सेंधा नमक - 4 Sudha Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सेंधा नमक - 4

सेंधा नमक

सुधा त्रिवेदी

(4)

माताजी के वापस चले जाने के दो-तीन दिन बाद की बात है। सुबह-ही-सुबह माताजी ने फोन करके साहिल को खूब चाभी घुमाई और वह सुबह से ही मुंह फुलाए बैठा रहा। घर का माहौल बिलकुल भारी हो आया था। इसीलिए अपने मन को हल्का करने के लिए वन्या ने राजबाला जी को फोन किया। राजबाला जी ने बहुत स्नेह से उसे डाडस बंधाया कि पति पत्नी में कभी-कभार इस तरह के मनमुटाव हो जाया करते हैं। ऐसे समय में घबराने या अकडने से बात बिगड सकती है। धैर्य और स्नेह से ही बात दुबारा बनाई जा सकती है। उन्होंने वन्या को शाम में अपने घर आने का निमंत्रण दिया ताकि वे मिल-बैठकर इस समस्या को सुलझाने की कोशिश कर सकें। इस समय वन्या को राजबाला जी के सिवा और कोई सहारा नहीं दिख रहा था। ऑफिस से छूटने के बाद वह राजबालाजी के यहां चली गई।

मगर वहां ड्राइंग रूम के दरवाजे पर ही वह ठिठक गई, क्योंकि सोफे पर अंकल के साथ कोई एक अजनबी बैठा था। उसकी उम्र चालीस के आसपास रही होगी। उस अजनबी के हाथ में जलती सिगरेट थी जिसके कश उडाता हुआ वह अंकल के साथ खूब घुल मिलकर बातें कर रहा था । राजबाला जी जूस की ट्रे नौकर के हाथ में थमाए किचन से बाहर आ रही थीं। उनकी नजर वन्या पर सबसे पहले पडी। उन्होने बहुत चहककर वन्या का स्वागत किया और कहा – “अरे आओ वन्या । हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे । आओ आओ बैठो ।”

वन्या ने नोट किया कि वह अजनबी थोडा भैंगा है और अजीब निगाह से वन्या को ही देखे जा रहा है। उसे बडा अटपटा लगा। उसे जाने क्यों लगा कि उसे यहां से चले जाना चाहिए। मगर अंकल के स्नेह ने उसे बैठने पर मजबूर कर दिया- “अरे वन्या बेटी,बैठो ! ये रवि हैं ! रवि रतूडी - देहरादून से हैं। बहुत अच्छे ज्योतिषी हैं। अपने परिवार के सदस्य जैसे हैं।”

भैंगा अब भी वन्या को ही देखे जा रहा थ और वन्या इस बात से बडी असहज महसूस कर रही थी। राजबाला जी ने उसे उसी सोफे पर बैठने के लिए कहा जिसपर वह भैंगा ज्योतिषी बैठा था। उसे झिझकता देखकर बोलीं- “बैठो बेटा । इसे तुमसे मिलाने ही बुलाया है। यह तुम्हारा हाथ देखकर ही सारी बात बता देगा और ऐसा हल निकालेगा कि साहिल फिर पहले जैसा केवल तुम्हारा होकर रहेगा - बिल्कुल पहले की तरह लविंग, बोनी एंड ब्लाइट !”

वन्या एक अजनबी के सामने घर की कच्ची बात डिस्कस करने से थोडी नाखुश भी हुई पर उनलोगों के अपनत्व का लिहाज कर सोफे के एक किनारे पर बैठ गई। दूसरे सोफे पर राजबाला जी के साथ अंकल बैठे । राजबाला जी ने सबको जूस का गिलास दिलाते हुए रवि से कहना शुरू किया – “हां तो रवि, बताओ । तुम्हारे अंकल के लिए जो पूजा चढानी थी वह कब कर रहे हो ?”

क्या राजबाला जी जैसी स्त्री स्वातंत्रय के लडनेवाली आधुनिका भी टोने टोटकों में विश्वास रखती हैं ?-वन्या ने सोचा।

रवि – “वह भी कल ही कर लेंगे । मनीष कैसा है अब ?”

