एनीमल फॉर्म - 9 Suraj Prakash द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एनीमल फॉर्म - 9

एनीमल फॉर्म

जॉर्ज ऑर्वेल

अनुवाद:

सूरज प्रकाश

(9)

बॉक्सर का चिरा हुआ सुम ठीक होने में बहुत समय लग गया। विजय पर्व के समारोह समाप्त होने के अगले दिन से ही उन्होंने पवनचक्की फिर से बनाना शुरू कर दिया था। बॉक्सर ने एक दिन की भी छुट्टी लेने से इंकार कर दिया और इसे इज्जत का सवाल बना लिया कि कभी भी कोई भी उसे तकलीफ में न देखे। शाम के वक्त उसने क्लोवर को अकेले में बताया कि सुम उसे बहुत तकलीफ दे रहा है। क्लोवर जड़ी-बूटियां चबा-चबाकर उनकी पुलटिस बनाती और उनसे बॉक्सर के सुम का इलाज करती। वह और बैंजामिन, दोनों मिलकर बॉक्सर से कम मेहनत करने का आग्रह करते। क्लोवर उसे बताती, ’घोड़े के फेफडे हमेशा काम करते नहीं रह सकते‘, लेकिन बॉक्सर सुना-अनसुना कर देता। उसने बताया कि जिंदगी में उसकी एक महत्वाकांक्षा है- जब वह रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंचे, पवनचक्की को अपनी आंखों से बनता देख ले।

शुरू-शुरू में जब पशु बाड़े के लिए पहली बार कानून बनाए गए थे तो घोड़ों और सूअरों के लिए रिटायरमेंट की उम्र बारह वर्ष, गायों के लिए चौदह वर्ष, कुत्तों के लिए नौ वर्ष, भेड़ों के लिए सात वर्ष और मुर्गियों तथा हंसों के लिए पांच वर्ष तय की गई थी। बुढ़ापे के लिए उदार पेंशन के लिए सहमति हुई थी। और इस समय हालत यह थी कि अभी तक कोई भी पशु रिटायर होकर पेंशन नहीं पा रहा था, लेकिन अरसे से इस मामले पर खूब चर्चाएं हो रही थीं। अब फलोद्यान के परे वाले छोटे खेत को जौ की खेती के लिए अलग कर दिए जाने से, यह अफवाहें फैलने लगी थीं कि विशाल चरागाह के एक कोने के चारों तरफ बाड़ लगाकर उसे सेवानिवृत्त पशुओं के चरने की जगह बनाया जाने वाला था। बताया गया था कि घोड़े के लिए पांच पौण्ड अनाज और सर्दियों में पंद्रह पौण्ड सूखी घास और सार्वजनिक छुट्टियों पर एक गाजर या संभव हुआ तो एक सेब पेंशन के रूप में दिए जाने वाले थे। बॉक्सर का बारहवां जन्मदिन अगले साल गर्मियों के बाद पड़ता था। इस बीच जिंदगी मुश्किलों से भरी रही। सर्दियों का मौसम पिछले साल की ही तरह ठिठुराने वाला था और खाने की पहले से ज्यादा कमी थी। एक बार फिर सूअरों और कुत्तों के अलावा सबके राशन में कटौती कर दी गयी। स्क्वीलर ने स्पष्ट किया कि राशनों में नाप-तौल कर समानता लाना पशुवाद के सिद्धांतों के खिलाफ होगा। कुछ भी हो, उसे दूसरे पशुओं के सामने यह सिद्ध करने में कोई परेशानी नहीं हुई कि लगने को चाहे कुछ भी लगे, दरअसल खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। अलबत्ता फिलवक्त के लिए राशनों में फेरबदल करना जरूरी समझा गया। (स्क्वीलर कभी भी कटौती न कह कर फेरबदल ही कहता), लेकिन जोन्स के दिनों की तुलना में देखा जाए तो आश्चर्यजनक सुधार हुआ है। अपनी तीखी, तेज आवाज में उसने विस्तार से उनके सामने सिद्ध किया कि उन्हें जोन्स के दिनों की तुलना में ज्यादा जई, ज्यादा सूखी घास, ज्यादा शलगम मिल रहे हैं, वे अब कम घंटे काम करते हैं, और कि उन्हें अब ज्यादा अच्छी क्वालिटी का पीने का पानी मिल रहा है, कि उनका जीवन काल बढ़ गया है, कि अब उनके बाल-बच्चे अधिक अनुपात में शिशु अवस्था पार करके जीते हैं कि अब उनके थानों में ज्यादा पुआल हैं और उन्हें पिस्सु कम सताते हैं। पशु इसके एक-एक शब्द पर विश्वास कर लेते। सच तो यह था कि अब जोन्स और वह सब कुछ जिसका वह प्रतीक था, उनकी स्मृतियों में लगभग उतर चुका था। वे जानते थे कि आजकल जिंदगी दुश्वार और नंगी-बुच्ची है, और कि वे अक्सर भूखे और बिना ओढ़ने-बिछौने के रहते हैं और कि वे जब से नहीं रहे होते तो काम में ही जुते रहते हैं लेकिन इस बात में कोई शक नहीं था कि बीते हुए दिन बहुत खराब थे। उन्हें यह विश्वास करके अच्छा लगता था। इसके अलावा, उन दिनों वे गुलाम थे और अब वे आजाद हैं, और इसी से सारा फर्क पड़ता है। स्क्वीलर यह बताना कभी न भूलता।

