ek mulakat jaruri hai Sanam books and stories free download online pdf in Hindi

इक मुलाकात जरूरी है सनम।।।

बहुत दिनों बाद सांवली अपने कंप्यूटर अौर कंप्यूटर टेबल की सफाई कर रही थी। अौर उसकी नजर टेबल पर रखी अपनी कॉम्पिटेटिव एक्जाम की बुक पड़ी। सांवली सफाई को परे रखकर अपनी बुक को पढ़ने लगीं।
पढ़ते हुए अचानक उसे वो चेहरा याद आ जाता है। ललीत नाम की तरह सरल और सहज।
उसी के प्रोत्साहन और विश्वास से मेरे कंपटीशन के एग्जाम की तैयारी चालू की थी। न जाने क्यों उसे मेरे भविष्य की बहुत चिंता थी एक में थी हमेशा उस पर गुस्सा और चिड़चिड़ करती थीं। लेकिन मैं कर दी जा सकती थी उसने मेरे सपने जो सजा लिए थे। हो सही भी तो नहीं थे मेरी हर बात मान जाता था बिना किसी गुस्से या बिना किसी शिकन के कितने अजीब होते हैं दिल के रिश्ते और देखो आज 15 साल हो गए उस बात को। मैंने सिर्फ इतना ही तो कहा था कर सकते हो तो बात मत करना मुझे से कभी। अौर वो अपना घर अपने मां-बाप,दोस्त सब छोड़कर चला गया था इतनी दूर। सिर्फ मेरे लिए गया था लेकिन मुझसे दूर कभी नहीं गया यह प्यार भी बड़ी अजीब चीज है। अच्छे भले इंसान
को पागल बना देती है।
वह मेरी फिक्र तब से करने लगा था जब मैं अपने नाइंथ की छुट्टियां अपनी मौसी के वहां बिताने गई थीं। वहां ही तो रहता था उसके दीदी के घर उसके दीदी मेरे मामा जी की बहू भी थी कितने रिश्ते जुड़े हुए थे हम लोगों से लेकिन हमारा रिश्ता इन खूनी जज्बातों से अलग ही था।

