पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 12 harshad solanki द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 12

नानू: "ये तस्वीरें तो एक भरम मात्र है. मगर असल बात कुछ और ही है." इतना कहते हुए नानू बड़े रहस्यमय तरीके से हंसा.
नानू की ऐसी भेदभरी हंसी से सभी उत्सुकता से उनकी और देखने लगे.
नानू ने सभी पर एक नजर डाली. फिर "यह लो... अभी भेद खोल देता हूँ." इतना कहते हुए उसने एक हाथ में राजू की तस्वीर ली और दूसरे हाथ में अपनी तस्वीर ली. फिर दोनों तस्वीरों को एक दूसरे से लगा दिया. दोनों तस्वीर एक दुसरे से जुड़ गई. नानू वाली तस्वीर में एक छेद था, उसमे राजू की चाबी मिलाकर घूमाई. एक खटके की आवाज हुई. फिर ऊपर की तस्वीर लटकाने वाली पल्ली को खींचा.
अरे ये क्या!? सब की आंखें अचरज से फ़ैल गई. दोनों तस्वीरें जैसे किसी संदूक के पलड़े हो ऐसे खुल गई थी. वे दोनों तस्वीरों में से अन्य एक एक तस्वीर निकल पड़ी, जो हाथों से बनी हुई थी. उन तस्वीरों में से एक में छोटी सी मगर बीहड़ नुमा पहाड़ी और तालाब था. तो दूसरी तस्वीर में एक गुफा का मुहाना बना हुआ था.
दोनों तस्वीरों को राजू के हाथों में रखते हुए नानू बोला: इन तस्वीरों को धूप में सुखाना. यह सारा राज़ जानती है. खुद ब खुद तुम्हें रास्ता बतलाएगी. इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानता."
राजू ने वह दोनों तस्वीरों को संभालकर बेग में रख लिया.
साम तक राजू की टीम नानू के घर पर ही रही. दोपहर का भोजन भी वहीँ किया. साम को नानू के साथ चर्च गए. जब तक वे अपनी याट पर पहुँचे, तब तक रात्रि की कालिमा ने आसमान पर कब्जा कर लिया था. अब वक्त था सुबह के सूरज का इंतज़ार करने का. सब ने खाना बनाया, खाया और देर रात तक तस्वीरों के बारें में ही अटकलें लगाते रहे. सब के मन में बड़ी खलबली मची हुई थी.
दूसरी सुबह जैसे ही सूरज के दर्शन हुए, राजू ने वे तस्वीरों को धूप में सुखाने के लिए छोड़ दिया. बारी बारी से सब उस तस्वीरों की चोकी कर रहे थे. जैसे जैसे तस्वीरें सूखती जा रही थी, उन पर बना चित्र धुंधला पड़ता जा रहा था. पर साम को सूरज ढलने तक कुछ भेद न खुला, कि आखिर तस्वीर का राज़ क्या है. हाँ, इतना मालूम पड़ गया कि ये तस्वीरें कोई ऐसे रंगों से बनी हुई थी, जो धूप लगने से भांप बनकर उड़ जाते हैं.
अब एक और सुबह का इंतज़ार शुरू हुआ. दूसरे दिन भी वहीं क्रम दोहराया गया. पर इस बार सब की उम्मीद को बल मिला. साम होने तक तस्वीर पर बना चित्र काफी धुंधला पड़ गया था. और उसके पीछे से कोई लिखावट उभरने लगी थी. पर वह लिखावट क्या थी, पढ़ी नहीं जा सकती थी.
तीसरे दिन चित्र करीब करीब साफ़ हो गया. सूरज के ढलने तक चित्र के पीछे की लिखावट साफ़ पढ़ी जा सकती थी. पर फिर एक परेशानी पैदा हो गई. तस्वीर को पढ़ने से पता चला कि लिखावट का आधा हिस्सा ही गायब है. दूसरी तस्वीर का भी यहीं हाल था. पर जब दोनों तस्वीरों को अगल बगल में रखा गया तो दोनों की लिखावट मिलकर एक हो गई. अब सब कुछ साफ़ हो गया था.
लिखावट का मज़मून कुछ यूँ था.
