इच्छा - 16 Ruchi Dixit द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इच्छा - 16

अगले दिन सुबह मोबाइल ओपन करते ही लगभग सत्रह मिस कॉले जो सुबह चार बजे से लेकर लगभग छः बजे तक हर दस, पन्द्रह मिनट के अन्तराल पर थी | इच्छा कुछ बड़बड़ाती हुई "अब मैडम ! चार बजे उठने लगी |" प्रतीक्षा को बैक कॉल लगाती है | उधर से किसी पुरूष ने उठाया , हाँ जी हेलो !!
इच्छा सकपकाकर लगता है गलत नंबर लग गया | जी नही!!बिल्कुल सही नंबर, सही जगह पर लगाया है आपने इच्छा जी!! | आप कौन? ? हम्म !! साली पूँछ रही है जीजा कौन?इच्छा सारी बात समझते हुए "कौशल जी!! आप कौशल जी है न?? हम्म!! अभी तक धर्मपत्नी जी के मुँह से यही सुनता आ रहा हूँ | पर एक बार माननी पड़ेगी मेरे नाम से अधिक वह आपके नाम का रटन करती है | मै सुबह पौने चार बजे घर पहुँचा और चाय पानी छोड़ उसने पहले आप को फोन घुमाया | खैर !!! और बतायें कैसी है आप ?? इच्छा जी जीजा जी अच्छी हूँ | इच्छा को छेड़ने वाले अन्दाज मे कौशल, अरे अच्छी आप ! तभी तो मेरी पत्नीजी के दिमाग पर कब्जा कर रखा है , हर बात मे पूर्णविराम की तरह आप का जिक्र जरूर होता है, मुझे ऐसा लगा कि कही वह मुझे भूल ही न जाये सो देर करनी ठीक नही इसलिए यहाँ चला आया | मैने ठीक किया न इच्छा जी?? इच्छा फोन पर मुस्कुराहट के साथ जी कौशल जी आपने बिल्कुल ठीक किया | तभी प्रतीक्षा कौशल से फोन छीनती हुई, मेरी दोस्त से आपको बात करने के लिए किसने कहा ??? कौशल प्रतीक्षा की आँखों मे झाँकते हुए , अच्छा जी!! बात करने से मनाही?? गर्दन पर हाथ रखते हुए हम्म !!! और जो आप फोन पर मेरी और अपनी बात छोड़ इच्छा की कथा सुनाया करती वह ?? दूसरी तरफ इच्छा जो उनकी प्रणयपूर्ण नोक झोक सुन आनंदमग्न हो रही थी | तभी प्रतीक्षा शरमाती हुई कौशल से खुद को दूर कर , फोन पर, हेलो!! इच्छु ! तू अभी आयेगी या शाम को?? इच्छा, उत्तर न दे पाने की सकपकाहट मे अ्अ्अभी !! | इच्छा की बात पूरी हुये बिना ही प्रतीक्षा बोल पड़ती है , चल छोड़ ! रहने दे !! पर शाम को हर हाल मे तुझे यहाँ आना है | इच्छा वो तो ठीक है पर!! प्रतीक्षा बात काटती हुई, पर वर कुछ नही!! आना है तो बस आना है | इच्छा ,ओक्के दादी !! पुरू तुझसे एक बात पूछँनी थी ? प्रतीक्षा, जल्दी पूँछ !! न आने के बहाने को छोड़कर कुछ भी पूँछ सकती है | मै उषा को भी अपने साथ ले आऊँ?? प्रतीक्षा क्यो? उसके बिना तेरा खाना नही हजम होता?? इच्छा, नही पुरू ऐसा नही है | प्रतीक्षा थोड़े रूखे शब्दों में, तेरी मर्ज़ी पर हाँ ! जल्दी अईयो ! ! वरना सुबह ही बिदा करूंगा तुझे यहाँ से | इच्छा हम्म!! ठीक है | फोन काटते ही इच्छा तैयार होने लगती है , और लगभग एक घण्टे बाद ही वह प्रतीक्षा