राजबाला जी – “थैंक्स रवि, अब वह बिल्कुल ठीक है। तुमने जैसा कहा था, हमने सब उपाय वैसे ही किए । तीन मंगलवार काले कुत्ते को रोटियां डलवाईं उससे । अब उसे बुरे सपने बिल्कुल नहीं आते ।”

“अच्छा रवि, इसे देखो । यही है वन्या । मैंने जिसके बारे में बताया था न तुम्हें ? इसकी लव मैरिज है साहिल से। पर पिछले महीने इसकी सास ने आकर इसके पति को कुछ पढाकर खिलवा दिया। तब से तो इसका पति इसकी तरफ देखता ही नहीं । बहुत परेशान है बेचारी।”

वन्या ने मन में सोचा कि राजबाला जी को उससे बिना पूछे उसके घर की बातें किसी से इस तरह बतानी नहीं चाहिए थी। पर चुप रही। रवि ने उससे हाथ दिखाने को कहा ! वन्या ने न चाहते हुए भी अपनी बायीं हथेली उसके सामने कर दी। रवि ने जिस तरह से उसका हाथ पकडकर, दबाकर, उंगलियां खींचकर उनका मुआयना करना शुरू किया उससे वन्या को बडी भन्नाहट हुई पर राजबाला जी का लिहाज करके वह चुप रही। इसके बाद रवि ने उसके पांव दिखाने को कहा और उसके पांवों को भी दबा-दबाकर देखते हुए कहा –“हूं, समझ गया । समझ गया । किया हुआ है। बडा गहरा जादू किया है। कहां रहती हैं आपकी सासुमां ?”

चं”द्रपुर में” - रुखाई से वन्या ने जवाब दिया।

अब तक टोने-टोटकों में वन्या का बिल्कुल विश्वास नहीं था। वह रवि को चीखकर कहना चाहती थी कि मैं तुम्हारा ढोंग समझ रही हूं - मगर सहज शिष्टाचारवश कह नहीं पा रही थी। उसे आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि अंकल कुछ क्यों नहीं कह रहे हैं ? एकाएक उसके पांवों की उंगलियां खींचते हुए रवि ने उसे अपनी भैंगी आंखें से अजीब तरह से देखते हुए कहा –“आपके पति का किसी और के साथ कोई चक्कर है !”

वन्या का जी चाहा, एक थप्पड खींचकर उसे मारे । प्रकट केवल हंुकारकर इतना कहा – “व्हॉट रबिश !”

रवि- “अरे मैडम । ये संबंध एक बार गहरा जाएं तो फिर रब भी ‘रब’ नहीं कर पाता है। बता रहा हूं, समय रहते संभल जाओ। मैं इसका इलाज बता दूंगा।”

अंकल ने हंसकर वन्या के गुस्से को संभाला – “ हैं ? ऐसा है क्या वन्या ? सावधान हो जाओ । मर्दों का कोई भरोसा नहीं ”

“हट्ट, साहिल ऐसा नहीं है”- वन्या ने मन में कहा।

रवि – “अच्छा आपको मेरी बात का भरोसा नहीं है न ? एक बात बताउंगा तो आपको मेरी बात का भरोसा हो जाएगा ?”

वन्या – “बताइए !”

रवि- “मैं बातें अपनी अंतर्दृष्टि से जान सकता हूं केवल यह साबित करने के लिए कह रहा हूं, इसे अदरवाइज न लें। आपके बाएं ब्रेस्ट पर एक तिल होगा!”

वन्या कुछ देर तक तो एकदम सकते में रही फिर तमतमाकर खडी हो गई- “अंकल, मैं जा रही हूं ।”

अंकल ने वन्या की इस झेंप को देखकर जोर से हंसते हुए कहा – “अच्छा, बैठ तो ! वह तो केवल अपनी बात पर तुम्हें विश्वास दिलाने के लिए ही बोला। तू इतना गुस्सा क्यों करने लगी ? वह जो पूछ रहा है, उसका जवाब क्यों नहीं देती !”

