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समय की यात्रा

यह कहानी है उस मंजीरी की जिसने समय पटल पर बहुत कुछ बातें बहुत कुछ खो दिया। तो आइए मिलते हैं इस मंजीरी से ।

हेलो मंजीरी !मैं सरल बोल रहा हूं ,सेवा संस्थान की तरफ से। आज साउथ से एक बंदा आ रहा है उसने मुझसे कांटेक्ट किया था बाणेश्वरी धाम में सफाई के लिए लोगों को जागृत कर रहा है और वहां की दीवारों पर कुछ पेंटिंग बनाकर वहां के बच्चों को साफ सफाई की अहमियत बताएगा तो क्या तुम चलोगी ?
हां! बिल्कुल चलूंगी मैं ।वैसे भी आज मेरा सैटरडे है तो मुझे लेट ही जाना है ऑफिस आप बताइए कब तक चलना है हम आधे घंटे में मिलते हैं, ठीक है ।
मंजीरी ने सरल को हां बोल कर फोन रख दिया और बाणेश्वरी धाम जाने की तैयारी करने लगी।

मजीरी एक निजी बैंक में मेनेजर पद पर काम करती है। सैटरडे को उसका ऑफिस टाइम लेट होता है और ‌हाफ डे होता है तो उसे सैटरडे को लेट जाना रहता। सैटरडे को और संडे को मंजीरी एनजीओ की तरफ से गरीब बस्तियों में जाकर अपनी सेवाएं देती है कभी वहां की लेडीस को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ न कुछ सिखाती है जिससे बैग मेकिंग ज्वेलरी मेकिंग सिलाई कैंडल मेकिंग और कभी-कभी वहां के बच्चों को पढ़ाती भी है आज मंजीरी का कैंपेन बाणेश्वरी धाम में था सरल एनजीओ की तरफ से ही मंजीरी से जुड़ा हुआ था यहीं पर उनकी मुलाकात हुई थी।

आधे घंटे बाद दोनों निकल जाते हैं बाणेश्वरी धाम मंजीरी के दिमाग में सवाल उठता है कि बाणेश्वरी धाम सुना है लेकिन कहां है थोड़ा भुल रही हूं??
मुझे पता तो पूरा नहीं पता पर शायद यह शहर से बाहर है देखते हैं गूगल में पे चेक करके चलते है सरल‌ अपनी कार चलाते हुए मंजीरी से बातें कर रहा था। मोबाइल में चेक करते हुए को पहुंच जाते हैं।
बाणेश्वरी धाम को देखकर मंजीरी को सब याद आ जाता है कि यह कहां आ गई वो मन ही मन बहुत खुश हो जाती है जैसे ही गार्डन के अंदर पहुंचते हैं उसके कदम थोड़े रुके रुके रहते है हिम्मत करके आगे बढ़ते ही अंदर पहुंच जाती है साउथ से आए पर्सन से दोनों मिलते हैं और क्या करना है इस बारे में डिस्कस करता है काफी बदलाव महसूस करती है मंजीर बात खत्म होने के बाद 1 मिनट का कहकर मंदिर के अंदर जाती है मंदिर के दर्शन करती है उस कुंड को दर्शन करती है जहा वो अपना बचपन बिताया चुकी है २२ साल और शायद इससे भी ज्यादा हो गया मंदिर के दर्शन किए कैसे हो आप उस कुंड और भगवान की मूर्ति से पुछ रही है यहां प्रणाम करते हुए घंटी को बचाते हुए वापस सरल और टीम के पास आ जाती है। काम स्टार्ट करते हैं साफ सफाई करते हैं कचरे के डिब्बे के पास पहला कचरा डस्टबिन में कम बाहर ज्यादा हैं उनकी सफाई की जाती है फिर वहां दिवाले जो सिर्फ पेंट से पूर्ति होती है उस पर पेंटिंग करने का डिसाइड करते हैं दीवारों के साथ में यह जो तुलसी क्यारा है ना इसको भी पेंट करेंगे मंजीरी टिम को बोलती है।
एक गोल घेरा बना हुआ जिसमें तुलसी लगी है। सब अपने काम में लग गए किसी ने दीवानों पेंटिंग बनाई। मंजूरी ने उस तुलसी क्यारे अब चित्रकारी करी। मंजीरी अपना काम करके वहां से निकल गई उसका ऑफिस का टाइम हो रहा था।

ऑटो लेने के लिए सरल और मंजीरी बाहर आ गए मंजरी को ऑटो में बैठाकर सरल वापस अपनी टीम के पास चले गया।

आटो में बैठकर मंजीरी बाहर की ओर बहुत ही उत्सुकता से देख रही थी।उसके मन-मस्तिष्क में बहुत हलचल मची हुई थी।आटो वाले से उसने पूछा क्या आप इसी एरिया में रहते हो भैया।
हां दिदि यहीं रहता हूं मैं।

अरे वाह फिर तो आपको यहां की सारी जानकारी होगी। भैय्या थोड़ा धीरे चलाना जरा।
आटो वाले ने मंजीरी को थोड़ा आश्चर्य से देखा कि जहां सवारी तेज चलने को कहते है वहां ये धिरे चलने का बोल रहीं हैं। उसने रफ्तार धीमी कर दी।

बाहर की ओर देख कर मंजिरी के चेहरे पर मुस्कान चहक के साथ बोली अरे ! मामा के घर की गली।रिक्शा चालक ने सवालीया निगाहों से मंजीरी को देखा।
भैय्या! यहां एक चाल भी है ना जहां पानी की बोरिंग है ऑटो वाले ने उसे आश्चर्य से जवाब दिया देखते हुए जवाब दिया

