तानाबाना - 7 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तानाबाना - 7

7

दिन हफ्तों में बदले, हफ्ते महीनों में और महीने सालों में । सर्दी जाती तो गर्मी आ जाती और गर्मी जाती तो सर्दी आ जाती । मौसम बदलते रहे । नहीं बदला तो मंगला का पछतावा और उसके कठोर नियम । उसका जमीन पर सोना । शाम को एक समय भोजन करना । चौबीस की चौबीस एकादशी का निर्जल व्रत , हर एकादशी पर नाई सरमा को बुलाकर मुंडन करवाना । सब बदस्तूर जारी रहे । सारी जिंदगी उसने नया कपङा नहीं पहना । सारे जेवर पोटली बाँधकर धर दिये । हाथ,नाक, कान सब अलंकार विहीन । लोगों में पहले चर्चा होती थी कुंदन की पागलों वाली आशिकी की, फिर मंगला की बेवकूफी की, अब चर्चा होती उसके सत की, तप की, तेज की । मंगला सबकी श्रद्धेय हो गयी ।

वक्त अपनी रफ्तार से चलता रहा । धीरे धीरे बच्चियाँ बङी हो रही थी । जमना बारह साल की हुई तो मंगला ने भाभी से कहा – भाभी लङकी बङी हो रही है, इसके लिए लङका ढूँढ कर इसके हाथ पीले कर दो । यह काम भाई और तुम्हे ही करना है ।

भाभी ने अगले ही दिन अपने चाचा के लङके को ला मंगला के सामने खङा कर दिया । ये लङका सुदर्शन युवक था । इसके तीन भाई थे । यह सब भाइयों में सबसे बङा था । माँ- बाप की कुछ समय पहले हैजा से मौत हो चुकी थी । मंगला को क्या एतराज होता । उसने हाँ कर दी । मंदिर में ही सादे समारोह में चंद्रगिरि और जमना का विवाह संपन्न हो गया । अगले दिन सुबह मंगला दामाद और बेटी को माथा टिकाने मंदिर में ले गयी । मंदिर में दोनों से विधिवत माता की पूजा कराई । परिक्रमा में अचानक एक जगह वे रुकी । माता की मूर्ति के पीछे की दीवार को थपकी दे खटखटाया तो लगा कि माता ने स्वयं आकर दरवाजा खोल दिया हो । गर्भगृह के पीछे एक दरवाजा प्रकट हो खुल गया था । मंगला बेटी और दामाद को वही हैरान हुआ छोङकर नीचे सीढियाँ उतर गयी और पाँच मिनट बाद ही एक मखमली थैली लिए प्रकट हुई ।

लाल शनील के कपङे से सिली गोटा जङी वह थैली उसने चंद्र को पकङा दी – लो बेटा , यह करीब तीस तोले सोने के गहने हैं जो कुछ मेरी माँ ने डेरे में छोङते समय पहनाए थे और कुछ इसके पिता के खरीदकर दिये हुए थे । इसमें कुछ चाँदी के रुपए भी हैं । और मंदिर के पीछे वाली जमीन के कागज भी । आज से तुम इन्हें संभाल लो । मेरे तो किसी काम के नहीं हैं । सुरसती की जिम्मेदारी आज से तुम्हारी है और मेरी भी क्योंकि तुम्ही आज से मेरे बेटे हो । दो रोटी दे दिया करना । मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।

अगले दिन से ही चंद्र ने खेत, खलिहान, घर सबकी देखभाल शुरु कर दी । हफ्ता बीतते बीतते उसके दोनों भाई भी आ गये तो भरा पूरा परिवार बन गया । चंद्र के दोनों भाई खेत में काम करते, दूध के लिए एक गाय पाल ली गयी जिसके चारे सानी का पूरा काम छोटे भाई मुंशी ने संम्हाला। बेबे मंगला पहले ही सारे गाँव की बेबे थी, इन तीनों ने बेबे ही कहना शुरु कर दिया । इस तरह तीस साल की मंगला सास बन गयी और अगले ही साल एक गुङिया जैसी बेटी की नानी ।

