'दादाजी एक कहानी सुनाओ न...प्लीज़,बहुत दिन हो गए आपसे कहानी सुने हुए।' कीर्ति बोली।
'बाद में बेटा ,अभी नहीं!' रामावतार व्यस्त था सो बोला।
'अच्छा दादाजी ,आपका एक पैर का क्या हुआ?भेड़िया खा गया?बताओ न दादाजी ? कैसा था भेड़िया?मैं बड़ा होउंगी न तो उस भेड़िये को मार डालूंगी।' कीर्ति अब भी जिद पर अड़ी थी।
'आज शाम में बताऊंगा ,बेटा ।अभी दादाजी काम कर रहे हैं न! मेरी रानी बेटी ,सब समझती है ! जाओ अभी सो जाओ!' रामावतार अपनी व्यस्तता छोड़ नज़र उठाते हुए और कीर्ति को पुचकारते हुए बोला।
'ओके ,दादाजी !लेकिन एक प्रॉमिस कीजिये कि आज दो कहानी सुनाएंगे , एक शेर वाली और एक आपके पैर वाली, कीजिये प्रॉमिस!'
'प्रॉमिस बेटा!'
आज बड़े दिन बाद गर्मी की छुटियों में कीर्ति अपने गांव आई हुई है और उसने रामावतार के नाक में दम कर रखा है, एक ही जिद्द है या तो कहानी सुनाइये या अपनी आपबीती!
रामावतार बहुत हंसमुख था मगर जब भी कोई उस से उसकी कटी टांग के बारे में पूछता तो वो भावुक हो जाता।उसे याद आने लगती है सारी बातें कैसे उसने अपना सैनिक धर्म निभाते हुए अपनी टांग खो दी थी , मगर मन मे एक मलाल थी कि वो तो सिर्फ बकरा...
'दादाजी !कहानी......'
अभी रामावतार सोचने में व्यस्त था की कीर्ति आ गई।
सूरज कब ढल गया पता ही नही चला ,शायद उसे भी कहानी सुनने की जल्दी थी।
'एक बहुत घना जंगल था।उसमें बहुत सारे पशु-पक्षी खुशी-खुशी रहते थे।चारों तरफ खुशहाली थी।'
'नही दादाजी पहले अपनी कहानी।जंगल वाली नही सुननी मुझे।'कीर्ति बीच मे बोली।
'अपनी ही कहानी सुना रहा हूँ, बेटा!ये देश भी तो उस जंगल के जैसा है न।यहां अलग-अलग लोग कितने खुशी से रहते हैं ,है न!'
'हम्म!'
'हाँ तो मैं कहाँ था?'
'जंगल में खुशहाली थी।' कीर्ति को अब कहानी में बहुत मज़ा आ रहा था।
'हाँ! तो जंगल की खुशहाली से आस-पास के जंगल वाले बहुत जलते थे और यदा-कदा अपने जंगल से भेड़िये भेजकर हमारे जंगल के जानवरों का शिकार करवाया करते। फिर हमने भी उनसे लड़ने की ठानी और जंगल में एक शिकारी की तलाश शुरू हुई जो दूसरे जंगल के भेड़ियों का शिकार कर सके। तलाश चल ही रही थी, तभी एक सियार आया और कहने लगा 'मैं शिकार करूँगा उन पर जंगल के भेड़ियों का।अब जंगल के जानवरों को डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।' ये सब सुनकर सभी जंगलवासियों ने मिलकर उसे अपना राजा बना दिया।'
'ये सियार कौन हैं ,दादाजी!.........सैनिक!'
'नही बेटा! ये सियार हमारे देश के हुक्मरान हैं।'
'अच्छा! फिर क्या हुआ दादाजी?'
'फिर ....एक दिन फिर से भेड़िया आया सभी ने जाकर ये बात सियार को बता दिया। सियार निकल पड़ा लड़ने लेकिन जब वहां जाकर उसने देखा कि भेड़िए से लड़ने की योग्यता उसके पास नहीं है , और ऐसे में तो वो मारा जायेगा।लेकिन उसे इस बात का भी भय था कि यदि उसने जंगलवासियों को ये बात बता देगा तो लोग उसे राजा के पद से हटा देंगे,उसकी ऐसी इज्जत नहीं रहेगी।'
'फिर ??'कीर्ति उतावला होते हुए पूछी
'सियार को एक तरकीब आई ।उसने जंगल में एक घोषणा करवाई की हमे जंगल की रक्षा के लिए कुछ सिपाही चाहिए होंगे,जो अपनी जंगल की रक्षा के लिए जान तक दे सकते है।ये बात पूरे जंगल मे लहर सा दौड़ गया,और जंगल के नाम मरने वाले बकरों की भीड़ लग गई।और इस भीड़ में मैं भी एक था।'
'अच्छा!फिर क्या हुआ दादा जी।'
''अब जब कभी भेड़िया आता तो सियार अपनी चालाकी चलता और एक बकरे को बांध सामने दे देता।भेड़ियां जैसे हीं बकरे को मारता और उसी वक़्त सियार अपनी झुंड के साथ भेड़िया पर हमला कर देता,और भेड़िये को मार डालता ।
फिर पूरे जंगल मे जश्न मनाया जाता और सब उस बकरे की कुर्बानी भूल ,सियार की बहादुरी की तारीफें करते नही थकते।
इसी तरह भेड़िये आते रहे बकरे मरते रहे और सियार का कद बढ़ता गया।
कुछ दिनों के बाद मेरी भी बारी आ गई।मुझे भी जंगल के बीच बांध दिया गया और बोला गया कि तुम्हे जी-जान से लड़ना है और अपने दुश्मन को मार गिराना है।
फिर मैने बोला 'की यदि मुझे दुश्मन से लड़ना है तो मुझे खुला छोड़ा जाए ऐसे रस्सी में बंधे मैं कैसे लड़ सकता हूँ।एक तो वो मुझसे ताकतवर है और ऊपर से नुकेले दांत ,ऐसे में तो मैं मारा जाऊंगा।'
उन्होंने कहा 'लगता है तुम्हे अपने जंगल की चिंता नही है तुमसे पहले भी तुम्हारे पूर्वज ऐसे ही लडे है और जीते भी हैं।
मैं जंगल के रक्षा के तर्क में कुछ कह न सका और बांध दिया गया।''
'फिर??'
'फिर वही हुआ जो होना था।भेड़िया आया और मुझपर हमला किया लेकिन मैं पहले से हीं सतर्क था जैसे हीं उसने मेरे एक पैर को पकड़ा मैं तीनो पैरों से उसे ऐसा मारा की वो बौखला गया और एक लंबी छलांग लगा कर कूदना चाहा जिसका मुझे इंतज़ार था जैसे ही वो मुझपर कूदा मैं वहाँ से हट गया और वो सीधा मेरे खूंटे पर जा कूदा ।और खूंटा उसके पेट मे घुस जाने की वजह से उसकी मौत हो गई।'
'मुझे तो उस वक़्त बहुत वाहवाही मिली ,लेकिन कुछ दिन बाद सब भूल गए इस बात को।'
'सो सैड,दादा!बहुत बुरा हुआ ...आपके साथ।'
'नही बेटा मुझे मलाल इस बात का नही है कि लोग मुझे भूल गए है,मलाल तो इस बात का है कि आज भी कुछ नही बदला।
वही सियार ,वही भेड़िये और वही बकरे ।आज भी उन्हें बाँधा जाता है ,और फिर वही होता है जो होता आ रहा है।'