के घर के बाहर डोरबेल पर हाथ रखती है | तभी प्रतीक्षा गेट खोल आश्चर्यचकित भाव से इच्छु तू! इतनी जल्दी !! वाह ! जी वाह !! अब मै समझ गई | अरे क्या समझ गई ? और तू मुझे अन्दर आने देगी भी या नही | इच्छा के अन्दर आने पर वह बाहर इधर -उधर झाँकती हुई, उषा कहाँ ? इच्छा , मै उसे नही लाई | प्रतीक्षा नही लाई! क्यों? इच्छा कुर्सी पर बैठे हुए, पहले तू यह बता कि मेरा जल्दी आना तुझे क्यों बुरा लगा? तू क्या समझ गई? प्रतीक्षा यही की तुझे मेरा घर काटता है मैने तुझे रोक लेने की बात की तो तू फटाफट आ गई, यह बता आज तक तू समय पर आई है क्या ?? इच्छा, गहरी साँस भरते हुए, हम्म !! प्रतीक्षा, अब तू बता उषा को क्यों नही लाई? इच्छा टेबल पर रखे पानी के ग्लास से घूँट भरती हुई, तूने इतने खराब मन से कहा था मै भला उसका अपमान कैसे कर सकती थी | प्रतीक्षा शिकायती अन्दाज मे, बड़ी चिन्ता है तुझे उसके अपमान की? अब मुझसे ज्यादा गहरी दोस्त है तेरी वो? नही यार ऐसा नही है | इच्छा ने उषा के बारे मे तथा उस दिन की घटना के बारे मे विस्तार पूर्वक प्रतीक्षा को बताया प्रतीक्षा सारी बात सुन झेंपती हुई तूने मुझे पहले क्यों नही बताया | इच्छा, किसी की बात को इस प्रकार फैलाते है क्या? क्या पता उसे बुरा लगता तो? प्रतीक्षा कुछ देर मौन रह अपने वाक्य - व्यवहार को याद कर पश्चात्ताप करने लगी | उसकी इस स्थिति को भाँपते हुए इच्छा बात पलटने की कोशिश करती है , अरे यह सब छोड़ पुरू! यह बता जीजू कहाँ हैं | प्रतीक्षा, वो बच्चों को बाहर घुमाने लेकर गये हैं, आज उनका जन्मदिन जो है | क्या??? आज जीजू का जन्मदिन है और तूने मुझे बताया नही | उन्होने ही मना किया था मुझे बताने को वैसे भी उन्हें ज्यादा ताम -झाम पसन्द नही | ये तो तुझसे मिलने की इच्छा थी उनकी इसलिए बुला लिए वरना जन्मदिन उद्देश्य नही था | इच्छा कोई बात नहीं, तोहफ़ा तो मै वैसे भी लाई हूँ जीजू के लिए | प्रतीक्षा नाथूने फुलाती हुई, अच्छा जी, और जीजी के लिए?? इच्छा शरारत भरी मुस्कान के साथ , जीजी के लिए तो,,,, मै ,,, खुद ही आ गई न ! समय से पहले | प्रतीक्षा, बाते बनाना तो कोई , तुझसे सीखे | प्रतीक्षा टेबल पर पड़े बर्तन को समेटती हुई, इच्छु !अब तू जल्दी आ ही गई तो चल मेरे साथ किचन मे हाथ बटा | दोनो ही हँसी ठहाको के साथ किचन मे लग जाती हैं | लगभग डेढ़ घण्टे पश्चात गायत्री मंत्र अउम् भूर भुव: स्व: की धुन के साथ डोरबेल बजती है, लगता है कौशल आ गये कह प्रतीक्षा किचन से बाहर आ गेट खोलती है तभी कौशल , फिर हस्ती! कितनी बार मैने समझाया है तुम्हें ! गेट खोलने से पहले झरोखे से देख लिया करो , तुम्हारी लापरवाही एक दिन जरूर कुछ काण्ड करवायेगी | तभी क्या बात है !!
