यूँ ही राह चलते चलते - 28 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

यूँ ही राह चलते चलते - 28

यूँ ही राह चलते चलते

-28-

नीदरलैण्ड मात्र अपनी प्राकृतिक सुन्दरता और यहाँ के लोगों के कलात्मक रुचि के लिये ही नहीं जाना जाता है वरन् ईश्वर ने इस धरती को और भी सुन्दर बनाने के लिये ऐसा मौसम दिया है कि यहाँ दूर-दूर तक फूलों की और विशेषकर ट्यूलिप की बहार दिखायी देती है। नीदरलैंड के वातावरण में नमी बहुत है जो ट्यूलिप जैसे फूलों के लिये वरदान है।

उनका कोच क्यूकेनहाफ गार्डेन जाने के लिये तैयार था । आज वान्या का जन्मदिन था । लता जी ने बस में सबको चाकलेट बाँटी, सबने हैप्पी बर्थडे गा कर वान्या को बधाई दी।

संकेत ने वान्या को एक सुन्दर बड़ा सा लाल गुलाबों का बुके और एक उपहार का बड़ा सा पैक दिया, उसने वान्या को बधाई दी तो सबने ताली बजायी। वान्या ने भी प्रसन्न हो कर कहा ‘‘ मेनी मेनी थैंक्स संकेत ।’’

तभी यशील ने लाल कागज में बँधा एक उपहार वान्या को देते हुए कहा ‘‘ वेरी हैप्पी बर्थडे वान्या ।’’

‘‘ तुम्हें मेरा बर्थडे कैसे पता चला’’ वान्या ने प्रसन्नता मिश्रित आश्चर्य से पूछा।

‘‘ ये सस्पेन्स है’’ यशील ने रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा।

आवेश में उसका हाथ पकड़ते हुए वान्या ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा ‘‘यू मेड माई डे ‘‘यशील ने उसका हाथ थपथपा दिया।

अर्चिता जब बस में आई तो लता जी ने उसे भी चाकलेट देते हुए कहा ‘‘ लो तुम भी चाकलेट खाओ आज मेरी बेटी का जन्मदिन है ।’’

अर्चिता अपनी सारी शिकायतें परे सरका कर वान्या को शुभकामनाएं देने पहुँची तो उसे देख कर यशील ने अपने हाथ में लिया वान्या का हाथ तुरंत छोड़ दिया, पर अर्चिता कर दृष्टि से भला कैसे बच सकता था। न चाहते हुए भी वह अपनी ईष्र्या की भावना को छिपा नहीं पायी और उसी समय बिना कुछ बोले लौट आयी।

पर उसकी भावना से बेखबर वान्या आज इन स्वर्णिम क्षणों को पूरी तरह जी रही थी और उसी में खोयी थी। उनका यह भाव अर्चिता और संकेत दोनो को ही नागवार गुजरा। अर्चिता तो उदास हो अपनी सीट पर बैठ गयी पर संकेत को सहन नही हुआ अपनी जान पर खेल कर वह वान्या के समीप आया था और अब वह यशील को अपने मध्य नहीं आने देगा।

उसने वान्या के पास आ कर साधिकार कठोर स्वर में कहा ‘‘ वान्या आओ अब हम परिवार वाले साथ मिल कर चाकलेट खाएँ ।’’

‘‘ इतने दिनों में हम सभी एक परिवार हो गये हैं ’’ वान्या ने कहा।

लता जी ने स्थिति को देखते हुए बात सँभाली ‘‘ वान्या जब संकेत कह रहा है तो थोड़ी देर के लिये आ जाओ बेटा ।’’

वान्या को संकेत की अनाधिकृत चेष्टा खल गयी वह आ तो गयी पर उसका मूड उखड़ा रहा। संकेत कुछ भी कहता वह चुप रहती अन्ततः संकेत का धैर्य चुक गया उसने कहा ‘‘ क्या बात है तुम मुझसे नाराज क्यों हो मैंने तुम्हे बचाने के लिये जान लगा दी और तुम उस यशील के पीछे पीछे लगी रहती हो। ’’

’’ठीक है तुमने मेरी जान बचायी उसके लिये मैं दिल से तुम्हारी थैंकफुल हूँ पर इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारा मेरी जानंपर अधिकार हो गया है, मैं तुम्हारी गुलाम हो गयी’’शान्त लहजे में बात प्रारम्भ करके धीरे-धीरे वान्या आवेश में आ गयी, वह बोली ‘‘ अगर ऐसा ही था तो तुम मुझे न बचाते तो अच्छा था ।’’