न जाने क्यों मेरी इतनी फिक्र करता था।मैंने उसे कभी उस नजर से नहीं देखा ,बस में उसमें एक अच्छा दोस्त हमेशा देखती थी।
लेकिन बचपन में उससे डरती भी बहुत थी जब वो हमारे साथ खेलने आता था तो मैं भाग जाया करती थीं वहां से। वो मुझे ऐसे ही चिढ़ाता रहता था या यूं कहो कि उसने मुझे चिढ़ाने में बहुत मजा आता था कभी मुझ पर कुछ भी उटपटांग बातें करके मुझे चिढ़ाया करता था और कभी मुझे छेड़ा करता था बातों से तो ,कभी मेरी चोटी खींचकर। पागल था एकदम।
हांं था मुझसे बड़ा उसने अभी अभी कॉलेज में दाखिला लिया था लेकिन कॉलेज के आवारापनती उसके चरित्र में कहीं नहीं थी मस्ती मजाक वाली बात अलग थी लेकिन अल्लड़ बाजी उस से थी कोसों दूर । समय के साथ साथ में थी उसे पहचानने लगी थी वह एक समझदार लड़का है छुट्टियों में अधिकतर मोसी के वही जाती थी मैं तो अक्सर मुलाकात हो जाती थी। और उसको हमेशा छुट्टीयों का इंतजार रहता था। पर अब उसका आना मामा जी क्या ज्यादा हो गया था हम मामा के शहर में ही रहते थे पापा की नौकरी के कारण और उसका कॉलेज हमारे शहर से पास ही था, तो वह अक्सर हमारे शहर आता रहता था मिलना जुलना हमारा काफिर बढ़ गया था। लेकिन मेरे लिए वही बहुत अच्छा इंसान बहुत अच्छा दोस्त अच्छा साथी बन गया था पर वह मेरे लिए कुछ और ही सोच रहा था नाइंथ क्लास की बच्ची उसे इतनी भा जाएगी मुझे पता नहीं था हां यह बात अलग है कि समय से पहले ही मुझ में समझदारी और जिम्मेदारियों का निभाने की कि समझ आ गई थी मेरी उम्र में जहां लड़कियां लड़कों में ज्यादा दिलचस्पी करती है या फिर घूमने फिरने में ज्यादा दिलचस्पी रही थी वही मैं अपने परिवार की जिम्मेदारी और अपने भविष्य को लेकर ज्यादा चिंतित थी उसे दूसरों से परे मेरी यही बात है बहुत पसंद आती थी ,या मेरी ओर आकर्षित करती थी। शायद उसे मेरी इस बात का हमेशा चिंता रहती थी कि ओर लड़कियों की तरह मैं बहुत कम ही बोलती थी हंसना तो जैसे मुझे आता ही नहीं था कभी कभार अगर मैं उसके सामने हस दिया करती थी तो उसको एक अलग ही खुशी मिलती थी, वो हमेशा कोशिश करता था मुझे हंसाने की लेकिन मेरे लिए हंसना इतना आसान नहीं था। मैं बस अपनी उदासी को ओढ़े रहती थीं।
अौर उसे मैं इस रुप में कभी अच्छी नहीं लगती थीं,अौर मुझे खुश करने की हर संभव कोशिश करता था।समय के साथ दोस्ती गेहरी होती गई। सांवली ,ललीत को हर बात बताती थीं, कभी किसी समस्या में फंस जाए या कुछ ऐसी कंडिशन में जहां उसे कुछ समझ नहीं आता था तो ललीत ही आता था सबसे पहले याद।
भविष्य की चिंता सांवली ‌को शताने लगी थी, कुछ कर गुजरने की तमन्ना अब सांवली का जुनून बन गई थी।बस खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहती थी। ललित उसकी मनह: स्थिति को अच्छे से समझ सकता था और उसकी कॉम्पिटेटिव एक्जाम की तैयारी में लग गया। पूरे पूरे दिन पढ़ाता था। क्युकि टयुशन लगवाना सांवली के लिए मुमकिन नहीं था। अौर ललीत का केवल एक ही लक्ष्य था उसके सांवली को कैसे भी करके कांपिटिटयु एग्जाम क्लियर करवाएं। उधर सावली का कांपिटिटयु एग्जाम में सिलेक्शन हो गया ललित भी अपनी लाइफ में बहुत कुछ हासिल कर लिया था इंटेलिजेंट ब्यूरो उसका चयन हो गया था इंटेलिजेंस ब्यूरो मैं एक बहुत बड़े ऑफिसर के पद पर उसने अपना मुकाम पा लिया था। अपना खुद का घर ठीक वैसे ही बनाया था जैसा सांवली चाहती थी ,सांवली हमेशा उसको अपने भविष्य और अपने सपनों के बारे में बताती रहती थीं अपने दम पर कुछ पां ले तो कैसे अपने घर को बनाएंगी, कैसे अपना घर सजाएगी वह सब कुछ जानता था।
ललित ने वैसे ही अपना घर अपनी गाड़ी ली थी जैसे सांवली चाहती थी। पर ललित ने अभी तक सावली को अपने दिल की बात नहीं कही थीऔर उसके और अपने भविष्य के सपने खुद ही ने गढ़ लिए थे ।
वो सांवली को हमेशा खुश देखना चाहता था। और इसके लिए उसने यह सब किया था सरकारी नौकरी को कभी नहीं करना चाहता था लेकिन सांवली हमेशा सरकारी नौकरी चाहती थी इसलिए उसने सांवली के खुशी के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो मैं नौकरी करना पसंद करी।
