भदूकड़ा - 10 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भदूकड़ा - 10


उधर जब कुन्ती को ये खबर लगी तो जैसे आग लग गयी उसके तन-बदन में. दुहैजू से ब्याहेंगे हमें? वो भी सुमित्रा के जेठ से!! दो-दो बच्चियों के बाप से! बचपन से लेकर सुमित्रा के जाने तक यहां दोनों के रूप-रंग की तुलना होती रही और अब ज़िन्दगी भर के लिये ससुराल में यही यातना भोगें!!! कुन्ती को लगा, हो न हो, सुमित्रा ने बदला लेने के लिये किया है ये सब. कुन्ती का दिमाग़ वैसे भी बदले जैसी बात ही सोच पाता था. खूब रोई-धोई मां के आगे. अम्मा ने समझाया, बड़के दादा ने समझाया, बड़की जिज्जी ने समझाया कि घर परिवार बहुत अच्छा है. और बड़े तिवारी जी तो एकदम देवता आदमी हैं. रानी बन के रहेगी. सबसे बड़ी बन के जा रही ससुराल में, तो पूरा परिवार इज़्ज़त देगा. अपनी दाल गलती न देख कुन्ती ने भी ठान लिया कि ठीक है सुमित्रा बेटा! जैसी आग तुमने लगाई हमारी ज़िन्दगी में, अब तुम लेना मज़ा उस तपन का.
और इस प्रकार कुन्ती, सुमित्रा की जेठानी बन, तिवारी परिवार में शामिल हो गयी. बस इसीलिये तिवारी जी ने कुन्ती के लिये ’भाभी’ सम्बोधन दिया था और अज्जू ने बड़ी मम्मी कहा था. और इसीलिये वे कभी भी साधिकार आ धमकती थीं, सुमित्रा के घर. सुमित्रा, जो बाद में तिवारी जी के साथ उनके नौकरी वाले स्थान पर चली गयी थी. ऐसे सुमित्रा जी कुन्ती को छोड़ के कभी न जातीं, लेकिन उनके इस जाने में भी तो पेंच है.
’मम्मी, आप कितनी देर से यहां बाल्कनी में बैठीं हैं! आज दिया नहीं जलाना क्या आपको?’ तनु, अज्जू की पत्नी और सुमित्रा जी की बहू ने आ के टोका तो सुमित्रा जी अतीत से बाहर निकलीं. लेकिन कुन्ती की इस तस्वीर ने उन्हें क्या-क्या तो याद दिला दिया था.....! फिर भी उठीं और पूजाघर की ओर चल दीं. आरती जलाई, घंटी उठाई बजाने के लिये..... घंटी... यानी गरुड़!! इसी गरुड़ के चलते तो बबाल हो गया था! ये अज्जू के जन्म के बाद की घटना है.
तब कुन्ती ब्याह के आ गयी थी इस घर में. सुमित्रा की वाहवाही सुन के कान पके जा रहे थे उसके. जिसे देखो उसे, वही सुमित्रा की माला फेर रहा!! और तो और, खुद कुन्ती से ही सुमित्रा की तारीफ़ किये जा रहा! कैसे बर्दाश्त करे कुन्ती!! यहां तक की बड़े दादा ( कुन्ती के पति) भी सुमित्रा की तारीफ़ कर रहे, कुन्ती से!!!! जली-भुनी कुन्ती अब मौक़े की तलाश में जुट गयी कि कैसे इस सुमित्रा को सबके सामने नीचा दिखाया जाये. उधर सुमित्रा जी कुन्ती की चिन्ता में अधमरी हुई जा रही थीं. कुन्ती को तो इतने काम की आदत नहीं...! कुन्ती को दूध रोटी पसन्द है.... और यहां तो बहुओं को दूध मिलता ही नहीं! कुन्ती को तो सबेरे से भूख लगने लगती है और यहां तो घर का पुरुष वर्ग जब खा लेता है, तब नाश्ता मिलता है!! अब चूंकि कुन्ती सबकी बड़ी बन के पहुंची थी सो काम तो उसे नहीं करने पड़ते थे लेकिन नाश्ते का क्या हो? सुमित्रा ने जुगत भिड़ाई.
क्या थी ये जुगत? अगले अंक में जानिए।
(क्रमशः )