अब खाने वाले बहुत अधिक बढ़ गए थे। शरद ऋतु में चार सूअरनियों ने कमोबेश एक साथ बच्चे जने। कुल मिलाकर इकतीस सूअरों को जन्म दिया। नन्‍हें सूअर चितकबरे थे और चूंकि बाड़े में सिर्फ नेपोलियन ही एक ऐसा सूअर था, जिसे बधिया नहीं किया गया था, इसलिए यह पता लगाना मुश्किल नहीं था कि ये बच्चे किसकी औलादें हैं। यह घोषणा की गयी कि बाद में जब ईटें और लकड़ी खरीद ली जाएगी, फार्म हाउस के बगीचे में एक स्कूल बनाया जाएगा। फिलवक्त, नन्हे सूअरों को नेपोलियन खुद ही फार्म हाउस की रसोई में पढ़ा-लिखा रहा था। वे बगीचे में अभ्यास करते। उनसे कहा गया था कि वे दूसरे नन्हें पशुओं के साथ न खेला करें। लगभग इन्हीं दिनों, यह कानून भी बना दिया गया कि जब सूअर तथा अन्य पशु रास्ते में मिलें तो दूसरा पशु एक तरफ खड़ा हो जाएगा और यह भी कि सभी सूअरों को, चाहे वे किसी भी स्तर के हों, अब रविवार को अपनी पूंछों पर हरे रिबन लगाने की सुविधा होगी।

बाड़े के लिए यह खूब सफल साल रहा, लेकिन पैसों की तंगी फिर भी बनी रही। स्कूल की इमारत के लिए ईटें, रेती, चूना खरीदे जाने थे। पवनचक्की के लिए मशीनरी खरीदने के लिए भी बचत की शुरुआत करनी होगी। और फिर लैम्प जलाने के लिए तेल था। घर के लिए मोमबत्तियां थीं। नेपोलियन की खुद की मेज के लिए चीनी थी (उसने दूसरे सूअरों को इस आधार पर चीनी लेने से मना कर रखा था कि इससे वे मोटे हो जाएंगे) और फिर पचीसों चीजें थीं जिन्हें बदलना था जैसे औजार, कीलें, डोरियां, कोयला, तार, लोहा-लंगड़ और कुत्तों के लिए बिस्किट। सूखी घास का एक गट्ठर और आलू की फसल का कुछ हिस्सा बेच दिए गए, अण्डों का ठेका चार सौ अण्डे से बढ़ाकर छः सौ अण्डे प्रति सप्ताह कर दिया गया। इससे मुर्मियों को सेने के लिए इतने कम अण्डे मिले कि वे मुश्किल से अपनी संख्या बराबर रख पाने लायक चूजे दे पायीं। दिसंबर में घटाए गए राशन को फरवरी में फिर घटा दिया गया। तेल बचाने की दृष्टि से थानों पर लालटेनों की मनाही कर दी गयी। सूअर पहले की तरह सुविधाएं भोगते रहे और सच में, वे पड़े-पड़े मुटिया रहे थे। फरवरी के आखिरी दिनों की एक दोपहर को एक गर्म सी गाढ़ी घनी, भूख जगा देने वाली खूशबू रसोईघर के परे, जोन्स के वक्त से ही उजाड़ पड़े कलालखाने से बिखरनी शुरू हुई। पशुओं ने आज तक ऐसी खुशबू नहीं सूंघी थी। किसी ने कहा कि यह जौ पकने की महक है पशुओं ने भूख से बेताब होते हुए हवा को सूंघा और हैरान हुए कि क्या उनके रात के खाने के लिए आज गरमागरम सानी तैयार किया जा रहा है। लेकिन कोई गरम सानी नजर नहीं आया। अगले रविवार को यह घोषणा कर दी गयी कि अब से सारी जौ सूअरों के लिए आरक्षित रहेगी। फलोद्यान के परे वाले खेत में पहले ही जौ बोयी जा चुकी थी। यह खबर फैल ही गयी कि आजकल हरेक सूअर को रोजाना एक पिंट बीयर का राशन मिल रहा है। नेपोलियन खुद आधा गैलन बीयर लेता है। उसे यह हमेशा क्राउन डर्बी सूप की प्‍लेट में सर्व की जाती है।