अनुभव भैया सांवली के बड़े भाई ,बड़े पापा के लड़के थे और अपनी इज्जत और अपने सपने पूरे करने के लिए उन्होंने बहुत साल पहले ही घर छोड़ दिया था ललित को बहुत अच्छे से जानते थे ललित ने अपने दिल की बात उनसे कह रखी थी और वो बहुत खुश थे अपनी बहन के लिए सांवली से अनुभव का रिश्ता सगे भाई बहन से भी ज्यादा था।सांवली हमेशा अपने फैमिली और फैमिली फंक्शंस की फोटो अनुभव को सेंड करती रहती थी परिवार की हर बात अनुभव बहुत अच्छे से जानता था ।उसे हर बात की खबर सावली देती थी। अनुभव भैया हमेशा सांवली के लिए खुश है उसे ललित जैसा इंसान मिला। सांवली के लिए अनुभव हमेशा चिंतित रहता था क्योंकि वह अपने घर के हालातों से अच्छी तरह रूबरू था और ऐसे में सांवली का खुश रह पाना वहां मुमकिन नहीं था।
अनुभव ने ललित को यकीन दिलाया था कि उसे सांवली जरूर मिलेगी। सांवली की मम्मी ललित को पसंद करती थीं। फिर एक दिन ललित ने अपने दिल की बात सांवली से बयां कर दी। सांवली यह बात सुनकर दुःखी थी परेशान थी या खुश थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे वो।
ना बोलती तो दोस्त छूट जाता वह दोस्त जो उसकी जिंदगी में पहला इंसान था जिसने कुछ कह सकती थीं, बात कर सकती थी, जिसके साथ खुश रहती थीं लेकिन सांवली ने ललित को कभी उस रूप में नहीं देखा जिसकी वह कल्पना कर रहा था, ललित ने बहुत समझाया था सावली को कि वो उसे बहुत खुशी देना चाहता है और खुश रखना चाहता है सांवली उसकी बात का मान भी रखना चाह रही थी ।
और फिर उसे अपने रिश्तेदारों की याद आ गई जो ललित और सांवली के रिश्ते के बीच में दीवार बन गए ललित पर कितनी दोमते लगाई थी घरवालों ने मौसी ने उस भाभी ने जो मेरे मामा जी की बहू थी घर में ताई जी ने बड़े पापा ने मेरी नौकरी तक छोड़ने के बाद कह दि थी अपने वर्तमान में अपने आप से बात कर रही थी सांवली।
सांवली, ललित पर इल्ज़ाम लगते नहीं देख सकती
थी जो इंसान उसे हमेशा खुश रखता था जिसके कारण इतनी बातें सुनना पड़ रही थी, नहीं थी इतनी स्वार्थी नहीं थी सांवली। उसने सबके सामने ललित से रिश्ता तोड़ दिया सारे दो मत है अपने पर ले ली। ललित सब को समझाते हुए थक गया कि हमने कुछ गलत नहीं किया है हम कुछ गलत नहीं कर रहे है जो भी करेंगे आप लोगों की मर्जी के साथ ही होगा लेकिन घर वाले ना बात मान रहे थे ना ये रिश्ता। और आखिरकार ललित सांवली को अलग होना पड़ा।
सांवली जानती थी ललित की हालत क्या होगी उसके बिना। लेकिन अगर प्यार से उससे दूर होती तो रिश्ते कभी नहीं टूटता।
सांवली ने उसके और ललित के बीच नफरत का बीज बो दिया। सांवली जानती थी प्यार से रिश्ते कभी नहीं टूटता है नफरत से कभी रिश्ते जोड़ नहीं सकता है और यह ललित के लिए बहुत सही था कि वो उससे नफरत से रिश्ता तोड़ दे। उसने ललित से मिलना बंद कर दिया था ललित से बात करना पसंद नहीं करती थी हमेशा उससे दूरियां बनाए रखती थी ।घर वालों की थोड़ी बंदीशे भी आई थी सांवली पर ललित से ना मिलने की लेकिन सांवली को अब इन बंदिशों से कोई फर्क नहीं पड़ता था पर उसे फर्क पड़ता था ललित की हालत देखकर सांवली जब भी ललित को देखती थी और जब उसे नफरत की निगाहों से देखती थीं तो उसे खुद को बहुत दु:ख होता था उसके सामने तो वह कभी इस बात का जिक्र तक नहीं होने देती थी लेकिन अकेले में आकर बहुत रोती थी। सांवली की यह नफरत घरवाले समझ चुके थे कि इन दोनों के बीच में कोई रिश्ता नहीं है सांवली के लिए रिश्ते ढूंढने लगे। ललित ने सारी बातें अनुभव को बताई थी, अनुभव ने उसे वहां से सांवली को बाहर निकल जाने की सलाह दी थी। ललित ने अनुभव को सांवली की नफरत वाली बातें भी बताई जिसमें उसने खुद ही उसका जवाब भी बता दिया की वो मुझसे प्यार से नहीं, नफरत से रिश्ता तोड़ना चाहती ताकि मुझे कोई परेशानी ना हो ।पागल यह भी नहीं जानती कि उससे ज्यादा उसे मैं जानता हूं, पहचानता हूं ।

