पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 18 Pragati Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 18

पूर्ण-विराम से पहले....!!!

18.

गुज़रते समय के साथ समीर और प्रखर की खूब जमने लगी| दोनों कभी उसके यहाँ तो कभी शिखा के यहाँ बैठकर घंटों चैस खेलते या गपियाते| अक्सर शिखा भी उन दोनों के साथ बैठकर उनकी बातों का आनंद लेने लगी थी|

किस्से तो प्रखर के पास बहुत होते थे| उसका महकमा भी ऐसा था कि हर तरह के इंसान के साथ वास्ता पड़ता था| अब प्रखर को भी समीर-शिखा के जीवन से जुड़ी काफ़ी बातों का अंदाजा हो चुका था|

काफ़ी बार ऐसा हुआ जब तीनों साथ बैठे हुए थे....तभी सार्थक या प्रणय का फोन आया| दोनों ही अपने-अपने बेटों की बातों को शेयर करते| दोनों के बेटों के बात करने में ज़मीन-आसमां का फ़र्क था| प्रखर के बेटे का अपने पापा के साथ बहुत दोस्ताना व्यवहार था.. और सार्थक का अपने माँ-पापा के साथ कोई व्यवहार ही नहीं था|

समीर और शिखा को अपने शहर में शिफ्ट हुए अब दो साल गुज़र गए थे। प्रखर पिछले पांच साल से यहीं था। उसकी लास्ट पोस्टिंग आगरा ही थी। जिस शहर में उसका जन्म,पढ़ाई और फिर इश्क़ हुआ.......उस शहर को वो छोड़ना नही चाहता था।

सच तो यह है कि यहां के तो गली-गली चप्पे-चप्पे से तीनों ही खूब वाकिफ़ थे। अब तो तीनों को एक जगह पर रहते हुए भी दो साल हो चुके थे|

यह शहर तीनों के दिलो-दिमाग में दिन-रात चलता था। इससे जुड़े किस्से घटनाएं उनके क्रिया-कलापों के साथ-साथ घूमते थे। अब ईश्वर ने भी उसी जगह पर जीवन के अंतिम पड़ाव को गुजारने के सारे सँजोग बैठा दिए थे। इससे बड़ी खुशी एक आम इंसान के लिये और क्या हो सकती थी।

कुल मिला कर सोल मेट्स का एक ही कॉलोनी में न सिर्फ बसना बल्कि आस-पड़ोस में ही रहना ईश्वर का सोच-समझ कर बनाया हुआ बहुत खूबसूरत इत्तफ़ाक़ था।

बाक़ी पड़ोसियों के साथ भी उन तीनों के काफी अच्छे संबंध बन गए थे। कॉलोनी के साठ से ऊपर के सभी लोग अक्सर कॉलोनी के पार्क में ही बनी हुई बेंचों पर शाम को बैठ जाते और घंटों गप्पों में गुज़ार देते।

प्रखर के पास सभी लोगों के साथ शेयर करने के लिए बहुत कुछ ऐसा था जो समाज व देश से जुड़ा था। न जाने कितने केसेस की फाइल्स उनके पास पहुँची उनमें से जो भी टॉप सीक्रेट होता वो कभी नही बताता। जनरल विषयों पर ही अपने विचार और मत रखता।

हालांकि कुछ संशय और जिज्ञासायें उन सबकी बातों में भी उठती ही थी.....पर सब प्रखर के जॉब प्रोफाइल को जानते ही थे। सो प्रखर के बात पलटते ही लोग समझ भी जाते कि प्रखर अपनी नौकरी से जुड़ी नीतियों और नियमों की पालना जरूर करेगा। लोगो को उसका स्ट्रैट और ईमानदारी वाला व्यवहार बहुत अच्छे से समझ आ गया था।

कॉलोनी के अधिकतर लोग काफी पढ़े-लिखे थे। लगभग सभी कहीं न कहीं अच्छी नौकरीयों में थे। सभी के पास असंख्य बातों के टॉपिक थे। कुल मिला कर विषयों की विविधता सभी को बहुत ताज़ा महसूस करवाती थी। सभी शाम होने का इंतज़ार करते। लगभग रोज ही बीस-पच्चीस लोग हर रोज ही पार्क में इक्कठा हो जाते थे।

कई लोगो के पार्टनर्स जा चुके थे पर सब एक दूसरे के लिए बहुत संवेदनशील थे। तभी किसी को साथ बैठकर गपियाने में कोई संकोच नही होता था। एक ही उम्र के लोगों में एक दूसरे के लिए संवेदनाएं अक्सर बहुत परिचित-सी ही लगती हैं|

शहर के सभ्रांत लोगों की कॉलोनियों में से यह एक कॉलोनी थी। जिन लोगो के बच्चे साथ थे वो भी अपने माँ-पापा को हर बात के लिए उत्साहित ही करते। बच्चों की भी प्राथमिकता उनके मां-पापा की खुशियों से जुड़ी थी। माँ-बाप का सकारात्मक रहना उनको भी ऊर्जा देता था|

