मुझमें मुझसे ज्यादा Aatish Alok द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुझमें मुझसे ज्यादा

'ये अजीब शख्स है,भाई! इस जमाने में चिट्ठी कौन भेजता है?'

'कौन है जी?किसकी चिट्ठी आई है?'

'आपके लिए ही है रश्मि जी!'

'मेरे लिए?है कौन?'

'लगता है कोई निमंत्रण पत्र है।' मिश्रा जी लिफाफे को दबा कर टटोलते हुए बोले।

'कितने प्रोग्राम अटेंड करूँ मैं?परेशान हो गयी हूँ रोज़-रोज़ के कार्यक्रम से...उस tv टेबल के पास रख दीजिए।' रश्मि लगभग झुंझलाते हुए बोली।

'अजी जरा देखने तो दीजिये इस व्हाट्सअप्प के जमाने चिट्ठी से निमंत्रण किसने भेजा है।' मिश्रा जी आश्चर्य और हर्ष के मिश्रित भाव को चेहरे में छुपाते हुए बोले।

रश्मि के पास समय नही था सो जल्दी-जल्दी में नास्ता कर के निकल गई।

रश्मि एक अखबार की संपादक है।यदि इस सोशल मीडिया के दौर में भी अखबार के जीवित रहने के कारणों की सूची बनाई जाए तो एक मुख्य कारण रश्मि जैसे लोगों की लेखनी भी होगी।रश्मि जहाँ अपने संपादकीय से बुद्धिजीवी वर्ग में अति लोकप्रिय है ,वहीं अपनी साहित्यिक रचनाओं से आम जनमानस में भी पैठ कर बैठी है।

उसका पानी जैसा व्यवहार जो उसे हर रंग में,हर आकार में ढाल देता है उन्हें और भी लोकप्रिय बनाता है।लोग अक्सर कहतें हैं कि रश्मि जिससे मिल ली फिर वो उसी का होकर रह गया।

मिश्रा जी से विवाह को लगभग 20 वर्ष हो गए ,दो बच्चे भी है अभय और कृतिका।बच्चों की उम्र अब लगभग 18-20 साल हो गए होंगे मगर रश्मि आज भी वही 20 साल की लड़की है ;फक्कड़,आज़ाद और खुदरंग।
अक्सर ऐसे निमंत्रण प्राप्त होते रहतें हैं किंतु रश्मि को किसी कार्यक्रम में चेहरा बनकर सामने आना उतना पसन्द नही जितना कि अखबार के पीछे रहकर अपने जिम्मेदारीपूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हुए समाज को शिक्षित-दीक्षित करते रहना।
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'पापा ,भैया ने एक कविता लिखा है सुना नही रहा'
कृतिका लगभग चिढ़ते हुए बोली।

क्यों अभय?सुनाओ सुनाओ जरा।
मिश्रा जी मन ही मन उत्साहित होते हुए बोले


नही पापा यूँ हीं'
अभय शर्माते हुए बोला।

'तो यूँ ही सुना दो ?इसमें शर्माने की क्या बात है?'
मिश्रा जी बेटे अभय का हौसला बढ़ाते हुए बोले।

तेरे पास हूँ मगर,,, ,क्या-क्या छोड़ आया हूँ,
एक मंज़िल के खातिर ,,रस्ता छोड़ आया हूँ,
रह रहकर सता रही है ,,,मुझे याद किसी की,
इक लड़की है जिसे,, मैं तन्हा छोड़ आया हूँ।
मैं तो आ गया साथ तेरे मगर,,,,,,,,,,मेरा मन,
उसे स्टॉप पर राह तकता छोड़ आया हूँ।
लब ने तो उसके मुझे इजाजत दे दी थी मगर,
मैं उसके आंख में, ,एक दरिया छोड़ आया हूँ।
अबकी मिलो तो बता देना ,,,,उसको 'अभय',
मुलाक़ात उसके बगैर ,,,अधूरा छोड़ आया हूँ।

'वाह क्या बात है?तुम तो पूरा अविघ्न जी होते जा रहे हो।'
मिश्रा जी अभय की तारीफ करते हुए बोले।


'हाँ पापा कॉलेज के प्रोफेसर और दोस्त भी कहतें हैं कि तेरा लहज़ा अविघ्न सिन्हा से मिलता है!'
अभय के चेहरे पर अलग ही खुशी थी ,जैसे वर्षों की साधना सफल हो गयी हो।जैसे कि उसे कोई खज़ाना मिल गया हो।

