गवाक्ष - 17 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गवाक्ष - 17

गवाक्ष

17==

निधी को वास्तव में दुःख था, बेचारा ! इतना कठिन कार्य संभालता है फिर भी उसकी स्थिति धरती के किसी निम्नवर्गीय प्राणी से अधिक अच्छी नहीं थी ।
"इस भौतिक संसार में इस कला का यह परिचय केवल प्रथम चरण ही था। अभी इसमें बहुत कुछ संलग्न करने की आवश्यकता थी, पारंपरिक शैक्षणिकता का सम्मिश्रण होना आवश्यक था। शास्त्रीय संगीत केवल मनोरंजन की कला नहीं है, यह नैतिकता, आचार व आध्यात्मिकता का
समन्वय है अत:इसमें कुछ विशेष योग्यताओं का होना अपेक्षित है। "
"तो इस कला का शिक्षण कैसे लिया जा सकता है?"
"इस शैक्षणिक कला में गुरु-शिष्य परंपरा है तथा इसके
मूल सिद्धांत गुरु, विनय एवं साधना हैं। समझ गए ? इसका
शिक्षण गुरु से लिया जा सकता है। "
" परंपरा तो सदा रहती हैं न ?" कॉस्मॉस परंपरा से भी परिचित था ।
" समयानुसार परंपराओं में बदलाव आता रहता है। संगीत कला व नृत्य कला को सर्वोच्च कोटि का ज्ञान माना गया है| यह पारंपरिक शैक्षणिक व्यवस्था अन्नतकाल से गुरु के द्वारा शिष्य को प्राप्त होती रही है । "
"हूँ--यह तो हुई गुरु जी की बात, अब आगे------"
" गुरु से किसी भी विषय में शिक्षण प्राप्त करने के लिए शिष्य का विनम्र होना आवश्यक है । वही शिष्य सही अर्थों में कुछ सीख सकता है जो अपने गुरु को सम्मान देता है अर्थात विनम्र होता है। शास्त्रीय संगीत व नृत्य ऎसी प्रार्थना, वंदना, साधना है जो जीवन की प्रगति में, जीवन -
स्तर में अलौकिकता को समाविष्ट करती है जिसमें कलाकार एवं दर्शक अथवा श्रोता दोनों एकरस हो जाते हैं अर्थात इतने तल्लीन हो जाते हैं कि दोनों में एकाकार की
स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यदि कलाकार में अभिमान का प्रवेश हो जाए तब वह वास्तविक कला से दूर हो जाता है। किसी भी शिष्य का वास्तविक आभूषण उसकी वम्रता है
। संगीत हो अथवा नृत्य शिष्य को किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम स्वयं को विनम्रता के साँचे में ढालना आवश्यक है। "
"---और साधना, वही न जो आप कर रही थीं ?"
"हाँ, वही---वास्तव में साधना के लिए दो स्तरों का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। ---"

"मतलब ---?"
"उत्पत्ति का ज्ञान अर्थात किसी भी राग अथवा स्वर का उदगम का स्त्रोत जानना, उसके पश्चात उसका तन्मयता से अभ्यास करना । घंटों अभ्यास किए बिना विद्यार्थी प्रवीणता प्राप्त नहीं कर सकता। जानते हो, प्रत्येक कला किसी न किसी सौंदर्य-बोध से जुड़ी रहती है । "

