यूँ ही राह चलते चलते - 22 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 22

यूँ ही राह चलते चलते

-22-

महिम ने सुमित से पूछा ’’ मैं ने सुना है कि यहाँ के गर्म झरने स्पा के लिये, ढलान विन्टर खेलों के लिये और मानव निर्मित कैनाल पानी के खेलों के लिये विश्व प्रसिद्ध है और जर्मनी में काफी लोकप्रिय भी है।‘‘

मान्या बोली ’’ आ माई गाड !पानी में खेलना तो मुझे बचपन से बहुत पसंद है। ‘‘

पर सुमित ने उनकी आशाओं पर पानी फेरते हुए कहा ’’ हमारे पास इतना समय नहीं है कि उसका आनन्द उठा सकें ‘

’’ काश हम पानी में खेल पाते तो कितना मजा आता‘‘ अर्चिता ने कहा। भीगते हुये यशील के साथ पानी का आनन्द उठाने की रोमांटिक कल्पना ने ही उसको उत्तेजित कर दिया था।

‘‘चलो एक दिन यहाँ रुक जाते हैं’’ यशील ने अर्चिता के कान के पास मुँह ले जा कर धीरे से कहा।

‘‘ हुँ जब मैं कह रही थी तब तो माने नहीं अब मैं मम्मी पापा को क्यों छोड़ दूँ ’’ अर्चिता ने यशील के इस प्रस्ताव पर मन ही मन पुलकित होते हुए इठला कर कहा।

‘‘ वो तो एक न एक दिन छोड़ना ही है ’’ यशील ने अर्थ पूर्ण दृष्टि से उसे देखते हुए शरारत से कहा। अर्चिता के गालों की रंगत गुलाब के पुष्प सी खिल उठी।

यशील अर्चिता के गुलाबी गालों की रंगत को निहार रहा था और उस रंग में स्वयं को रँगा हुआ पा रहा था तभी उसे वान्या और संकेत के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी उसका गुलाबी रंग में रँगा मन अचानक बदरंग हो गया। उसके चेहरे का भाव अचानक ही बदल गया।

उसका यह बदलाव अर्चिता से छिपा न रहा, उसने पूछा ‘‘ क्या हुआ?’’

यशील ने स्वयं को संयत करते हुए कहा ‘‘ कुछ नहीं। ’’

पर अर्चिता को यशील का अभी भी वान्या को संकेत के साथ देख कर अव्यवस्थित हो जाना कहीं चुभ गया ।उसने कहा ‘‘यशील वान्या और संकेत बचपन के दोस्त है, उनके घर वाले भी उनके भावी जीवनसाथी मान चुके हैं ।’’

अर्चिता का यह कहना यशील को अच्छा नही लगा उसने थोड़े रुक्ष स्वर में कहा ‘‘ मुझे पता है तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है। ’’ इसके बाद उसका मूड उखड़ सा गया और वह अर्चिता को वहीं छोड़ कर चंदन के साथ कोच में बैठने चल दिया।

अर्चिता के लिये उसका यह व्यवहार समझ से परे था एक ओर वह उसके साथ इतना समीप आता जा रहा है, उसके हाव भाव, उसकी रोमांटिक बातें उसके प्यार का विश्वास दिन पर दिन दृढ़ कर रही हैं वहीं दूसरी ओर जब भी वान्या उसके समक्ष आती है वह विचलित हो जाता है, तो क्या उसके मन में अभी भी वान्या बसी है और उसके और वान्या के मध्य संकेत के आ जाने से ही वह उसकी ओर उन्मुख है। फिर उसने अपने मन को समझाया कि कारण चाहे जो भी हो यशील उसके पास आ गया यही क्या कम है और उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया।

