकरी मिल गई है, अब आप चिंता मत कीजिए सब ठीक हो जाएगा और अगर आप कहेंगे तो मुस्कान भी अपनी नौकरी छोड़ देगी" तब मां बाबूजी ने कहा "सूरज हमें अपनी गलती का एहसास हो चुका है बहू को अपनी नौकरी छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है, तुम दोनों कमाओ और अपनी गृहस्थी को चलाओ, तुम लोगों की खुशी में ही हमारी खुशी है और अब बहू पर किसी भी तरह की कोई बंदिश नहीं है, वह जैसे चाहे वैसे रह सकती है, हम समझ चुके हैं अब वक्त बदल चुका है और हमें वक्त के साथ ही बदलना है |

लेखिका

टीना सुमन