अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 1 Rajnish द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 1

अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य

(भाग - 1)


चारों तरफ दर्शक दीर्घा को देखते हुए....
विवेक बंसल: यश! कुछ भी हो, आज भी लड़कियों के बीच में तुम्हारा जादू बरकरार है (चुटकी लेते हुए)

तभी उद्घोषणा कक्ष से सूचना प्रसारित होती है।
"सभी प्रतियोगी अपनी जगह ले ले"।
रेस बस कुछ ही समय में शुरू होने जा रही है।

विवेक बंसल: गुड लक यश!
यश : स्ट्रेचिंग और वॉर्म अप करते हुए, विवेक को विनिंग सिंबल दिखाता है।

रेफरी माइक पर सबको सावधान करते हैं।

यश अपनी पोजिशन लेते हुए एक झलक सूर्य की तरफ देखता है। सूर्य की तेज़ किरणें यश की आंखों में पड़ती है और एक तेज़ उजाला आंखों के सामने अंधेरे के बादल ले आता है।

(फ्लैशबैक)

हैम रेडियो पर आए एक संदेश ने यश का ध्यान खींचा।

टैंगो चार्ली ! टैंगो चार्ली !
लोकेशन।
यश: हम स्पॉट पर है। ओवर!

यश को फिजाओं में बारूद की गंध फैली हुई महसूस हो रही है। कानों में गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज गूंज रही है।

कुपवाड़ा जिले के एक सेक्टर में आतंकवादियों के छिपे होने की खबर है... ।
मेजर यशवर्धन और उनकी टीम ने, उस इलाके को चारों तरफ से घेर लिया है...।
दोनों ओर से भयंकर गोलीबारी चालू है।
हालात भांपते हुए यश जमीन पर लेटकर रेंगते हुए एक दहशतगर्द के पास तक पहुंचने में कामयाब होते है।
...और अपनी चाकू से बेहद शांत तरीके से उसके गले की नस काटकर हमेशा के लिए सुला देते है।
....फिर उंगलियों के इशारे से अपनी टीम को आगे बढ़कर उनके भाग निकलने के रास्ते को ब्लॉक करने का आदेश देते है।
खतरे को देखते हुए आतंकियों ने सेना की अंदरूनी घेराबंदी को तोड़ने की कोशिश की।

आतंकियों ने तेज गोलीबारी शुरू कर दी और ग्रेनेड भी फेंकने लगे। धीरे-धीरे आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में यशवर्धन की टीम के एक-एक साथी शहीद होने लगे।
आतंकवादियों की गोलियां थोड़ी धीमी पड़ गई। मेजर यश भी घायल अवस्था में अब अकेले ही मोर्चा संभाले हुए हैं।

अब दो ही आतंकवादी बचे है जो पहाड़ी की तरफ भागते है।

बैकअप टीम के आने का इंतजार किए बिना मेजर अपनी जख्मी टांग के साथ उनका पीछा करते हैं। पहाड़ी पर ऊंचे नीचे, फिसलन भरे, बेहद दुर्गम रास्तों पर छुपते हुए आतंकवादी एक बड़ी चट्टान के पीछे छिप जाते है।

मेजर का काफी खून बह चुका है। पूरे रास्ते रक्त की मोटी लकीर बना रही अपनी जख्मी टांग को घसीटते हुए मेजर दहशतगर्दों को पीछा कर रहे है।
तभी उन्हें नीचे की तरफ एक झाड़ में सरसराहट की आवाज से उनके छुपे होने का पता चलता है। मेजर पूरी ताकत से उनपर कूद पड़ते है और गंभीर रूप से जख्मी होने के बावजूद भी चाकू से उन लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं।

यश की आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है।

(वर्तमान)

तभी एक तेज़ आवाज़ जैसे उन्हें नींद से जगाती है।

ऑन योर मार्क्स...

गेट..!

से...ट..!

गो...!!....धांय
(बंदूक की आवाज़ के साथ रेस शुरू हो जाती है)

यशवर्धन दौड़ में धीमी शुरुवात करते है, और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाते है।
वॉटर सेशन को अवॉइड करते हुए वो आगे बढ़ते जा रहे हैं।
लेकिन फिनिश लाइन के करीब आते आते उनका तनाव बढ़ने लगता है।

दिमाग कहता है रुक जाओ बस..!!
तुम बेहद थक चुके हो।
वो मन में बार बार दोहरा रहे है..!
...तू कर सकता है...!
..तू जीतेगा...!
..तू जीतेगा..!

सूरज की किरणें यश को परेशान कर रही हैं। उनका पांव बुरी तरह से दुःख रहा है और पल्के भारी हो रही है।

(फ्लैशबैक)

तभी उन्हें कोई थपथपा के होश में लाता है।
आर यू ओके यश??
कॉल दी एयर एंबुलेंस फास्ट!