और इक दिन अचानक ललित का फोन सांवली के मोबाइल पर आया सांवली नौकरी करने के लिए किसी दूसरे शहर में रहती थी रात के 1:30 बजे सांवली को ललित ने फोन लगाया था।
इतनी रात को ललित क्यों फोन लगाया? थोड़ी परेशान होकर सांवली में फोन उठाते ही जवाब पूछा

क्या ?अच्छा रात हो रही है क्या ?मुझे तो पता ही नहीं चलता आजकल दिन कब होता रात कब होती । ललित ने शादी को बहुत नॉर्मल तरीके से जवाब दिया।

अच्छा !क्यों ?कौन सी दुनिया में रहते हो ।बहुत गुस्से से पूछा था‌ सांवली ने सवाल ललित से।

दुनिया! मेरी दुनिया है कहां?? ललित ने बहुत उदासी से जवाब दिया था।
कोई बात नहीं करनी है अभी फोन रखो मैं तुमसे अभी कोई बात नहीं कर सकती। सांवली ने चिढ़कर और गुस्से में जवाब दिया था
सांवली! दिन में इसी समय फोन लगाता तो फोन नहीं उठाती तुम इसलिए रात में फोन लगाया,बची कुची रिश्ते की फिक्र शायद तुम्हारे दिल में आ जाएं और तुम इतनी रात को फोन क्यों लगाया मैंने ।यह सोच कर फोन उठा लो । ललित की आवाज में उदासीनता का भाव साफ़ साफ़ सुनाई दे रहा था।

बोलो क्या बोलना है। सांवली ने औपचारिकता में ही बोला।

कुछ बातें हैं जो तुमसे कभी छुपा नहीं सकता, मैंने आज तक नहीं पी थी पर आज पहली बार मैंने शराब को छुआ है । आवाज में रुदन का भाव स्पष्ट सुनाई दे रहा था ललित की।

सांवली यह बात सुनकर धक से बैठ गई ललित की आवाज में जो रुआसी थी सांवली सुन पा रही थी। रात के सन्नाटे मैं फैले अंधियारे में ही एक उदासी छाई थी, तुम पी रहे हो ललित तुम जानते हो मुझे पीने वालों से सख्त नफरत है ।

वो तो वैसे भी मुझसे करती हो तुम्हारी नफरत को और ज्यादा बढ़ा देगी मेरी पीने की आदत। रोते हुए ललित ने सांवली से कहा।
अच्छा मेरी नफरत बढ़ाने के लिए पि जा रही है आज।
सांवली बहुत गुस्से में बोली।

नहीं !खुद को मिटाने के लिए । थोड़ी तेज आवाज में अपने आंसुओं की आवाज को दबाते हुए बोला था ललित ने।

किसने कहा खुद को मिटाने का । सांवली की आवाज में भी रुदन साफ-साफ सुनाई दे रहा था

किसी के कहने की क्या जरूरत है जिसके लिए जिंदा था। जिसके लिए जी रहा था, जिसके लिए खुद को इतना आगे बढ़ाया वहीं नहीं रहेगी, तो मिटने से क्या फर्क पड़ता है।
एक ही सांस में सारी बातें बोल दी थी ललित।

