विरासत - 6 श्रुत कीर्ति अग्रवाल द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

विरासत - 6

विरासत

पार्ट - 8

एक बार फिर वह उसी कमरे में, सलमा के साथ बैठा हुआ था। "मैं सादिक से मिलने आया हूँ।"

सलमा चौंकी थीं। "क्यों? आपको उससे क्या काम?"

जब बाऊजी के बारे में सब कुछ जानने, पता लगाने चला है तो उनकी उपलब्धियों के साथ-साथ गलतियों को भी तो अपनाना ही पड़ेगा... वह सोंच रहा था। गलतियाँ? अब वह पशोपेश में था... सादिक उनकी गलती है या प्यार? मन चीख-चीख कर कह रहा था, कहीं वह स्वयं ही तो उनकी गलती या मजबूरी नहीं है? मगर फिर अपना वारिस उन्होंने सादिक को क्यों नहीं बनाया? उसे क्यों चुना?

उसकी कल्पना के विपरीत, व्हील चेयर पर लाया गया सादिक, सत्ताइस-अठाइस साल का, उसका बड़ा भाई निकला। उसे देखकर तो स्तब्ध रह गया था रमेश! शायद किसी मानसिक बीमारी से भी ग्रसित था वह... शारीरिक रूप से भी लुंज-पुंज... कितने कष्ट हैं इस दुनिया में? हे भगवान, कितनी परेशानियाँ एक साथ सँभाल रहे थे बाऊजी!
"क्या इनका इलाज नहीं हो सकता?" उसने सहानुभूति और प्यार के साथ पूछा।
सलमा को शायद उससे इस तरह के लहजे की उम्मीद ना रही हो कि वह कुछ अचकचा सी गईं। फिर उदास सी आवाज़ में बोलीं "आप परेशान मत होइए रमेश बाबू, जैसे भी होगा, यह भी अपनी जिंदगी जी ही लेगा।"

"मेरी जिंदगी ही अब आप लोगों से अलग कहाँ रह सकती है, जब बाऊजी हमें एक बंधन में बाँध गये है।" रमेश ने कहा तो सलमा शक भरी निगाहों से उसे देख रही थीं... उनका शक दूर करने के लिए उसने जल्दी से अपनी बात को आगे बढ़ाया। "मुझे लगता है, कुछ दिनों में मैं आपके पैसे वापस करने में सक्षम हो जाऊँगा। आप उसे सादिक के नाम पर जमा कर दीजिएगा। भविष्य में इनकी देखभाल, गार्जियनशिप की जिम्मेदारी मैं लेना चाहता हूँ। ईश्वर ने साथ दिया तो कोई कमी नहीं रहने दूँगा।"

उमड़ते आँसुओं को छिपाने के लिए सलमा एकाएक उठ खड़ी हुईं... "आपके लिए चाय लेकर आती हूँ।"

"नहीं! बैठिये अभी!" रमेश ने अधिकार से उनका हाथ पकड़कर उन्हें वापस बैठा लिया। "बाऊजी ने आपके पास जो लड़की ला कर रखी थी, क्या उसका नाम सुनहरी था?"

"नहीं तो! उसे तो वह हीरा पुकारते थे।"

रमेश ने अपना मोबाइल खोलकर रंग उड़ी सी एक पुरानी फोटो की क्लिक, जो उसने वकील साहब के पास से प्राप्त की थी, सलमा को दिखाई... "इस लड़की को पहचानती हैं आप?"

"हो भी सकती है!"... ध्यान से देखकर वे बोलीं.. " हीरा की कोई पुरानी फोटो हो सकती है ये! आपके वालिद ने इसे अपनी बेटी बताया था।"

"बेटी नहीं, बहू थी उनकी!"

"क्या? आप इससे शादी करने वाले हैं?" बहुत जोर से चौंक गई थीं वह... "पर क्या आप इसके बारे में सब कुछ जानते हैं?"

"क्या सब कुछ?" उसने सशंकित स्वर में पूछा!

"यह बचपन से ही बोल नहीं सकती। सुनने में भी थोड़ी परेशानी होती है!"

स्तब्ध रह गया था वह! ये कैसी जिम्मेदारियाँ छोड़ गए हैं बाऊजी उस पर? थोड़े से पैसों के एवज में एक नीमपागल भाई, गूँगी-बहरी पत्नी... क्या है यह? क्यों वकील साहब की जरा सी बात पर यहाँ चला आया है? जी चाह रहा था कि उठ कर भाग जाए। अभी भी समय है कि सब कुछ से दूर, किसी अंजान शहर में ऋचा के साथ एक नई जिंदगी शुरू करे। जिस पिता से वह हमेशा नफरत करता रहा है, जिसके साथ कभी रहा तक नहीं, जिसकी जिंदगी उसे कहीं से भी अनुकरणीय नहीं लग रही... उनकी जिम्मेदारियाँ क्यों उठाए वह? उसने तो बस अपनी माँ को जाना है तो 'इतने-इतने लोगों' की परवाह वही क्यों करे? पर क्या सब छोड़-छाड़ कर भाग जाना, इस तरह पलायन कर जाना, अब संभव है? अपने जमीर का क्या करेगा फिर? जाने क्यों मन के अंदर सुनहरी से भी एक तरह का लगाव सा महसूस होने लगा था, उसको अब दरिंदों के हाथ में छोड़ कर भाग जाना भी संभव नहीं रहा था शायद!

सलमा को बाऊजी से मिलने-जुलने वालों के बारे में बहुत कुछ पता था। उसको साथ लेकर कई जगह घूमती फिरीं वह... रमेश ने महसूस किया कि अच्छी, सहृदय और जुझारू महिला थीं वो। सचमुच एक परिचित के छोटे से गर्ल्स हॉस्टल में उन्होंने उस दुबली-पतली निरीह सी लड़की को ढूँढ ही लिया था!

वह ध्यान से उसका चेहरा देख रहा था... कौन कहेगा फटे-पुराने कपड़ों में, अपने-आप में सिमटी सी यह लड़की, करोड़ों की दौलत की मालकिन है? किस काम की है वह दौलत इसके लिए? पर जो भी हो, जिस तरह इसका नाम हर समय उसके कानों में सरसराता है, इसकी सूरत भी उसे इतनी अपनी क्यों लग रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी बाहों में दम तोड़ कर बाऊजी उससे दूर कहीं गए ही नहीं और अब उसके माध्यम से अपना हर अधूरा काम पूरा करवा रहे हैं?

***********

क्रमशः

मौलिक एवं स्वरचित

श्रुत कीर्ति अग्रवाल
पटना

shrutipatna6@gmail.com