संकेत समझ गया कि अभी भी वान्या के हृदय पर यशील का ही साम्राज्य है ।

वान्या संकेत का मन नहीं दुखाना चाहती पर वह उसकी कृतज्ञता को प्यार समझे बैठा है और इसी भ्रम में अपना अधिकार जताने लगा है और उसका यह व्यवहार यशील और अर्चिता को पास लाने का काम कर रहा है, जो वान्या को किसी भी स्थिति में सह्य नहीं है इसीलिये विवशता में उसे यथार्थ का दर्पण दिखाना पड़ा ।

ग्रुप के सभी लोग ट्यूलिप की खेती देखने को ले कर पर्याप्त उत्साहित थे।आज का दिन क्यूकेनहाफ गार्डेन जाने के लिये निर्धरित था।पर ऐसा नही था कि केवल वहीं पर फूल दिखायी पड़ते, वहाँ तो मार्ग में ही दूर-दूर तक फैले ट्यूलिप स्कूल के एक रंग की पोशाक पहने कतारबद्ध बच्चों की तरह दिखायी दे रहे थे। कहीं लाल तो कहीं नीले तो कहीं बैंगनी तो कहीं पीले, प्रकृति का कोई रंग ऐसा नही था जिये इन फूलों ने अपनाने में पक्षपात किया हो।

सभी मंत्रमुग्ध थे, कभी कोच के एक ओर से वान्या कहती ‘‘ वो देखे ब्लू वाले कितने सुंदर ’’तो कभी अर्चिता लाल ट्यूलिप को देख कर विस्मित होती।

रामचन्द्रन ने सुमित से पूछा ‘‘ सुमित फूल तो बड़ी जल्दी खराब हो जाता है, तो ये लोग इन फूलों का करते क्या हैं इन्हे इसके बजाए खाद्य सामग्री उगाना चाहिये’’।

सुमित ने कहा‘‘ ये तो इस देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, इन फूलों के निर्यात का विश्व का बहुत बड़ा केन्द्र है यह। यहाँ सुबह-सुबह इन फूलों की बोली लगती है। इसीलिये यहाँ ग्रीनहाउस की भरमार है, वैसे फूलों के अतिरिक्त यहाँ के दुग्ध उत्पाद भी बहुत प्रसिद्ध है।’’

इन्ही चर्चाओं के चलते कब क्यूकेनहाफ गार्डेन आ गया उन्हें पता ही न चला।सुमित ने कहा कि सब लोग चार घंटे तक घूम कर मुख्य द्वार पर आ जाएं।

क्या बच्चे क्या युवा और क्या बड़े सभी चहकते खिलखिलाते अपना अपना कैमरा संभाले चल पड़े इस नैसर्गिक सौन्दर्य को, इन स्मरणीय पलों को अपने कैमरे में समेटने।

मुख्य द्वार के पास एक जोड़ी बड़े से जूते रखे थे उसे देख कर संजना निमिषा, वान्या अर्चिता सभी उसमें पैर डाल डाल कर फोटी खिंचवा रही थीं।अनुभा उनके खेल का आनन्द ले रही थी, तभी रजत बोले ‘‘ आओ तुम भी आओ जल्दी से क्लिक करूँ आगे अभी बहुत कुछ देखना है ।’’

अनुभा को इस बचकाने काम में हिचक भी हो रही थी पर मन बच्चा बनने को आतुर था। उसके संकोच को देख कर संजना उसका हाथ पकड़ कर उसे खींच लायी अन्ततः संकोच त्याग अनुभा ने भी जूते में हँसते हुए पाँव डाल कर फोटो

खिंचवा ही ली ।उसके संकोच और प्रसन्नता के मिले-जुले भाव ने उसके मुख पर अनोखा लावण्य भर दिया जिसे देख कुछ क्षण रजत प्रशंसनीय दृष्टि से अपलक देखते रह गये, जब अनुभा का ध्यान उस ओर गया तो वह सकपका गयी और रजत के चेहरे पर स्मित आ गया ।

उन विभिन्न रंगों फूलों, लताओं के मध्य मूर्तियां, पक्षी, पानी के फव्वारे, झरने, प्रकृति और मानव कल्पना के संयोग से अवर्णनीय छटा बिखेर रहे थे।

