जब हम ज़र्रे से पानी भरकर वापस लौट रहे थे, तब मार्ग में हमें पंद्रह बीस मीटर के फासले पर पेड़ों के पीछे से किसी प्राणी के ग़ुर्राने की आवाज़ सुनाई दी. हम यह जानने के लिए जरा बगल में हटे कि वहां क्या है. और वहां टॉर्च की रोशनी डाली. तभी रोशनी पड़ने से एक भयंकर राक्षस ने पेड़ के पीछे से चेहरा निकालकर झांका. उनका भयंकर रूप देखकर हम दोनों ठिठक गए. जेसिका तो जोर से चीख कर लड़खड़ा पड़ी.
पूरा काला बदन. बड़ा सर. लाल लाल आँख. और बड़े बड़े नुकीले सफेद दांत. पूरे सात आठ फूट लम्बा होगा वह.
मैं भी उनका हुलिया देखकर कांप उठा. मगर मुश्किल से हिम्मत इकठ्ठा कर मैंने बंदूक से गोली चलाई. गोली कहाँ लगी यह तो पता नहीं चला, पर वह राक्षस पेड़ के पीछे छिप गया. तभी मैंने जेसिका को उठाया और उसका हाथ पकड़े भागा. और सामने से आप लोगों को आते हुए देखा.
प्रताप का हाल सुन, और उस राक्षस के हुलिये की कल्पना कर सब कांप उठे. फिर से मेघनाथजी की हजारों बरस पहले वाले प्राणी की बात उन्हें याद आ गई. वे उसी संदर्भ में बात करने लगे.
फिर सब इस मामले की जांच पड़ताल सुबह करना तै कर सोने चले. इस बार भी उन्होंने टुकड़ियों में रात्रि चौकी करना तै किया था.
राजू की बारी अंत में थी. इसलिए वह भी सोने चला. उनके दिमाग में अभी भी राक्षस की बात चल रही थी. राक्षस की बात को लेकर उनके मन में संदेह था. वह हकीकत का पता लगाना चाहता था. मन में ही वह सोचने लगा. उनके पास जो टॉर्च है, वह पंद्रह बीस मीटर तक तो ठीक से रौशनी फेंक नहीं सकती! इसलिए जो कुछ जेसिका और प्रताप ने देखा होगा, वह साफ़ तो बिलकुल नहीं दिखाई दिया होगा. मतलब राक्षस की बात पर संदेह करना संभव है. फिर क्या हो सकता है? उनके मन में एक खयाल आया. उसने मन में ही कहा: हाँ, यह हो सकता है. फिर इसका पता सुबह ही लगाया जा सकता है, सोच कर वह सो गया.
मध्य रात्रि के दौरान जिस टुकड़ी की चौकी करने की बारी थी, उसमे संजय, पिंटू और दीपक थे. वे अभी थोड़ी देर पहले ही गहरी नींद से उठे थे. इसलिए उनका सर भारी हो रहा था. अतः, उन्होंने जरा हल्का होने के इरादे से चाय बनाई. और प्याला हाथ में लिए, टेंट के बाहर निकल चाय की चुस्कियां लेते हुए हंसी मजाक करते टहलने लगे.
चारों और रात्रि का गहरा अंधकार छाया हुआ था. निशाचर प्राणी एवं पंखियों की हरकत कान में दस्तक दे रही थी. तभी उनके कानों में एक ऐसी आवाज़ पड़ी, जिनको सुनकर उनकी सारी हंसी ठिठोली हवा में उड़ गई. पाँव से सर तक वे सिहर उठे.
उनके कान में साफ़ आवाज़ पड़ रही थी. कहीं दूर कोई बच्चा रो रहा था. और साथ ही साथ जंगली कुत्ते और भेड़ियों के रोने की भी आवाज़ आ रही थी.
इस जंगल में इतनी रात को कोई बच्चा! ये कौन होगा? और क्यूँ रो रहा होगा? उनके मन में प्रश्न थे.
