अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 3 Rajnish द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य - 3

अक्षयपात्र : अनसुलझा रहस्य
(भाग - ३)


अवंतिका: थैंक्यू यश! (रुंधे गले से)
ऐसे समय पर तुमने आकर मुझे जो सहारा दिया है। उसको मैं बयां नहीं कर सकती।

कहकर अवंतिका सिसकते हुए उसके गले लग जाती है।
यश उसे सांत्वना देता है।

समय बीतता है...और

अवंतिका के बच्चे का सफल ऑपरेशन हो जाता है। इस बीच यश का अवंतिका से मिलना नहीं हो पाता।

एक दिन कॉफी शॉप पर..

यश: आज कैसे, सुबह सुबह याद किया।
अवंतिका: तुमने कठिन समय में मेरी जो मदद की उसका ढंग से आभार भी प्रकट नहीं कर पाई। अब जब वो स्वस्थ है तो सोचा समय निकालकर तुमसे कुछ बात करूं।

यश: हम दोस्त है अवंतिका, एक दूसरे की मदद करना हमारा कर्तव्य है इसमें आभार प्रकट करने वाली क्या बात।

तभी कॉफी शॉप पर तीन - चार आदमियों की एंट्री होती है।
यश की निगाह उनमें से एक को पहचानती है और अनायास उसका नाम यश की जुबां पर आ जाता है।

यश: "सैम"
(अवंतिका पीछे मुड़कर देखती है)
अवंतिका: हां, वो सैम ही है।
यश और अवंतिका एक साथ: सैम... म..!

सैम: व्हाट ए प्लीसेंट सरप्राइज!!!
तुम दोनों, एक साथ, यहां इस शहर में??
और खबर ही नहीं?
...और तुम दोनों ने याद भी नहीं किया इतने समय से।

यश: हमारी मुलाकात भी ये समझो की काफी समय बाद ही हुई है। आज का दिन काफी अच्छा है। पुराने दोस्तों से मुलाकात हुई। वैसे सैम कहां हो आजकल?

सैम: माउंटेनियरिंग और एक्सट्रीम एडवेंचर स्पोर्ट्स में खुद को व्यस्त कर रखा है। फिलहाल अब खुद की कंपनी खोलने का विचार है और अपने शौक भी पूरे करने है लेकिन पैसों की तंगी की वजह से जॉब प्रोफाइल बदलता रहता है। तुम सुनाओ, तुम्हरा क्या चल रहा है।

यश: बस तेरी तरह अपना पैशन फ़ॉलो करने आर्मी ज्वाइन कि, अभी हाल ही में एक दुर्घटना में अपना एक पांव गवां बैठा। लेकिन डॉक्टर्स और दोस्तों के मोटीवेशन ने मुझे आज एक ब्लेड रनर बना दिया। बस अब अपने अंग गवां बैठे लोगों के लिए कुछ करने का जज्बा जागा है मुझमें। एक एकेडमी खोलनी है बस उसी के लिए इनवेस्टर्स ढूंढ रहा हूं।

सैम: वाऊ, ग्रेट यश!! और अवंतिका तुम?

अवंतिका: मुझे पुरातत्वविद बनना था और बन भी गई। कई घंटों से लेकर महीनों तक उत्खनन क्षेत्रों के कैम्प में रहना, प्रयोगशाला में लंबा समय बिताना ताकि इतिहास की परतों में छुपी जगहों को खोज कर दुनिया के सामने लाने के अपने जुनून को पूरा कर सकूं। कई अन्तर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट किए। इस पैशन को फॉलो करने में इतना पागल हो चुकी थी कि शादी भी सिर्फ छह महीने ही चल पाई। अब फिलहाल काम से फ्री हूं।

सैम: अब जब हम सब मिले है तो चलो फिर पहले की तरह धमाल करते है।
याद है.... हमारी गोवा ट्रिप!
अब हम इस मुलाकात को भी यादगार बनाते है।
कोई बहाना नहीं....।
तुम लोगों को एक एडवेंचर टूर पर लेकर चलता हूं। कुछ अच्छा समय बितायेंगे एक साथ!!
बताओ..
सैम और अवंतिका, दोनों एक दूसरे कि तरफ देखते है फिर कुछ सोचने के बाद "हां" में सर हिलाते है।

सैम: ये.. हुई ना बात!! (जोश में)
तो फिर कल सुबह 8 बजे इसी कॉफी शॉप से हम अपने सफ़र की शुरुवात करेंगे।