हां दीदी है यहां पर भैया जी की चाल है ।

हां के भैया जी की चाल......और उसके सामने बहुत बड़ा मैदान भी है हमने बहुत पानी भरा है भैया मैं बचपन में अपनी छुट्टियां बिताने बहुत आती थी कुछ नहीं बदला यहां पर वही गलियां है बस थोड़ा सा रोड चौड़े हो गए यहां तक शराब का ठेका भी हुआ करता था बहुत बड़ी दुकान थी यहां एक शराब की ।
हां दीदी वह बंद हो गई है
अच्छा।
ऑटो वाला जी को थोड़ी जानी पहचानी नजरों से समझ नहीं आ रहा था थोड़ा आगे जाते हुए मंजूरी ने हड़बड़ी में कहा भैया भैया रुको रुको अगर आपको कोई एतराज ना हो तो क्या ऑटो अंदर गली से ले सकते हैं रिक्शावाला मंजिरी को थोड़ी सक की निगाहों से ऊपर से नीचे तक देखा फिर बोला ठीक है दीदी
ऑटो वाले को समझ नहीं आ रहा था कि लड़की क्या है उसने अपने आटो को घुमा दी यहां से बाहर निकलने का रास्ता आगे है क्या ??। अंदर लेते ही उसने ऐसे ही पूछा
जैसे कुछ जानना चाह रहा था कि मंजूरी को इस एरिया की जानकारी है या नहीं ।
अरे हां भैया है.. है मैं आपको निकाल लूंगी बाहर अब चलो तो ठीक है दीदी ऐसी गली के अंदर एक देरी की दुकान थी मंजीरी दुकान को देख रही थी यह दुकान को अभी तक नहीं बढ़ा पाया ना डेरी वाला उसने फिर ऑटो वाले से पूछा
हां दीदी है वह बड़े दादा ही उस दुकान को चलाते हैं दोनों बेटे पढ़ाई करके बाहर नौकरी करने लगे हैं
अच्छा- अच्छा? पागल संजू पढ़ लिया इतना कि नौकरी करने लगा
आटो वाले ने हंसकर बोला हां दीदी पढ़ लिया

चार दुकानें लगातार थी वहां उसमें‌ फिर पुछा और आगे वाले दुकान के दादा अभी है या...????

नहीं दीदी वो अब नहीं रहे अटैक के कारण उनको दुनिया छोड़नी पड़ी।
आटो वाला मंजूरी के हर सवाल का जवाब दे रहा था उसे यहां की जानकारी दे रहा हूं उसे थोड़ा थोड़ा मंजूरी का चेहरा याद आ रहा था और मंजूरी भूल चुकी थी वो एक ऑटो वाले से यह बातें कर रही है

अच्छा अच्छा उनकी दुकान के मैंने टोस बहुत खाए और पास में वह सीका हुआ समोसा ?? अभी भी मिलता है क्या??

हां दीदी मिलता है ऑटो वाले ने हंसकर जवाब दिया गली के अंदर भीतर ही जाते हुए लेफ्ट साइट में ऑटो वाले ने रिक्शे को मोड़ लिया
बंटी भैया का घर मंजिरी ने जानी पहचानी आवाज में कहा।।

अब तो ऑटो वाले से रहा नहीं गया उसने पूछ लिया दीदी आप कौन हो??

नहीं भैया मंजीरी ने हंसकर बोला हूं तो कोई नहीं बस इन गलियों में कभी आया करती थी बचपन में इसलिए यहां की कुछ बातें याद है यह जो पीछे अभी डेरी वाले के सामने मैदान गया ना यहां पर टूटा हुआ घर हुआ करता था और जहां पर पर्दे पर मूवी लगती थी मुझे अच्छे से याद है कि बोल राधा बोल मैंने यहां मूवी देखी थी ।
मंजीरी आटो वालाअभी तक समझ नहीं पाया कि यह है कौन??
आगे जाते हुए उसने फिर बोला भैया अब थोड़ा और धीरे चलाना
ऑटो वाले ने अपने रिक्शा की रफ्तार को बहुत धीमा कर दिया जाते जाते ही आगे मंजरी हर घर की बातें कह रही थी यह चाल वाला घर अभी तक बदला नहीं देखो भैया आपको भी लगता है ना यहां चाल होगी इसके अंदर बहुत सारे कमरे हैं और यह इस मोहल्ले का सबसे बड़ा घर है पर हमेशा किराएदार ही रहता है यहां पर जिसे एक चाल बनी हो ।जो पीछे गया ना बंटी भैया का घर के सामने वाला घर वहां पर दादी मां रहती थी और एक छोटे वालों का कालू भैया मगर उनका नाम तो मुझे नहीं पता था लेकिन मैं उन्हें हमेशा छोटे वाला कालू भी हीं बोलती थी आगे जाते हैं मंजीरी धक से रह गई भैया जरा रुकना
आटो वाले नू बिना कुछ कहे रिक्शे को वहीं साइड कर दिया मंजीरी बात करते-करते अपने मोबाइल में सारे नजारे कैद कर रही थी और फिर रुक गए। ऑटो की खिड़की से यह उसमें एक घर की तरफ देखा उसके अपोजिट जहां उसने अपना फोटो रुकवाया था बड़े ही गहरी निगाहों से और मासूमियत से उस घर को निहार रही थी कुछ भी तो नहीं बदला वही आंगन है वही घर है वहीं पानी भरने की टंकी जहां से पानी भरा करते। आटो वाले ने अम्मा के घर के पास पास ही रोक दिया एक ही नजर में उसने तीनों कमरों की दूरी नाप ली थी ,बड़ी भाभी गुड़िया को शकर की रोटी खिला रही है और अम्मा मंजीरी को तु भी खाएगी।
नहीं अम्मा मुझे पसंद नहीं ऐसा खाना ।बचपन का वो नजारा मंजूरी की आंखों के सामने था
अम्मा जो मेरी शादी के सपने तबसे देखती थी जब मैं पांचवी क्लास में थी उसने मेरा दहेज भी डिसाइड कर लिया था क्या देना था मुझे पीतल का पानी से भरने वाला बेड़ा जिसके दान का बहुत महत्व होता है बिहार में। अम्मा बिहार की ही तो थी। और सामने दूसरे ही घर अपनी नजरों को घुमाते वापिस उसी घर की तरफ देखते हैं ।
जी और दादा यह भी तो बिहार के थे ना अपनी निगाहों से ढूंढते हुए सारे घर को इस तरह नजर कर रही थी कहीं कोई है? क्या कोई है नहीं क्या?? यहां पर कोई दिख ही नहीं रहा कहां गए सब ??ऑटो में बैठी बैठी मंजीरी सब देख रही थी और ढूंढ रही थी किसको ढूंढ रही थी वह खुद भी नहीं जानती ।
ऑटो वाले भैया दीदी उतरना है क्या आपको???
अरे नहीं भैया बस 5 मिनट और फिर चलते है ।