उन्होंने दिन भर में यहाँ अगल बगल कोई मानव बस्ती नहीं देखी थी. फिर ये क्या होगा? यह कोई सचमुच इंसानी बच्चा होगा या कोई भूत प्रेत? वे सोच में पड़े. उनकी हिम्मत नहीं पड़ी कि आवाज़ का पीछा करे और पता लगाए कि वास्तव में वह क्या है. फिर उनके दिमाग में जेसिका और प्रताप को राक्षस दिखाई जाने की बात भी ताजा थी ही. और बचपन में ऐसे भूत प्रेतों की कहानियां भी सुन रखी थी, जो रात्रि के दौरान बच्चे का रूप लेकर धोखा देते हैं. रात्रि के अंधकार व अकेलेपन में तार्किक विचार के बदले यह सब नकारात्मक पुरानी यादें अब उनके दिमाग पर कब्जा करने लगी. थोड़ी देर के लिए तो उन्हें अन्य टीम मेम्बर्स को जगाने का खयाल भी आया. पर फिर मजाक बनने के दर से सब चुप रहे. और डरते काँपते अपनी बारी खत्म होने का इंतज़ार करते रहे.
जब उनकी चौकी करने की बारी खत्म हुई और राजू की अंतिम टुकड़ी की बारी आई तब उन्हें सारी बीना कह सुनाई. जिसे राजू ने गौर से सुना. और उन्हें अब सो जाने के लिए कहा.
सुबह राजू ने अपनी टीम को बताया कि वह रात्रि की घटनाओं का पता लगाना चाहता है. और बिना पता लगाए आगे बढ़ना नहीं चाहता. क्यूंकि इस भेद का बिना पता चले वे भविष्य के ख़तरों से सावधान नहीं हो सकते. जिसका भीमुचाचा और रफिक्चाचा ने भी समर्थन किया.
सुबह की चाय जब तक तैयार होती, राजू और भीमुचाचा हुल्लड़बाजों के पैरों के निशान जहाँ गायब हो जाते थे, वहां तक पहुँच गए. उन्हें वह संदेहास्पद बंदरों का सबूत चाहिए था. जो उन्हें तुरंत मिल गया. वहां पेड़ों पर कई बन्दर एक डाली से दूसरी डाली कूद रहे थे. रात्रि को जो उन्होंने अनुमान लगाया था, वह सच साबित हुआ था. लौटकर उन्होंने अन्य टीम मेम्बर्स को भी इस डंगलबाज़ बंदरों के बारें में बताया. बाकी के मेम्बर्स भी उन धमालियों का हुलिया मुसकुराते हुए देख आये. जो रात को इतनी सारी आफत मचा गए थे. और उनके मन को संदेह और दर से भर गए थे.
अब वह राक्षस और रोने की आवाज़ की गुत्थी सुलझानी थी. चाय नाश्ता करने के बाद रफिक्चाचा और हिरेन शिकार को निकले. दीपक और संजय टेंट को संभालने रुके. एवं राजू, भीमुचाचा, पिंटू, प्रताप और जेसिका राक्षस की जांच पड़ताल करने निकले.
वे संदिग्ध राक्षस के स्थान पर पहुँचे. जेसिका और प्रताप ने राक्षस किस पेड़ के पीछे और कहाँ खड़ा था, वह बताया. अपने अपने हथियार संभाले वे जेसिका और प्रताप की दिखाई दिशा में सावधानी से आगे बढ़े. पर अब वहां कुछ नहीं था. जो कुछ था वह सायद रात्रि को ही निकल गया था.
राजू और भीमुचाचा ने अगल बगल निरीक्षण शुरू किया.
जिस पेड़ को जेसिका और प्रताप ने बताया था, उस पेड़ के पास वाली घाँस और बेल पट्टियाँ बुरी तरह कुचली हुई थी. कुछ कुछ मिट्टी भी निकल आई थी. जिसका मतलब साफ़ था, यहाँ जरूर कुछ तो था. उनका शरीर भी बहुत भारी रहा होगा. तभी घांस पट्टीयां और मिट्टी का यह हाल हुआ है. पर दृश्य तो यह कह रहा है कि यहाँ लड़ाई हुई थी.
उन्होंने पेड़ पर नजर डाली. पेड़ के टने पर कुतरे जाने के निशान थे.
"यह किसी मजबूत और तीक्ष्ण नाखून से कुतरा गया होगा." राजू बोला.