मेजर यशवर्धन को हॉस्पिटल लाया जाता है और इलाज शुरू किया जाता है। यश को कुछ दिनों बाद होश आता है।

डॉक्टर: गुड मॉर्निंग यश।
यश (धीमे स्वर में..हल्का दर्द महसूस करते हुए) : गु..ड मॉर्निंग... डॉक्टर।
मुझे कब तक यहां रहना होगा?

डॉक्टर (बेहद गंभीर मुद्रा में) : मुझे बेहद अफसोस है यश, ग्रेनेड हमले की वजह से तुम्हारा पैर बुरी तरह से घायल हो चुका था और पैर में गैंग्रीन हो गया था। इंफेक्शन पूरे शरीर में न फैले इसलिए इनको शरीर से अलग करना पड़ा। तुम्हें रिकवर होने में अभी कुछ और महीने लगेंगे।

यश कांपते हाथों से अपने पांव के ऊपर की चादर को हटाता है और आधे अधूरे पांव को देखकर पागल सा हो जाता है। गुस्से में वो अपने आस पास रखी हर चीज को फेकने तोड़ने लगता है। हड़बड़ाहट में खड़ा होने की कोशिश में खुद को बिस्तर से गिरा लेता है और दर्द से चीखता है।

डॉक्टर्स और मेडिकल टीम उसे वापस लिटाती है और नींद का इंजेक्शन दे दिया जाता है।

यश काफी निराश रहने लगता है। अपने दोस्तों के बारे में पता चलने पर वो और भी निराश होता है। ऐसे ही ४ महीने गुजर जाते है।

एक दिन डॉक्टर उसके पास आते है।

डॉक्टर: यश, कल सुबह तैयार रहना। तुम्हें कहीं ले चलना है।

यश उस बात को अनसुना कर देता है।

दूसरे दिन सुबह यश बिना तैयार हुए बिस्तर पर ऐसे ही बेसुध पड़ा रहता है।

डॉक्टर उसे स्टाफ की मदद से व्हीलचेयर पर बिठाते है और किसी अनजान जगह के लिए गाड़ी रवाना हो जाती है।

वो जगह आ चुकी है। डॉक्टर उसे स्टाफ की मदद से बाहर लाते है।
डॉक्टर खुद व्हीलचेयर को अंदर की तरफ मूव कराते हुए; देखो यश, अपने चारों तरफ देखो!
यहां वो लोग है जिन्होंने तुम्हारी ही तरह अपने अंग खोए।

वो देखो उस लड़की को ! उसका नाम अपर्णा है।
उसने भी एक ट्रेन हादसे में नेशनल कराटे चैंपियनशिप के लिए जाते वक़्त अपनी दोनों टांग खो दी थी। लेकिन वो आज एक अच्छी धावक है।

अपर्णा को दौड़ लगाता देख यश हतप्रभ है।

अपर्णा ने प्रॉस्थेटिक लिंब ( कृत्रिम पांव ) लगाकर अपनी खोई जिंदगी, अपना विश्वास वापस पाया। वो तो एक साधारण सी लड़की थी पर तुम..

तुम तो एक आर्मी मैन हो..।

बस अपने को कमजोर मत पड़ने दो। उठो और आगे बढ़ो।
भले ही तुमने अपने शरीर का कोई हिस्सा खो दिया है, पर जीवन जीने की इच्छा मत खो। सिर्फ शांत बैठकर हॉस्पिटल की दीवारों से बात करने से कुछ नहीं बदलेगा।
बाहर निकलो, ज़िंदगी चुनौतियों से भरी है।
ज़िंदगी में हासिल करने लिए अभी बहुत कुछ है।
तुम एक जवान हो, हिम्मत हारना तुम्हारेे पेशे का हिस्सा नहीं। लोगों को अपने लिए बेचारा, असहाय जैसे शब्दों का प्रयोग करने से पहले अपने इरादों को मजबूत बनाओ। अपनी ख़ुशियों और ग़म के लिए हम ख़ुद ही ज़िम्मेदार होते हैं। हमें ख़ुद यह तय करना होता है कि हम ख़ुद को कहां देखना चाहते हैं। अपने जीवन का मक़सद बनाओ।
ख़ुशियों की वजह ढूंढों।
अगर ये नियति है कि तुम एक पांव खो दोगे तो ये भी हो सकता है कि एक दिन तुम एवरेस्ट फतेह कर दो।

आज यश की आंखों में एक चमक थी।
...उम्मीद की..
यश अपना दर्द भूल,
अपर्णा को दौड़ते हुए देखता रहता है।

(वर्तमान)

भागते - भागते आखिर ब्लेड रनर " मेजर यशवर्धन" फिनिश लाइन अपने सोचे समय से पहले ही क्रॉस कर लेता है।
यश को उसके दोस्त कंधे पर बिठा लेते हैं।
यश का दोस्त बंसल: तुमने तो अपना ही रिकॉर्ड ब्रेक कर दिया "यश द ब्लेड रनर", ब्रावो !!

