विरासत
पार्ट - 7
"आपको तो पता ही होगा रमेश बाबू, कि आपके पिता रासबिहारी ठाकुर के यहाँ काम करते थे। नहर के उस पार, मनेका गाँव में ठाकुर की ढेर सारी पुश्तैनी जमीन-जायदाद थी। एक समय था जब उनकी, उनके चचेरे भाइयों से उस संपत्ति के लिए भयंकर मार-काट चल रही थी। आपके पिता को केस-मुकदमे की काफी समझ थी और स्वभाव से ईमानदार भी थे सो धीरे-धीरे ठाकुर का दाहिना हाथ ही बन बैठे थे। बाद में, जब बहुत मुश्किल-परेशानी के बाद मामला सुलझा तो ठाकुर साहब ने गाँव का अपना सारा हिस्सा बेचकर, इसी हवेली को ठिकाना बनाया था। शौकीन आदमी थे, काफी ताम-झाम से रहते थे। मगर फिर चार साल की बच्ची को छोड़कर ठकुरानी एकाएक चल बसीं... जिसके बाद ग्लोरिया का इस घर में प्रवेश हुआ था। बच्ची के कारण उसको चौबीसों घंटा कोठी में ही रहना होता था और एक दिन उसने पूरा हंगामा खड़ा कर दिया कि रात में, नशे की हालत में, ठाकुर ने उसके साथ कुकर्म कर लिया। अब तो राबर्ट भी उससे शादी नहीं बनाएगा। सबने उसकी बात पर विश्वास भी किया क्योंकि वह बहुत सीधी-सादी भी दिखती थी और ठाकुर को देर रात तक हॉल में बैठकर शराब पीने का शौक भी था। तुम्हारे पिता को उस समय ग्लोरिया पर पूरा भरोसा था अतः उन्होंने ठाकुर को समझा-बुझाकर मजबूर किया कि वह उससे शादी कर लें, इससे उनकी बेटी को एक सुरक्षित भविष्य भी मिल जाएगा।
ठाकुर इस रिश्ते के लिये तैयार तो नहीं थे पर थोड़ी ना-नुकुर के बाद तुम्हारे पिता की बात मान गए। उधर ब्याह होते ही ग्लोरिया का बिल्कुल रंग ही बदल गया। बच्ची के साथ मारपीट, हर समय ढेर सारे पैसों की माँग... उसने एक तरह से रासबिहारी का जीना हराम कर दिया। गिरधारी लाल को अब सारा खेल समझ में आ गया था... फिर उसने बड़ी कोशिशें कीं, लाखों रुपए कोर्ट-कचहरी में भी फूँक दिए कि किसी तरह दोनों में तलाक हो जाए पर सफल नहीं हुए क्योंकि सबसे पहले तो ग्लोरिया बड़ी अच्छी अभिनेत्री थीं, जज साहब के सामने जाते ही वह इतनी बेचारी सी बन जातीं कि उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों को साबित करना मुश्किल हो जाता, दूसरे ठाकुर का किसी चीज में रूचि न दिखाना भी एक कारण था कि केस लंबा खिंचता चला गया। घर में रॉबर्ट का आना-जाना बहुत बढ़ गया था। वे लोग मिलकर, कोठी को अपने नाम कर देने के लिए, रूपये-गहने हथियाने को, रास बिहारी के साथ शायद मारपीट भी कर रहे थे। उधर शराब पी-पी कर, या फिर आपके पिता को तो यह भी शक था कि ग्लोरिया उनके खाने-पीने में कुछ मिला भी रही थी... ठाकुर कुछ इस कदर कमजोर हो गए थे कि अब उनसे कुछ होता भी नहीं था! सब तरफ से हताश होकर गिरधारी लाल ने ठाकुर की सारी संपत्ति को ग्लोरिया से बचाने की, एक तरह से मुहिम सी छेड़ दी।
बैंक में रखे रुपए-पैसों, कोठी के कागज़ातों और लॉकर में रखे गहनों आदि हर चीज पर एक के बाद एक, ठाकुर की बेटी का नाम चढ़ता जा रहा था। वह उस समय पंद्रह-सोलह की ही रही होगी सो हर ट्रान्जैक्शन उसके बालिग हो जाने तक के लिए ब्लॉक होता जा रहा था। ग्लोरिया और रॉबर्ट लाख चालाक सही, पर पढ़े-लिखे न होने की वजह से कानून और कागज-पत्तर उनकी समझ में थोड़ा कम आता था और उनकी इसी कमजोरी का फायदा गिरधारीलाल उठा रहे थे। उन्होंने गुपचुप तरीके से ठाकुर के सिग्नेचर लेकर पावर ऑफ अटार्नी अपने नाम करा ली थी। उनकी संपत्ति की, छोटी से छोटी हर-एक चीज का स्वामित्व, हर पेपर वहाँ से गायब कर, कहीं और ले जा कर छिपा दिया था..."
