जीने के लिए - 3 Rama Sharma Manavi द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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जीने के लिए - 3

गतांक से आगे.......…....

तृतीय अध्याय
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समय अभी और कुठाराघात करने वाला था।अभी तो आरती के हृदय में धोखे का ख़ंजर आर पार होने वाला था।
एक दिन किसी कार्य वश देवर आगरा गए।कार्य न पूर्ण हो पाने के कारण सोचा कि भाई के यहाँ रुक जाता हूँ।अतः बिना पूर्व सुुुचना के वे विक्रम के घर पहुुुच गए।दरवाजा खटखटाया तो एक अत्यंत रूपवती महिला ने दरवाजा खोला गले में मंगलसूत्र, मांग में सिंंदूर,पैरों में बिछिया उनके विवाहिता होंंने का प्रमाण दे रहे थे।अचकचा कर राहुल ने पूछा कि यह विक्रम जी ही तो घर है न,मैं उनसे मिलना चाहता हूं।
महिला ने पूछा कि आप कौन हैं?वे छः बजे ऑफिस से वापस आएंगे।
कुछ सोचकर राहुल ने स्वयं को विक्रम का मित्र बताया, तो उन्होंने ड्राइंग रूम में बैठकर प्रतीक्षा करने को कहा एवं स्वयं घर के अंदर चली गईं।राहुल वहीं बैठे-बैठे घर का मुुुआयना करने लगा,तीन कमरों का सुुंदर,सुसज्जित एवं सभी आधुनिक सुख सुविधाओं से पूर्ण घर था।सामने शोकेश में विक्रम एवं उस महिला की तसवीर साफ बता रही थी कि विक्रम ने चुपचाप दूसरा विवाह कर लिया है।अब तो विक्रम की बेरूखी का कारण वह अच्छी तरह समझ चुका था।मन ही मन गुस्से से उबल रहा था क्योंकि वह आरती का बेहद सम्मान करता था।
तभी एक नोकरानी चाय-पानी लेकर आई,उसके साथ एक परी सी मासूम एवं प्यारी 5-6 वर्ष की बालिका नेे भी प्रवेश किया।राहुुल ने बच्ची को बुलाया,पास बिठाकर नाम पूूूछते हुए सामने की तस्वीरों को दिखाकर पूूूछा कि क्या वे आपके मम्मी पापा हैंं।बच्ची नेे मुस्कुराते हुए कहा कि मेंंरा नाम टीना हैै और वे मेरे मम्मी पापा ही हैं।फिर साथ ही बताया कि मेरी एक छोटी सी बहन भी है जो अभी केवल मम्मी की गोद में ही रहती है। मम्मी कहती है कि जब वह थोड़ी बड़ी हो जाएगी तो मेरे साथ खेलेगी।बच्चे तो मासूम, छल -कपट से दूर होते हैं, उन्हें तो सिर्फ सच कहना आता है।
इंतजार करते करते दो घंटे बीत चुके थे। आज समय कुछ अधिक ही धीमी गति से व्ययती होता हुआ प्रतीत हो रहा था। खैर सात बजे तक विक्रम घर आए।राहुल को सामने देखकर विक्रम के माथे पर पसीने की बूंदे चमक उठीं।वे समझ गए कि आज वर्षोंं से छिपाए राज का पर्दा फास हो गया है।वेे चुपचाप जाकर राहुुुल के पास जाकर बैठ गए।राहुल ने जलते शब्दों में कहा कि क्या कैफ़ियत देंगे आप अपने इस कृत्य का।
विक्रम के पास कहने सुनने को कुछ था भी नहीं, बस इतना बताया कि जहां हम किराए पर रहते थे, वहींं पड़ोस मेंं ऋतु रहती थी ।उसके सौंदर्य से अभिभूत होकर मैं उससेे प्यार करने लगा।आरती से मैं मन से कभी जुड़ ही नहीं पाया था।दो- तीन वर्ष के प्रेम प्रकरण के बाद हमने विवाह कर लिया।
राहुुल ने पूूूछा कि क्या ऋतु को आपके विवाहित होने का पता है?विक्रम ने बताया कि नहीं उसे नहींं ज्ञात है।। मैंने उससे कह रखा है कि परिवार वाले हमारे विवाह के लिए सहमत नहीं थे जिससे मुुुझसे सम्बन्ध समाप्त कर दिया है। जब गाजियाबाद जाता था तो ऑफिशियल टूर बता कर जाता था।