अच्छा ठीक है तो मैं आता हूं जरा 5 मिनट में ।
हां भैया बिल्कुल आप आइए जैसे मंजरी इस बात का वेट कर रही थी कि का आटो वाला खुद ही उतर जाए और उसे और टाइम मिल जाए यहां रुकने का मंजरी ने फिर अपनी आंखें घुमाई अम्मा के पास वाला प्लाट खाली था जहां शेखर भैया की शादी कि रसोई बनी थी हां यही तो रसोई बनी थी और कितनी मिठाइयां मैंने चोरी से खाई थी बाद में पकड़ा गई थी जब मैं पार्सल कर रही हैं‌ वीडियो को मिठाई और विक्की भैया ने बोला था मुझे कि तुझे तो पसंद नहीं है मिठाई ।
यह प्लॉट के पास वाला घर यह तो पियूष का घर था।
पियुष मेरे बचपन का दोस्त पर वहां थोड़ी होगा वह किराए से रहते थे वो उसके पापा मम्मी और उसका छोटा भाई अमन ना जाने वह भी समय के साथ कहां चले गए होंगे?
सामने सफेद फूलों वाला पौधा सोनी जी के घर का है वो भी पता नहीं होंगे या नहीं? घर में ही सोने से अपने औजारों से सोने चांदी की चीजों को जुड़ा करते थे उसके पास वाला घर जहां गाय हुआ करती थी सोनू की मम्मी रहती थी यहां पर उसके घर इतना आना जाना नहीं होता था फिर मेरी जी दादा का घर वापस उसी घर के ऊपर निगाहे लौट आई मंजीरी की उस घर के अंदर ऑटो में बैठे बैठे ही पहुंच गई थी पहले कमरे में दीवाल में ही बनी अलमारी जहां पर दादा की तंबाकू चुने की डब्बी सिकी सुपारी का डब्बा और सुपारी काटने वाली वो चोटी से सरोती दादा उसी से तो मुझे कटी हुई सिपाही को भी और काट कर देते थे जैसे कोई एक्सपर्ट हो। भैया दीदी सब चिल्लाते थे सुपारी खाकर दांत टूट जाएंगे लेकिन मंजीरी की मासूमियत के आगे लाचार हो जाते थे दादा मंजीरी को सुपारी देने के लिए।
उसी कमरे में एक लोहे का पलंग लगा रहता था टेबल पर रखी टीवी और टीवी के ऊपर सलीके से ऊन से बना कवर हमेशा ढका रहता था उसे के ऊपर लकड़ी की बनी रेक पर कैसेट वाला टेप रखा रहता था सरिता दीदी को गाने सुनने का बहुत शौक था जब अंदर किचन में काम करती रहती थी तो यहां गाने लगा देती थी और सुनती रहती थी अधिकतर रफीदा के गाने उसे बहुत भाते थे। सब बातें याद करते-करते मंजरी की आंखों से कब आंसू बहने लगे उसे पता ही नहीं चला टेक्नोलॉजी का प्रयोग बंद कर उसे यह मंजर अपनी आंखों में फ्लैश बैक की वीडियो की तरह चल रहे थे सारी चीजें याद करते-करते मंजीरी की आंखें बहुत रो रही थी अपने आप से कह रही थी दादाजी एक बार बाहर आ जाओ बस आपको देख लु तभी पीछे से एक आवाज आई ऑटो के पास किसी ने आकर कहा सब कुछ यहीं से देखेगी घर के अंदर नहीं आएगी।
मंजरी पीछे पलट के देख कर सकपका गई। शेखर भैया ....
चल मेरा नाम तो याद है तुझे!
आपको कैसे भूल सकती हो भैया। आंखों में आंसुओं का सैलाब था मंजीरी के भैया कैसे हैं आप रोते मंजीरी ने पूछ लिया ।
मैं ठीक हूं बेटा।
और घर पर सब कैसे हैं ??
यहीं से सब कुछ पूछ लेगी या घर के भीतर भी आएंगी।