ऊपर देखा. दाल पर एक मधुमक्खी का टूटा हुआ छज्जा लटक रहा था. उसके कुछ छोटे छोटे टुकड़े नीचे भी बिखरे पड़े थे. और उनपर मक्खियाँ और अन्य की टक अब भिनभिना रहे थे. राजू ने बड़े ध्यान से जमीन का निरीक्षण किया. वहां कुछ बाल भी पड़े मिले. जो राजू ने उठा लिए.
आस पास की जमीन और पेड़ों का मुआयना किया. बगल के एक पेड़ पर बंदूक की गोली का निशान था. वह भी दोनों ने गौर से देखा. जरा दूर पर एक पेड़ के नीचे भी घाँस पट्टियाँ दबी हुई थी. पर वहां यहाँ जैसा हाल नहीं था. लगता था, जैसे कोई प्राणी यहाँ बैठा हो. आसपास सूखे हुए लहू के निशान भी थे. वहां से भी कुछ बाल प्राप्त हुए.
राजू और भीमुचाचा ने वे दोनों बालों के सेंपल को देखा. भीमुचाचा का अनुभव कह रहा था कि यह किसी भालू के बाल हैं. दोनों ने आपस में मशवरा कर यह तै किया कि यह कोई जंगली भालू का काम है. और जेसिका और प्रताप ने जिस राक्षस को देखा था, वह भी यह भालू ही था. उन्होंने अपने अनुमान के समर्थन में प्रमाण भी दिए.
भालू कई बार पेड़ के टने के सहारे दो पैरों पर खड़ा हो जाता है. और अपने नाखून से पेड़ के टने को कुरेदता भी है. उनके दांत भी लम्बे होते हैं. भालू को शहद भी बहुत प्रिय है. और वह मधुमक्खियों के छज्जे को अपने घने बालों की वजह से आसानी से खा भी लेता है.
दोनों ने सारे घटनाक्रम का बयान कुछ यूँ दिया.
पेड़ पर लटके मधुमक्खी के छज्जे को कोई एक भालू खा रहा होगा. तभी दूसरा भालू आ गया होगा. मधुमक्खी के छज्जे को लेकर दोनों के बीच लड़ाई हो गई होगी. जिसके फलस्वरूप ये घाँस पट्टियाँ कुचली गई है. फिर कमजोर भालू हार कर वहां उस दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठा होगा. वह थोड़ा बहुत घायल भी हुआ होगा. जिसके खून के निशान भी वहां है. वह बैठे बैठे कराह रहा होगा. जिसको जेसिका और प्रताप ने सुना होगा. और जिसको दोनों देखना चाह रहे होंगे.
लड़ाई के बाद दूसरा भालू अपने पिछले दो पैरों पर खड़े होकर मधुमक्खी का शहद खा रहा होगा. तभी जेसिका और प्रताप ने टॉर्च की रोशनी फेंकी होगी. जिसको देखकर वह दूसरे भालू ने पेड़ से झांका होगा. उसी को टॉर्च की कम रौशनी में देखकर दोनों को लगा होगा कि यह कोई सात आठ फूट लम्बा राक्षस है. जिसके नाखून से कुतरे जाने के निशान भी यहाँ इस पेड़ पर मौजूद है. प्रताप ने उस वक्त गोली चलाई. मगर निशान चुक जाने से वह गोली बगल के पेड़ में लगी. जिसका निशान भी उस पेड़ पर मौजूद है. और रात्रि को संजय, दीपक और पिंटू को जो बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी थी, वह भी उस घायल भालू की ही होगी. क्यूंकि भालू भी कई बार इंसानों जैसी आवाज़ में रोता है. खासकर तब, जब वह किसी परेशानी में होता है.
राजू और भीमुचाचा के खुलासे से जेसिका, प्रताप और पिंटू को संतोष हुआ. सब मुसकुराते हुए अपने पड़ाव पर लौटे. राजू ने अन्य सदस्यों को भी सारा घटनाक्रम खुलासे के साथ कह सुनाया. वे बाल भी दिखलाये. उन्हें भी इस खुलासे से संतोष हुआ.