यूँ तो महिम का अधिक फोटो लेना उन सब के मध्य मजाक का विषय था पर आज तो सभी महिम को मात दे रहे थे, मानो उन सब के मध्य प्रतियोगिता हो कि कौन कितनी अधिक फोटों लेता है ।दृश्य थे ही इतने अद्भुत कि किसी को भी सौन्दर्य प्रेमी बना दे।प्रकृति को कोई रंग ऐसा नही था जिस रंग के फूल न हों फिर उन्हे कलात्मक ढंग से लगाने से उनका सौन्दर्य द्विगुणित हो रहा था।

अर्चिता यशील से दूर-दूर चल रही थी । चन्दन से अर्चिता कहा ‘‘ अर्चिता यशील तुमसे बात करना चाहता है । ’’

‘‘क्यों उसके मुँह में जबान नहीं है क्या?’’

‘‘ नहीं तुम नाराज़ हो तो उसका तुमसे बात करने का साहस नहीं हो रहा है। ’’

‘‘ तो तुम उसके वकील हो क्या?’’ अर्चिता ने कहा।

‘‘वकील तो नही दोस्त अवश्य हूँ ’’चंदन ने हँसते हुए कहा, फिर बोला ‘‘ कम से कम उसकी बात सुन तो लीजिये मैडम ।’’

अर्चिता कुछ देर में ही यशील से दूर रह कर दर्द की अनुभूति कर चुकी थी, उधर वान्या अधिक से अधिक समय यशील के साथ ही बातें कर रही थी, जो अर्चिता के दुख को और भी बढ़ा रहा था। अंततः जब यशील अकेले खड़ा दृश्यों को कैमरे में कैद करने में व्यस्त था अर्चिता जानबूझ कर वहीं जा कर फोटो लेने लेगी । यशील ने मुड़ कर देखा तो वह दूसरी ओर देखने लगी। यशील ने उसके पास आ कर धीरे से कहा ‘‘ सारी अर्चिता प्लीज’’।

इन दो शब्दों के प्रचाह में अर्चिता का सारा क्रोध बह गया वह उसके गले लग गयी।

इतनी देर से मुरझाये लग रहे फूल अचानक उसे प्रसन्नता से झूमते लगने लगे, अर्चिता उन दूर-दूर तक फैले फूलों की कतारों के मध्य अधलेटी हो कर गाने लगी ‘‘ ये कहाँ आ गये हम यूँ ही साथ साथ चलते........’’

‘‘ तभी यशील जो उसके पीछे ही था उसके सुर में सुर मिला कर बोला ‘‘ मेरी बाहों में है जानम तेरे जिस्म जां पिघलते.......’’

अर्चितां सकपका कर उठ गयी उसके कपोल की आभा रक्तिम हो गयी उसके ह्दय की धड़कने इतनी तीव्र हो गयीं कि कोई दूर से ही सुन ले, उसने हड़बड़ा कर उठते बात को बदलते हुए कहा ‘‘तुम गाने की लाइन गलत गा रहे हो ।’’

‘‘ तो सही लाइन क्या है’’यशील ने पूछा ।

‘‘ तेरी बाहों में है जानम मेरे जिस्म जां पिघलते ’’

‘‘वही तो मैं कह रहा हूँ ’’यशील ने शरारत से उसे देखते हुए कहा। उसके कहने का अर्थ समझ कर अर्चिता हस दी, उसका यशील के प्रति प्रेम और विश्वास दृढ़ होता जा रहा था ।‘अब मुझे वान्या से कोई डर नहीं यशील सिर्फ मुझे ही प्यार करता है, उसने मन ही मन सोचा।

‘‘ तुम यहाँ हो और मैं तुम्हे ढूँढ कर थक गया ’’ हाँफते हुए चंदन ने कहा।

‘‘क्यों मुझे क्यों ढूँढ रहे थे ?’इस समय अर्चिता और यशील दोनो को ही उसका कवाब में हड्डी के समान टपक पड़ना अच्छा न लगा।

यशील का प्रश्न चंदन को पिन सा चुभ गया ‘‘क्यों का क्या मतलब है अरे हम दोनों साथ साथ आये है तो साथ ही रहेंगे न? फिर रूठते हुए बोला वैसे अगर मेरा साथ तुम्हे पसंद न हो तो मैं अकेला भी घूम सकता हूँ ।’’

‘‘ ओहो तू कब से लड़कियों की तरह रूठने लगा?’’ यशील ने उसकी चुटकी ली तो चंदन बोला ‘‘ जबसे तुम मुझे छोड़ कर लड़कियों की कम्पनी में रहने लगे हो।’’

