संवाद, दिल से Neha Awasthi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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संवाद, दिल से


मेरी कुछ इस तरह से हुई वार्तालाप मेरे दिल से ।
कि दिल भी हार गया समझाते समझाते ।
हुई कुछ दलीले इस तरह की । कभी मैं आगे कभी दिल ।

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मैंने कहा दिल से...

क्यों किस्मत मेरी खराब है इतनी, कि चाहत उसी से जिसे पाने की हिम्मत नहीं मेरी ।

ख्वाब भी वो, आशियां भी वो ।
दिल भी वो, धड़कन भी वो ।
हर सांस में वो, हर लफ्ज़ में वो ।
मन ही मन में वो, मेरी आत्मा में वो ।
मेरी नजरों में वो, हर इशारे में वो ।
फिर भी दूर रहना, क्यों बेबसी है मेरी ।

क्यों किस्मत मेरी खराब है इतनी, कि चाहत उसी से जिसे पाने की हिम्मत नहीं मेरी ।

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फिर दिल ने जो कहा मुझसे...

जात अलग है पात अलग है, फिर भी रूह है वो तेरी।समाज की दकियानूसी सोच, पड़ रही तेरे रिश्ते पर महंगी।
तड़पना है, टूटना है; बिखरना है इस दिल को । बिछड़ने की भी अब तेरी है मजबूरी ।
तू कुछ कर नहीं सकती, तू कुछ बदल नहीं सकती । यहां सब हैं बेरुखे, सोच है सब की यहाँ छोटी ।

किस्मत तेरी खराब है इतनी, कि चाहत उसी से जिसे पाने की हिम्मत नहीं तेरी ।

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मैंने भी कहा फिर...

कुछ कर, क्यों नहीं सकती हूँ मैं । कुछ बदल, क्यों नहीं सकती हूँ मैं ।
चाहा है जिसे, उसे पा क्यों नहीं सकती हूं मैं ।
सारी इनायत को कोशिश करनी पड़ेगी, हमें मिलवाने की ।
वो तो रब है, जो सब जानता है । शिद्दत से चाहा है हमने, ये बात उसे भी समझानी पड़ेगी । उसे तो हर हाल में, मेरी यह बात माननी पड़ेगी ।

किस्मत मेरी इतनी भी, वो खराब कर नहीं सकता ।
कि चाहत है जिससे, उसे वो मुझसे दूर कर नहीं सकता ।

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फिर सुने दिल का फसाना...

नहीं है हिम्मत तेरे अंदर, सब कुछ छोड़ पाने की ।
प्यार तो तुझे और भी करते हैं, बीते कई सालों से ।

बने हर रिश्ते को तोड़, नया तू रिश्ता बना पाएगी ।
झुका के सर उनका, तू सर उठा के जी पाएगी ।

बातें तो तेरी बहुत बड़ी है, क्या फिर तू इस समाज में रह पाएगी । सोचा तो उसने भी; तेरे लिए, कुछ अच्छा ही होगा । पर तू नासमझ है, यह बात कहां समझ पाएगी ।

किस्मत नहीं खराब है तेरी, बस ये दुआ है रब की ।
कि चाहत है तुझे जिससे, उसे तू बस चाह सकती है; पर पा नहीं सकती ।

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इस उदास चेहरे ने फिर से पूछा...

क्या करूँ तो मैं;
ना अभी जी रही हूं, ना तब जी पाउंगी ।
ना उन्हें छोड़ सकती हूं, ना रूह के बिन रह सकती हूँ । हालत मेरी है इस कदर;
ना जी सकती हूं, ना मर सकती हूँ ।
जब पा नहीं सकती उसे, तो चाह भी क्यों सकती हूँ मैं।

ये किस्मत ही तो मेरी है, जो खराब इतनी है ।
कि जिसे चाह सकती हूँ, उसे पा नहीं सकती ।
क्यों किस्मत मेरी खराब है इतनी, कि चाहत है जिससे; उसे पा भी नहीं सकती ।

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