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नमकीन चाय एक मार्मिक प्रेम कथा - अध्याय-9

अध्याय – 9

कुछ दिनों बाद चंदन अपने साजो सामान सहित बेटी को लेकर बिलासपुर शिफ्ट हो गया। मेड का इंतजाम उसने पहले से ही कर लिया था। ऑफिस स्टाफ ने उसकी कॉफी मदद की। अब उसका मुख्य कार्य था रिया को किसी स्कूल के प्ले ग्रुप में डालना, इसलिए उसने पता किया डॉ. जोशी कहाँ रहते हैं। वह मेडिकल फील्ड में ही था इसलिए पता करना उसके लिए बड़ी बात नहीं थी। डॉ. जोशी से चर्चा कर दूसरे दिन वह मैडम के स्कूल पहुँचा।
यह एक क्रिश्चयन मैनेजमैंट का भव्य और बड़ा स्कूल था जहाँ जोशी मैडम प्रिंसिपल थी। अच्छी बात ये थी कि ये उसके ऑफिस और घर से ज्यादा दूर नहीं था। इत्तेफाक से कहें या भाग्य जैंसा भी कहे इसी स्कूल में रिया टीचर थी। जब चंदन स्कूल के कैम्पस में पहुँचा और अपनी कार से उतर कर ऑफिस की ओर आ रहा था। रिया गैलरी में धीरे-धीरे बैशाखी के सहारे दूसरी कक्षा में जा रही थी कि अचानक रिया की नजर चंदन पर पड़ी। उसके देखते ही एक पल के लिए ठिठक गई। उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि ये चंदन ही है। उसके आँखे गीली हो गई। वो एकटक उसके देखे जा रही थी। फिर उसको लगा कि ये ठीक नहीं है तो तुरंत वो वहीं पर एक खंभे के पीछे छुप गई।
चंदन चलते हुए प्रिंसिपल के गेट पर पहुँच गया।
मे आई कम इन मैडम। चंदन ने कहा।
अरे चंदन! कैसे हो तुम ? अंदर आओ।
मैं ठीक हूँ मैंडम, आप कैसी है ?
मैं भी ठीक हूँ चंदन, बताओ कैसे आना हुआ।
आपको तो मालूम है मैडम, सुमन के जाने के बाद बेटी को अकेले पालना कितना मुश्किल काम है। जब तक मैं रायपुर में था तब तक इसके नाना-नानी की वजह से कोई तकलीफ नहीं थी। परंतु अब यहाँ तो कोई भी देखने वाला नहीं है इसलिए मैं चाहता हूँ कि कुछ समय अब वो स्कूल में बिताए। इससे वो थोड़ा सामाजिक भी होगी और स्कूल में वो थोड़ा व्यस्त भी हो जाएगी।
तुम ठीक सोच हो रहे हो चंदन। बाकी समय के लिए मेड रखा है कि नहीं?
हाँ रखा हूँ मैडम और मैं भी हर आधे घंटे में घर आते-जाते रहूँगा।
एक बात कहूँ चंदन। तुम शादी क्यूँ नहीं कर लेते। अभी तो तुम्हारी उम्र भी बहुत कम है।
नहीं मैंडम। अब मेरी इच्छा नहीं रही और दूसरा कोई अन्य लड़की आकर मेरी बेटी के साथ कैसा व्यवहार करेगी इसका कुछ पता नहीं।
तुम शायद ठीक कह रहे हो चंदन। अच्छा तो फिर ये फार्म लो और भरकर फीस के साथ जमा कर दो।
कल से अपनी बेटी को स्कूल भेज दो।
आपके रहने से मुझे मदद मिली मैडम, थैंक्यू।
अरे कोई बात नहीं चंदन।
ठीक है मैडम मैं चलता हूँ कल से मैं अपनी बेटी को स्कूल भेजूंगा। यह कहकर वो बाहर निकल गया। उसने सारी औपचारिकताएँ पूरी की और अपने कार की ओर चला गया। रिया अब तक वही खड़ी रही। फिर जैसे ही चंदन चला गया वो तेजी से चलते हुए प्रिंसिपल ऑफिस की ओर गई।
मे आई कम इन मैडम। रिया ने पूछा।
ओह! रिया अंदर आओ और तुम पूछा मत करो, सीधे अंदर आ जाया करो। बैठो।
मैडम वो जो अभी आपके रूम से निकलकर कर गये वो कौन हैं ?