जब तुम उस आग के गोले के सिराने पर पहुँच जाओ, तो रात होने का इंतज़ार करो. वहां तुम्हें एक दो मुंह वाले सर्प के दर्शन होंगे. जैसे ही तुम उस सर्प के सामने वाले मुंह की दक्षिण वाली आँख को छुओगे, तुरंत ही तुम हजारों बरस पीछे लौट जाओगे. वहां तुम्हें कई परबत दिखेंगे. उस पर्वतों में कई खोह हैं. उसमे से एक परबत में बड़ी खोह है, जो एक देवी का निवास है. उस खोहद्वार की चौकी तीन शिलपरिरक्षक कर रहे हैं. जो एक एक उत्तर दक्खन और एक पूरब में है. वहां तुम्हें इकादसी की भेंट होगी. वह श्रीकृष्ण की बानी सुनेंगी, तब वह राज़ खोलेगी. ध्यान रहे, पल पल जान जाने का जोखिम है, बड़ी सावधानी से आगे बढ़े.
मेघनाथजी ने एक और भूलभुलैया खड़ी कर दी थी. राजू की टीम के लिए यह भी एक बड़ी पहेली ही साबित हुई. सोच में पड़ गए सब. सर खुजलाने लगे. यह सर्प की पहेली क्या है? कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
आखिर वहीँ पहुंचकर कुछ तै करेंगे, यह सोचकर आगे बढ़ने का फैसला किया.
नक्शे को पृथ्वी के मानचित्र के साथ मिलाने से अब तो यह पक्का था कि आग के गोले वाला स्थान केरेबियन सागर में स्थित फ्रेंच प्रशासित मार्टिनिक प्रदेश है. और वह आग का गोला माउंट पेले ज्वालामुखी है. जिसने 1902 में फट कर करीब करीब पूरी मानव बस्ती को खाक कर दिया था. किसी को कुछ सोचने समझने का मौका ही नहीं दिया था. सिर्फ दो - चार मिनटों में सारा खेल खत्म कर दिया था.
इस भयंकर दैत्य नुमा ज्वालामुखी के परबत पर जाने की बात सोचकर ही सब के रोंगटे खड़े हो गए. पर फिर हिम्मत इकठ्ठा कर जाने की तैयारी करने लगे.
बिना कोई विशेष अनुभव के उन लोगों को माउंट पेले पर पहुँचने में दो दिन लग गए. जब वे ऊपर पहुँचे तब तक थकान के मारे चूर हो गए थे. इसलिए तीन टुकड़ियां बनाकर बारी बारी से जगने का फैसला किया. रात भर इधर उधर देखते रहे. कुछ मालूम नहीं पड़ रहा था. इस प्रकार दो टुकड़ियों की बारी खत्म हो गई. और तीसरी टुकड़ी की बारी आ गई. दूसरी टुकड़ी में राजू शामिल था, उसने तीसरी टुकड़ी को अब तक जो भी निरीक्षण हुआ था, बता दिया.
तीसरी टुकड़ी में भीमुचाचा थे. उसे जंगल, परबत पहाड़, नदी घाटियों का बड़ा अनुभव था. और उसमे फ़ौजी की चौकसी भी थी. उसकी नज़र चारों और निरीक्षण करने लगी. उसकी पैनी नजर ने दूर क्षितिज पर एक घटना को आकार लेते देख लिया. वह उसी पर दूरबीन गड़ाए बैठे रहा.
दूर आकाश में एक तारों का झुंड था. वे सारे तारे मिलकर एक सर्प की आकृति बना रहे थे. पर यह तो एक मुंह वाले सर्प की ही आकृति थी! दूसरा मुख कहाँ? नहीं था.
भीमुचाचा बहुत देर से निरीक्षण कर रहे थे. उसका जी अब बेचैन होने लगा था. वह अब जरा उठ कर टहलने और फ्रेश होने की सोच रहे थे. तभी वो हुआ, जो उसने सोचा नहीं था! इसके साथ ही भीमुचाचा चिल्ला उठे.
"मिल गया..! मिल गया..!"
उसकी चीख पुकार सुनकर उनकी टुकड़ी के अन्य दो साथी भी उन्हें अचरज से देखने लगे. भीमुचाचा ने उन्हें पास बुलाया और वो दृश्य दिखाया. वे भी खुशी से उछल पड़े.