कोई भी किसी की घरेलू बातों में ज्यादा दखलंदाजी नही करता। कॉमन टॉपिक्स पर बात होती थी। किसी को कोई सलाह या मशवरा चाहिए होता तो आपसे में साझा होता.. नही तो सभी अपनी-अपनी दुनियां में मस्त थे। यही कोई पंद्रह-बीस परिवारों में बहुत अपनापा हो गया था। यह सब प्रखर के पहल करने से हुआ। सब लोग प्रखर को खूब मान देते थे क्यों कि वो इस कॉलोनी में काफ़ी समय से रह रहा था|

एक बार तो सभी साठ ऊपर वालों ने मिलकर मूवी जाने का प्रोग्राम बनाया। सभी अपने-अपने पार्टनर्स के साथ मूवी देखने गए। जिनके पार्टनर्स प्रस्थान कर चुके थे वो अकेले ही गए। बाद में सभी ने तय किया कि खाना भी बाहर ही खा लिया जाए| तो पिक्चर हॉल के पास वाले रेस्ट्रोरेंट में सबने मिलकर खाना खाया। खूब एन्जॉय किया। सबके वहां से लौटने पर एक ही प्रतिक्रिया थी कि...

'भई इस तरह के प्रोग्राम महीने में दो तीन तो होने ही चाहिए।'

इस तरह के नए एक्सपेरिमेंट का सुझाव भी प्रखर का ही था। सच तो यह था कि प्रखर को तो बस किसी न किसी बहाने शिखा को देखना होता था। उसकी हर प्लानिंग शिखा को कुछ समय को देख लेने और वक़्त गुज़ारने की रहती थी| अब वो कोई दिन भी ऐसे नहीं गुज़रने देना चाहता था.....जब उसे शिखा न दिखे| जितने घंटे शिखा साथ होती प्रखर अपने जीने के लिए ऊर्जा इक्कठा कर लेता। दोनो के बीच मोबाइल पर मेसज का आदान-प्रदान तो पिछले दो साल से था ही। प्रखर जो मेसज समीर को भेजता वो शिखा को भी भेज देता।

जब भी प्रखर को शिखा की कमी महसूस होती किसी न किसी बहाने मिलने के तरीके खोज लेता। कहीं पर भी किसी की गरिमा खराब न हो इस बात का विशेष ध्यान रखता। प्रखर की इस इच्छा को पूरा करने में समीर का भी बहुत हाथ था क्यों कि समीर के साथ उसकी दोस्ती भी बहुत प्रगाढ़ हो चुकी थी।

इस उम्र में सभी को किसी न किसी मौके पर एक दूसरे की जरूरत पड़ती ही रहती थी। सभी के साथ मिलजुल कर ज़िंदगी चल रही थी।

रात के दो बजे थे। तभी प्रखर के मोबाइल की घंटी बजी। इतनी रात गए किसने फ़ोन किया होगा। वैसे भी प्रखर को बारह बजे तक तो नींद आई ही नही थी| काफी देर वो कुछ न कुछ पढ़ता रहा। रात को यूं अचानक शिखा के फ़ोन को देखकर प्रखर ने जल्दी से फ़ोन उठाया। उधर से शिखा की घबराई हुई आवाज़ आई.....

"प्रखर! जल्दी आओ। समीर की तबियत ठीक नहीं लग रही। उसको सांस लेने में तकलीफ हो रही है। उसके सीने में भी काफ़ी तेज दर्द है|"

"आता हूँ ....बोलकर प्रखर शीघ्र ही काका को अपने बेड के पास लगी घंटी को बजा कर बुलाया और उसको खुद के पड़ोस में जाने की सूचना दी। साथ ही काका को भी वही पहुंचने को कहा.. और वो निकल गया। घर बंद करने के लिए तो काकी थी ही।

"क्या हुआ है समीर को.. कल रात तो ठीक था। मेरे से फ़ोन पर काफी देर तक चैट हुई थी। मैं जल्दी से अपनी गाड़ी निकालता हूँ....शिखा तुम बिल्कुल परेशान मत हो यहां से कार्डियक हॉस्पिटल पन्द्रह मिनट के रास्ते पर है।" प्रखर ने शिखा को सांत्वना देते हुए कहा|

प्रखर तेजी से वापस अपने घर के लिए लौटा और अपनी गाड़ी निकालकर समीर के घर के गेट पर पहुंच गया। अंदर पहुंच कर वो समीर के सीने पर मालिश करने लगा। तब तक शिखा ने समीर की मेडिकल फ़ाइल व दवाइयां निकाल कर एक बैग में रखी.. और खुद के जल्दी से कपड़े बदल कर पहुंच गई। काका के भी वहां पहुंच जाने से सबने सहारे से समीर को उठाया और गाड़ी की पिछली सीट पर लिटा दिया।

फिर प्रखर ने काका को बोला..

“काका समीर के घर का भी ध्यान रखिएगा। घर के सभी तालों को अच्छे से लगाकर ही घर जाए|”

शिखा ने काका को ताला-चाबियां जहां पर रखी हैं, वो जगह बताई| तब काका ने सिर हिलाकर घर को संभालने की सहमति दी|

तब प्रखर ने शिखा से कहा..