वो चंदन है रिया। क्या तुम उसे जानती हो ?
नहीं मैडम, मुझे ऐसा लगा कि मैंने पहले उन्हें कहीं देखा है। रिया ने ऐसे ही बात को आगे बढ़ाने के लिए कहा।
हाँ वो कुछ दिनों के लिए शायद रायगढ़ में भी था, तुमने शायद उसे वहाँ देखा हो।
हो सकता है मैडम। वैसे वो किसलिए आये थे ?
अपनी बेटी का एडमिशन कराने।
ये सुनते ही रिया को जोरदार झटका लगा। वो सोचने लगी, लगता है चंदन मुझे भूल गया। तभी उसने शादी कर ली। अच्छा ही हुआ मैं उसके जीवन से दूर चली गई। उसे अच्छी जीवनसाथी मिल गई होगी। भगवान उन दोनो को खुश रखे, अब तो और मैं उसके सामने नहीं आऊँगी नहीं तो वो मुश्किलों में आ जाएगा।
क्या हुआ रिया तुम कुछ सोच रही हो ?
नहीं, नहीं मैडम। तो हो गया उसके बच्चे का एडमिशन ?
हाँ कल से स्कूल भेजूँगा बोला है। तुम जानती हो रिया चंदन जैसे लोग सदियों में एक बार पैदा होते हैं।
आप जानती हैं मैडम उसको ? रिया एकदम शाक्ड थी।
हाँ मेरे हसबैंड के पास वो काम से आते रहता था। मैं तो उसके शादी में भी गई थी।
ओह! किससे हुई उसकी शादी मैडम। रिया ने पूछा।
सुमन करके एक लड़की थी।
ये सुनते ही रिया का मन एकदम विचलित हो गया वो अपना धैर्य खोने लगी।
थी मतलब! रिया ने पूछा, उसकी धड़कने तेज हो गई थी।
मतलब तीन साल पहले डिलीवरी टेबल पर बच्चे को जन्म देते वक्त ही उसकी मौत हो गई थी। उसको कैंसर था। चंदन ये बात जानता था और ये जानते हुए भी कि वो ज्यादा दिन नहीं रहेगी, सिर्फ उसे सहारा देने के लिए उसने अपने प्रेम का बलिदान दिया। मेरे हसबैंड बताते हैं कि वो भी किसी से बहुत प्रेम करता था। सचमुच चंदन जैसे लोग इस दुनियां में कम होते हैं रिया।
रिया ये सुनकर अचेत सी हो गई, वो जोर-जोर हाँफने लगी।
क्या हुआ रिया ? मैडम तेजी से उठकर उसके पास आ गई। तुम ठीक हो? रिया, रिया तुम ठीक तो हो ना।
जी मैडम। रिया थोड़ी शांत हुई। मैं अपने रूम में जाती हूँ मैडम। यह कहकहर वह उठी और जाने लगी। अभी भी वह ठीक से होश में नहीं थी चलते हुए डगमगा रही थी।
केशव, रिया को उसके रूम तक छोड़कर आओ। मैडम ने चपरासी को बुलाकर कहा।
रिया अपने टेबल पर आ गई। वो सिर पकड़कर रोने लगी और सोचने लगी।
हे भगवान ये क्या हो गया। मेरी सुमन को कैसे ले गये तुम, कैसे ले गये भगवान। उसकी जगह मुझे कैंसर दे देते, मुझे ले जाते। कम से कम वो दोनो सुखी रहते। अब मैं क्या करूँ बताओ। मेरी जैसी अपंग का बोझ उस पर डालकर मैं उसे और दुखी नहीं करना चाहती। उसकी बेटी का क्या होगा भगवान, क्या होगा। मुझे उसे देखना है मुझे उसे देखना ही है। कल मैं उसको एक बार देख लूँ फिर ये शहर ही छोड़कर चली जाऊँगी। मैं उसके जीवन से दूर चली जाऊँगी।
रिया जब घर पहुँची तो अपने दादाजी से बोली।
दादाजी चंदन यही हैं बिलासपुर में।
तुमने उससे बात की ? दादाजी ने पूछा।
नहीं दादाजी मैंने उसे दूर से देखा। वो हमारे स्कूल आया था।
कैसे ? और तुमने उससे बात क्यों नहीं की ?