तभी अर्चिता ने कहा ‘‘ यशील, चंदन वो देखो हरे रंग के ट्यूलिप, हरे फूल तो कभी दिखायी ही नहीं पड़ते’’।

चंदन ने कहा ‘‘ तो आओ पोज दो मैं फोटों लेता हूं फटाफट।’’

फोटो सेशन चल ही रहा था कि मानव औ र वान्या आ गये ‘‘ मानव बोला तुम सब यहाँ हो और हमारी सिस तुम्हें ढूँढ-ढूँढ कर परेशान है।’’

यशील और चंदन को देख कर प्रसन्न हुआ वान्या का मूड, वहा अर्चिता को भी उपस्थित़ देख कर उखड़ गया उसने कहा ‘‘ मैं क्यों किसी के लिये परेशान होऊँगी, जिसको जिसके साथ रहना है रहे ।’’

उसके बदले मूड का कारण बिना समझे मानव चिढ़ गया ‘‘सिस तुम कितनी इम्पासिबिल हो अभी कह रही थी ब्रदर व्हेअर इस यशील लेट्स फाइन्ड आउट । मुझे ठीक से फोटो भी नहीं लेने दी और अब मिल गया तो उसे इग्नोर कर रही हो ।’’

चंदन ने बात सम्भाली ‘‘ मानव तुम अभी बच्चे हो ये मूड स्विंग्स नहीं समझोगे।’’

‘‘ हुंह माई फुट मूझे समझना भी नहीं है ’’कह कर वह वहाँ से चल दिया।

यशील ने वान्या से कहा ‘‘ आओ वान्या हम सब एक साथ एक फोटो खिंचवाते हैं, इतना सुन्दर व्यू फिर नहीं मिलेगा’’। वान्या वहीं खड़ी रही कुछ देर पहले कामदेव के बाण से बिद्ध अर्चिता का नशा भी उतर गया दोनों के मुखड़े पर तनाव परिलक्षित हो रहा था।पर यशील दोनों का हाथ पकड़ कर पास लाया और दोनों के मध्य दोनों के कंधों पर हाथ रख कर चंदन से बोला ‘‘ चलो बास एक बढ़ियां फोटो ले लो हमारी फ्रेंन्डशिप की यादगार फोटो’’।

‘‘ हां भई मैं तो आपका फोटोग्राफर हूँ बस चलिये खड़े होइये ची....ज़’’चंदन ने इस अदा से कहा कि सबको अनायास ही हंसी आ गयी और वातावरण में उतर आयी उदासी के कुहाँसे छँट गये।

रुई के समान हल्के हो आये वातावरण के परिणाम स्वरूप वान्या का मूड भी बदल गया उसने चंदन से कहा ‘‘ आओ तुम्हारी भी एक फोटो यशील के साथ ले लें ।’’

‘‘ थैंक्स माई फेअर लेडी’’ चंदन ने बनावटी विनम्रता से झुकते हुए कहा।यशील ने अर्चिता को भी ज्वाइन करने को कहा पर उसके उत्साह के बुलबुले बैठ चुके थे कुछ क्षण पूर्व उसके मन में आया विश्वास रूपी अतिथि वापस जाने को मचल उठा। वह एक पत्थर पर बैठ गयी। संभवतः उसने अच्छा ही किया क्योंकि यदि वह उस फोटो में दोनों के साथ आ कर खड़ी हो जाती तो निश्चय ही वान्या कैमरा फेंक देती।

आज संकेत अपने सारे प्रयास करके निराश हो चुका था उसका अहम् भी सिर उठा कर उसे उकसाने लगा था कि अब उसे वान्या से कोई बात नहीं करनी क्या हुआ जो वह उसे दिल की गहराइयों से पसंद करता है, पर वह बोलेगा तभी जब वह स्वयं बोलेगी।इसी लिये वह अकेले ही या श्री मातोंडकर लता जी और मानव के साथ घूमता रहा, उसने एक बार भी वान्या के पास आने का प्रयास नहीं किया।

संध्या चुपके से अपने पाँव जमाने लगी थी पर वहाँ के अलौकिक सौंदर्य में खोये लोगों को जैसे सुध ही नहीं थी । कुछ लोग ऐसे भी थे जो मुख्य द्वार के पास बनी उपहारों की दुकान से यहाँ की स्मृतियों को बटोरने में लगे थे। सभी का प्रयास था कि मन, मस्तिष्क, कैमरा, उपहार जिस भी रूप में सम्भव हो इन अमूल्य क्षणों को संजो लें।

क्रमशः --------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com