"तुम आगे की सीट पर आकर बैठो।.. आगे बैठकर समीर का पीछे ख्याल रखना। मैं जल्द से जल्द हॉस्पिटल पहुंचने की कोशिश करता हूँ।" जल्दी हॉस्पिटल पहुंचने की कोशिश में जैसे ही प्रखर ने गाड़ी तेज चलाने की कोशिश की समीर ने लड़खड़ाती आवाज़ में प्रखर को कहा..

"इतनी जल्दी नही मरूंगा प्रखर। आराम से गाड़ी चला लो। कही एक्सीडेंट न हो जाये।"

“सारी सड़के लगभग खाली पड़ी है....समीर तुम परेशान न हो। मुझे गाड़ी चलाने का अभ्यास छूटा नही है। पिछले पैंतीस साल से गाड़ी चला रहा हूँ|”

समीर समझ गया था प्रखर की यह बात सच नही। उसको हमेशा सरकारी गाड़ी और ड्राइवर मिले थे। प्रखर उसका मन बदलने को बोल रहा था। शिखा बिल्कुल शांत बहुत स्ट्रेस में दिख रही थी। उसको शांत करने के हिसाब से प्रखर ने समीर के सामने पहली बार उससे कंधे पर हाथ रखकर कहा..

"सब ठीक हो जाएगा शिखा। समीर को कुछ नही होगा। तुम निश्चिंत रहो। तुमने समय पर मुझे फ़ोन कर दिया। हम बस अब पहुंचने ही वाले है। पिछली बार मैं ही समीर के साथ हॉस्पिटल गया था। डॉक्टर्स समीर की दिनचर्या से काफी खुश थे| इतने सालों से उसको चलने-फिरने में कोई दिक्कत कभी हुई नहीं है तो आगे भी सब ठीक रहेगा। ईश्वर पर विश्वास रखो।"

आज न जाने क्या हुआ प्रखर का हाथ अपने कंधे से हटाते समय शिखा उसका हाथ छोड़ नही पाई और उसको पकड़ कर सुबकने लगी। उसको सुबकते हुए देखकर तीव्र चेस्ट पैन में भी समीर ने शिखा को कहा..

"सब ठीक हो जाएगा शिखा। हौसला रखो। इतनी जल्दी मरने वाला नही हूँ मैं।"

समीर की बातें सुनकर शिखा की रुलाई जोर से फूट पड़ी और अपने आंसू पोंछ कर वो समीर से बोली..

"मेडिसिन लिए हुए भी आधा घंटा हो चुका है आपको। कितना दर्द महसूस कर रहे हो आप। दर्द कम हुआ नही है.....कैसे चिंता न करूँ।"

"दर्द कम नही हुआ है शिखा। पर तुम दोनो के बहुत घबराने से मेरे दर्द में आराम नही आएगा। सब ठीक हो जाएगा।"

समीर की सहन शक्ति देखकर प्रखर को बहुत आश्चर्य हुआ। समीर के चेहरे पर तीव्र पीड़ा खुद बोल रही थी पर वो दोनों को शांत करने कर हिसाब से ख़ुद का बिल्कुल नार्मल होना दिखा रहा था।

ख़ैर अब हॉस्पिटल भी आ गया था। शिखा और प्रखर ने मिलकर समीर को सहारा देकर कार से बाहर निकाला और रिसेप्शन के पास ले जाकर सोफ़े पर बैठा दिया। प्रखर ने शिखा को बोला..

"मैं रिसेप्शन पर जाकर बात करता हूँ। तुम समीर के पास बैठो।"

प्रखर वहां से रिसेप्शनिस्ट के पास चला गया । उसने समीर के हालात का बताया और उससे पूछा...

"अभी आपके हॉस्पिटल की इमरजेंसी में कौन डॉक्टर है? डॉ. सुबोध पिछले एक साल से मरीज़ के फॅमिली डॉक्टर है। पर कुछ देर पहले सीवियर चेस्ट पैन होने से काफी तबियत खराब हो गई है|”

"अभी तो डॉक्टर अंकित इमरजेंसी ड्यूटी पर है। सबसे पहले वही देखेंगे। चेक-अप के बाद जैसा वो निर्णय लेंगे सब हो जाएगा। आप सब निश्चिंत रहे।"

प्रखर से बोलकर रिसेप्शनिस्ट ने डॉक्टर को फ़ोन किया| साथ ही नर्सिंग स्टाफ को इंस्ट्रक्शन दिए। ताकि वो जल्दी से स्ट्रेचर लेकर आ जाये।

प्रखर ने कुछ रुपया अपने पास से ही रिसेप्शन पर जमा करवा कर रसीद ली| वो तो अच्छा हुआ उसने घर से निकलते समय अपना गाड़ी की चाबी उठाते समय वॉलेट भी रख लिया था|

वो जैसे ही समीर और शिखा के पास वापस लौटने के लिए मुड़ा उसने देखा समीर का दर्द काफ़ी बढ़ गया है। उससे बैठा भी नही जा रहा था और शिखा उसके लेटने का इंतज़ाम कर रही थी।

क्रमश..