जिंदगी मेरे घर आना - 10 Rashmi Ravija द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी मेरे घर आना - 10

जिंदगी मेरे घर आना

भाग – १०

इतना मूड खराब हो गया, अपनी स्टडी टेबल पर आ यूँ ही, एक किताब खोल ली। तभी शरद ने पीछे से आँखों पर हाथ रख दिया (जाने कैसी बच्चों सी आदत है, सुमित्रा काकी भी नहीं बचतीं, इससे। पहले तो वह आराम से नख-शिख वर्णन कर जाती थीं... ‘एक महाशरारती लड़का है, जिसकी कौड़ी जैसी आंख है, पकौड़ी जैसी नाक है, हथौड़ी जैसा मुँह है, कटोरा-कट बाल है।‘ - लेकिन नाम नहीं बोलती) - लेकिन आज मुँह फुलाए चुप रही। शरद ने भी तुरंत हाथ हटा लिया और उसकी किताब की ओर झुकते हुए बोला -‘अच्छा ऽऽऽ तो यहाँ ’‘नाॅट विदाउट माइ डाॅटर‘’ पढ़ा जा रहा है?‘

‘क्या... ?‘ - चैंक पड़ी वह। ओह! तो शरद ने एक हाथ से उसकी आँखें बंद कर, दूसरे हाथ से ये किताब उसके समक्ष खोल कर रख दी थी. कितने दिनों से पढ़ना चाह रही थी, इसे... कहाँ-कहाँ न छान मारी पर नहीं मिल पाया था।

खुशी से चहकते हुए पूछा -‘कहाँ से मिला तुम्हें, शरद? किसी लाइब्रेरी से लाए हो या किसी फ्रेंड से... या खरीद कर लाए हो।‘ - जल्दी से उलट-उलट कर देखने लगी।

पर, शरद अपनी आदत से कैसे बाज आएगा उल्टा सवाल -‘तुम्हें, आम खाने से मतलब है, या पेड़ गिनने से?‘

लेकिन इस वक्त नेहा बहुत खुश थी... सच्चे मन से माफ कर दी। इतनी सी बात शरद को याद रही... जानकर अच्छा लगा।

***

शहर से थोड़ी दूर जंगल के बीच एक मंदिर था। काफी महात्म्य था, उसका। मम्मी को चाव था, इतने दिनों से है, यहाँ, एक बार तो जाना चाहिए.

जबकि इसकी ख्याति दूर-दूर तक थी। लेकिन कहे किस से? डैडी और भैय्या तो मंदिर और पूजा के नाम से ऐसे बिदकते हैं जैसे पाकिस्तान के सामने किसी ने भारत के गुण गा दिए हों।

मम्मी ने शरद से चर्चा की और श्रवण कुमार तैय्यार।

एक दिन अपने एक दोस्त के साथ एकाएक जीप लेकर आया और आते ही जल्दी मचाने लगा -‘चलो, झटपट हो तैयार हो जाओ, सब लोग।‘

दो दिन पहले ही शॉपिंग के लिए गई थी और ‘लाँग स्कर्ट’ लिए थे। उसे ही पहन तैयार हो गई...

‘मम्मी ठीक है न?‘

मम्मी कुछ बोलतीं कि इसके पहले ही शरद टपक पड़ा -

‘बहुत ठीक है, पर घर आकर बिसूरना नहीं कि मेरी नई स्कर्ट का सत्यानाश हो गया। याद रखिए रानी साहिबा किसी पार्टी में नहीं जंगल में तशरीफ ले जा रही हैं... जहाँ मखमली कालीन नहीं... कंकड़, पत्थर, काँटे....‘

सुनना असह्य हो उठा... बीच में ही जोर से खीझ कर बोली -‘मम्मी! देख रही हो।‘

‘मेरे ख्याल से तो आंटी, दो साल पहले ही देख चुकी हैं, मुझे।‘

वह कुछ बोलती कि मम्मी ने आग्रह से चुप होने का संकेत किया -‘श ऽ र ऽ द‘

लेकिन कहता तो ठीक ही है, इतने मन से खरीदा था... इतना बढ़िया ड्रेस दाँव पर तो नहीं लगा सकती।... ‘चूड़ीदार कुर्ता बदल लिया । लेकिन जिसने ‘नुक्स‘ निकालने की कसम ही खा रखी हो, उससे जीता जा सकता है, भला ?

लिविंग-रूम में पहुँची तो खिड़की के बाहर देखता हुआ बोला -‘हमें तो कुछ कहने की मनाही है, फिर भी बताना मेरा फर्ज है-‘ और उसकी जमीन छूती चुन्नी की ओर इशारा करते हुए बोला -‘ये झाड़ी में फँस-वँस गई...न तो लाख टेरने पर भी... ‘काँटो में उलझ गई रे ऽऽऽ‘ कोई हीरो साहब नहीं पहुँचेंगे छुड़ा ने।’ - नाटकीय स्वर में बोला तो मम्मी, उसका वो दाढ़ी वाला दोस्त; सब हँस पड़े। अब क्या मंदिर में वह जींस में जायेगी??...पर अक्कल हो तब, ना

अपमान से लाल हो उठी वह। जरा सा भी शउर नहीं बोलने का, जता रहा है, बहुत मॉड है वह। ये सब उसकी आर्मी लाइफ में चलता होगा... बोलती तो अभी एक मिनट में बंद कर देती, लेकिन दाँत दिखाता उसका वह दढ़ियल दोस्त भी तो बैठा है। शरद को जरा भी मैनर्स का ख्याल नही तो क्या वह भी छोड़ दे। जाने क्यों अब एटिकेट्स का इतना ध्यान आ जाता है... पहले तो बात पूरी भी न हुई कि जवाब हाजिर (यह तो बाद में सोचती कि ऐसा नहीं... ऐसा बोलना चाहिए था) कोई अंकल भी होते तो शायद ही बख्शती वह।...और सचमुच रास्ता इतना खराब था कि काँटों से लगकर चुन्नी तार-तार हो गई। पर होंठ नहीं खोले नेहा ने।

***

क्लास में कदम रखा ही था कि पाया सारी नजरें मुस्कुराती हुई, उसी पर टिकी हुई है।... क्या बात है, स्वस्ति के करीब पहुँच बैग रख आँखों में ही पूछा तो उसने भी ब्लैकबोर्ड की तरफ आँखों से ही इशारा कर दिया... जहाँ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था -‘अंगारे बन गए फूल‘

इसका क्या मतलब हुआ? यह तो एक फिल्म का नाम है... वह भी गलत लिखा हुआ... इससे उसका क्या ताल्लुक... किसी ने यूँ ही लिख दिया होगा। पर सबकी नजरें उसे क्यों देख रही हैं?

’’ बैठ अभी, बताती हूँ, सर आ रहे हैं।‘ स्वस्ति ने उसके लिए जगह बनाते हुए कहा। वह भी चुपचाप बैठ गई। डस्टर ले मिटाना भी भूल गई। और तब ध्यान आया इधर कितने दिनों से न ब्लैकबोर्ड साफ करती है, न बोर्ड पर तारीख डालती है... न ही मेज कुर्सी ठीक करती है और इधर टेबल पर भी उसका आसन नहीं जमता -- नही तो सर क्लास से बाहर हुए और वह उछल कर मेज पर सवार।