जमना लाल, गुलाबी जोङा पहने , चूङे - गहनों से सजी आँगन में छमछम करती अंदर बाहर जाती तो माँ निहाल हो हो जाती । नातिन की तोतली बातें अलग मन खुश कर देती । अगले आठ सालों में सात बच्चे और आँगन में खेलने लगे । कुल मिला कर तीन बेटियाँ और चार बेटे । एक से बढ कर एक सुंदर, स्वस्थ बच्चे । नाजुक सी जमना से ये बच्चे संभलने में ही न आते तो वह माँ के हवाले कर आती । बेबे उन्हें ठाकुर मानकर नहलाती, धुलाती, खिलाती पिलाती । उनके तरह तरह के खेल तमाशे देखा करती ।

इस बीच सुरसती सोलह पार कर गयी थी । बहन और जीजा अपनी गृहस्थी में निश्चिंत सब भूले बैठे थे । आखिर एक दिन बेबे ने मौका देखकर बेटी और दामाद को याद दिलाया कि सुरसती की ब्याह की उम्र निकल गयी है । अगर इस साल शादी न हुई तो वर नहीं मिलेगा । चंद्र ने तुरंत पंडित को बुलाकर अपने मंझले भाई से सरस्वती की भांवर पङवा दी । न हींग लगी न फिटकरी । पंडित की पाँच रुपए की दक्षिणा में शादी का सारा काम निपट गया ।

अगले दिन जमना ने माँ से कहा – सरसती के हिस्से के गहने निकाल दो माँ । मंगला हक्की बक्की रह गयी । उसने समझाया – बेटी मेरे पास जो था, तुम दोनों बहनों का ही था । मैं अपने पास रख के क्या करती ? मेरे किस काम का । मेरा पहनना ओढना तो तेरा बाप अपने साथ ही ले गया । मैने तो सारा गहना गट्टा,पैसे जिस दिन तेरी शादी हुई, उसी दिन मंदिर में सब चंद्र के हाथ में थमा दिया ।

चंद्र और जमना ने उस मिली सम्पत्ति में से नये जोङे को कुछ भी देने से मना कर दिया । मंगला सिर पकङ कर बैठ गयी । ऐसा भी हो सकता है, यह तो उसने ख्वाब में भी नहीं सोचा था । पर जो होना था, वह तो हो चुका था । उसके पास कुंदन की आखिरी निशानी उसके अंतिम समय में कानों की पहनी नत्तियाँ और वक्त बेवक्त के लिए अपनी एक जोङा बालियाँ रखी थी, वही उसने डबडबायी आँखें ले छोटी बेटी को सौंप दी ।

एक गली छोङके अगली गली में लाला भागमल रहते थे जिनके बेटे की कुछ महीने पहले मौत हो गयी थी । मंगला उनके घर गयी और उनकी जमीन आधी बटाई पर प्रीतम को दिला दी । भागमल जङी बूटियों के जानकार थे । अपने खेत में फसल के साथ साथ जङी बूटियाँ भी उगाया करते थे । उन्हें खरल कर तरह तरह की दवाइयाँ, अरक आदि बनाते रहते थे । अब यह ज्ञान भी प्रीतम को मिलने लगा ।

यह गृहस्थी भी चल निकली । बच्चे मौसी और चाचा से हिले हुए थे, वे अक्सर मौसी से मिलने चले आते और वापिस जाने का नाम ही न लेते । इस बीच सरस्वती के एक बेटी और चार बेटे जन्मे । मंगला की उजाङ जिन्दगी में खुशियों की फसल लहलहाने लगी । हर तरह का सुकून और चैन था । बहुत तो नहीं पर गुजारा बहुत अच्छे से हो रहा था ।

मंगला का बैरागी मन पहले ही बैरागी था, अब पूरी तरह निश्चिंत हो पाठ पूजा में रम गया । पहले से लिए नियम और भी अधिक कठोरता से पालन किए जाने लगे । .