लेकिन यदि वहां सहने के लिए जीवन की तकलीफें थीं, तो उन्हें काफी हद तक यह तसल्ली भी थी कि आजकल की जिंदगी में ज्यादा मान मर्यादा है। अब ज्यादा गाने-बजाने होते, अधिक भाषण होते, अधिक जूलुस निकाले जाते। नेपोलियन ने यह आदेश दिया था कि हफ्ते में एक बार स्वैच्छिक प्रदर्शन जैसे नामवाली कोई चीज मनायी जाए। इसका उद्देश्य यह था कि पशु बाड़े के संघर्ष़ों और सफलताओं को मनाया जा सके। एक निर्धारित समय पर सब पशु अपना-अपना काम छोड़ देते और मिलिटरी की टुकड़ियों की तरह बाड़े की चहारदीवारी में चारों तरफ मार्च किया करते। इसमें सूअर नेतृत्व करते। उनके पीछे घोड़े, फिर गायें, फिर भेड़ें और उनके बाद दड़बों के प्राणी रहते। कुत्ते जुलूस के दाएं-बाएं चलते और सबसे आगे नेपोलियन का काला मुर्गा मार्च करता चलता। बॉक्सर और क्लोवर हमेशा अपने बीच सुम और सींग वाला बड़ा-सा हरा झण्डा लिए चलते। इस पर लिखा रहता, ’कामरेड नेपोलियन अमर रहे।‘ इसके बाद नेपोलियन के सम्मान में रची गयी कविताओं का पाठ किया जाता और फिर स्क्वीलर का भाषण होता, जिसमें वह खाद्यान्नों के उत्पादन में हाल ही में हुई वृद्धियों का लेखा-जोखा देता। इसी मौके पर बंदूक से एक गोली दागी जाती। भेड़ें इस स्वैच्छिक प्रदर्शन की सबसे बड़ी भक्त थीं, और यदि कोई शिकायत करता (जब कोई सूअर या कुत्ता आस-पास न होता तो कुछ पशु कहते भी थे) कि इनसे समय की बरबादी होती है और कि देर-देर तक सर्दी में ठिठुरते खड़े रहना पड़ता है, यह तय था कि भेड़ें ’चार टांगें अच्छी, दो टांगें खराब‘ के अपने भीषण राग में उसे शांत कर देतीं। कुल मिलाकर पशुओं को इन समारोहों में आनंद आता। बार-बार यह याद दिलाया जाना उन्हें सुखकर लगता कि कुछ भी हो, वे सचमुच अपने मालिक हैं और कि वे जो कुछ भी करते हैं, अपनी भलाई के लिए करते हैं। इसलिए इन गीतों से, जुलूसों से, स्क्वीलर की लंबी चौड़ी सूचियों से, बंदूक की गूंज से, मुर्गे की कुकडू कूं से और झण्डे के फहराने से वे भूल पाते कि उनके पेट, अक्सर खाली होते हैं।