एक बार तो राहुल ने सोचा कि ऋतु के सामने विक्रम की पोल खोल दे, किन्तु पहले गाजियाबाद जाकर आरती एवं अपने माता पिता से बात करना उचित समझा।।विक्रम ने उसे रात मेंं रोकना चाहा परन्तु वह बिना कुछ कहे वापस चला गया।ऋतु ने विक्रम से उसकी वापसी का कारण पूछा तो बिना राहुल का परिचय दिए कह दिया कि कुछ आवश्यक कार्य आ जाने के कारण वह चला गया।
राहुल के बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक अकेले आगमन से वह भी रात्रि में सभी चििंतित हो गए।फिलहाल सभी को यह कहकर राहुल ने आश्वस्त किया कि आगरा से दिल्ली लौटते समय आप सबसे मिलने का बेहद मन करने के कारण मैं बीच में रुक गया।राहुुुल का मन बेहद व्यथित था, वह आरती का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।मना करने के बावजूद आरती ने खाना बनाकर खिलाया,फिर दो दिन रुकने की बात जानकर सभी अपने कमरों में आराम करने चलेे गए।
सुबह बच्चों दीपक एवं ज्योति को अपने प्रिय चाचू के आने की सूचना मिलते ही उनके फरमाइशों की लिस्ट तैयार होने लगी। चाचू भी बच्चों को लेकर बाजार निकल गए।खिलौने, चोकलेट, किताबें, बैग उनके मनपसंद ड्रेस दिलाकर पुुुरे दिन घूमफिर कर वापस आए। वैसे यह कोई नई बात नहीं ,राहुल 6-7 महीने में जब भी आता चाहे अकेले या अपने परिवार के साथ तो भाभी एवं मां- पिता जी के लिए तो वहीं से कपड़े लेकर आता और बच्चों को यहीं से उनकी वांछित चीजेे दिलवाता।
दूसरे दिन बच्चों के स्कूल जानेे के बाद नाश्ते के उपरांत उसने गम्भीर स्वर में तीनों लोगो को बिठाकर बिना किसी भूमिका के आगरा का सारा प्रकरण कह सुनाया।माता पिता तो सदमें में थे विक्रम का कुकृत्य सुनकर, परन्तु आरती पर तो मानो वज्रपात ही हो गया।अवहेलना का दर्द तो उसनेे बर्दाश्त करना सिख लिया था किंतु उसके पत्नीत्व की अवमानना का दंश तो उसके पूरे अस्तित्व को संज्ञाशुुुन्य कर गया था।वह चीख चीख कर विलाप करना चाहती थी, परन्तु शब्दों ने साथ छोड़ दिया था, आंसू नेत्रों में सुख चुके थे।आज उम्मीद का आखिरी चिराग भी बुझ गया था।पूरा अस्तित्व अथाह अंधकार के सागर में डूब चुका था।
सास-ससुर-देवर सभी खामोश थे।उनके पास आरती को सांत्वना देने के लिए शब्द थे भी नहीं।रूप की थोड़ी कमी को छोड़कर आरती सर्वगुण सम्पन्न थी।उसने बहू, भाभी, मां इत्यादि हर रिश्ते के दायित्वों को पूरी शिद्दत से पूर्ण किया था।विक्रम की बेरुखी के बावजूद उसने कभी विशेष शिकवा शिकायत भी नहीं की थी।देवर-नन्द को सगे भाई-बहन से ज्यादा स्नेह-सम्मान दिया था।खैर, पिता के आदेश पर विक्रम को तुरंत तलब किया गया।शाम होते होते विक्रम अपनी कार से गाजियाबाद आ गए।
माता-पिता एवं राहुल ने खूब खरी खोटी सुनाई।आरती के शब्दकोश तो रिक्त से हो गए थे।मन का हाहाकार उसके मस्तिष्क को जड़ कर चुका था।राहुल ने उसे झिंझोड़कर जागृत किया कि भाभी आप कुछ तो कहो।आप जो भी फैसला लेंगी हम आपके साथ हैं।यदि आप तलाक लेना चाहें तो हम अभी कार्यवाही प्रारंभ कर देते हैं।
उसने रोते हुए कहा कि कहने सुनने को शेष बचा क्या है।आज रात मैं सोचकर कल बताती हूं एवं कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर बिस्तर पर कटे पेड़ की भांति गिर पड़ी।जीभर रो लेने के उपरांत पिछले जीवन पर विचार करते हुए आगे के लिए सोचना प्रारम्भ किया, बच्चों का भविष्य सामने मुँह बाए खड़ा था
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क्रमशः.....