आना तो चाहती हुं भैया लेकिन कुछ बंदिश है कुछ बेडियो ने मेरे पांव को रोक रखा है चाहकर भी नहीं आ सकती मैं।

पागल लड़की तुझे कौन रोक सकता है चल आजा मैं हूं ना कुछ नहीं होगा।

नहीं भैया जज्बातों की रिश्तो के आगे खून के रिश्ते दीवाल बनकर बैठे हुए हैं नहीं आ पाऊंगी।मंजीरी की आंख में रुदन और उदासी दोनों थे।

उसके बात सुनकर शेखर कहने लगा पागल लड़की उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा तू आ! मैं हूं तेरे साथ कुछ नहीं होने दूंगा तुझे और किसी को पता भी क्या चल रहा है तु यहां आई थी।

पता तो नहीं चलेगा भैया लेकिन कहीं ना कहीं उनके साथ विश्वासघात कर दूंगी जो मैं नहीं कर सकती।

ठीक है पर एक बार आकर जी से तो मिल ले ।तबीयत ठीक नहीं है उनकी।

क्या चोकते हुए मंजीरी ने पूछा था क्या हो गया भैया?

उम्र हो गई है अब दादा की जाने के बाद उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती।

दादा …......क्या हुआ.... दादा ....आप क्या कर रहे हो कालु भैया? अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को लेते हुए फूट-फूटकर होती है मंजीरी।

मत रो बेटा उनको जाए बहुत समय बीत गया है चल अब तो चल कुछ बातें करनी है तेरे साथ तेरा मन नहीं होता हमसे मिलने का ??

बहुत होता था भैया २२ साल हो गए इन २२ सालों में मैंने लाखों बार आपको याद किया है पर यहां कभी आ नहीं पाई या यूं कहो कि यहां आने की कभी हिम्मत ही नहीं कर पाई।

अब यहां तक आ गई है तो घर के अंदर भी चल दे उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए शेखर ने कहा।

अपने एक हाथ से अपने आंसुओं को पोछते हुए मंजीरी बोली ठीक है भैया इतने में ऑटो वाला आ गया था अरे कालू तु इसे जानता है क्या??
हां जानता हूं यह वही है जो छोटी बचपन में आती रहती थी ना सुल्तानपुर से मंजिरी छोटी।
आश्चर्य से आटो वाला बहुत देर से सोच रहा था कि इसको कहीं देखा है लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि यह कौन है अब समझ आया कालू इसने मामा के घर से लेकर चाल दारू का ठेका बाहर जो जैन की दुकान है ना डेरी वाले और वह गुप्ता वाले और वह समोसे वाले खान की वहां से लेकर बंटी मेरा घर पूरे मोहल्ले की खबर में दे दी है आटो में बैठे-बैठे पर
खुद की खबर नहीं दे पाई कि मैं कौन हूं ??
मैंने आपको नहीं पहचाना।‌मंजीरी ने सवालिया अंदाज में कहा
तु छोटी से बड़ी हो गई तो मैं भी तो छोटा कालु‌ से बड़ा हो गया।
चौकते हुए! छोटे कालु भैया? आप हो मैंने तो आपको पहचाना ही नहीं ।
हां पहचानते कैसे तुझे बस याद है कि एसे कुछ होते थे अब थोड़ी ना तु हमको पहचाने की बड़ी जो हो गई।

नहीं भैया आप बहुत बदल गए हो 25 साल पहले देखा था अब ध्यान नहीं था।

वह सब छोड़ तुझे मेरा असली नाम नहीं पता ??

आपका नाम नहीं पता मुझे आपको हमेशा छोटे कालु भैय्या ही बुलाती थी जो मुझे याद था।

हां तूने मेरा नाम करण छोटे कालु भैया किया था वह आज तक चल रहा है ।

अच्छा है ना कम से कम नाम के साथ तो याद थी कि किसने आपका नाम रखा था।दादी कैसी है भैया?

ठीक है बस थक गई है ९० हो गई है ना।

अच्छा अच्छा शेखर मंजीरी को कहता है चल अब चले या सारी बातें तुझे यही करनी है

मंजिरी मुस्कुराते हुए घर की चलते हुई रिक्शावाला जो उसका भाई छोटू कालु भैया था
उसने कहा कि मैं आता हूं जरा फिर एक सावरी छोड़कर फिर तुझे छोड़ दूंगा ठीक है।