सब कोच में बैठ कर आगे चल दिये। सुमित ने फिर से माइक थामते हुये वहाँ के बारे में बताते हुए कहा ’’यूरोप में गाँव और शहरों का अनुपात यहाँ के मुकाबले बहुत कम है। उदाहरणार्थ बेल्जियम में 97 प्रतिशत शहर हैं तो जर्मनी में मात्र 15 प्रतिशत क्योंकि वहाँ के गाँव में शहर जैसी सुविधाएं । 60 प्रतिशत लोग यहाँ उद्योगों से जुड़े हैं ।‘‘

‘‘आटोमोबाइल पिस्टल, आदि अनेक उद्योग यहाँ पर मुख्य रूप से हैं’’ सचिन ने बताया ।

इस पर ऋषभ ने कहा ’’ मर्सिडीज, वाल्स वैगन, बी एम डब्ल्यू, आडी या पाश डाल्मिया आदि यहीं की हैं, यहाँ की बियर भी प्रसिद्ध है । ‘‘

रजत बोले ’’ हाई वे सबसे पहले यहीं बने थे और वो हिटलर का आइडिया था । ‘‘

सुमित ने कहा ‘‘ये तो कहना पड़ेगा कि मैं इतने दिनों से गाइड हूं पर इतना ज्ञान और रुचि किसी ग्रुप में नहीं था।’’

रास्ते में सुमित और भी बहुत कुछ बता रहे थे। बड़े लोग तो सुमित की बातों में रूचि ले रहे थे पर युवा पार्टी इन भाषणों से काफी बोर हो चुकी थी। वो लोग कुछ मस्ती के मूड में थें। चुलबुली निमिषा ने कहा ‘‘सुमित हम लोग अंत्याक्षरी खेलना चाहते हैं। ’’

मीना ने कहा ‘‘नहीं नहीं अंत्याक्षरी तो कभी भी खेल सकते हैं पर जर्मनी के बारे में तो हम एक बार ही जान पाएंगें ’’ निमिषा ने भिनभिनाते हुए कहा।

‘‘अरे जर्मनी के बारे में जानना है तो किताबे पढ़ों इंटरनेट पर देख लो, यहाँ लेक्चर सुनने की क्या जरूरत है।’’

अर्चिता ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुये कहा’’ और क्या हम यहाँ घूमने आयें हैं कि पढ़ाई करने ।‘‘

माना वान्या और अर्चिता की राहें बदल गयी थी पर वान्या और अर्चिता अभी भी एक दूसरे को प्रतिद्वन्दी ही मानती थीं अर्चिता को यह भय सताता रहता कि कहीं वान्या का मन न बदल जाए तो उधर वान्या को यशील और अर्चिता के पास आने में अपनी हार अनुभव होती थी जो उसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं थी।इसीलिये वान्या को तो अर्चिता का विरोध करना ही था वह तुरंत बोली ’’ पर किसी जगह घूमने के साथ साथ उस जगह के बारे में डीप नालेज भी होनी चाहिये नहीं तो पिकनिक ही करनी है तो इतनी दूर आने की क्या जरूरत है।’’

इस बहस से सुमित की बात में बाधा पड़ गई थी जिससे उसका मूड खराब हो गया । उसने कहा ‘‘ठीक है आप लोग जो मन हो करिये में बैठ जाता हूँ। ’’

कोच में दो गुट बन गये थे एक अंत्याक्षरी खेलना चाहता था तो दूसरा सुमित की बात सुनना चाहता था रामचन्द्रन ने कहा ‘‘सुमित आप अपनी बात जारी रखिये हम बच्चे नहीं हैं कि अंत्याक्षरी खेलें।’’

निमिषा ने कहा ‘‘आपका मन नहीं होगा पर हमें नहीं सुनना बोरिंग लेक्चर ।’’

अन्त में रजत ने निर्णय किया ‘‘ठीक है थोड़ी देर अंत्याक्षरी हो जाये फिर हम सब सुमित की बात सुनेंगे।’’

बस फिर क्या था, युवा पार्टी ने ताली बजा कर इस निर्णय का स्वागत किया। कोच के एक ओर बैठे लोग एक पार्टी में थे और दूसरी ओर के लोग विरोधी पार्टी में।