वो अपनी बेटी का एडमिशन कराने आया था दादाजी।
ओह! तो उसकी शादी हो गई है।
हाँ दादाजी। आपको मेरी सहेली ख्याल है सुमन। उसी से उसकी शादी हुई थी।
हुई थी मतलब ?
सुमन को कैंसर था दादाजी। ये जानते हुए भी चंदन ने उससे शादी की और डिलीवरी के वक्त ही उसकी मौत हो गई।
ओह! मतलब तीन साल से बेचारा अकेले अपनी बच्ची को पाल रहा है। तब भी तुमको उस पर दया नहीं आती रिया।
मैं तो अपंग हूँ दादाजी। मैं और उस पर बोझ नहीं बढ़ाना चाहती। उसे तो अच्छी लड़की मिलनी चाहिए। जिनती तकलीफें उसने देखी है उसके हिस्से में ढेर सारी खुशियाँ आनी चाहिए।
उसकी खुशी तुमसे है रिया। तुम समझती क्यों नहीं हो ? तुम उसके लिए बोझ नहीं हो तुम उसके खुश होने का कारण हो।
नहीं दादाजी मैं ये बैशाखी का बोझ उस पर नहीं डाल सकती।
रिया बोली और अपने कमरे में चली गई।
दूसरे दिन रिया ने उठकर खीर बनाया और दो तीन खाने की चीजें रखकर ऑटो से स्कूल के लिए निकल गई। आज से चंदन ने भी बेटी को स्कूल भेजा था।
रिया स्कूल में धीरे-धीरे उसके क्लास की ओर जा रही थी। रास्ते में वो सोच रही थी कि उसे पहचानूँगी कैसे ? तभी उसके मन में एक विचार आया। जब वो कक्षा में पहुँची तो देखा वहाँ पर तो 20-25 बच्चे थे उसमें ज्यादातर तो लड़कियाँ थी। रिया ने मैडम से कहा कि वो बच्चों से दो मिनट बात करना चाहती है फिर वो क्लास के सामने आ गई और बोली।
बच्चों, मैं आप लोगों से एक सवाल करूंगी, बोलो जवाब दोगे।
सब लोग जोर से बोले हाँ।
अच्छा तो ये बताओ आपमे से किसके पापा का नाम चंदन है। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने देखा कि कुछ देर तक किसी बच्चे ने हाथ नहीं उठाया। उसे लगा कि वो आज नहीं आई होगी। दो मिनट के लिए वो निराश हो गई तभी उसने देखा कि पीछे में एक सुंदर सी बच्ची ने हाथ उठाया।
ओह! इधर आओ बेटा। वो उसे देखते ही रह गई। वो बिल्कुल सुमन की तरह दिखती थी। उसकी आँखो के सामने सुमन का चेहरा झिलमिला गया। उसकी आँखे गीली हो गई थी।
जब वो बच्ची पास आ गई तो रिया ने उससे पूछा -
आपके पापा का नाम चंदन है ?
उसने हाँ में सिर हिलाया।
और आपका नाम क्या है बेटा ?