अप्रैल में पशु बाड़े को गणतंत्र घोषित कर दिया गया और इसके साथ राष्ट्रपति का चुनाव जरूरी हो गया। इस पद के लिए एक ही उम्मीदवार था - नेपोलियन। उसे ही निर्विरोध चुन लिया गया। उसी दिन सुनने में आया कि कुछ और दस्तावेज मिले हैं, जिनसे स्नोबॉल और जोन्स की बीच साठ-गांठ के और ब्यौरों पर से परदा उठता है। अब यह पता चला कि स्नोबॉल ने दांव-पेच के जरिए तबेले की लड़ाई में न सिर्फ हारने की कोशिश की थी, जैसी की पहले पशुओं ने कल्पना की थी, बल्कि वह तो खुलेआम जोन्स की तरफ से लड़ रहा था। दरअसल वही मनुष्यों की फौजों का असली लीडर था। और जब उसने लड़ाई में हमला किया था तो उसके होठों पर यही शब्द थे, ’मानवता अमर रहे‘ कुछेक पशुओं को अभी भी याद होगा कि उन्होंने स्नोबॉल की पीठ पर घाव देखे थे, वे घाव नेपोलियन के दांतों के गड़ने के निशान थे।

गर्मियों के दौरान मोसेस, काला कौव्वा अचानक बाड़े में वापिस आ गया। वह कई बरसों के बाद वापिस लौटा था। अब भी वह बिल्कुल पहले की तरह था। कोई काम-धाम न करना और उसी तरह मिसरी पर्वत का पुराना राग अलापना। वह एक ठूंठ पर जा बैठता, अपने काले पंख फड़फड़ाता और जो भी उसे सुनने के लिए तैयार हो जाए, उसके सामने घंटों बक-बक करता। ’वहां, उधर, कॉमरेड्स‘, अपनी लंबी चोंच से वह आसमान की तरफ इशारा करके दृढ़तापूर्वक कहता, ’उस तरफ जो आपको काले बादल दिखायी दे रहे हैं ना, उन्हीं के परे है मिसरी पर्वत, एक ऐसा सुखद देश जहां हम बदनसीबों को हमारी मेहनत से हमेशा के लिए छुट्टी मिलेगी।‘ वह यहां तक दावा करता कि एक बार वह अपनी ऊंची उड़ान पर वहां जा चुका है, उसने खुद बनमेथी के सदाबहार खेत की झाड़ियों में उगी अलसी की खली और गुड़ देखे हैं। कई पशु उस पर भरोसा कर बैठते। उन्होंने खुद को तर्क दिया कि इस समय उनकी जिंदगियां भुखमरी और हाड़-तोड़ मेहनत से बेहाल हैं, क्या यह ठीक और उचित नहीं है कि कहीं एक सुखद संसार भी बसा हुआ है? मोसेस के प्रति सूअरों के रवैये को समझने में सभी को उलझन हो रही थी। उन सबने उपेक्षा से यह घोषणा कर दी कि मिसरी पर्वत के बारे में उसके किस्से चण्डूखाने की उपज हैं, इसके बावजूद बिना कोई काम-काज किए, रोजना चुल्लू भर बीयर के भत्ते पर उसे बाड़े पर रहने दिया गया।

सुम की चोट में आराम आ जाने के बाद बॉक्सर पहले से भी ज्यादा मेहनत करता। सच में, उस साल सभी पशुओं ने गुलामों की तरह काम किया। बाड़े के नियमित कामों के अलावा, पवनचक्की को फिर से बनाना था, और फिर मार्च में नन्हें सूअरों के लिए स्कूल की इमारत का भी काम शुरू कर दिया गया था। कई बार अधपेट खाने के साथ काम के लंबे घंटे गुजारना दूभर होता लेकिन बॉक्सर कभी विचलित न होता। उसने न तो अपने शब्दों से और न कहीं काम से ऐसा कोई संकेत ही दिया कि अब उसमें पहले जैसी ताकत नहीं रही है। अब उसकी शक्ल-सूरत भी पहले से बदली हुई नजर आती। उसकी खाल की चमक पहले की तुलना में कम हो गयी थी, और उसके विशाल पुट्ठे सिकुड़ गये-से लगते थे। बाकी पशु बताते, ’वसंत ऋतु की घास आते ही बॉक्सर पहले जैसा हो जायेगा‘, लेकिन वसंत आया और गया, बॉक्सर की हालत वैसी ही रही। कई बार खदान वाली ढलान पर वह किसी बड़ी चट्टान को अपने बाहुबल के सहारे धकेलता, तो साफ लगता था, सिर्फ काम करने की लगन ही उसे उसके पैरों पर खड़ा रखे हुए हैं। ऐसे क्षणों में उसके होंठ बुदबुदाते देखे जा सकते थे, ’मैं और कठिन परिश्रम करूंगा‘, उसकी आवाज साथ छोड़ चुकी थी। एक बार फिर क्लोवर और बैंजामिन ने उसे चेताया कि सेहत का ख्याल रखे, लेकिन बॉक्सर ने कान नहीं धरे। उसका बारहवां जनम दिन आने वाला था। पेंशन पर जाने से पहले वह पत्थरों का अच्छा खासा भण्डार जमा कर देना चाहता था। उसके बाद जो कुछ भी हो, उसकी उसे परवाह नहीं थी।