"सौंदर्य-बोध अर्थात सुंदरता ---??"
"पुरातन लेखों में मुख्य रूप से कला के लिए नौ भावों का उल्लेख किया गया है। ये भाव रसों के रूप में प्रदर्शित होते हैं। "
"रस---? आपकी पृथ्वी पर तो पीने वाला रस मिलता है !"
इतनी गंभीर चर्चा में भी सत्यनिधि को कॉस्मॉस के भोलेपन पर बरबस ही हँसी आ गई ।
" बुद्धू हो तुम, ये रस भाव के होते हैं । इनको भावों के अनुसार विभक्त किया गया है। सभी राग ध्वनिक चक्र पर आधारित हैं । संगीत के इन दिव्य गुणों, लक्षणों को नाद सिद्ध में सर्वोत्कृष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है । "
"ये सब मेरी बुद्धि से परे हैं, कितना कठिन है न ? उसने बड़े भोलेपन से अपने कान छूए |
" नहीं, कठिन नहीं है --बस केवल ज्ञान-अर्जन की ललक होनी आवश्यक है, फिर अभ्यास !जानते हो? कुछ राग चमत्कारिक रूप से प्रभावशाली होते हैं। यह सर्वविदित है कि बादशाह अकबर के नवरत्नों में से श्रेष्ठ संगीतज्ञ तानसेन दीपक राग गाकर दीपक जला देते थे तथा उनके मेघ-मल्हार राग गाने से आकाश में मेघ घिर आते थे जिनसे
वर्षा होने लगती थी। "
कॉस्मॉस को आनंद भी आ रहा था और वह परेशान भी हो रहा था। कैसी है यह पृथ्वी !जिसके पास जाता है, वह अपना ही राग अलापने लगता है। कुछ नई बातें जानने में उसे बहुत आनंद आता है लेकिन कुछ बातें तो उसके पल्ले ही नहीं पड़तीं। अपने स्वामी के द्वारा दंडित
किए जाने के भय से वह घबरा भी रहा था किन्तु नई बातजानने का आकर्षण उसे उसी स्थान पर जमे रहने के लिए बाध्य भी करता था ।
"सभी तो इतने मनोयोग से साधना नहीं करते न ?आप जो कर रही हैं उसके पीछे कुछ कारण है क्या?"
"सबसे बड़ा कारण तो मेरा कला के प्रति अनुराग, मेरा शौक, मेरी उमंग हैं लेकिन आवश्यक नहीं होता कि हमें शौक पूरे करने का अवसर प्राप्त हो ही जाए!"
"क्यों? आप धरती पर कितने स्वतंत्र हैं, अपने मन केअनुसार खाते -पीते हैं, कहीं भी आते-जाते हैं फिर आपकोअपने शौक पूरे करने का अवसर क्यों प्राप्त नहीं होता?"
"कॉस्मॉस ! हमें इतनी स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है जितनी तुम्हें दिखाई देती है । मैं भी पहलेआम जीवन जी रही थी । एक मध्यमवर्गीय जीवन! !" सत्यनिधि ने एक गहरी श्वाँस ली।
"मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी, बी.ए इसलिए किया कि अच्छा घर -बार मिल सके । संगीत में गहन रूचि होते हुएभी मुह पर पट्टी चिपकाए चुपचाप विवाह के मंडप में जा बैठी और पति के घर आ गई। "
"तो ससुराल में हो?वह कुछ ऐसे मुस्कुराया जैसे किसी मित्र को छेड़ रहा हो । यानि वह जानता था कि लड़कियाँ विवाह के बाद ससुराल जाती हैं |
"हाँ, हम जैसी मध्यम वर्ग की लड़कियों का ससुराल की रसोईघर की चौखट में रहना उनका सौभाग्य माना जाताहै । "
"रसोईघर यानि किचन के अंदर --? बाहर आने पर कुछ पाबंदी होती है क्या?" वह इसी प्रकार की छुटपुटीबालसुलभ चंचल बातें पूछता रहा ।
"तुम मेरा समय नष्ट मत करो, चुपचाप सुनते रहो। "

"लेकिन मेरी समझ में जो बात न आए, वह तो पूछनी चाहिए न ?"
सत्यनिधि ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया । वह
आगे बोली --
" भारत में लगभग सौ वर्ष पूर्व गाना-नाचना अच्छा नहीं समझा जाता था यह मिरासियों या कोठेवालियों का काम समझा जाता था। "

"ये मिरासी और कोठेवाली क्या होते हैं?" कॉस्मॉस को यहाँ की भाषा के व्याकरण का भी थोड़ा-बहुत ज्ञान हो गया था किन्तु---फिर भी बहुत सी बातें उसकी समझ में नहीं आती थीं ।
"यह एक भिन्न वर्ग है, अब वर्ग का अर्थ पूछोगे ! जैसे --जातियों का वर्ग, अध्यापकों का वर्ग, शिष्यों का वर्ग अर्थात एक समान या एक से कार्य में लगे हुए लोग---अब अपने मस्तिष्क का प्रयोग करो और सुनो । "
कॉस्मॉस ने चुपचाप अपनी ग्रीवा हिला दी जैसे वह बहुत कुछ समझ रहा हो, फिर रहा नहीं गया ---

क्रमश..