मेरा नाम ?
हाँ बेटा, आपका नाम क्या है ?
मेरा नाम रिया है।
ये सुनते ही रिया के होश उड़ गए। उसके मन को जबरदस्त धक्का लगा वो वही पर धड़ाम से बैठ गई और मुँह छुपाकर रोने लगी।
क्या हुआ टीचर ? आप रो क्यूँ रहे हो ? आपको मेरा नाम अच्छा नहीं लगा ? बच्चे ने मासूमियत से पूछा ।
रिया अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी। उसेने रोते रोते पूछा -
बेटा आप अपनी मम्मी का नाम जानते हो ?
नहीं। पापा कहते हैं मेरी दो मम्मी हैं। एक मम्मी भगवान के पास रहती है और दूसरी मम्मी पता नहीं कहाँ रहती है। वो फोटो से भी रिया को पहचान नहीं पा रही थी। क्योंकि दुर्घटना से रिया के चेहरे पर बहुत प्रभाव पड़ा था।
रिया अब भी सुबक रही थी।
क्या आप मेरी मम्मी को जानते हो ? पापा कहते हैं दूसरी मम्मी मिलेगी तो उसको रस्सी से बाँधकर लायेंगे। जाने नहीं देंगे।
रिया और जोर से रोने लगी। उसने बच्ची को खींचकर अपने सीने से लगा लिया। बहुत देर तक सीने से लगाए रखने के बाद उसने बच्ची को कई बार चूमा। और पूछी -
अपने नाश्ता किया बेटा ?
हाँ मैं नाश्ता करके आई हूँ और टिफिन भी लाई हूँ।
अच्छा। आज आप अपना टिफिन मत खाना। मैं आपके लिए खीर बनाकर लाई हूँ, और आपके लिए चाकलेट्स भी लाई हूँ। खाओगी ?
पर मैं तो आपको जानती नहीं हूँ। बच्ची ने कहा।
तो क्या हुआ आप मुझसे दोस्ती कर लो, कहकर उसने अपना हाथ बढ़ाया।
ओ के। कहकर बच्चे ने मासूमियत से अपना हाथ बढ़ा दिया।
लंच में वो बच्ची को लेकर एक पेड़ की छाँव में बैठ गई और प्यार से खीर खिलाने लगी। वो उसको खिलाती और निहारते रहती। वो बार-बार उसको चूमती फिर अपने आँचल से उसका मुँह साफ करती।
वो उस पर अपना असीम प्रेम लुटाना चाहती थी परंतु डरती थी कि इस वजह से चंदन को उसके बारे में पता ना चल जाए।
छोटी रिया जब घर पहुँची तो उसका बेग चौक करते वक्त चंदन ने देखा कि आज बेटी ने टिफिन नहीं खाया है ।
बेटा आज तुमने टिफिन क्यों नहीं खाया है ?
आज टीचर खीर लाई थी वो खाया। बेटी मासूमियत से बोली।
और क्या खाया गुड़िया ने।
बहुत सारा चाकलेट्स।
अच्छा! टीचर ने दिया आपको।
हाँ। लेकिन वो हमारी टीचर नहीं है और उनका तो एक पैर भी नहीं है।
ओह! तो वो चलती कैसे है बेटा ?