ठीक है भैया मंजीरी ने कहा। शेखर मंजरी को अपने घर की ओर ले जाता है मंजिरी के पांव अपने आप ही रुक जाते हैं वो भारी कदमों से कॉपती हुईं घर की ओर बढ़ती है। जैसे ही वो आंगन में अपना कदम बढ़ाती है और अगले ही पल पने कदम वापस खिंच लेती हैं। भैय्या नहीं हो पाएगा माफ कर दो मैं नहीं आ सकती अंदर।
शेखर मंजीरी के कंधे पर हाथ रखता है उसको होसला
देता है और उसको कहता है कि थोड़ा सा हौसला कर मैं हूं तेरे साथ चल यह घर जो तेरा अपना घर है इस घर का आंगन तेरा अपना आंगन जहां तेरा बचपन बीता है जहां तेरे दो भाई है तेरी जी है और यह तेरे दादा का घर है यहां आने से तुझे कोई नहीं रोक सकता इसलिए ....इसलिए चल आ। मंजूरी बड़े भारी मन से अंदर जाती है उसके मन में अजीब सी कशमकश रहतीं हैं। अंदर जाते जाते वो अपने पिछले २२ साल पहले की हर बात याद करती है।आखरी बार वो शेखर की शादी में आई थी।उसके बाद तो जैसे इस शहर से नाता टूट गया था।
इसी आंगन में बनी पानी की टंकी जहां से खूब पानी भरती थी। पानी के नल भी थोड़ा अजीब होते थे थोड़ी गहराई में बने होते थे पानी के नल और उसके ऊपर बनी होती थी सिमेंट की बड़ी टंकी पानी की मोटर आप डायरेक्ट नहीं लगा सकते थे नहीं तो होती थी खूब लड़ाइयां। आगे फिर मंजीरी की आंखों में शेखर की शादी की माता पूजन याद आ जाती है शेखर भैया आखरी बार इस आंगन में मैंने आपकी शादी की माता पूजन देखी थी मुरमुरे वाली रसम यही तो हुई थी और आपकी बारात में क्या खुब नाचें थे।
मंजीरी सारी बात याद करते हैं घर के अंदर आ जाती। घर के अंदर आने से पहले मंजरी ने घर की डेल पर ही सबसे पहले ढोक दी और प्रणाम किया ।घर के अंदर का थोड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर चेंज हो गया था समय के साथ में। पलंग कुर्सियों की जगह सोफे ने ले ली थी टेबल टीवी की जगह वॉल टीवी आ गई थी टेप थी ही नहीं होम थिएटर आ गया था। लेकिन मंजीरी की आंखों में अभी भी हूं पुरानी इंफ्रास्ट्रक्चर दिख रहा था दीवार में बनी अलमारी को छू रही थी जहां दादाजी उसे सुपारी दिया करते थे अब वहां पर डेकोरेटिव आइटम रखे हैं दादा जी की पुरानी किताबें पेन डायरी जो कांटेक्ट बुक होती थी हमेशा यही रखि रहती थी। आगे बढ़ते उसकी नजर दादा जी की फोटो पर पड़ी जिस पर चंदन की माला लटकी हुई थी मंजरी अपने आप को रोक नहीं पाई दादाजी के सामने घुटनों के बल बैठ गई प्रणाम कर फूट-फूट कर रोने लगी यह कब हो गया पता ही नहीं चला आपने अपनी मंजीरी को एक बार भी याद नहीं किया आप ही तो थे ना मेरे दादा। कौन था मेरा दादा बताओ आप मुझे ऐसे छोड़ कर चले गए। और फूट रो रही थी अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा के फूट-फूट कर रो रही थी। शेखर ने उसको ढाढस बथाई उसको संभाला बोला बेटा दादा जी को जाए 10 सालों....... बहुत ही उदासी से बोला था ।
मंजूरी -क्या आंखों में आंसुओं का सैलाब लिए 10 साल....! 10 साल पहले आ चुकी थी इस शहर में दादाजी के पास आ सकती थी इस बात की भनक तक नहीं हुई भैया रोते हुए अपराधीक बोध के साथ में मंजीरी बोले जा रही थी उसके आवाज में पश्चाताप की ध्वनि महसूस कर रहा था शेखर।

उस को समझाते हुए सिर्फ इतना ही बोला कि जो बीत गया उसे वापस नहीं ला सकते 10 साल पहले यहां थी लेकिन तो यहां आ नहीं सकती तुझे पता भी हो जाता तो तू क्या कर लेती बेटा ।

सही कहा भैया क्या कर सकती थी बिना गलती के सारी सजा सिर्फ मुझे मिली है ।जि कहां हैं??