'पता है पापा इस शनिवार को उनकी एक किताब ''मुझमे मुझसे ज़्यादा'' का विमोचन हमारे ही कॉलेज में हैं। आल पीपल आर रियली एक्ससिटेड ,अब उन्हें यकीन ही नही हो रहा कि अविघ्न अंकल मम्मा के पुराने फ्रेंड हैं और हम तो जब मन तब मिल लेतें हैं ,दे वर सेइंग देट आई एम जोकिंग..सब भैया पर हँस रहें थे जब उन्होंने कहा कि इस प्रोग्राम में देखना मैं उनके साथ बैठा होऊंगा'
कृतिका बहुत खुश होते हुए बोली।

'रियली पप्पा ,वैसे मैं तो बहुत ज्यादा एक्ससिटेड हूँ।'अभय ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा।

अच्छा बेटा एक बात बताओ ,तुम उनको इतना पसंद करते हो,उनकी ग़ज़लों को ध्यान से पढ़ते हो ,सुनते हो ,उनके सारे कार्यक्रम में जाते हो ।फिर अपनी ग़ज़लें क्यों नही सुनातें उन्हें?
अबकी चाचा आएंगे तो उन्हें सुनाना मुझे पूरा विश्वास है वो बहुत दुआएं देंगे। वैसे बहुत दिनों से आएं नही हैं?

'कौन नही आया है जी?' रश्मि घर में घुसते ही बोली।

'द अविघ्न सिन्हा ,वन ऑफ़ द पॉपुलर पोएट ऑफ़ दिस टाइम एंड योर ग्रेटेस्ट फ्रेंड'
कृतिका झूठी शान बनाते हुए बोली

अनायास हीं सब हँस पड़े।

' पिछली बार निमंत्रण मिलने पर भी नहीं गईं थी इसलिए गुस्सा तो नही गये? मुझे तो कुछ अनहोनी सा लग रहा?'
मिश्रा जी थोड़ा चिंता की भाव से कैलेण्डर देखते हुए बोले।

'ऐसा कुछ भी नही है।वो और मुझसे गुस्सा रहेगा?ये कोरी कल्पना है...और फिर मैं तो कभी नही जाती उसके मंच पर ये कौन सी नई बात है?किसी काम में व्यस्त होगा उसे भी बीसियों काम होतें हैं।'
रश्मि पूरे अधिकार भाव से बोली।

'आप कभी नहीं जातीं लेकिन निमंत्रण तो पहली बार मिला था और वो भी आखिरी पुस्तक का विमोचन था उनका।बुरा तो लगेगा हीं न..मतलब द अविघ्न सिन्हा ने किसी को निमंत्रण भेजा और उसने इनकार कर दिया।'

'अजी सुनिए ,दुनिया के लिए होगा वो द अविघ्न सिन्हा ,मेरा तो वही बज़रखसुआ अवि है...और आखिरी पुस्तक था ये किसने कहा?'
रश्मि चौंकते हुए पूछी।

'अरे उस निमंत्रण के साथ जो चिट्ठी आया था उसी में तो लिखें थे।'
मिश्रा जी tv टेबल की ओर इशारा करते हुए बोले।

'क्या निमंत्रण के साथ कोई चिट्ठी भी था?आपने पहले क्यों नही बताया?'
बोलते हुए रश्मि टीवी टेबल से निमंत्रण पत्र ले आई और चिट्ठी पढ़ने लगी।

'कोई बात नही मम्मी वो प्रोग्राम ऐसे भी कैंसिल हो गया था ,वो विमोचन इसी शानिवार को मेरे कॉलेज में होना तय हुआ है।'
अभय चिहुंकते हुए बोला।
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साहित्य जगत के दिग्गज कवियों और लेखकों से मंच सज़ा हुआ है।स्टेज लाइट से पीछे पुस्तक का लगा हुआ पोस्टर चमक रहा है,हर किसी का ध्यान उस पुस्तक के कवर पेज पर लगी एक धुंधली सी चित्र पर जा रहा है जिसपर पुस्तक का नाम लिखा है 'मुझमें मुझसे ज्यादा'।
उस धुंधली सी चित्र को सब देखकर ये तो समझ सकतें थें कि ये चित्र अवश्य किसी महिला की है किंतु उसे पहचान सिर्फ रश्मि सकती थी मगर रश्मि की निगाहें तो अविघ्न को ढूंढ रही है ,उसने पांच से छः बार उस मंच पर बाएं से दाएं और दाएं से बाएं निगाहें फिराई लेकिन उसे अविघ्न कहीं दिखाई नही दिया।
मंच पर रश्मि के पसंदीदा शायर किताब और उसकी नायिका के कसीदे पढ़तें जा रहें हैं।अगर ये कोई और दिन होता तो रश्मि फुले न समाती किन्तु अभी उसे चैन कहाँ थी?वो व्याकुल होकर इधर-उधर देखे जा रही थी।