गर्मियों की एक शाम ढलने के बाद अचानक बाड़े में अफवाह फैली कि बॉक्सर को कुछ हो गया है। वह पवन चक्की के पास एक पत्थर घसीट ले जाने के लिए अकेला गया हुआ था। दुर्भाग्य से अफवाह सही निकली। कुछ ही मिनटों बाद कबूतर फड़फड़ाते हुए खबर ले आए, ’बॉक्सर गिर पड़ा है। वह पसलियों के बल गिरा पड़ा है और खड़ा नहीं हो सकता।‘

बाड़े के आधे पशु उस टेकरी की तरफ लपके जहां पवनचक्की खड़ी थी। वहां पड़ा हुआ था बॉक्सर, गाड़ी के बमों के बीच, गर्दन बाहर को निकली हुई। वह अपना सिर भी नहीं उठा पा रहा था। उसकी आंखें पथरा गयी थीं, और सारा बदन पसीने से लथपथ था। उसके मुंह से खून की एक पतली लकीर बहकर बाहर आ रही थी। क्लोवर उसके पास ही घुटनों के बल झुकी।

’बॉक्सर‘, वह चीखी, ’कैसे हो?‘

’ओह, मेरा फेफड़ा‘ बॉक्सर ने कमजोर आवाज में कहा, ’कोई परवाह नहीं, मुझे लगता है, तुम मेरे बगैर भी पवनचक्की पूरी कर ही लोगी। अब तो पत्थरों का अच्छा-खासा ढेर जमा हो गया है। वैसे भी मुझे अगले ही महीने चले जाना था। तुमसे सच कहूं तो मैं अब अपने रिटायरमेंट की राह देख रहा था। और शायद, बैंजामिन भी तो बूढ़ा हो चला है, वे उसे भी उसी समय रिटायर कर देंगे। तब दोनों का साथ रहेगा।‘

’हमें तुंत मदद की जरूरत है‘, क्लोवर बोली, ’दौड़ो, कोई दौड़े और स्क्वीलर को जाकर बताए।‘

बाकी सभी पशु स्क्वीलर को खबर देने के लिए फार्म हाउस की तरफ दौड़ पड़े। सिर्फ क्लोवर वहीं रही और बैंजामिन बॉक्सर के पास बैठा, बिना कुछ भी बोले, अपनी लंबी पूंछ से मक्खियां उड़ाता रहा। लगभग पन्द्रह मिनट बाद स्क्वीलर आया। वह सहानुभूति ऐर चिंता से भरा हुआ था। उसने बताया कि नेपोलियन को अपने बाड़े से सबसे अधिक निष्ठावान कामवार के साथ हुई इस दुखद दुर्घटना का पता चला है, वे बहुत व्यथित हो गए हैं। वे बॉक्सर को इलाज के लिए विलिंगडन के अस्पताल में भेजने की व्यवस्था कर रहे हैं। इस पर पशु थोड़ा बेचैन हो गए। अब तक मौली और स्नोबॉल के अलावा और कोई भी बाड़ा छोड़कर कभी नहीं गया था। उन्हें यह सोचकर अच्छा नहीं लग रहा था कि उनका बीमार साथी मनुष्यों के हाथों में जाए। अलबत्ता, स्क्वीलर ने उन्हें समझा-बुझा दिया कि बाड़े में जो कुछ किया जा सकता है, उसकी तुलना में विलिंगडन में पशुचिकित्सक बॉक्सर का इलाज ज्यादा संतोषजनक तरीके से कर सकेगा। लगभग आधे घंटे के बाद, बॉक्सर की हालत थोड़ी-बहुत संभली। वह बहुत मुश्किल से अपने पैरों पर खड़ा हो सका, और लंगड़ाता हुआ अपने थान की ओर चला। क्लोवर और बैंजामिन ने वहां उसके लिए अच्छी तरह से पुआल बिछाकर उसका बिस्तर तैयार कर दिया था।