जी अंदर के कमरे में आराम कर रही है चल । जी के पास जा के मंजूरी पर वो सो रही थी। उनको ऐसी प्रणाम करती है थोड़ी सी आवाज देती लेकिन वह गहरी नींद में जागती नहीं
हैं। मंजीरी उनके सिरहाने की बैठ जाती है इस कमरे में वह बैठी है वहां उसे अतीत के कुछ साये। याद आते हैं शेखर भैया घर काफी अच्छा कर लिया है । इस पूरे कमरे में खारख फोड़ा करते थे जो बाद में गुलकन बनते थे पान में डालने वाली। वह आंटी जो यह काम देती थी बड़ी कंजूस थी शेखर की वाइफ भी सारी बातें सुन रहे थे उसे मंजूरी थोड़ी थोड़ी याद थी उसके साथ में कुछ समय हीं बिता पाई थी अपनी बात में वह शेखर की वाइफ को भी शामिल करती है और कहती है भाभी वो खारीक वाली आंटी बहुत कंजूस थी मतलब वह खारीक की गुठली तक वापस मंगवाती थी तोलने के लिए कि कहीं खारीख कम तो नहीं है मैंने उसके घर में पान में डालने वाली चटनी बनते देखी है बड़े अच्छे तरीके से वो उस चटनी में सिल्वर कवर मिलाती थी। मंजीरी
की चेहरे पर सुकून देती हुई हंसी आ जाती है। फिर उसके चेहरे पर उदासी छा जाती है सब अच्छा था फिर वह हो गया जिसके कारण मेरा आना ही बंद हो गया अपनी आंखों को बंद कर अपने आंसुओं को पोछती है समय अपनी रफ्तार से जरूर दौड़ रहा है लेकिन मेरा समय तो वहीं रुक गया था आज इतने आगे जरूर बढ़ गई लेकिन अपने बचपन की बातों को याद करती हूं तो खुश होने के साथ-साथ दुःखी बहुत हो जाती हुं मेरा वो खिल खिलाता बचपन छीन लिया गया था फिर उसका साथ देने उसके आंसू आ गए थे।
शेखर की वाइफ आपने यहां आना क्यों छोड़ दिया था??
भाभी बंदीसे मेरे ऊपर इतनी लग गई थी कि ना मै उन पेरो में पडी बेड़ियों को कभी तोड़ ही नहीं पाई। यहां से जो मेरा बंधन बन गया था बिना मेरी गलती के मुझे छोड़ने पड़े ।बचपन में जहां लोग अपने मामा मोसियों के घर जाते हैं मैं वहां नहीं चाहती कि मैं यहां आती थी यहां से मेरा खून का रिश्ता कुछ भी नहीं था प्यार का बंधन था मेरे जज्बातों का बंधन था। कोई रिश्ता नहीं जुड़ा हुआ था हम लोगों का यहां या कोई रिश्तेदारी हो बचपन में बस जी दादा सुल्तानपुर में हमारे पास रहते थे मैं बहुत छोटी थी सरिता दी मुझे अपने साथ खिलाने ले जाती थी मुझे आज भी याद है वह पंखा जिसके नीचे मुझे सुला देती थी और मैं उस पंखे को देखती रहती थी ऐसा मुझे सरिता दी ने बताया था क्योंकि मैं तब तो बहुत छोटी थी पालने में हीं थी इस घर से रिश्ता तब से बंधा हुआ है समय के साथ जी दादा यहां आ गए और हम वही रह गए ।
फिर सरिता दी एक बार मुझे छुट्टियों में अपने साथ यहां ले आई थी मां को डर था कि मैं रहूंगी कि नहीं लेकिन मैं इस तरह से रही यहां कि मैं हर छुट्टियों में जब भी मेरे एग्जाम होती थी परीक्षा होती थी उस के दूसरे दिन में मैं यहां होती थी सुबह की 5:00 वाली बस आती थी हमें और उस में आ जाती थी और यहां तक कि लाने वालों को भी इंतजार रहता था कि मेरी कब परीक्षा खत्म हो और इसे लखनऊ का छोड़ना है, यहां तक कि मेरी पढ़ाई भी यही करवाने वाले थे तब सरिता दीदी । मुझे अपने साथ ही रखना चाहते थे लेकिन मां और पापा नहीं मानते थे हर छुट्टियों में मेरे आने का इंतजार इस गली के पूरे लोगो को होता था जैसे ही मैं आती थी ना वैसे जमावड़ा हो जाता तो मैं पहले सबसे पहले मैं मिलने जाती थी मैं आ गई हूं ।
सामने पीयूष ….......रहता था भैया वह कहां है आजकल?? वह शायद अब आउट ऑफ इंडिया हो गया है कोई अच्छी जॉब लग गई है ।
उसकी अरे वाह !!बहुत अच्छा सब समय के साथ कहां कहां चले गए पता ही नहीं चला समय भाग जाता है । पता है भाभी छुट्टियों में वह मेरे कारण अपने मामा के घर नहीं जाता था अपने किसी रिश्तेदार के नहीं जाता था उसको मेरा इंतजार रहता था कि मैं आऊंगी और बहुत मस्ती करेंगे।
समय पंख लेके देखो इतना उड़ गया है पता ही नहीं चला मैं वह मस्तीखोर मंजीरी से कब खामोश हो गई मुझे भी नहीं पता चला घर के उस हादसे के बाद सारी बंदिशे सारी बेड़ियां मुझ पर लगा दी गई एक 8 साल की बच्ची जो चिड़ियों की तरह चहकती थी अब खामोश हो गई थी पूरे उदासी और आंखों में आंसू लिए मंजीरी अपनी बात कह रही थी।

मंजीरी ने कहा बाहर चल कर बात करते हैं जी सो रही है उन्हें डिस्टर्ब होगा ।

तीनों बाहर के कमरे में आ गए मंजीरीभूल चुकी थी उसे ऑफिस भी जाना है टाइम देखा उसने बोला अरे मैं निकलती हूं भैया मेरा ऑफिस का टाइम हो गया है मुझे जाना होगा।

तभी उसकी भाभी ने बोला आपकी बातों में इतनी मग्न हो गई नाश्ता चाय का पूछना ही भूल गई आप बैठो में लेकर आती हूं।

नहीं भाभी रहने दो मेरा टाइम हो गया है मुझे ऑफिस जाना है ।

अरे,,,!!!?????? शेखर बोला एक दिन ऑफिस नहीं जाएगी तो इतना क्या बिगड़ जाएगा तेरा ।

नहीं बिगड़ेगा कुछ नहीं ।

हां तो बस रुक जा जरा आज कल तो संडे है तेरा कल छुट्टी होगी तो बस 2 दिन यही।

नहीं भैया शाम को घर वापस जाना है सेटरडे संडे जब एनजीओ का काम नहीं होता है तो सुल्तानपुर चली जाती हु।

इस बार मंत जाना।

घर पर कह दिया है ना कि आऊंगी।। नहीं जाऊंगी तो फिर थोड़ा तमाशा हो जाता है घर पर इसलिए चली जाती हुं।

शेखर उसके घर के माहौल से वाकिफ था उसने आगे कुछ नहीं कहा। हां ठीक है चली जाना लेकिन आज रुक जा आज ले ले तेरे ऑफिस से छुट्टी ।
मंजरी आगे कुछ कही नहीं पाई जैसे वह रुकना चाह रही थी लेकिन जाना भी चाहती थी यहां।
मंजीरी ने कहा ठीक है भैया रुक जाती हूं लेकिन कब तक रोकोगे ....जाना तो पड़ेगा ही ना ।
शेखर --- हां जानातो पड़ेगा। रुक तुम कहीं भी नहीं सकते बेटा समय के साथ हमें आगे बढ़ना ही पड़ता है लेकिन अभी तो थोड़ा रुक अभी तो बहुत सारी बातें करनी है तेरे से।

हां भैया करनी है।

पर तू यह बता आज तू इधर कैसे आई?