उस ऊपर वाले कमरे का राज़ रमेश को समझ में आ गया कि क्यों बाऊजी उसे हमेशा बंद कर के रखते थे, किसी को आने-जाने नहीं देते थे और इतनी-इतनी देर वहाँ करते क्या रहते थे... कि ये सारे कागज़ात उसके अपने घर में महफूज हैं।
वकील साहब अपनी गंभीर आवाज में बोलते जा रहे थे... "काफी कुछ हो गया था कि अचानक रासबिहारी ठाकुर की मौत हो गई। आपके पिता को पूरा विश्वास था कि यह मौत नहीं हत्या है, पर सबूत नहीं मिले, और इससे पहले कि ग्लोरिया पर यह बम फूटे कि सारी संपत्ति की मालकिन ठाकुर साहब की बेटी है, गिरधारी लाल ने बच्ची को गायब कर, बड़ी चालाकी से रॉबर्ट के ऊपर बच्ची की किडनैपिंग का केस चला दिया और समझो, एक तीर से दो शिकार हो गए... गिरफ्तारी के डर ने राबर्ट को अंडरग्राउंड होने पर मजबूर कर दिया जिससे उसका कोठी में प्रवेश करना रिस्ट्रिक्ट हुआ और इसका फायदा उठाकर आपके पिता ने ग्लोरिया को उसी कोठी में कैद कर लिया। ठाकुर की लॉयल्टी में कहिए या ग्लोरिया से उनकी शादी कराने का प्रैशर देने का पछतावा, आपके पिता ने न अपनी जिंदगी देखी, न रुपया-पैसा... कि ठाकुर का पूरा पैसा तो ब्लॉक हो चुका था। अब सारे खर्च गिरधारी लाल ही कर रहे थे और उन्होंने अपना काफी बड़ा अमाउंट खर्च कर दिया है इन सब में!"
"और वो... वो ठाकुर साहब की बेटी? कहाँ है वो, नाम क्या है उसका?"
"उसे तो गिरधारी लाल ने ही कहीं छिपा कर रखा है! मुझे लगा, आपको उसकी जानकारी होगी। उसका नाम... कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा है... कुछ लंबा सा नाम था शायद!" वकील साहब याद करने की कोशिश ही कर रहे थे कि अचानक उसके मुँह से निकला... "सुनहरी?"
"हाँ... हाँ वही तो!"
"फोटो मिल सकती है उसकी?"
"हाँ शायद! कोर्ट के डाॅक्यूमेंट्स में जरूर होगी।"
"मैं रॉबर्ट को देख चुका हूँ। क्या मैं पुलिस को उसके पास तक पँहुचाने की कोशिश करूँ?"
"इसकी शायद जरूरत नहीं है। उसके खिलाफ लगा केस झूठा है तो उसको जितना कम खींचा जाय, उतना बेहतर। हमारा मकसद उसको डरा कर कोठी से दूर रखने का, ग्लोरिया से मिलने, बात करने से रोकने का है... वो तो वैसे ही पूरा हो रहा है। हमारी फर्स्ट प्रियाॅरिटी तो सुनहरी को बचा कर रखना है। मई में वह एडल्ट हो रही है, तब उसकी संपत्ति उसके नाम कर दी जाएगी और फिर ग्लोरिया उसका गार्जियनशिप भी क्लेम नहीं कर सकेगी तो अपने-आप ही हर चीज उसके ग्लोरिया के हाथ से निकल जाएगी। फिर उसकी शादी आप से करा देना, आपके फादर का फुल सिक्योर प्लान है। आप आराम से ग्लोरिया से कोठी खाली करा लेना, वे लोग आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे।"
"पर इसके लिए 'मुझे' उससे शादी क्यों करनी पड़ेगी?"
"आपके पिता की यही इच्छा थी और अब तो आप इसे उनकी आखिरी इच्छा भी कह सकते हैं!"
रमेश सोंच में पड़ गया। महज उसके पैसों के लिए, एक अंजान लड़की से ब्याह कर लेना क्या सही है? उसको तो इस लादे हुए रिश्ते से कुछ वितृष्णा सी हो रही थी!
वकील साहब ने समझाने की कोशिश की, "इसे आप कुछ दूसरी तरह से भी देख सकते हैं। आपके बाबू जी ने इस दौलत को बचाने में, सुनहरी को महफूज रखने में, अपनी जिंदगी लगा दी है तो इसे ही आप उनकी जिंदगी भर की कमाई कहेंगे न? फिर तो हर बाप की तरह उन्होंने भी अपनी पूँजी आप को विरासत में दी है। महज पूँजी नहीं, अब तो उनकी जिम्मेदारियाँ, उनके कर्ज, सब आपके ही होने जा रहे हैं।"
"कौन सी जिम्मेदारी? कैसे कर्ज?"
"आपकी माँ की तरह सलमा भी आपकी ही जिम्मेदारी हैं और उनका विकलांग बेटा सादिक, जिस के इलाज में सलमा का हजारों रुपया हर महीने खर्च होता है आपकी जिम्मेदारी बनता है।"
"पर वकील अंकल, मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ। उससे अपनी पढ़ाई पूरी होते ही शादी करने का वादा कर चुका हूँ... पैसे वाली लड़की मिलते ही उसे कैसे छोड़ दूँ?"
"इसमें मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ रमेश बाबू? अब आपको ही देखना होगा कि आप किस को प्राथमिकता देते हैं, अपनी जिम्मेदारियों को, अपने पिता की आखिरी इच्छा को.. या उस बचपन के प्यार को!"
कहने-सुनने को अब शायद कुछ नहीं बचा था। पता नहीं अब उसे क्या करना चाहिए... क्या करना सही होगा?
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क्रमशः
मौलिक एवं स्वरचित
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
पटना
shrutipatna6@gmail.com