यश खुशी से दर्शक दीर्घा में बैठे अपने मेंटर डॉक्टर को देखता है और..

(कहीं और)
अश्रु धारा बह चलती है।

शांत हो जाओ अवंतिका, शांत!
आखिर तुम ही हिम्मत खो देगी तो फिर हम सबका क्या होगा?
तुम्हारे विश्वास और हिम्मत से ही हम सबको संबल मिलता है और तुम ऐसे बच्ची बन जाओगी तो स्तिथि और जटिल हो जायेगी।
भगवान हमारी परीक्षा ले रहा है। अगर उसने हमें ये दुर्दिन दिखाए है तो खूबसूरत पल भी सोच रखे होंगे। हिम्मत रखो।
(ढांढस देती अवंतिका की मां बोलीं)

अवंतिका: मां, उसे इस हालत में नहीं देखा जाता।
अवंतिका की मां: ... और जो मैं तुम्हें पिछले १ साल से एक बुत की तरह देख रही हूं, उसका क्या? कितना दर्द छिपाकर रखा है तुमने अपने सीने में।

अवंतिका दोबारा आईसीयू कक्ष के अंदर झांक कर अपने बच्चे को देखती है।

नर्स: अवंतिका जी! डॉक्टर सलूजा ने आपको अपने केबिन में बुलाया है।
अवंतिका: ठीक है।

(डॉक्टर् केबिन में)
डॉक्टर सलूजा: अवंतिका जी, जैसा आपको पता है कि आपका बच्चे में जन्मजात हृदय विकार है। लगभग १०० में से १ बच्चे को ऐसे जन्मजात विकार होते है। कुछ में समय के साथ ये विकार खत्म हो जाते है। पर कुछ में, हमें सर्जरी या फिर कृत्रिम उपकरणों के माध्यम से बच्चे को स्वस्थ करना पड़ता है।अभी हमारे पास थोड़ा समय है। आपको इसके लिए खुद को तैयार रखना होगा। ऑपरेशन काफी खर्चीला होगा। डिटेल आपको इन्फॉर्मेशन डेस्क पर मिल जायेगी।
फिलहाल आपका बच्चा अभी खतरे से बाहर है। हफ्ते के अंत तक शायद उसे आप घर ले जा सके। १ महीने बाद फिर से सारे टेस्ट रिपीट करेंगे और उस हिसाब से आगे के लिए सर्जरी की प्लानिंग करेंगे।

अवंतिका: थैंक्यू डॉक्टर,

कहकर अवंतिका वहां से इन्फॉर्मेशन डेस्क पर जाती है। वहां से डिटेल लेकर उंगलियों में कुछ हिसाब किताब लगाती और बड़बड़ाती हुई वो हॉस्पिटल से बाहर निकल जाती है।

मन बिल्कुल शांत नहीं है। हृदय की धड़कने बढ़ी हुई सी है और पांव में कपन्न सा हो रहा है।

अवंतिका अपनी स्कूटी स्टार्ट करने की कोशिश करती है। लेकिन कई किक लगाने के बाद भी वो स्टार्ट नहीं हो पाती।

हड़बड़ाहट में वो बाहर सड़क पर निकल जाती है और बिना सिग्नल की तरफ ध्यान दिए रोड क्रॉस कर ऑटोरिक्शा पकड़ना चाहती है।

तभी एक तेज़ आती कार उसे हॉर्न देती है। लेकिन उसका मन तो कहीं और है। उसे न तो कुछ सुनाई दे रहा न दिखाई। अपने में ही गुमसुम सी वो बस चले जा रही, लेकिन कहां शायद इसका भी पता नहीं।

इससे पहले कि तेज़ रफ्तार कार से उसकी टक्कर हो जाती एक मजबूत हाथ ने उसे बेहद फुर्ती से अपनी तरफ खींचा।

अवंतिका खुद को एक गठीले, चौड़ी छाती वाले, लंबे युवक कि बाहों में खुद को महसूस करती है और सकपका कर खुद को दूर कर लेती है।

युवक अवंतिका से;
आप ठीक हैं। अवंतिका बिना देखे ही नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ती है कि तभी युवक उसका हाथ पकड़ कर दोबारा अपनी तरफ खींचता है।

अवंतिका उसे गुस्से में भर कर देखती और एकदम से उसके चेहरे के भाव बदल जाते है।

तुम - तुम (एक साथ दो स्वर निकलते है)

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क्रमशः