यश: लेकिन हम जा कहां रहे हैं?
सैम: ये कल पता चलेगा।

दूसरे दिन सभी कॉफी शॉप के बाहर सैम का इंतज़ार कर रहे थे। तभी एक गाड़ी आती है।

सैम: हे गाइज़! कम इनसाइड!!
दोनों अंदर बैठते है और गाड़ी चल पड़ती है।
सैम: यश, पीछे आइस बॉक्स में से बीयर निकालो! सफर शुरू हो चुका है।
यश: तुम तो पूरी तैयारी से आए हो सैम (हंसते हुए)
अवंतिका: सैम! मैं नहीं लूंगी।
सैम: ले.. ले.. छिपकली पी ले! डर मत! तुझे इतने जहर से कुछ नहीं होगा।
अवंतिका: (सैम के बाल खींचते हुए) कमीने! तू अभी तक नहीं सुधरा।
सैम: आह! अवंतिका छोड़ यार!! वैसे ही उड़ रहे है ऊपर से तू इन्हें खीचने में लगी है।

सभी आज एक साथ काफी खुश है। देर शाम वो पहुंच जाते है। वहां पहले से ही उनके टेंट रेडी है। थोड़ा रेस्ट करने के बाद तीनों कैम फायर जला कर बैठे है साथ में दो पोर्टर जो कल उनके साथ जायेंगे।

सैम: तो हम लोग कल ट्रैकिंग पर चलेंगे। ध्यान रहे, आराम से ऊपर चढ़ना है, समय को कोई कमी नहीं इसलिए चढ़ने में कोई जल्दबाजी नहीं।
और एक ख़ास बात...ट्रैकिंग करते वक़्त..
टॉक लेस एंड ब्रीद थ्रू योर नोस! ओके!!

सुबह होते ही सब जग जाते है और अपने सफ़र कि शुरुआत करते है।
कुछ समय बाद सभी एक स्पॉट पर पहुंच कर रुकते है। सभी के लिए मैगी आती है।

सैम: अब हम इस स्पॉट के बाद 2130 मीटर ऊंचाई पर स्थित सूर्यशिखर पर जायेंगे जहां से माउंटेन रेंज और पीक का ब्रेथटेकिंग व्यू दिखेगा। खड़ी चढ़ाई है, कोई जल्दबाजी नहीं करेगा। ओके!!

खड़ी चढ़ाई में, यश को कृत्रिम पैरों कि वजह से थोड़ा दिक्कत हो रही है। वो जल्दबाजी करने लगता है। तभी....

सरर...की आवाज से यश फिसलता है और सरकते हुए दूसरी पहाड़ी के छोर पर खाई की तरफ गिरता है।

अवंतिका की चीखें निकल जाती है : न..हहीं......!!!

सैम और अवंतिका भागते हुए यश की तरफ जाते है।
पहाड़ी के उस छोर पर पहुंचते ही ....
आह्ह..!
नहीं..अवंतिका बचकर... सर्र..
वो भी फिसल जाते है।

अंधेरी जगह पर,
सैम टॉर्च निकाल के जलाता है।

सैम: यश, अवंतिका, कहां हो?

धुप अंधेरा है, सैम को कुछ साफ नहीं दिख रहा। सर उठाकर देखने पर उसे ये जरूर महसूस होता है कि वो किसी बड़ी सी गुफा के अंदर पहुंच गया है।

तभी अवंतिका और यश की भी आवाज़ आती है। यश की आवाज़ कराहने की है। शायद उसे चोट लगी है।
सैम: क्या हुआ यश?
ख रहा है।
सैम: (यश के पांव को देखते हुए)शायद मोच आई है। कोई गंभीर बात नहीं लग रही।
तीनों उठकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ते है।

यश: अवंतिका ये क्या है? (चट्टानों की तरफ इशारा करते हुए)
अवंतिका: स्टैलेक्टिट्स और स्टैलेग्मिट्स कहते है इन्हें।
इन्हें बनने में वर्षों लगते है या यूं कहो तो हजारों साल।
जब पानी गुफा के अंदर हवा के संपर्क में आ जाता है , तो रासायनिक प्रक्रिया से पानी में जो कैल्साइट पाया जाता है वो छत से टपक कर या फर्श पर ही परत दर परत एक पिंड की तरह ऊंचा होता जाता है।

नीचे काफी अंधेरा है इसलिए उजाला करने के लिए वो सूखी पड़ी टहनियों और पत्तों को इकट्ठा कर जलाते है।

गुफा के अंदर पानी है जो बेहद स्वच्छ और निर्मल लग रहा है। सैम के वहां झाड़ियों में हाथ लगाते ही, जुगनूओं के एक बड़े समूह ने, पानी और गुफा के अंदर एक चांदनी सी रोशनी बिखेर दी। वो रोशनी उनकी लगाई आग की रोशनी से ज्यादा तेज़ थी।

यश: इधर आओ जल्दी, देखो क्या मिला है।

सैम और अवंतिका की आंखे खुली की खुली रह जाती हैं।

बेहद खूबसूरत नजारा।

पतली सी झिरी से, गुफा के अंदर की सतह पर बिखरी हुई सूर्य की रोशनी।
अंदर एक पानी के स्रोत पर पड़कर गुफा की दीवारों पर अद्भुत चित्रण करती है, जो गहरे समुद्र में होने का भ्रम पैदा करती है।
वहां दीवारों पर कुछ कलाकृतियां नज़र आती हैं। अवंतिका उसे ध्यान से देखती और पढ़ती है।

यश: अवंतिका क्या बना है यहां? अजीब सी रेखाएं है। क्या तुम इन्हें समझती हो?