रश्मि इतना व्याकुल थी कि उसे पता भी नही चला कि कब मिश्रा जी स्वयं मंच पर गए और कब उसके पसंदीदा शायर हाफी उनके बगल में आकर बैठ गए।
मिश्रा जी के मुंह से अपना नाम सुनकर उसकी निद्रा टूटी ,ऐसा लगा मानो अविघ्न ने उसे पुकारा हो।

'रश्मि कौन है?महज़ एक हाड़-मांस की बनी पुतला नही है।रश्मि प्रेम की परिभाषा है,अपनेपन का दूसरा नाम।जब गाती है तो अविघ्न समाधि में चला जाता,जब इतराती है तो पूरी दुनिया में खुशी की लहर दौड़ जाती है।जब पुकारती है तो लगता दुनिया में और कुछ प्रिय रहा ही न हो ...अविघ्न की ईश्वर है रश्मि!.....' मिश्रा जी अविघ्न की किताब का ये अंश अभी पढ़ ही रहें है और रश्मि शून्य की ओर जा रही है।

'वो होते तो कितना खुश होते आपको यहां देखकर रश्मि जी! उनकी अंतिम इच्छा भी आज पूरी हुई।' हाफी जी ने रश्मि की ओर देखते हुए खुश होकर बोला।

'वो होता तो?आपका मतलब?'..... अब रश्मि को सबकुछ समझ आ रहा था। अविघ्न अब एक शरीर को छोड़ एक भाव बन चुका था जो अब थोड़ा-थोड़ा सबमें बांटने को तैयार था ।रश्मि को सबकुछ याद आने लगा,वो प्रेम जो आज से 20 साल पहले शुरू हुआ था वो आज भी उसी उम्र का था ,हँसता-खिलखिलाता हुआ।
सुना तो बहुत गया था कि प्रेम में शरीर नही रूह को पाया जाता है।आज वो अल्हड़ प्रेम मुस्कुराता हुआ उसे हक़ीक़त में तब्दील कर दिया था।

मिश्रा जी मंच से उतरे तो रश्मि के आंखों में आंसू देखकर बोले ,'पगली!रो क्यों रही हो?अविघ्न जी कहीं से देख कर कितना रोयेंगे...याद नहीं वो क्या कहतें थें कि तुम्हारे आँख में आँसू बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। तुम मुस्कुराती हुई बहुत अच्छी लगती हो। '

रश्मि फिर से सबकुछ मिश्रा जी को बताना चाहती थी लेकिन मिश्रा जी पहले ही बोल दिए ,'मुझे सबकुछ पता है ..उनकी चिट्ठी तुमसे पहले मैंने पढ़ी थी।'

घर आते ही रश्मि सबसे पहले वो चिट्ठी निकाल कर पढ़ने लगी;

तुम मुस्कुराती हुई बहुत अच्छी लगती हो,
तो वादा करो,
वादा करो कि,
मेरे जाने के बाद गम का कोई मौसम नही करोगी,
मेरे मौत पर तुम मातम नही करोगी।

रश्मि के आँखों से निरंतर आँसू बह रहे थे।

'माँ तुम रो क्यों रही हो ?तेरे आँख में आंसूं बिल्कुल अच्छे नहीं लगते ,माँ। देखो मैंने एक ग़ज़ल लिखा है.. ' अभय रश्मि के आँसू देखकर बोला।

अभय रश्मि की अनुमति का इंतज़ार किये बिना हीं शुरू हो गया

रश्मि एकटक अभय को देखे जा रही थी ,वैसे तो मिश्रा जी अक्सर कहतें थें की अभय बिलकुल अविघ्न जी पर गया है लेकिन आज रश्मि को भी अभय में अविघ्न दिख रहा था। बिल्कुल वही लहज़ा ,वही तेवर ,वही अंदाज़।

रश्मि उसे गले से लगा ली और बस इतना ही बोली ,'सब कुछ चुरा लेना उसकी ,बस किस्मत नहीं '