इतनी देर में राजबाला जी भी आ गई थीं- “क्या हुआ भई ? क्यों वन्या ? है तिल ?”

वन्या ने गुस्से से कहा – “मैं यही निहारा करती हूं कि क्या ?”

इसपर राजबाला जी हंस पडीं और कहा – “अच्छा तो अभी जाकर देख ले, फिर तो इसकी बात पर तुझे यकीन आ जाएगा ?”

फिर रवि की तरफ मुखातिब होती हुई बोलीं – “बेटा ! तू छोड ये सब फालतू की बातें। बस ये बता कि इसके पति को फिर से सही रास्ते पर लाने के लिए कोई इलाज है क्या ? और वन्या, बैठ जा शांत होकर । तुझे मुझपर तो भरोसा है न ? मैं जो करूंगी वो तेरे भले के लिए करूंगी - इतना तो जानती है न ? और दैट औल्सो यू कांट ?”

वन्या बैठ गई। वही पहलेवाला साहिल पाने की इच्छा तो थी ही उसकी जो हमेशा प्रेम की गागर छलकाता उसके आगे पीछे डोलता रहता था !

राजबाला जी ने उसका हाथ पकडकर कहा – “ रवि अपने घर का बच्चा है। मैं तुझे किसी ऐरे गैरे से मिलवाउंगी क्या ?सुनो, वह क्या कह रहा है। बोलो रवि इसे क्या करना है ?”

रवि के किसी हाव भाव से ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि उसका अपमान हुआ है। बडी सहजता से उसने कहा –“कुछ नहीं, ये एक किलोग्राम सेंधा नमक ले आएं । कल मंगलवार है। कल मैं उसे मंत्रपूरित करके इन्हें दे दूंगा । फिर इन्हें उस मंत्रपूरित नमक को पांच हिस्से में बांट लेना है। चार हिस्सा तो ये अपने मकान के चारों कोनों पर गाड दें और पांचवें हिस्से को पांच दिन तक दाल में मिलाकर अपने पति को खिलाएं । इनकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी और कभी दुबारा लौटकर नहीं आएंगी। हां, इनके पति को इस बात की भनक नहीं लगनी चाहिए ।”

“हुः सेंधा नमक माय फुट ! पहले तो वन्या ने मन में सोचा । मगर फिर सोचा कि कर के देखने में क्या हर्ज है। कुछ बिगड तो रहा नहीं है!”

राजबालाजी ने भी झट सुझाव मान लिया । कहा –“ठीक है, दे देगी सेंधा नमक । तुम कब तक हो शहर में ?”

“कल शाम की फ्लाइट से देहरादून वापस लौट जाउंगा”- रवि ने जवाब दिया ।

“ओह, फिर तो उससे पहले ही देना होगा नमक - राजबाला जी ने परेशान होते हुए वन्या से कहा - तू ऐसा कर बेटी, कल ऑफिस जाने से पहले ही नमक देकर आ जा । आज ही शाम खरीदकर रख लेना । तुझे तो पता नहीं है कि रवि कहां ठहरा है, इसीलिए कल मेरा ड्राइवर सुरिंदर तुझे तेरे घर से लेकर रवि के होटेल में पहुंचा देगा । इसे जो भी मंत्र वंत्र पढना है,पढकर तुझे नमक दे देगा तो फिर तुझे सुरिंदर ही ऑफिस छोडकर आ जाएगा । ठीक है ?” राजबाला जी ने कहा I और फिर बडे अपनत्व से कहा – “ अब तू घर जा बेटा । साहिल के आने से पहले नमक खरीद लेना ।”

वन्या घर आई तो बडी असमंजस में रही । एक तरफ तो राजबाला जी और उनके पति का अपनत्व था, दूसरी ओर साहिल की वही चाहत दुबारा पाने की हसरत और तीसरी ओर उसका मन कह रहा था कि रवि ढोंगी है। उसे ऐसे ढोंगियों के चक्कर में नहीं पडना चाहिए ! एकाएक उसे चेतन का ध्यान आया । क्यों न उससे सलाह लूं, वह बडा ही मेच्योर पुलिस ऑफिसर है।

उसने तुरंत चेतन को फोन मिलाया और सारी बात बतायी । चेतन राजबाला जी का नाम सुनते ही चौंक पडा -“अच्छा ? होटेल में जाने को कहा है ?”