कुछ नहीं भैया शनिवार रविवार अगर यहां रहती हूं तो थोड़ा एनजीओ का काम कर लेती हुं वही करने आए थे आपको याद है वो बाणेश्वरी धाम जहां में आप और आपका वह दोस्त चंदू बचपन में जाते थे ।
हां -हां याद है ना अभी भी जाता हूं मैं वहां ।

वहीं पर आज एक सफाई का कार्यक्रम रखा था बहुत बदल गया भैया वह धाम अच्छा बना दिया है अब ।
आज तो भगवान जी से भी पूछ कर आई हो कि मुझे याद नहीं कर सकते तो कुछ बोला ही नहीं मुझे हंसी के साथ उन्होंने मुझे रिप्लाई दे दिया।

तु भगवान को भी नहीं छोड़ सकते वाकिफ हूं तेरी आदतों से।

हंसते हुए मंजूरी,,,,, वहां ,,,तुलसी क्यारा है ना भैया जहां आप बैठते थे और मैं उसके आसपास भी आप लोगों को के गोल चक्कर लगाती थी और आप लोगों को मार के। परेशान करती थी।
हां याद है मैं आज भी वही बैठता हूं।

वहां पेंटिंग का प्रोग्राम भी रखा था हमने दीवारों पर थोड़ी पेंटिंग करी लेकिन मैंने वह तुलसी क्यारे पर ही अपनी चित्रकारी करना पसंद करी उसको चितरके आ गई मैं देखना अब जाओ तो आपकी मंजीरी की कलाकारी वहां एक पोट्रेट बनाई भैया मैंने तुलसी क्या रे पर आप और चंदू भैया बैठे हो और मैं आपके आसपास दौड़ रही हूं मेरे साथ के लोगों ने मुझे बोला कि यह क्या बहुत अच्छी बनाई है पेंटिंग उन्होंने यह नहीं पता था कि वह एक पल है जो मैंने जिया है तुम्हारे प्यार है के साथ में मंजूरी की आंखों में फिर नमी आ गई थी।

चंदू भैया कहां है??
भैया ने जवाब दिया शादी हो गई उसकी अपने गांव चले गया ।
अच्छा हो गई उनकी शादी इतने में शेखर की वाइफ चाय और नाश्ता ले आती है मंजिरी कहती है भाभी चंदू भैया को अपनी शादी की बहुत फिक्र रहती थी ।
थे तो बहुत सीधे उनको हमेशा यह लगता था उनको कोई लड़की मिलेगी भी कि नहीं चलो फाइनली उनको लड़की मिल गई।

हां सही!! कहा शेखर ने जवाब देता है।

मामा कैसे हैं भैया? और राकेश भैया मनीष भैया और वह विक्की भैया???

वह कैसे सब ठीक है अपनी अपनी लाइफ में मंजीरी तू रुक राकेश मनीष को फोन लगाता हूं।।

नहीं,,,!! नहीं!!?? भैया मत बुलाओ किसी को मत बुलाओ अब मैं ज्यादा देर नहीं रूक पाऊंगी अब मुझे जाना है और इतने में ही आवाज आती है हां तो जाना तुझे रोका किसने है मंजरी चौक के ऊपर से निगाहें करती तो देखती है ...आओहह..... जीतू भैया कैसे हो आ??? आप???

मेरा तो नाम ही मत ले तू अपनी जुबान से इतनी देर से बोले जा रही है एक बार भी मेरा जिक्र किया तूने मुझे भूल गई ना तू ????तुझे सब याद है कालू याद है छोटा कालू याद है मनीष याद है राकेश याद है। सब याद है बस ममै याद नहीं तुझे।।। मंजूरी से लड़ते हुए जीतू ने उसे कहा।।

नहीं जीतू भैया मैं आपका पुछने हीं वाली थी अपनी सफाई देते हुए ।

अब तो तू रहने दे बस तुझे तो हमेशा से यही सब पसंद आते थे मैं तो तुझे कभी पसंद आता ही नहीं था ना ।।

अरे नहीं भैया ,,,!!ऐसी बात नहीं है आप मुझे कभी दिखाते नहीं थे लेकिन इन सबसे ज्यादा फिक्र आपको मेरी होती थी जो मुझे एहसास होता है उस बात का आप मुझे कभी भी दूसरों के सामने ज्यादा मस्ती करने से हमेशा रोकते थे क्योंकि आपको डर रहता था कि मैं कहीं नजराना जाऊं मुझे कहीं उनकी नजर ना लग जाए और घर आकर आप ही मेरी नजर उतारा करते थे तब मुझे गुस्सा आती थी उस बात से लेकिन आज मुझे आपकी फिक्र करने की बात बड़ी याद आती है मंजरी की आवाज में फिर उदासी आ गई।।

जीतू उसके पास आया उसके सिर पर हाथ फेरा उसके पास बैठा हूं बोला पागल लड़की कैसी है मेरे फुद्दी ,,,हां । कैसे भूल जाओगे मैंने ही तो तेरा नाम रखा था फुद्दी।