जीजू इतना रोब क्यो दिखा रहें हैं मेरी दोस्त पर ? कौशल का ध्यान अचानक प्रतीक्षा से हटकर किचन से बाहर निकलता हुई इच्छा पर जाता है | उसे समझते देर न लगी कि यह इच्छा भी है, इच्छा ! तुम्ही समझाओ अपनी सहेली को माहौल कितना खराब है आये दिन कुछ न कुछ दुर्घटनाये, वारदात सुनने को मिलती रहती हैं फिर भी तुम्हारी सहेली को अकल नही आई | अरे लापरवाही की हद है यार!! | चलिये जीजू अब शान्त हो जाइये ! आखिर आपका जन्मदिन जो है | अरे कैसे शान्त हो जाऊँ इच्छा? दिन रात इन लोगों की ही फिकर लगी रहती है, और ये है कि ! ! अरे! लापरवाही की भी हद है | जीजू मै पुरू की तरफ से माफी मांगी हूँ , अगर आगे से उसने ऐसा किया न ,तो!! प्रतीक्षा की तरफ देखती है जो पहले ही उसे बड़ी बड़ी आँखों से घूर रही होती है , हल्की मुस्कुराहट के साथ इच्छा जैसे वह दिखाना चाह रही हो कि यह स्थिति को समान्य करने का प्रयास मात्र है | बस बहुत हो गया ! बहुत देर से मै आपकी सुन रही हूँ | अरे! हो गया न! इतना भी क्या आप सुनाते ही रहेंगे | तभी इच्छा बात पलटते हुये, "अच्छा बताइये जीजू मेरे लिए क्या लाये आप? " कौशल मुस्कुराते हुए मै काफी नही हूँ क्या?? इच्छा हल्की मुस्कान के साथ प्रतीक्षा की तरफ भौंहे मटकाती हुई देखती है जो , पहले से ही कौशल को घूर रही होती हैं, कौशल को समझते देर न लगी सकपकाते हुए, अरे अरे! मै तो मै बस यही कह रहा था कि ....!! तभी सीधे पल्ले मे चंदन का टीका लगाये हल्के पीले रंग के बार्डर वाली कोरी सफेद साड़ी पहने , चेहरे के भीतर से झाँकती माँसपेशियाँ झुर्रियों के बावजूद , चेहरे पर एक अलौकिक कान्ति एक सुन्दर व्यक्तित्व का परिचय दे रही थी , हाथ मे कुछ लिए हुये जैसे ही कौसल के समीप पहुँचती हैं , कौशल उन्हे देखते ही अपना सर उनके पैरो पर रख देता है , और साथ मे प्रतीक्षा भी सिर पर पल्ला लेते हुये , दोनो के सिर पर प्रेम से हाथ फेरे हुये , इच्छा की तरफ देख, और बेटा इच्छा! कब आये आप?? इच्छा उन्हें प्रणाम करती हुई, आंटी जी! अभी दो घण्टे पहले ही | जहाँ रहती हो वहाँ पर सब ठीक है न? इच्छा, जी आंटी जी | इतना कहते हुये वह अपने कमरे मे जाने को हुई तभी कौशल बोल पड़ता है, अम्मा रुको न! बच्चों ने केक मँगवाया है ,केक काटने के बाद चली जाना |
अरे न रे! मै केक वेक न खाती | कौशल, अरे तो ! हमे खाते देख लीजिएगा , आपके यहाँ रहने भर से हम सबको खुशी मिलेगी | बेटा साँझ हो रही है , मेरा पूजा का समय हो रहा है | तुम लोग मिलकर मना लो मै कान्हा जी ने प्रार्थना करूंगा मेरे बालका ने खुश राखै | यह कहती हुई वह अन्दर चली जाती हैं | शाम को केक करने के पश्चात वह घर जल्दी जाने को होती है तभी, प्रतीक्षा इच्छा को रोकते हुये, इच्छु ! रूक जरा! ! और किचन मे चली जाती है, थोड़ी देर बाद उसके हाथ मे एक पैकेट इच्छा को थमाते हुये , इच्छा आश्चर्य से ,
यह क्या है?? यह उषा को दे देना उसके लिए केक व मिठाइयाँ है | इच्छा प्रतीक्षा को प्यार से गले लगाते हुये मेरी प्यारी पुरू! | प्रतीक्षा अच्छा! अच्छा! मस्का बहुत हो गया चल अब जा अंधेरा गहरा रहा है