अगले दो दिन तक बॉक्सर अपने थान में ही पड़ा रहा। सूअरों ने गुलाबी दवा की एक बड़ी-सी शीशी भिजवा दी थी। यह उन्हें बाथरूम में दवाओं के खाने में पड़ी मिल गयी थी। क्लोवर बॉक्सर को खाने के बाद दो बार यह दवा देती। शाम के वक्त वह उसके थान में उसके पास आ बैठती, उससे बातें करतीं, जबकि बैंजामिन उस पर से मक्खियां उड़ाता। बॉक्सर ने प्रकट किया कि जो भी हो गया है, उस पर अफसोस न करें। अगर वह जल्दी चंगा हो गया तो वह अगले तीन साल तक भी जीने की उम्मीद कर सकता है और वह आगे आने वाले आराम के दिनों की राह देख रहा है, जिन्हें वह बड़े चरागाह के एक कोने में बिताया करेगा। यह पहली बार ही होगा कि वह फुर्सत से पढ़-लिख सकेगा और अपना ज्ञान बढ़ा सकेगा। उसने बताया कि वह अपनी जिंदगी के बाकी दिन वर्णमाला के बाकी बचे अक्षर सीखने में लगा देना चाहता है।

बैंजामिन और क्लोवर तो बॉक्सर के साथ सिर्फ काम के समय के बाद ही रह सकते थे, लेकिन यह दोपहर का वक्त था जब उसे ले जाने के लिए एक वैन आयी। सभी पशु एक सूअर की देखरेख में शलगम के खेत की खरपतवार निकालने के काम में लगे हुए थे। तभी सब बैंजामिन को फार्म हाउस की इमारत की तरफ से तेजी से भागते हुए आते देखकर बहुत हैरान हुए। वह पूरे गले के जोर से रेंक रहा था। सबने पहली बार बैंजामिन को इतना उत्तेजित देखा था - और पहली ही बार लोगों ने उसे भागते देखा था। जल्दी करो, जल्दी करो, वह चिल्लाया। ’जल्दी आओ। वे बॉक्सर को लिए जा रहे हैं।‘ सूअर के आदेश की परवाह किए बिना सभी पशु काम छोड़कर फार्म हाउस की तरफ दौड़ पड़े। हां, वहीं अहाते में एक बंद गाड़ी खड़ी थी, जिसमें घोड़े जुते हुए थे। गाड़ी के दोनों तरफ कुछ लिखा हुआ था और चालक की गद्दी पर बड़ा-सा हैट पहने धूर्त-सा लगने वाला एक आदमी बैठा हुआ था। बॉक्सर का थान खाली था।

पशु वैन के चारों तरफ भीड़ लगाकर खड़े हो गए। ’अलविदा, गुड बाय, बॉक्सर‘ सबने मिलकर कहा- ’बिदा, बॉक्सर।‘

’मूर्खो! जाहिलो!‘ बैंजामिन चिल्लाया, वह अपने छोटे-छोटे सुमों से जमीन खूंदने और आगे-पीछे होने लगा। ’मूर्ख़ों! तुम्हें नजर नहीं आता, इस वैन के दोनों तरफ क्या लिखा है?‘

यह सुनकर सब पशु ठिठक गए। एकदम सन्नाटा छा गया। मुरियल ने हिज्जे करके पढ़ना शुरू किया। लेकिन बैंजामिन ने उसे एक तरफ धकेला और श्मशानी सन्नाटे में पढ़ना शुरू किया।

