भदूकड़ा - 55 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भदूकड़ा - 55

साल भर तक तो कुंती छोटू के घर गयी ही नहीं। बाद में जब छोटू की बेटी की शादी तय हुई तब छोटू और उसकी पत्नी आ के उसे मना के ले गए। लेकिन अब होता ये है कि दोनों बेटों, और उनके बच्चों को जब भी ज़रूरत होती है, उसे बुला लेते हैं। मन हो न हो, उसे जाना पड़ता है। राहुल के घर जब बच्चा पैदा हुआ तब तो कुंती की हालत बिल्कुल काम वालियों जैसी हो गयी। सारा काम करे, छोटा बच्चा संभाले और कोई गड़बड़ हुई नहीं कि राहुल उसी पर बरस पड़े! राहुल की शादी के बाद जब कुंती ने बहू पर अपनी धौंस जमानी चाही थी, तो राहुल ने कड़े शब्दों में जता दिया था कि अम्मा दादी, तुम दादी हो सो दादी की तरह ही व्यवहार करो। यहां तुम्हारा सास वाला रवैया न चल पाएगा जो तुमने हमारी मम्मी पर चलाया। रहना है तो प्रेम से रहो नहीं तो गांव में ही रही आओ।
राहुल के इस दो टूक जवाब के बाद कुंती ने कभी तेज़ आवाज़ में बात नहीं की। उसे समझ में आ गया था कि उसका समय अब ख़त्म हो गया है।
सिसकती कुंती के कंधे पर सुमित्रा जी ने हाथ रखा तो कुंती के रुके हुए आंसू फिर बहने लगे।
"अब तुम बताओ सुमित्रा, कैसे जीवन कटे?"
"कुंती, बैन तुम बिल्कुल परेशान न होओ। ये भी तो तुम्हारा घर है। तुम कहीं न जाओ, यहां रहो, हमें कोई दिक़्क़त न होगी। हमने तो पहले भी तुमसें कई बार कहा है यहां आ जाने को। तुम्हारा मन ही वहां नाती- पोतों में भटकता रहता है। अब तुमने देख लिया, कोई किसी का सगा नहीं है। राहुल, सुबोध सब बहुत अच्छे बच्चे हैं, लेकिन अब समय यही है कि तुम अपने आत्म सम्मान के साथ रहो। जब तुम्हारा जहां जाने का मन हो जाओ, नहीं हो न जाओ। जब लगे कि किसी को सचमुच तुम्हारी बहुत ज़रूरत है, तब ज़रूर जाओ। लेकिन किसी के हाथ का खिलौना मत बनो।
"सुमित्रा, हमने तुमे बहुत परेशान किया है न.... अब तुम हमारी मदद काय करोगी?" कुंती के मन में शंका करवट लेने लगी।
"अब हम जे तो नईं जानते बैन कि हम कायको मदद करेंगे लेकिन हम जो कह रहे, वो दिल से कह रहे। मुंह छुलाने को नहीं कह रहे।"
दोपहर में जब कुंती आराम करने कमरे में चली गयी तब सुमित्रा जी ने यही प्रस्ताव तिवारी जी के सामने रखा। तिवारी जी तो ख़ैर इंकार करते ही नहीं, लेकिन अज्जू के सिर के ऊपर से निकल गया ये प्रस्ताव।
"मम्मी, मौसी ने तुम्हारे साथ क्या क्या किया, भूल गयीं क्या तुम? अब इस उमर में तुम फिर मुसीबत मोल लेना चाहती हो? घर में अभी कितनी शांति है, फिर समझ रही हो, क्या माहौल होगा? तुम्हारा और हम सबका जीना हराम कर देंगीं कुंती मौसी।"
तिवारी जी चुपचाप अज्जू की बात सुन रहे थे। ग़लत तो नहीं ही कह रहा लड़का। लेकिन फिर कुंती की समस्या कैसे हल हो?
"फिर मम्मी, किशोर भैया और छोटू भले ही कुछ न सोचें लेकिन राहुल और सुबोध तो ज़रूर ये सोचेंगे कि हमने अपना मतलब साधने के लिए उन्हें यहाँ रखा होगा। वे दोनों हैं ही इस मिज़ाज़ के। जब अपनी सगी दादी से पैसा ऐंठते रहे तो हमारे लिए कैसे कुछ अच्छा सोचेंगे?"
अज्जू की इस बात में दम था। ये तो सुमित्रा जी ने सोचा ही नहीं था। लेकिन तब भी कुंती के बारे में कुछ तो सोचना ही होगा। तिवारी जी का कहना था कि फिलहाल इस चिंता को यही विराम देते हैं। अभी जब तक जी चाहे, कुंती भाभी रहें। फिर उनका जैसा मन होगा किया जाएगा।
इस बार कुंती लगभग एक महीना रही और बहुत अच्छे से रही। कोई तनाव नहीं, कोई नाराज़गी नहीं कोई बनावट नहीं। अज्जू भी कुंती को डॉक्टर के पास ले गया और उसकी छोटी मोटी तक़लीफ़ों के लिए मशवरे और दवाइयां ले आया। फुल बॉडी चैक अप करवा दिया। निश्चिंत मन से रहने का नतीजा ये हुआ कि कुंती का न केवल शरीर भर गया बल्कि आंखों के नीचे की झाइयाँ भी ग़ायब हो गईं। जाने लगी, तो सुमित्रा जी ने पक्का वादा लिया कि गाँव में खेती बाड़ी की व्यवस्था देख के वो फिर वापस आ जाये। तिवारी जी और सुमित्रा जी ने कुंती को बिठा के खूब अच्छे से समझाया था कि अब तुम खेतीबाड़ी का बंटवारा कर दो। एक हिस्सा चाहो तो अपने पास रखो खेती का वरना जाने दो तुम्हारी पेंशन ही पर्याप्त है। हां अपना पुश्तैनी घर अपने ही पास रखो । ये बंटवारा कर दोगी तो तुम सुखी हो जाओगी। लड़कों को ये भी शिक़ायत है कि वे अपनी ज़मीन का अपने मन मुताबिक इस्तेमाल नहीं कर पा रहे।