तानाबाना - 8 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तानाबाना - 8

8

आप भी सोच रहे होंगे, क्या कर रही हूँ मैं । देने चली थी अपना परिचय और ले बैठी कहानियाँ कुछ इधर की, कुछ उधर की । पहले दुरगी और उसकी देवरानियों की कहानी ले बैठी, अब मंगला और उसके तमाम खानदान की कहानियाँ । सही हो जी आप बिल्कुल सही । एक परसैंट भी गलत नहीं । पर क्या है न, जब कपङा खरीदने के लिए बाजार जाते है न, बिल्कुल प्योर वाली सिलक का कपङा तो सबसे पहले उसको आँखों से परखते हैं, फिर छूकर देखते हैं । फिर धीरे से उसके सिरे के ताने बाने को, तब दुकानवाला सिरे के एक दो धागे दियासलाई से जलाकर दिखाता है । देखो इस रेशे से बुने गये हैं यह तानेपेटे । इनकी मजबूती देखो । तब बात करो जी कपङे की खूबसूरती की । तो मैं भी इस कोशिश में लगी हूँ कि जब मैं अपनी कहानी पर आऊँ तो भीतर के इसी तानेबाने को आप सराह सकें । कह सके की ताना बाना लाजवाब है तो चादर तो मुलायम होनी ही थी । चदरिया झीनी बीनी ।

तो आगे का हाल सुनिए । मंगला ने अपनी दोनों बेटियों की गृहस्थी अच्छे से बसा दी । खुद अपने कुंदन की याद को सीने से लगाए भगती में मगन दिन काट रही थी कि देश की आजादी की बातें चल पङी । साथ ही पाकिस्तान बनने की जिसे आम लोग मुसलिस्तान कहते । साथ ही शुरु हुई लङकियों को हिफाजत से ब्याह कर अपने घर भेजने की बातें ।

औरतों ने गलियों के चौक के किनारे तंदूर तपा लिए । सांझे चूल्हे में हर रोज दोनों टाईम पूरे मौहल्ले की रोटियां बनती । औरतें अपने अपने घरों से इंधन ले आती । गुथा हुआ आटा लाती और छाबा पोना ( बांस की टेकरी जिसमें रोटी रखी जाती है ) । तंदूर तप जाता तो बारी बारी से हर घर की रोटियाँ सिकती जाती । इस बीच सब औरतें बातें कर अपना मन हल्का करती । सुबह शाम तंदूर पर रौनक लगी रहती । पहले औरतें जब इकट्ठा होती थी तो हीर, टप्पे माहिया गातीं थी, लंबी हेक वाले गीत फिजां में गूँजते रहते । अब गीत कहीं खो गये थे । बात लङकियों से शुरु होकर लङकियों पर खत्म होती ।

जमना की बेटी लज्जा के चौदह साल का होते ही उसकी शादी कर दी जा चुकी थी । यह लङकी हर काम में माहिर थी । किसी को कुछ करते देखकर आती तो घर आकर हूबहू वही बनाकर सब को हैरान कर देती । फटकना, पीसना से लेकर पकाना, कातने बुनने से लेकर काढने सिलने, लीपने पोतने से लेकर चिनाई करने तक, कोई काम ऐसा नहीं था जो पङोस की किसी औरत ने किया हो और लज्जा को न आया हो । एक बार किसी को खजूर के पत्तों से टोकरे बनाते देख लिया तो घर में अलग अलग आकार के टोकरे बना कर धर दिए । ऐसी गुणी दुल्हन पाकर सियालकोटिए बहुत खुश थे । ऊपर से शादी के दो साल बाद ही उसके बेटा हुआ तो पूरे परिवार में खुशी की लहर दौङ गयी ।

हवा में जहर घुलना शुरु हुआ तो लज्जा अपने पति और बेटे के साथ मायके चली आई । अभी घर में तीन बेटियां कुआँरी बैठी थी । एक संती तो अभी सात महीने की थी , और ज्ञानवती पाँच साल की । इनकी शादी की बात तो चल नहीं सकती थी पर बारह साल की धर्मवती की शादी जल्द से जल्द करने की चिंता सबको थी । ऐसे में भट्ट बाबा ने पाकपटनिया पटवारी के अट्ठारह साल के बेटे का जिक्र किया तो परिवार में सब खुशी से उछल पङे । भट्टबाबा को आग्रह कर उस रात रोक लिया गया । अगले दिन प्रीतम गिरि और चंद्रगिरि भट्ट बाबा को साथ ले पाकपटन गये और चाँदी का रुपया, नारियल दे संबंध पक्का कर आए । विवाह दसहरे के बाद होना था । साहा दिन बेशक नहीं निकला हे पर शादी की तैयारियाँ शुरु हो गयी । खेस, दरियाँ बुने जाने लगे । चादरों पर फूल बूटे काढे जाने लगे ।