’अल्‍फ्रेड सिमौण्ड्स, घोड़ा कसाई और हड्डी की गोंद के निर्माता, विलिंगडन। चमड़े और हड्डी चूरे के विक्रेता। कुत्तों के सप्लायर‘ तुम्हें समझ में नहीं आता, इस सबका क्या मतलब है? वे बॉक्सर को बूचड़खाने लिए जा रहे हैं।

पशुओं में डर की एक चीख निकल गयी। तभी गद्दी पर बैठे आदमी ने घोड़ों को चाबुक मारा और वैन धीमे-धीमे अहाते से बाहर जाने लगी। सभी पशु गला फाड़ते हुए ऊंची आवाज में चिल्लाते हुए उसके पीछे लपके। क्लोवर धक्का-मुक्की करके आगे की तरफ आ गयी। वैन अब गति पकड़ने लगी थी। क्लोवर ने अपने भारी-भरकम शरीर को गति देने और सरपट दौड़ने की कोशिश की। ’बॉक्सर‘, वह चिल्लायी, ’बॉक्सर! बॉक्सर‘ और ठीक उसी वक्त वैन की पिछली खिड़की में बॉक्सर का सफेद-धारी वाला चेहरा नजर आया। उसने शायद बाहर का हल्ला-गुल्ला सुन लिया था।

’बॉक्सर‘! क्लोवर तेज आवाज में चिल्लायी, ’बॉक्सर, बाहर निकलो। जल्दी बाहर निकलो। वे तुम्हें तुम्हारी मौत के पास लिए जा रहे हैं।‘ सभी पशु चिल्लाने लगे, ’बॉक्सर बाहर आओ, बॉक्सर बाहर निकलो।‘ लेकिन वैन गति पकड़ चुकी थी और उनसे दूर होती चली जा रही थी। यह पता भी नहीं था कि बॉक्सर को क्लोवर का कहा कुछ समझ भी आया है या नहीं?

लेकिन क्षण भर बाद खिड़की से बॉक्सर का चेहरा गायब हो गया और वैन में से जोर-जोर से पैर पटकने, टापने की आवाजें आने लगीं। वह लातों से दरवाजा तोड़कर बाहर आने की कोशिश कर रहा था। एक वक्त था जब बॉक्सर की लातें वैन को माचिस की डिबिया की तरह तहस-नहस कर डालतीं। लेकिन अफसोस। उसकी ताकत उसका साथ छोड़ चुकी थी। कुछ ही पलों में पैर पटकने की आवाजें कम होती चली गयीं और फिर एकाएक खत्म हो गयीं। हताश होकर पशुओं ने वैन खींच रहे दोनों घोड़ों से चिरौरी करनी शुरू कर दी, कि वे ही गाड़ी रोक दें, ’कॉमरेड्स, कॉमरेड्स‘, वे चिल्लाये। ’अपने ही भाई को मौत के मुंह में मत ले जाओ।‘ लेकिन मूर्ख जानवर। वे इतने अज्ञानी थे कि समझ ही नहीं पाए कि हो क्या रहा है। उन्होंने अपने कान पट-पटाए और अपनी चाल तेज कर दी। बॉक्सर का चेहरा खिड़की में दोबारा दिखायी नहीं दिया। जब तक किसी को सूझा कि आगे दौड़कर पांच सलाखों वाला गेट बंद कर दे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अगले ही पल वैन गेट के बाहर थी और तेजी से सड़क पर जा कर नजरों से ओझल हो गयी। बॉक्सर को फिर कभी नहीं देखा गया।

तीन दिन बाद बताया गया कि वह विलिंगडन के अस्पताल में चल बसा, हालांकि उसे घोड़ों को मिल सकने वाला बेहतरीन इलाज उपलब्ध कराया गया था। स्क्वीलर ने दूसरे पशुओं को यह बात बतायी। उसने बताया कि वह बॉक्सर की अंतिम घड़ियों में उसके सिरहाने ही था।

’यह मेरे जीवन में अब तक देखा गया सबसे अधिक करुण दृश्य था। स्क्वीलर ने अपना पैर उठाकर एक आंसू पोंछते हुए कहा, ’मैं आखिरी पल तक उसके सिहराने था, और जब उसका अंत आया, वह इतना कमजोर था कि बोल भी नहीं पा रहा था, वह मेरे कान में फुसफुसाया कि उसकी सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि वह पवनचक्की के पूरा होने के पहले जा रहा है। बगावत के नाम पर आगे बढ़ो। पशुबाड़ा अमर रहे। कॉमरेड, नेपोलियन अमर रहें। नेपोलियन हमेशा ठीक कहते हैं‘, यही उसके अंतिम शब्द थे, कॉमरेड्स‘।