उन लोगों का शोर सुन, बाकी के लोग भी नींद से जाग उठे. दौड़ कर वे वहां जा पहुँचे. अपनी अपनी दूरबीन निकाली और देखने लगे. दृश्य देखकर वे भी ताज्जुब और खुशी से उछल पड़े.
वहां आकाश में एक सितारे का उदय हुआ था और थोड़ा ऊपर पहुंचकर सर्प नुमा सितारों के झुंड में जा मिला था. सितारे के उदय होते ही सर्प की आकृति का दूसरा मुख बन गया था. उस सितारे ने दूसरे मुंह का स्थान ग्रहण किया था. और उसकी आँखों के स्थान पर जुगनू की रोशनी से रोशन होते दो द्वीप थे.
आखिरकार एक पहेली का हल मिल गया था. यह एक बड़ी सफलता थी. बची हुई रात ख़ुशियाँ मनाते बीती. सारी थकान चली गई थी. अब राजू की टीम को उस दक्षिण वाले द्वीप पर पहुंचना था.
हल्का सा उजाला होते ही वे निकल पड़े. वह दक्षिणी द्वीप डॉमिनिका क्षेत्र में आता था. इस क्षेत्र में बहुत से द्वीपों पर मानव आबादी नहीं है. सायद बहुत से द्वीप तो अब तक इंसानी पहुँच से भी बाहर ही रहे हैं.
राजू की टीम सोच रही थी. जैसे मेघनाथजी ने बताया था:
"जैसे ही हम उस द्वीप पर पहुँचेंगे, वैसे ही हजारों बरस पीछे की दुनियाँ में लौट जाएंगे."
इसका मतलब यह हो सकता है कि वहां अभी भी हजारों बरस पुराने पेड़ पौधे होंगे. और हो सकता है कि वहां हजारों साल पहले पाए जाने वाले पशु प्राणी पंखी भी हो! यानी हम वक्त के गर्क में गोटा लगाने वाले है! मतलब टाइम मशीन! अर्थात हम ऐसे प्राणी पंखियों से भी रूबरू हो सकते हैं, जो बाकी की धरती पर सायद उस अवस्था में न पाए जाते हो! यानी हर पल खतरा भी था! जैसे मेघनाथजी ने सावधान किया था.
वे इस टाइम मशीन की कल्पना से रोमांचित हो उठे. अति कल्पनाशील होते हुए उन्होंने तो डायनासोर से भेंट होने की भी कल्पना कर ली.
पर फिर उनका मन सोच में पड़ा. मेघनाथजी की दूसरी पहेली थी, जिसमे एक देवी का उल्लेख था. उसका क्या मतलब हो सकता है?
क्या वह देवी का मतलब जंगल के किसी शक्तिशाली प्राणी का सूचितार्थ हो सकता है? जो उस खोह में रहता हो? और जिसे हम जंगल की रानी कह सके? फिर वह प्राणी कौन हो सकता है? यह पहेली अनसुलझी ही रही. जिनका उत्तर वहां पहुँचे बिना मिल ही नहीं सकता था.
यहाँ उन्होंने एक अहम फैसला किया. जेसिका ने सब को प्रतिज्ञा करवाई कि अगर कोई अत्यंत जरूरत न पड़े तब तक बिना वजह के कोई भी हिंसा का सहारा नहीं लेंगे. और प्रकृति के तत्वों को भी नुक्सान नहीं पहुँचाएंगे. इस प्रतिज्ञा के साथ वे रवाना हुए.
आखिर वे उस द्वीप के नजदीक पहुँच गए. अभी किनारा काफी अंतर पर था. दूर से देखा, द्वीप घने जंगलों से भरा पड़ा था. लगता था, यह द्वीप मानव पहुँच से दूर ही रहा है. बेट के चारों और पानी ही पानी था. नजदीक में कोई अन्य द्वीप के दर्शन नहीं हो रहे थे. इसका जोड़ी दार उत्तरी द्वीप भी दसियों मील दूर था.
क्रमशः
इस अंजान द्वीप पर उनको क्या मिलेगा? क्या वे हजारो बरस पहले पाए जाने वाले प्राणियों से भेंट कर पायेंगे? जानने के लिए पढ़ते रहे...
अगले हप्ते कहानी जारी रहेगी...