वो ऐसे चलती हैं कहकर उसने एक पैर उठाया और दो तीन कदम कूद गई।
चंदन को समझ में आ गया कि कोई अपंग महिला है।
जिसने उसके बच्चे को खीर खिलाया और चाकलेट्स दी।
उन्होंने मुझे खूब प्यार किया और अपने कपड़े से मेरा मुँह भी पोछा।
चंदन थोड़ा आश्चर्यचकित था परंतु उसे लगा ये तो सामान्य बात है क्योंकि उसकी बेटी बहुत प्यारी है। कोई भी देखते ही उसे प्यार करेगा।
इधर बड़ी रिया जब अपने घर पहुँची तो उसने अपने दादाजी को बताया।
दादाजी चंदन की बेटी का नाम रिया है।
क्या बोली तुम फिर से बोलो ? दादाजी ने पूछा।
उसकी बेटी का नाम रिया है।
देखा रिया, वो तुमसे कितना प्यार करता है। वो तुमसे इतना प्यार करता है कि अपनी बेटी का नाम तुम्हारे नाम पर रखा है। अब भी तुम समझ नहीं रही हो। वापस जाओ रिया उसके जीवन में वापस जाओ।
नहीं दादाजी हम लोग एक दो दिन में वापस रायगढ़ चलेंगे, मैंने बोल दिया ना ये बैशाखी लेकर मैं उसके जीवन में वापस नहीं जाऊँगी। यह कहकर वह अपने रूम में चली गई।
दूसरे दिन वह सुबह उठी तो अपने आपको कंट्रोल नहीं कर सकी। उसने सोचा कि छोटी रिया फिर से उस कुक का बनाया हुआ बेकार सा टिफिन खायेगी, इससे अच्छा मैं ही उसके लिए अच्छा टिफिन बनाकर ले जाती हूँ।
दादाजी गेट पर खड़े होकर ये सब देख रहे थे।
इतना सारा नाश्ता और दो टिफिन किसके लिए बेटा ?
रिया के लिए दादाजी। वो कहाँ उस बेकार से कुक का बना हुआ टिफिन खाएगी। उसमें कुछ स्वाद भी होगा भला ? रिया ने कहा।
तुम ये स्वीकार क्यों नहीं कर लेती रिया कि तुम ही उसकी माँ हो। सुबह चार बजे से उठकर उसके लिए लगी हो। क्यों कर रही हो उसके लिए। सोचो रिया प्लीज सोचो।
आप फिर शुरू हो गए दादाजी। रिया बोली और चली गई।
आज फिर से लंच के वक्त वो छोटी रिया को लेकर पेड़ की छाँव में बैठ गई और अपने हाथो से खिलाने लगी।
आप मुझसे प्यार करते हो ? बच्ची ने प्यार से पूछा।
हाँ बेटा मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ। रिया ने उसके मुँह को अपने आँचल से पोंछकर कहा।
तो आप मेरे घर चलो ना। रात को भी आप खिलाना।
उसने मासूमियत से कहा। उसकी आँखे गीली हो गई। उसने कहा अब तुम अपने दोस्तों के पास जाओ। ठीक है। और वो टाटा करके हाथ हिलाते चली गई।
उसे अपने हाथों से खाना खिलाकर रिया को बेहद संतुष्टि मिलती थी। उसकी आत्मा तृप्त हो जाती थी, क्योंकि उसे छोटी सी रिया के माँ होने का अहसास होता था।
छोटी रिया जब घर पहुँची तो चंदन ने देखा कि आज भी उसका टिफिन भरा हुआ है उसने उसे खाया नहीं है। उसे थोड़ी चिंता हुई।
बेटा आज आपने टिफिन नहीं किया ?
किया ना पापा टीचर ने मुझे खिलाया।
अपने हाथों से ?
हाँ और जूस भी पिलाया।
अच्छा, कल वाली टीचर ने ?
हाँ वो बहुत अच्छी है पापा। मुझे बहुत प्यार करती है।
ठीक है बेटा तुम खेलो। चंदन ने कहा।
अब उसे थोड़ी चिंता हुई। वो सोचने लगा कि ये कौन अपंग महिला है जो रोज मेरी बेटी के लिए टिफिन बना कर लाती है आपने हाथों से खिलाती है और अपने आँचल से मुँह भी साफ करती है। वो रिया के साथ कुछ गलत तो नहीं करेगी। मुझे उसके बारे में स्कूल जाकर पता करना चाहिए। ठीक है कल लंच टाईम में जाकर देखता हूँ, आखिर वो कौन है?

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