फर्क पड़ता है संसार में एक ही इंसान नहीं होता है जीवन में जिसके लिए तुम जीते हो और भी रिश्ते होते है जिनके लिए जीना पड़ता है। समझाते हुए सांवली में ललित को समझाया।

हां होता है ना लेकिन वो एक रिश्ता सारे रिश्ते से बड़ा होता हैहर रिश्ते की अपनी एहमियत होती हैं।क्या यह बात तुम नहीं जानती सांवली?। ललित ने बहुत करुण स्वर में पूछा सांवली से।

जानती हूं लेकिन जैसा तुम सोच रहे हो वैसा होना मुमकिन नहीं है । सांवलीने स्पष्ट करते हुए कहा।

हे मुमकिन के अगर तुम साथ दो तो । जोर देते हुए ललित ने सांवली से कहा

मैं नहीं दे सकती। मैं कभी तुम्हारा साथ नहीं दे सकती ।तब जब मुझे मेरे परिवार को छोड़ना पड़े।। रन अवे करने की बातकह रहे हो ना मैं नहीं कर पाऊंगी ललित। सांवली ने अपनी लाचारी को बताते हुए ललित।

किस परिवार की बात कर रही हो वह जो तुम्हें कभी खुश रखता ही नहीं चाहता था। थोड़ा रोष में आते हुए ललित ने कहा कहा।।
हां उसी परिवार की बात कर रही हुं जहा मेरी मां है मेरी मां। और अगर मैं उसे छोड़कर चली गई तो कोई मां अपनी बेटी पर विश्वास नहीं करेगी।
तुम्हारी मां को भी अपने पास रख लेंगे शालु। सहजताके साथ मां की इज्जत करते हुए ललित ने कहा था।
नहीं! इतना आसान नहीं है तुम जानते हो। तुम क्या कह रहे हो क्या ऐ सही है ? प्रश्नचिन्ह की तरह आश्चर्य से सांवली ने ललिता का को पूछा था।
और जो तुम कह रहे हो मैं तो इस बात से चकित हुं। और यह भी जानती हूं की तो यह तुम्हारे दिमाग की उपज नहीं है। जरूर तुम्हें किसी और ने कहा है........... हां और कौन कहेगा अनुभव भैया। परिवार् को छोड़ने की उन्होंने ही तुम्हें ऐसी शिक्षा दी होगी क्योंकि ललित सिंह राठौड़ कभी ऐसी बात नहीं कर सकता। पूरे आत्मविश्वास के साथ सांवली ने ले ललित को कहा।

इतना विश्वास है अपने ललित पर तोसाथ क्यों नहीं देते अपने ललित का । सरलता के साथ ललित ने सांवली से।

नहीं दे सकते या नहीं दे पांऊगी मुझे माफ कर दो तुम। सो जाओ बाद में बात करेंगे ठीक है । हिम्मत को तोड़ते हुए सांवली ने कहा

शालु एक वादा करके फोन रखना मुझसे बात करोगी।

ठीक है कोशिश करूंगी।

कोशिश!? ललित सवालीए अंदाज में बोला। ठीक है बस एक वादा कर दो जब तुम्हारा मुझसे बात करने का मन करेगा बात करोगी अपने मन को मारोगी नहीं।
सांवली अपने बहते आंसू को अपनी आंखों में भीज कर ललित को जवाब देती है ठीक है करुंगी पर अब हम तभी बात करेंगे जब मैं तुम्हें फोन लगाऊंगी ना तो किसी को हूं कहोगे मुझे फोन लगाने के लिए अनुभव भैया को भी नहीं। बहुत दुःखी होकर रोनी सी आवाज में फोन काट देती है ।