पर राजू और भीमुचाचा ने अब सबको सावधान किया. "देखो, यहाँ इस जंगल में भालू भी बसते हैं. जो हमारे लिए कभी भी खतरा बन सकते हैं. इसलिए अब हमें बड़ी सावधानी रखनी होगी. और अकेले तो कभी पड़ना ही नहीं हैं.
यह सारा मामला सुल्जा तब तक दोपहर हो गई. अब ज्यादा आगे बढ़ना संभव नहीं था. अतः, यह तै हुआ कि साम होने से पहले सामने वाली पहाड़ी पर पहुंचा जाए. इसलिए रफिक्चाचा, संजय, दीपक और प्रताप को टेंट और अन्य सामान लेकर सीधे ही उस पहाड़ी पर भेजा. और उसे वहां अगला पड़ाव डालने को कहा. बाकी की टीम आसपास में जो भी खोह होंगी, उसकी तहक़ीक़ात करते हुए साम तक पहाड़ी पर पहुँच जाएगी.
संध्या होने तक दूसरी टुकड़ी पहाड़ी पर पहुंची. तब तक पहली टुकड़ी ने टेंट लगा दिए थे. दिन रहते पानी भी भर लाए थे. और खाना भी तैयार कर दिया था. इसलिए रात्रि का अंधकार छाने से पहले ही सब फ्री हो गए. पिछली रात के मुकाबले इस रात उनके पास आराम का ज्यादा वक्त था. इस रात बीती रात जैसा कोई हंगामा भी नहीं हुआ था. अतः, सब खुश थे. वे सब टेंट के बाहर आग के पास गोलाई में बैठे बातें कर रहे थे. साथ साथ खाना भी चल रहा था. इस दिन भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा था. जैसी खोह की उन्हें तलाश थी, वैसी खोह इस दिन भी उनकी नजर को न पड़ी थी. न तो वे साए और आग का भेद कुछ मालूम हुआ था.
भोजन समाप्त करने के बाद भीमुचाचा और रफीकचाचा खाना पचाने के उद्देश्य से टेंट के अगल बगल टहलने लगे. टहलते हुए वे टेंट की पीछे की साइड को निकले. तभी रफिक्चाचा की नजर को कहीं से हलकी हलकी रौशनी आती दिखाई दी. शुरू में उसे जुगनू की रौशनी का अंदाज़ा हुआ. पर ध्यान से देखने पर पता चला कि यह अलग रौशनी है. उसने भीमुचाचा को इस रौशनी से अवगत किया. दोनों सोच मे पड़े. रौशनी कहीं दूर से आ रही थी. साफ़ कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. उन्होंने राजू और अन्य टीम को भी यह रौशनी दिखाई. पर किसी को इस रौशनी का भेद मालूम न पड़ा. क्यूंकि उन लोगों की झलाई आग की रौशनी में यह रौशनी दब जा रही थी. उन्हें एक विचार यह आया कि पेड़ पर चढ़ कर रौशनी का भेद मालूम किया जाए. पर रात्रि के दौरान पेड़ पर चढ़ना उचित न जान यह विचार छोड़ना पड़ा. काफी सोच विचार के बाद यह तै किया कि थोड़ी देर के लिए अपनी बाली आग को बूझा दिया जाए.
गहरा अंधकार होते ही वह रौशनी कुछ साफ़ हुई. दूरबीन से देखने पर पता लगा कि यह भी किसी आग की ही रौशनी है. उनके मन में प्रश्न पैदा हुआ. तो क्या यह वहीँ आग है, जिसका प्रतिबीम उन्होंने दो दिन पहले देखा था?
देर तक सोच विचार किया. पर आगे कुछ मालूम न चला.
फिर से आग जला ली गई और सब सोने की तैयारी में पड़े.
चौकी करने वाली शुरूआती टुकड़ी में भीमुचाचा, हिरेन और रफिक्चाचा शामिल थे. जब उनकी बारी खत्म होने में थोड़ा वक्त शेष रह गया था, तब एक नई घटना घटित होनी आरम्भ हुई.
क्रमशः
वह रौशनी का राज़ क्या है? क्या अब उन लोगों के लिए कोई नयी मुसीबत पैदा होने वाली है? कहानी अब रोचक दौर में प्रवेश कर चुकी है. जानने के लिए पढ़ते रहे.
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी...