तलाश... एक औरत के अस्तित्व की - 6 RICHA AGARWAL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

तलाश... एक औरत के अस्तित्व की - 6

23 साल की सुहानी के मन में अपनी शादी को लेकर वही सपने थे जो हर लड़की अपने भविष्य के लिए देखा करती है । "एक राजकुमार आएगा और उसे ब्याह के ले जाएगा । वो अपना नया संसार सजायेगी, सास-ससुर की अपने माँ-बाबा की तरह सेवा करेगी ।रोज़ सारा दिन, काम पर गए पति का इंतज़ार करेगी और जब वो थककर वापस आएगा तो अपने हाथों से गरम-गरम खाना परोसेगी।" ऐसे तमाम सपने उसने भी देखे थे । पर अभी, न जाने क्यों, अपनी शादी की बात सुनकर वह खुश नहीं थी । उसे लगा जैसे सब कुछ खत्म हो जाएगा । जहाँ एक तरफ वो MBA कर, अपने पैरों पर खड़े होने का सपना देख रही थी, वहीं घर पर उसकी शादी की बातें तेज़ी से चल रहीं थीं ।
आज MA का रिजल्ट आया था । जैसे ही रिजल्ट लेकर सुहानी घर पहुंची, माँ ने बताया कि लड़के वाले उसे देखने आ रहे हैं । मानो सुहानी के पैरों तले जमीन ही खिसक गई थी । वो भारी मन से तैयार होने चली तो गयी थी पर इस सब के लिए खुद को तैयार महसूस नहीं कर रही थी। माँ-बाबा की कोई बात आज तक टाली नहीं थी उसने, फिर उसकी जिंदगी का ये फैसला लेने का हक़ भी तो उन्ही का था ।सुहानी ने इसे ही अपनी नियति मान लेने का फैसला मन-ही-मन कर लिया था ।
टेबल पर नाश्ते की प्लेट्स रखते हुए उसने संदीप को कनखियों से पहली बार देखा था । मध्यम कद, गढ़ा हुआ शरीर, सांवले रंग वाला संदीप अपनी माँ के बगल में बैठा था । सुहानी को भी संदीप की माँ ने अपने पास ही बिठा लिया था । बैगनी साड़ी पहने सुहानी बहुत सुंदर व निश्चल लग रही थी । "बेटा कहाँ तक पढ़ाई की है? खाना बनाना आता है? सिलाई कढ़ाई कर लेती हो क्या?" ऐसे ही सवाल जो हर लड़की से पूछे जाते हैं, उसके रिश्ते के वक़्त, सुहानी से भी पूछे जाने लगे। वो धीमी आवाज़ में, सभी सवालों का जवाब दिए जा रही थी। अचानक संदीप की माँ उसके हाथ चूमते हुए बोलीं, " कितनी सुंदर ओर सुशील है आपकी बेटी। बहुत किस्मत वालों को ही ऐसी बहु नसीब होती है ।" सुनकर उसे लगा सास के रूप में उसे दूसरी माँ ही मिलने जा रहीं हैं ।
"आईये बहनजी आप लोगों को हमारा घर दिख लाते हैं" सुहानी की माँ ने संदीप की माँ को बोला तब सुहानी को होश आया। चलो कम से कम अब वो संदीप से बात कर सकती है। जान सकती है उसके बारे में। जिसके साथ वो अपनी आगे पूरी ज़िन्दगी बिताने वाली है, पता तो चले वो लड़का है कैसा?? उसका व्यबहार कैसा है। उसके साथ वो अपनी सारी ज़िन्दगी संतोषजनक बिता पाएगी भी या नहीं।
सबके जाने के बाद दोनों की बातें शुरू हुईं। कुछ सवाल उसने पूछे, कुछ जवाब भी दिए। लड़का न सिगरेट पिता है न शराब, न गुटखा, सुपारी । ऐसे कोई ऐब नहीं हैं संदीप में , ये जानकर सुहानी को काफी अच्छा लगा। अभी वो बातें कर ही रहे थे, कि अचानक संदीप ने पूछा.."हमारे घर का माहौल गांव का सा है।सारा दिन लंबा सा पल्लू लेकर रहना होगा। गाय, गोबर के कंडे पाथने पड़ेंगे। कर तो लोगे न।" ये सवाल कुछ हँसी उड़ाने वाले लहज़े में पूछा गया था। जिसे सुनकर सुहानी थोड़ी असहज ज़रूर हो गयी थी।
भले ही 6 भाई बहनों वाले परिवार से थी वो,पर आजतक काफी नाज़ों से पली थी। नौकर, पानी भी बिस्तर पर देने आते थे। फिर इस माहौल में रहने वाली सुहानी के लिए संदीप का वो सवाल थोड़ा अटपटा तो था ही। तभी सब लोग वापस आ गए। संदीप से पूछने पर, कि सुहानी उसे कैसी लगी उसने सिर हिला दिया था, वहीं सुहानी बस चुप बैठी रही।
अज़ीब सी बैचनी होने लगी थी उसे। न जाने क्यों संदीप का व्यवहार उसे अटपटा लगा था। लग रहा था जैसे कुछ गलत होने जा रहा है। वो और संदीप उसे बहुत अलग लगे थे, दरअसल काफी विपरीत।