अवंतिका: हां, यश! अगर मैं तुम्हें बताऊं तो शायद तुम इस बात पर यकीन न करो।

सैम, यश (एक साथ): कौन सी बात?

अवंतिका: महाभारत काल में द्यूत (जुंए) में हारने पर पांडवों को अज्ञातवास में रहना था। लोगों से छुपकर रहने के लिए पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान कई गुफाएं बनाई।

अपने बारह-वर्षीय वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान सभी पांडव बंधु वनों में विचरण कर रहे थे। तब उन्होंने एक बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश की। पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सौंपा गया। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहां पहुंचे।

जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी। सहदेव उस शर्त और यक्ष को अनदेखा कर जलाशाय से पानी लेने लगे। तब यक्ष ने सहदेव को निर्जीव कर दिया। सहदेव के न लौटने पर क्रमशः नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई। वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण निर्जीव हो गए।

अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। अदृश्य यक्ष ने प्रकट होकर उन्हें आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा। युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया। उन्होंने न केवल यक्ष के सभी प्रश्न ध्यानपूर्वक सुने अपितु उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी दिया जिसे सुनकर यक्ष संतुष्ट हो गया। संतुष्ट होने के बाद यक्ष ने प्रसन्न होकर सभी भाईयों को न वरन जीवित किया बल्कि उन्हें आशीर्वाद स्वरूप एक अक्षयपात्र सौंपा। जिसकी विशेषता ये थी कि उसमें जितना भी अन्न रखा जाता वो उसे स्वर्ण में परिवर्तित कर देता।

ऐसे ही अज्ञातवास के दौरान, पांडव वेश बदलकर मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर में विराट नरेश की सेवा में लग गए।

युधिष्ठिर ने कंक नामधारी ब्राह्मण बनकर राजा की सभा में द्यूत आदि खेल खिलाने का काम स्वीकार किया। भीम ने बल्लव नामधारी रसोइए का, अर्जुन ने बृहन्नला नामधारी नृत्य शिक्षक का, नकुल ने ग्रथिक नाम से अश्वाध्यक्ष का तथा सहदेव ने तंतिपाल नाम से गोसंख्यक का काम अंगीकार किया। द्रौपदी ने रानी सुदेष्णा की सैरंध्री बनकर केश संस्कार का काम अपने जिम्मे लिया। पांडवों ने यह अज्ञातवास बड़ी सफलता से बिताया। वहां से जाते वक़्त उन्होंने वो अक्षयपात्र वहां के नरेश की पुत्री जो बाद में अभिमन्यु की पत्नी बनी, उन्हें उपहार स्वरूप दे दिया।

सैम (टोकते हुए): इतनी लंबी कहानी का इस जगह से क्या लेना देना?

अवंतिका: कुछ न कुछ तो होगा, क्यूंकि यहां लिखी शंख लिपि और गुफा की दीवारों पर उकेरे हुए चित्र इसी ओर इशारा कर रहे हैं।

अवंतिका की नजर तभी पलाश के पौधों पर पड़ती है।

अवंतिका: सफेद पलाश, ये तो बेहद दुर्लभ है। और वो भी इस वातावरण में....बेहद आश्चर्य से देखती अवंतिका उनमें से एक फूल तोड़ती है।

सैम: अवंतिका, ध्यान रहे! किसी भी चीज को बिना सोचे समझे हाथ मत लगाओ। खतरनाक भी हो सकता है।

अवंतिका: देखो सैम, सफेद पलाश के फूल। आयुर्वेद में इनका बेहद महत्व है। मेरी मां अक्सर इनके बारे में बताती थी।
....कहते हुए अवंतिका पलाश के फूल की पंखुड़ी अपने मुंह में रख लेती है।

सैम चीखता है... : अ..वंति...का...का.....का!!
अ..वंति...का...का.....का!!

यश भागते हुए सैम की तरफ आता हैं

यश: क्या हुआ सैम? अवंतिका कहां गई?

सैम: पता नहीं यश, उसने यहां से पलाश के फूल की पंखुड़ी तोड़ी और अचानक मेरे देखते ही देखते यहां से गायब हो गई।

नोट: अज्ञातवास का अर्थ है बिना किसी के द्वारा जाने गए किसी अपरिचित स्थान में रहना। द्यूत (जुएं) में पराजित होने पर पांडवों को बारह वर्ष जंगल में तथा तेरहवाँ वर्ष अज्ञातवास में बिताना था।

(डिस्क्लेमर : यहां बताई गई सभी बातें, स्थल, विचार, पौराणिक कथा सब काल्पनिक है। पौराणिक बातों का उल्लेख सिर्फ कहानी को रोचक बनाने के लिए किया गया है। इसका मकसद किसी की भी धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने का नहीं है।)

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क्रमशः

यश: पांव दुः