यहां पहुंच कर स्क्वीलर का लहजा थोड़ा बदल गया। वह एक पल के लिए चुप हो गया। अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले शक की निगाहों से चारों तरफ अपनी छोटी-छोटी आंखें घुमायीं।

उसने बताया कि उसकी जानकारी में यह बात आयी है कि बॉक्सर को ले जाते वक्त एक वाहियात और मूर्खतापूर्ण अफवाह फैलायी गयी थी। कुछेक पशुओं ने देखा कि बॉक्सर को ले जाने वाली वैन पर ’घोड़ा कसाई‘ लिखा हुआ था, इसी से सब इस नतीजे पर जा पहुंचे कि बॉक्सर को बूचड़खाने भेजा जा रहा है। यह तो बिल्कुल असंभव है, स्क्वीलर ने बताया, कि कोई पशु इतना मूर्ख होगा। वह पूंछ हिलाते हुए और दाएं-बाएं फुदकते हुए धूर्तता से चिल्लाया कि निश्चित ही वे अपने प्रिय नेताजी को इससे बेहतर कामों के लिए जानते हैं? लेकिन इसका स्पष्टीकरण बिल्कुल सरल है। पहले वह वैन बूचड़खाने की सम्पत्ति थी, फिर उसे घोड़ा डॉक्टर ने खरीद लिया था। उसने अब तक पहले लिखे नाम को पेंट नहीं कराया था। इसी से सारी गलती हुई।

यह सुनकर पशुओं को बहुत राहत मिली। और जब स्क्वीलर बॉक्सर के मरते समय के और ब्यौरे बारीकी से बताने लगा, और यह कहने लगा कि उसकी कितनी अच्छी तरह देखभाल हुई और नेपोलियन ने कीमत की रत्ती भर भी परवाह किए बगैर उसके लिए महंगी दवाएं मंगायीं,तो सबके आखिरी शक भी मिट गए। वे अपने कॉमरेड की मृत्यु से जो दुख महसूस कर रहे थे, यह सोच कर थोड़ा कम हो गया कि चलो, वह खुशी-खुशी मरा।

अगले रविवार की सुबह बैठक में नेपालियन खुद हाजिर हुआ और बॉक्सर के सम्मान में एक छोटा-सा भाषण दिया। उसने बताया कि उनके बिछुड़े साथी का शव बाड़े में दफनाए जाने के लिए ला पाना संभव नहीं था, अलबत्ता उसने यह आदेश दे दिया कि फार्म हाउस के बगीचे में जयपत्रों से एक बड़ी माला बनायी जाए और बॉक्सर की समाधि पर रखी जाए। और कुछ ही दिनों में सूअर बॉक्सर के सम्मान में एक यादगार दावत रखने की सोच रहे हैं। नेपोलियन ने अपना भाषण बॉक्सर के दो प्रिय सूत्रवाक्य याद दिलाते हुए खत्म किया ’मैं और अधिक परिश्रम करूंगा।‘ तथा ’कॉमरेड नेपोलियन हमेशा ठीक कहते हैं‘ उसने कहा कि ये सूत्रवाक्य हर पशु अपने खुद के जीवन में उतार लेना चाहेगा।

दावत के लिए निर्धारित दिन विलिंगडन से किराने की गाड़ी आयी और फार्म हाउस में लकड़ी की एक बड़ी-सी पेटी सौंप गयी। उस रात वहां से जोर-जोर से गाने की आवाजें आती रहीं। उसके बाद लगा, जैसे मार-पिटाई और झगड़ा चल रहा हो। साढ़े ग्यारह बजे गिलास टूटने की जोरदार आवाज के साथ सब कुछ शांत हो गया। अगले दिन फार्म हाउस में दोपहर तक कोई हरकत नहीं थी, और यह खबर फैल ही गयी कि कहीं-न-कहीं से सूअरों ने व्हिस्की की एक और पेटी खरीदने के लिए पैसों का जुगाड़ कर ही लिया था।