हां आप हीं ने रखा था और मुझे सुल्तानपुर में भी अभी भी मामा जी के लड़के वही बोलते हैं भाभी आपको पता है बचपन में मेरे नाम से मुझे कोई नहीं पुकारता था सब ने अपने अपने हिसाब से मेरे नाम रखे थे किसी के लिए मैं छोटी थी किसी के लिए मैं बेनजी थी किसी ने यह भैया ने फुद्दी जैसे रखा, किसी के लिए जैसे आफत आई थी, चिपड़ि और पता नहीं क्या-क्या मेरे नाम के साथ तो इतना खिलवाड़ किया गया था लेकिन अब नाम याद आते हैं सब नाम अच्छे लगते हैं पर अब उनको बुलाने वाला कोई नहीं है।।।
राकेश भाई का एक फ्रेंड था विक्की भैया वह कहां है मैं उनको अधिकतर मिस करते हो वह बहुत मस्ती करते थे जब मैं मामा के यहां जाती थी ।।
तो शेखर भैय्या आपको याद है आप मुझे यहां से चिड़ियाघर दिखाने ले गए थे वह भी अपनी साइकिल पर बिठाकर ।

हां याद है बेटा। पर मैं तेरे लिए शेखर भैया कब से हो गया रे बेटा मैं आज भी तेरे लिए तेरा कालु भैया ही हूं

हां कालु भैया ही.... बहुत प्यार दिया था भाभी यहां मुझे सब पर क्या करूं इस प्यार के लिए जज्बातों की अब यहां कदर ही नहीं है जज्बाती रिश्तो पर खूनी रिश्ते ज्यादा हावी हो गए आवाज में रोना आ गया और तभी एक साथ शोर सुनाई दिया वेलकम बैक बच्चा !!!!!!!!!मंजीरी आश्चर्य से खड़ी हो गई विक्की भैया राकेश भैया बहुत सारे गुब्बारे लेकर आए थे वह साथ में जैसे किसी का जन्मदिन हो यहां उनका चेहरा और गुब्बारों के पीछे छुपा हुआ था मंजूरी उनके पास गए गुब्बारे हटाए बोले राकेश भैया विक्की भैया हटाओ इन्हें
मुझे आपको देखना है गुब्बारे हटाते हुए ही कहा अब तुझे हमें देखने की फुर्सत मिल रही है चिपड़ी मंजीरी की आंखों में अब खुशी के आंसू साथ में मदमस्त होकर हंस रही थी और खुश हो रही थी । दोनों ने अपने गले लगा लिया सुकून भरे सांस लेते हुए और आंखों से फिर रोते हुए कहा मैंने आप लोगों को बहुत मिस किया भैया। विक्की का हाथ मंजीरी के सिर पर था उस को सेहलाते हुए मेरा बच्चा बहुत बड़ा हो गया रे तू

आप भी तो हो गए हो बहुत बड़े।

बेटा मैं तब भी बड़ा ही था जब तू छोटी थी
हां यह बात तो सही है राकेश ने उसके पिठ को सहलाते हुए कहा यह आज भी तो छुटकी ही है तीनों एक दूसरे से अलग हुए राकेश और विक्की ने उसके आंसुओं को पोंछा और कहां जो हमारे लिए हमेशा हमारा बच्चा बनके हमेशा रहेगी।
बातें ऐसे ही चलती रही मंजीरी ने कहा फिर आखिर में विक्की भैया आप वैष्णो देवी गए या नहीं वो आखरी प्लान प्लान ही रह गया आप मुझे कितना लेकर जाने वाले थे ना अपने साथ फिर मां ने मना कर दिया था तो फिर मैं नहीं जा पाई थी आपके साथ। प्रिया आपके साथ जाने वाली थी ना कहां है आजकल,,,,,
राकेश ने जवाब दिया नहीं तेरे जाने के बाद हमने सोचा था कि हम जाएंगे फिर वह तेरे घर का हादसा हम लोगों को यहां तक झिंझोड़ गया और हम आज तक नहीं जा पाए ।।

विक्की ने कहा प्रिया ठीक है अभी बेंगलुरु में है

अरे वाह उसके साथ बहुत मस्ती करती हैं प्रिया मेरे बराबर की थी और आपको और मुझे विकी की तरफ इशारा करते हुए कहती है हमेशा डाटती थी नेट बाईट करने के लिए।

हां याद है आज भी डांटती है ।समय के साथ सब आगे बढ़ गए।

फिर सब ने साथ में‌ खुब हंसी खुशी की।
मंजीरी ने पूरा दिन बिताया इन १० घंटों में उसने २२ साल के सारे फैसले तय कर लिए शाम को ५बजे उसने कहा अब मुझे चलना होगा.... बहुत अच्छा लगा यहां पर सुकून मिल रहा है... मंजीरी के छोटे कालु भैया आ गए थे उसको छोड़ने विक्की भी उसके साथ आया वह अपने बच्चा के साथ में और समय बिताना चाहता था क्योंकि उसे उसके बचपन से उसकी फिक्र बहुत थी कि ईसका क्या हुआ होगा 25 साल में पर उससे कभी मिल नहीं पाया विक्की ने मंजीरी से वादा किया बच्चा अब तेरा यह विक्की भैया तेरे पास हमेशा रहेगा अभी तो समय हो गया है तुझसे मैं अगली बार जरूर मिलने आऊंगा.….. वापस अपने घर आ गई मंजीरी एक सुकून खुशी की चमक अपने चेहरे पर लेकर।।।।

दोस्तों अगर आप चाहते हो मंजीरी का अतीत जानना तो हमें जरूर बताना।


स्वाति की लेखनी साहीबा की जुबानी।।।


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