लिखी हुई इबारत - 6 Jyotsana Kapil द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लिखी हुई इबारत - 6

11 -आईना


" हमारे बबुआ की तो एक ही डिमांड है की लड़की सुंदर हो ।" एक गुलाब जामुन मुँह में भरते हुए लड़के की माँ ने कहा।

" तो हमारी साक्षी कौन सी कम है, देखिये न, कैसे तीखे नाक नक्श हैं ।" उसकी तेज तर्रार सखी रीमा बोल पड़ी।

" हाँ वो तो ठीक है, पर रंग थोडा दबा हुआ है। फोटो से तो लगा था की खूब गोरी चिट्टी होगी ।" उन्होंने बात काटते हुए कहा। नाश्ते की प्लेटें तेजी से रिक्त होती जा रही थीं

" हमारा बबुआ पचास से ऊपर लड़कियाँ फेल कर चुका है। लगा था शायद इस बार लड़की ढूंढने का सिलसिला थम जाएगा, पर..." गर्वोन्नत भंगिमा में कहा गया।

घर भर के चेहरे पर मायूसी पुत गई । रीमा ने सर से पाँव तक कथित बबुआ को घूरा। बहुत मामूली शक्ल ओ सूरत, रंग पक्का,मध्यम कद,कुल मिलाकर अति साधारण व्यक्तित्व। उधर साक्षी गेहुएँ रंग की काफ़ी आकर्षक युवती थी, जो आगन्तुका की बात सुनकर हतोत्साहित नज़र आने लगी थी।

" सुंदर लड़कियों को सुयोग्य वर की कमी कभी नही रहती आँटी। कभी सोचा है ,की जिन लड़कियों को उनकी रंगत दूध सी गोरी न होने के लिए आपने ठुकराया है उन पर क्या गुज़री होगी ? " न चाहते हुए भी रीमा के स्वर में कड़वाहट उभर आयी थी।

" ऐसे असंवेदनशील व्यक्ति को मैं कभी अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार नही कर सकती। " अब साक्षी भी मौन न रह सकी।

" बबुआजी, मेरे ख्याल से आईना तो ज़रूर होगा आपके घर, अगर उसे एक बार ध्यान से देख लिया जाता, तो लड़की ढूंढने का ये सिलसिला बहुत पहले खत्म हो चुका होता। " रीमा ने फिर से कटाक्ष किया।


12- कश्मकश


कमरे की ओर बढ़ते उसके कदमों को ब्रेक लग गया। उसके पति ब्रिगेडियर नीलेश किसी से संदेहास्पद ढंग से बात कर रहे थे। रहस्य को जानने की नारी स्वभावगत उत्सुकता को वह दबा न सकी। चुपके से चौंकन्नी होकर वह सुनने का प्रयास करने लगी। जैसे -जैसे सुनती गई उसके होश फाख्ता होते गए। बात खत्म हुई तो निधि को पाँव के नीचे से ज़मीन निकलती हुई सी महसूस हुई।

" तुम यहाँ क्या कर रही हो ? " निधि को दरवाज़े के पास खड़े देखकर नीलेश चौंक पड़ा।

" नीलेश, ये आप ही हैं ? अपने मुल्क का सौदा कर रहे हैं ? "

" खामोश " नीलेश ने झट से उसके मुँह पर हाथ रख दिया । " दोबारा यह बात अपने मुँह से मत निकालना। दीवारों के भी कान होते हैं। "

" उफ़, जिस मिट्टी में पले बढ़े, जिसका नमक खाया ,उसी का सौदा ? अपने देश की सुरक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ ? तुम तो निगहबान हो न इसके ? कोई माँ को भी बेचता है क्या भला ?"

" अपनी जान की बाजी लगाकर भी क्या मिल जाएगा मुझे ? चंद मैडल और गुज़ारे लायक थोड़ा सा पैसा। पड़ोसी मुल्क मुझे इतनी रकम दे रहा है की हमारी अगली पीढ़ी बिना कुछ किये भी आराम की ज़िंदगी गुज़ार सकेगी ।"

" उन्हें इतना अकर्मण्य क्यों बनाना की कुछ न करें। "

"देखो निधि, भावुकता भरा भाषण देकर मुझे बहलाने की कोशिश मत करो। मैंने जो किया है सोच समझकर ही किया है। हम सबकी भलाई इसी में है। "

" गद्दारी करके हम सबकी कैसी भलाई कर रहे हो, कैसा तो दाग लगा रहे हो हमारे माथे पर। "

" तुम अपनी ज़ुबान पर लगाम रखो । हमे भी हक़ है ज़िन्दगी को बेहतरीन तरीके से जीने का। "

" बेहतर तरीके से जीने का सलीका आता है आपको ? यूँ गद्दारी करके ..."

" खामोश, मैं फैसला कर चुका हूँ।अपनी ज़ुबान बन्द रखनी है तुम्हे। वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा। "

क्या करे वह ? यूं ही मुँह बन्द करके देश की सुरक्षा पर आँच आने दे? या नीलेश के गलत इरादे की ख़बर कर दे? पर जीवन भर की कमाई इज़्ज़त पल भर में मिट्टी हो जाएगी। फिर कभी वह सर उठाकर जी नहीं पाएगी। देशप्रेम … या पतिप्रेम ? इसी कश्मकश में काफी समय निकल गया।

अपने घर मे सैन्य अधिकारी और सेना के जवानों को आता देखकर नीलेश का माथा ठनका। क्रोध से उसने एक तमाचा निधि के गाल पर दिया

" धोखेबाज़। "

उसकी आँखें छलक पड़ीं। खामोशी से नीलेश को गिरफ्तार होकर जाते देखती रही

" काश, की आपसे मेरा कोई वास्ता न होता । " उसके चेहरे पर गहरी पीड़ा के भाव थे।