कितना रोए थे हम दोनों पूरी रात सोए नहीं थे। वर्तमान में सांवली अपने आप से ही बात कर रही थी।
उससे वादा तो कर लिया था लेकिन मैंने उसे कभी फोन नहीं लगाया तब भी नहीं जब मुझे उसके बहुत जरूरत थी बहुत अकेली थी मैं उसके कमी हमेशा खलती रही लेकिन उसे कभी फोन नहीं लगा पाए लगाती भी कैसे?अगर मैंने फोन लगा दिया होता तो उसके दिल में फिर से वह प्यार का बीच भर जाता है फिर उससे दूर जाना मेरे लिए भी संभव ना हो पाता ।
अच्छे से याद है मुझे वो प्रोग्राम जहां उसने वह कव्वाली गाई थी । अनुभव भैया ने मेरे लिए प्रोग्राम का टिकट भी बुक कर दिया था मुझे फोर्स के साथ में कहा था कि तूझे इस प्रोग्राम में जाना है जरूर। मैं उनके कहने पर चली भी गई थी सीट सबसे आगे की सीट मेरे लिए बुक की गई थी स्टेज की जस्ट सामने ऐसा लग रहा था जैसे स्पेशल गेस्ट में ही हूं उस प्रोग्राम की वहां संगीत प्रतियोगिता थी । ललित ने भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था इसके पहले मैंने ललित को कभी गाते हुए सुना नहीं था जैसे ही ललित का नाम आया मैं सकपका गई कि मुझे ललित का सामना......... या मैं ललित के सामने........ डरी सहमी दिल की धड़कन है बहुत तेज हो गई मेरी। वो मेरे सामने बैठा था वह गाना गा रहा था कव्वाली कि तरह है उसने पूरा परफॉर्म किए गाने के हर बोल मेरे कानों में गूंज रहे थे 🎤🎵🎶🎶🎶🎼🎵🎶🎶🎶

सांस आती है साँस जाती है
सिर्फ मुझको है इंतज़ार तेरा
आंसुओं की घटाएं पी पी के
अब तो कहता है यही प्यार मेरा🎶🎶🎶🎶
(ललित की आंखें से सांवली पर टिकी हुई थी जैसे बस सिर्फ उसके लिए ही गा रहा था उसे कोई फिक्र नहीं थी प्रतियोगिता की)
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम

(सांवली अपनी निगाहों का इधर उधर करते हुए चुरा रही थी
ललित की आवाज थोड़ी तेज हुई उसकी निगाहें सांवली को गहरी निगाहों से देखते हुए वो गा रहा था)

(अपनी हालत को बयान करते हुए वह सांवली की तरफ इशारा करते हुए गा रहा था)

तेरी चाहतों ने ये क्या गम दिया(सांवली की निगाहें ललित पर टिंक जाती है और उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगती है)
तेरे इश्क़ ने यूं दीवाना किया
ज़माने से मुझको बेगाना किया(ललित तुम्हें अपनों से दूर करने का कभी इरादा नहीं था मेरा सांवली खुद के मन में खुद को हीं जवाब दे रही थी)
दीवानी तेरे प्यार में बड़ा ही बुरा हाल है
खडा हूँ तेरी राह में न होश है न ख्याल है
न होश है न ख्याल है।

(अपनी उंगली से इशारा करते हुए बड़ी ही लाचारी के साथ में कह रहा था ।)

इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम

ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम

इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम

(आंसुओं से भरी आंखों के साथ पूरे जज्बातों के साथ में वह आगे गा रहा था)

मेरे साथ में रो रहा आसमान
मेरा प्यार खोया है जाने कहाँ
उसे ढूंढता मैं यहाँ से वहाँ
मिलन की मुझे आस है
निकलती नहीं जान है
मैं कितना मजबूर हूँ
ये कैसा इम्तहान है
ये कैसा इम्तहान है

इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
इक मुलाक़ात मुलाक़ात मुलाक़ात
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
मुलाक़ात मुलाक़ात
आज मुलाक़ात ज़रूरी है सनम मुलाक़ात मुलाक़ात