चेतन को दो बरस पहले की एक कंम्प्लेन्ट की याद आई। वह तब नया नया ट्रेनी था शहर में। राजबालाजी की एनजीओ से जुडी एक लडकी गीता ने यह आरोप लगाया था कि राजबाला जी ने चंदा मांगने के बहाने से उसे एक होटेल में जिस व्यापारी के पास भेजा था, वह गीता के साथ बडी अभद्रता से पेश आया था । गीता के मुताबिक उस व्यापारी ने यहां तक कहा था कि जब तुम्हारे लिए अच्छी रकम चुका ही चुका हूं तो यह नखरा क्यों ?

उस समय राजबाला जी की बेदाग समाजसेवी छवि के कारण गीता की बातों पर किसी ने विश्वास नहीं किया था । राजबाला जी के अनुसार, लडकी ने ही व्यापारी से पैसे लेकर उसके साथ रहने की पेशकश की थी और व्यापारी के सच्चरित्र निकलने पर उसपर अभियोग लगाने लगी थी। इस घटना के बाद, कहते हैं गीता ने शहर ही छोड दिया था। आज जब उसकी सगी भाभी वन्या ने उसे यह बात बताई तो उसकी पुलिस वाली बुद्धि जाग गई। उसने वन्या को सारी बात समझाकर कहा – “ आप डरिए मत, कल जाइए जरूर। मैं बिल्डिंग के आस पास ही रहूंगा। खाली आप होटेल के कमरे में जाने से पहले अपने मोबाइल से मुझे कॉल कर उसे ऑन रख लेना।”

वन्या अगले रोज सुरिंदर के साथ होटेल पहुंची । सुरिंदर को भी वन्या का अकेले होटेल के कमरे में जाना कुछ अच्छा नहीं ही लग रहा था । उसने भी दबी जबान से कहा – “मैं नीचे ही वेट कर रहा हूं । किसी तरह की कोई परेशानी हो तो आप प्लीज मुझे कॉल कर लीजिएगा। मैं तुरंत आ जाउंगा ।”

वन्या रवि के कमरे का नंबर पहले ही पूछ चुकी थी। वह जब कमरे में पहुंची तो वहां रवि के अलावा एक और आदमी भी था। वन्या के कमरे में पहुंचते ही दूसरे ने वन्या को उपर से नीचे तक देखा और उठकर बाहर चला गया। वन्या की दर्पपूर्ण उपस्थिति से जाने क्यों रवि घबरा उठा था । नमक की बात वह बिल्कुल भूल ही गया। उसकी छठी इंद्रिय जागकर उसे चेतावनी दे रही थी। फिर भी उसने वन्या को बैठने का इशारा किया और पूछा -

“आप कुछ लेंगी ? जूस या कोई ड्रिंक ?”

वन्या – “नो, थैंक्स ।”

“इवेन हार्ड ड्रिंक इज अवेलेबल” - रवि ने धीरे से ‘एक कदम सफलता की ओर’ बढाने की कोशिश की ।

“जी नहीं धन्यवाद। आपने कहा था कि आप सेंधा नमक में मंत्र पढेंगे। मैं ले आई हूं ।”

रवि – “जी, जी । आप पहले बैठिए तो सही । वैसे आप रहनेवाली कहां की हैं ?”

