आत्मव्यक्ति - काव्य संग्रह Abhaya Sinha द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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आत्मव्यक्ति - काव्य संग्रह

फुटानी बाबुजी के दलानी में
का उ फुटानी रहे बाबुजी के दलानी में,
भर हीक खाई के, फटफटटया घुमाई के।
यारन सभे आगे पीछे, गौगल चमकाई के,
मोबाईल से सेल्फी लेवे गुटखा दबाई के।
का उ फुटानी.....
बबतल उमररया आईल दोपहरीया,
एके से चार भइनी घघरनी जजिंदगानी में।
अबहीिं याद आबता उ बाबू
जी के,
कईसन हाल रहे बाबु
जी के दलानी में।
राते-टदने देहीया गलइलन,
हमनी के जजिंदगी सवारे में।
चार कोस नापत रहन अठ्ठनी बचावे में,
हमनी मौज कइनी फटफटीया घुमावे में।
अब का होई उ टदनवा भुनावे में,
खेतबा त चर गईल देहिया चमकावे में।
कहे अभय अके ला सुनह हो भईया,
मत फुटानी करीह बाबुजी के दलानी में।
आत्मज्ञान
मैने ने पूछा इन कदमें से तेरा क्या है काम रे?
उसने बोला वामन देव ने इन्ही से तोडा राजा का अभिमान रे।
मैने पूछा बाजूओं से तेरा क्या है काम रे ?
उसने बोला मेरे से ही जग का सारा कर्म काण्ड रे।
मैने पूछा दो नयनो से तेरा क्या है काम रे?
उसने बोला मेरे से ही सारा जग दृष्यमान रे।
मैने पूछा इन जिह्वा से क्या है तेरा काम रे ?
जिह्वा बोली मेरे से ही वर्णोच्चारर्ण, सुस्वाद रे।
सबकी अपनी अपनी सत्ता सुन मैं निढाल हुआ।
मैने अपने से पूछा तेरा क्या है काम रे ?
यही सोच निढाल हुआ कब निद्रा आई नही भान रे।
सहसा कसी ने पूछा प्यार से, सबको परखा सबको जाना,
क्यो नही अब तक मेरा भान रे ?
मैने पूछा कौन है तु, तेरा क्या स्थान रे?
बोला उसने अंगुष्ठ मात्र मै रचा बसा तुझ मे ही हूँ।
मैं ही तू, तू ही मैं आत्म देव अंगुष्ठ मात्र मैं।
सब समय के फेर बा
इ समाज के रेवाज अबहीं अटपटाईल बा।
जनें देखीं तनें सभे केहु
लटपटाईल बा।
गईया बछिया, भईससया आ कुकुरा भहराईल बा।
बचवन संगे सबे केहुण
घरवा में लुकाईल बा।
करमें अइसन बा की थोबडा ढकाईल बा।
लुगाई से कुटईले रहल बहरवो सोटाईल बा।
धन हो करोना भाई तोहर बड़ उपकार बा।
लइकन सभे गतें गतें अबे सुधरले जात बा।
पुरनिया सभे कहत रहले बाहर मत खयीह।
अब कईसे बचवा के कदुआ
घोटात बा।
बीस हाले हाथ धोवे सेनेटाइजर के बहार बा।
कान चढे मस्कवा त नाही केहु
चिन्हात बा।
फुल देवे जात रहन फुमलमतिया के माई के।
फुलवा दिया गईल काम वाल बाई के।
का करे ए भाई समइया अटपटाईल बा।
जनें देखीं तनें सभे केहु
लटपटाईल बा
मां की गोद पिता का साथ
कैसे मैं खुद को समझाऊं, कैसे मैं खुद को बहलाऊ नहीं भूलता, वह दिन और रात, मां की गोद पिता का साथ।
सर से छत तो हट गई, उस पल को कैसे भुलाऊं ,
नहीं भूल सकता उस पल को,
कितना मैं बेचैन था ,नहीं माफ कर सकता अपने को,
अंतिम चरण स्पर्श दुश्वार हुआ, अफसोस रहेगा सदा रहेगा,
एक तिनका भी मैं दे ना पाया, तिल तिल कर आप ने पाला, दिन दुपहरिया हो पाला,
गजब का साहब गजब का हिम्मत बाहर पत्थर अंदर से कोमल।
सर से हट गई ऐसी छाया, रह गई अब सिर्फ चार भैया।
आशीष देना बाबूजी बुलंद रहे यह चार भाया
आगन की रौनक दोनों बहनें मस्त रहे ,
सभी बच्चे ढूंढ रहे हैं तारों में कुछ खोज रहे हैं।
नहीं भुलाता वह दिन-रात मां की गोद पिता का साथ।
नहीं भूल पाता वो पल
नहीं भूल पाता वो पल, नहीं भूल पाता वो कल।
बरबस आँसू झरते हैं, नहीं कभी कुछ कहते हैं।
दिल को मैनें समझाया, खुद को मैनें बहलाया।
व्यर्थ हो गयी सब कोशिश मेरी ।
नहीं भूल पाता वो पल......
कोई दो घूँट पिला जाता, कानों में कुछ बतला जाता।
कैसे भी पत्थर दिल हो जाऊँ, वो सारे पल को भुला पाऊँ ।
नहीं भूल पाता वो पल, नहीं भूल पाता वो कल
दरिया में देखूँ तु ही तु, आसमाीं में देखूँ तु ही तु,
बगिया में देखूँ तु ही तु,
नयनों में आसूँ आ जाते हैं, यादों में हम खो जाते हैं।
नहीं भूल पाता वो पल, नहीं भूल पाता वो कल।
कभी सपनों में ही आ जाना, बहला फुसला कर चल जाना,
बस एक बार डाँट पिला जाना, शायद पत्थर दिल हो जाऊँ,
अपनें को कुछ मैं समझा पाऊँ।
नही रह वो सख्त हिदायत, नही रह वो करुणा प्यार।
सूनी हो गयी आंगन बगीया, सूना सूना सारा घर द्वार।
नहीं भूल पाता वो पल, नहीं भूल पाता वो कल।