यशील और वान्या कोच के बांई ओर वाली पंक्ति में थे अतः स्वाभविक रूप से एक दल में थे और अर्चिता दूसरे दल में। यह देख कर अर्चिता का मूड खराब हो गया। वह तुनक कर बोली ‘‘मुझे नहीं खेलना है।’’

अनुभा उसके न खेलने का कारण समझ रही थी, उसे न जाने क्यों अर्चिता से एक लगाव सा हो गया था इसीलिये उसने कहा ’‘ अर्चिता मुझे तो अंत्याक्षरी में विशेष रूचि नहीं है या यह कह लो कि मै बाहर के दृश्यों का आनन्द उठाना चाहूँगी। इसलिये तुम इधर मेरी सीट पर आ जाओ और मैं तुम्हारी सीट पर खिड़की के पास बैठ जाऊँ । ’’

अन्धा क्या चाहे दो आँखें अर्चिता ने कहा ‘‘थैंक्स आंटी और सीट बदल कर वह यशील वाले दल में शामिल हो गयी और बोली ‘‘हाँ तो शुरू करो अंत्याक्षरी ले कर हरि का नाम ।’’

वान्या ने कहा ‘‘पर तुम तो कह रही थी कि तुम नहीं खेलोगी ।’’

‘‘हाँ हाँ तुम तो ये चाहोगी ही पर मैं खेलूँगी और देखना अपने ग्रुप को जिताऊँगी भी ’’ अर्चिता ने घोषणा की। संकेत को अंत्याक्षरी में विशेष रुचि नहीं थी उसने अनुभव किया कि वान्या भी खेलना नहीं चाहती अतः उसने कहा ‘‘ वान्या आगे आओ हम लोग बाहर के नजारों को इन्जाय करें। ’’

पर इस समय न जाने क्यों वान्या का मन आगे जाने का नहीं था, उसने कहा ‘‘ संकेत मैं यहीं ठीक हूँ ।’’

जब वान्या आगे नहीं आयी तो हार कर संकेत ही पीछे आ गया और वान्या के पास ही बैठ गया।

बाँये दल से मीना ने गाया ‘मीत न मिला रे मन का.......

तो दायें दल से चंदन ने गाया ‘कब तक हुजूर रूठे रहोगे लेके गुस्से में प्यार.....

बाँये दल से वान्या ने गाया ‘रहें न रहें हम महका करेंगे ......

संकेत ने गहरी साँस लेते हुए कहा ‘‘ और हम उस महक में खेाए रहेंगे ।’’

वान्या ने कहा ‘‘ ज्यादा खोने की जरूरत नहीं है मुझे गाने बता कर हेल्प करो, तुम तो जानते ही हो मुझे गाने वाने में कोई खास इन्टरेस्ट नहीं है। ’’

‘‘ मैं तो पहले ही कह रहा था कि चलो पीछे बैठे ’’संकेत ने कहा। पर वान्या को उसका यह सुझाव भाया नहीं।

काफी देर तक इसी प्रकार अत्याक्षरी चलती रही ................ बांये दल पर ‘ह’ अक्षर आया सब सोचने लगे तभी अर्चिता ने यशील को देखते हुये गाया ‘हम तेरे प्यार में सारा आलम खेा बैठे।......

तभी मीना ने कहा ‘‘बस बहुत हो गयी अंत्याक्षरी अब हमें सुमित से यहाँ के बारे में भी कुछ जान लेना चाहिये ।‘‘

पर सुमित का कुछ बताने का मूड उखड़ चुका था अतः वह बैठा ही रहा।

रामचन्द्रन ने भी आग्रह किया पर सुमित बोले ’’ अगर आप लोगों को मनोरंजन का मन है तो वो ही सही, मेरा लक्ष्य तो आप को संतुष्ट रखना है।‘‘..............

क्रमशः----------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com