बिना किसी घबराहट का प्रदर्शन किए हुए वन्या ने कहा – “मैं मुरादाबाद की हूं। मेरे दादाजी धर्मशाला के हैं, मगर अब हमलोग मुरादाबाद में ही बस गए हैं। वहां हमारा पीतल का करोबार है।”

रवि- “आप आराम से बैठिए । तो आप धर्मशला की हैं ? मैं भी तो कांगडे का जोशी ही हूं, रतूडी ! अब देहरादून में बस गए हैं हमलोग। वहां जडी बूटियों का व्यापार करते हैं। इसी सिलसिले में यहां भी आता रहता हूं। आपसे मिलकर बहुत अच्छा लग रहा है। कोई तो अपने गांव का मिला।”

वन्या – “हमारी नानी का गांव भी कांगडे से दो तीन किलोमीटर उपर झाबीपाडा में ही है। मेरे नाना वहां के नामी ज्योतिषी थे । वे सरदार नहीं थे।”

वन्या इतनी सहजता से और निडरता से बातें कर रही थी कि रवि को अंदर से बहुत आश्चर्य हो रहा था और उसे पता नहीं चल रहा था कि इस लडकी के साथ असली काम की बात कैसे करे या करे भी कि न करे । और उपर से अपने गांव के आसपास की पहचान भी है इसकी। कहीं कोई बात हो गई तो बात पूरे गांव में फैल जाएगी। मगर वह इन खतरों का इतना अभ्यस्त हो चला था कि रिस्क लेना उसके लिए एक थ्रिलिंग गेम ही हो चला था। वैसे भी उसका अनुभव कहता था कि पारिवारिक-से-पारिवारिक लडकी भी ऐसे मामलों में अपनी पारिवारिक स्थितियों और सामाजिक मर्यादा के कारण मुंह नहीं खोलती। इसीलिए उसने चांस लेते हुए कहा – “सरदार तो काफी खुले स्वभाव के होते हैं । आपके एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन के बारे में क्या ख्याल हैं ?”

वन्या – “मैं इसे सही नहीं मानती ।”

रवि – “क्यों ? इसमें बुरा क्या है ? यदि कोई अपने पार्टनर से सेक्सुअली सैटिस्फाई नहीं है तो उसे एक्स्ट्रा रिलेशन रखने की छूट क्यों नहीं मिलनी चाहिए ? यह तो नैचुरल रिक्वायरमेंट है ऑफ समबडी । अ टोटली एनीमल इंस्टिंक्ट। ईफ ही ओर शी इज नॉट गेटिंग इट फ्रॉम देयर पार्टनर, दे हैव ऑल राइट टू डिमांड फॉर ऑर टु गेट इट एल्सव्हेयर!। देयर इज नथिंग रांग इन दैट।”

वन्या ने चिहुंककर पूछा –“तो क्या यही मंत्र डिस्कस करने के लिए हम यहां बैठे हैं ?”

रवि – “एक्जैक्टली । व्हेन सच अ ब्यूटी इज देयर, डिस्कसिंग एनीथिंग एल्स विल नॉट बी कंसीडर्ड एप्रीसिएबल।”

वन्या – “तुम्हें इतना सब बोलने की हिम्मत कैसे हुई ? व्हाट डू यू थिंक ऑफ मी ?”

रवि – “जो तुम हो वही सोच रहा हूं डियर । कम ऑन, नखरे दिखाने की जरूरत नहीं। आई हैव पेड वेल एंड ईवेन कैन पे मोर इफ यू डिमांड।”

वन्या – “टु हूम हैव यू पेड ? एंड फॉर व्हाट?”

रवि- “आपकी मैडम को, राजबाला जी को लवली गर्ल, टु एन्ज्वॉय योर ब्यूटी, योर कंपनी ! डोंट बिकम सो इन्नोसेंट डियर ! यू आर सेक्सुअली सो अट्रैक्टिव कि मैं अपके लिए कुछ भी देने को तैयार हूं।

वन्या के हाथ में एक किलो सेंधा नमक का पत्थर एक पॉलिथीन में था। उसने वही पत्थर उसके मुंह पर दे मारा । रवि थोडा आगे को झुका और पत्थर उसके कंधों पर पडा। वह बिलबिलाते हुए वन्या की ओर झपटा लेकिन उसी समय दरवाजे को भडाम की आवाज के साथ खोलते हुए चेतन दाखिल हुआ जो वन्या का फोन ऑन होने के कारण सारी बातचीत सुन रहा था। उसने कॉलर पकडकर घसीटते हुए रवि को उठाया और थाने ले गया।

क्रमश..