(बहुत ही तड़प के साथ जैसे सांवली को बता रहा हूं कि आज मुझसे मिल लो एक बार)
(और सांवली रोते हुए ललित देखी जा रही थी सुन रही थी दोनों एक दूसरे में इस तरह मशगूल थे कि उसे पूरे हॉल में बैठी पब्लिक से कोई मतलब ही नहीं था जैसे।)

आज मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
आज मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
आज मुलाक़ात ज़रूरी है सनम

(अपनी आवाज में एक तड़प और एक बेबसी को जाहिर करते हुए वो आगे गा रहा था जैसे वो अपने प्यार की भीख मांग रहा हो)

मेरी आँखों में जले तेरे ख़्वाबों के दिए
कितना बेचैन हूं मैं यार से मिलाने के लिए

(आवाज के साथ रुआसी और गाने की आवाज में रूदन साफ साफ दिख रहा था)

मेरे बिछड़े दिलबर

(एक चैन की सांस लेते हुए कि आज तुम्हें देखकर मुझे चैन आ रहा है को आगे बताते हुए गा रहा था)

तू जो इक बार मिले
चैन आ जाए मुझे
जो तेरा दीदार मिले
मसीहा मेरे
दुआ दे मुझे
करूँ अब मैं क्या बता दे मुझे??(सांवली से जैसे सवाल पूछ रहा हूं तुझे मनाने के लिए मैं क्या करूं)

कोई रास्ता दिखा दे मुझे
मेरे यार से मिला दे मुझे आआआआआ….
आ मेरे दर्द की दवा दे मुझेा

(अपनी तड़प को जाहिर करते हुए अपने विश्वास को सांवली को बता रहा था)

कहीं ना अब सुकून है कहीं ना अब करार है
मिलेगा मेरा साथिया मुझे तो ऐतबार है
मुझे तो ऐतबार है

मुझे तो ऐतबार है

मुझे तो ऐतबार है

इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात
सांस आती है साँस जाती है
सिर्फ मुझको है इंतज़ार तेरा
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम
इक मुलाक़ात।।।।🎶🎶🎶🎶🎼📻

प्रोग्राम खत्म होने के बाद में ही सांवली वहां से उठ की जाने वाली होती है तभीउसके पास फोन की घंटी बजती है, अनुभव भैया का फोन सांवली को बहुत गुस्सा आता है सांवली यह गाना देखकर तड़प रही होती और बहुत रोती है भैया आपने ऐसा किया मेरे साथ क्यों यह …....?मुझे यहां क्यों भेजा आपने..…?????? रोते हुए कहती है।
सांवली सुन मेरी बात एक बार ललित से मिल लें वो तुझसे मिलना चाहता है। चाहे इसके बाद तु उससे कभी मत मिलना। लेकिन एक बार उससे मिल । तड़प रहा है तुझसे मिलने के लिए ।तुझसे बात करने के लिए तूने उसको मना कर दिया कि तू उससे बात नहीं करना चाहती हो कि जब तू उसे फोन लगाएगी तब वह तुझ से बात करेगा उसके बाद उसने तुझे फोन तक नहीं लगाया सांवली यह प्रोग्राम सिर्फ तुझे मैसेज भेजने के लिए था और कुछ नहीं।
चाहता तो मैं भी बोल सकता था कि तू उससे मिले लेकिन तू मेरी बात को ऐसे ही छोड़ देती सुनकर ।
आज उसकी हालत देखकर शायद तुझे थोड़ी उस पर दया आ जाए उससे मिलने के लिए हां बोल दे
तू उसे एक बार फोन लगा ले बहन
वो तेरे फोन का इंतजार कर रहा है पिछले ३ सालों से।
(बहुत ही चिंता और तड़प के साथ में बोल रहा था अनुभव)

ठीक है भैया मैं बात करती हूं उससे, सांवली ने बहुत रोते हुए उसका जवाब दिया फोन काट दिया।

साबली ने यू ही वही हॉल के बाहर कॉरिडोर में खड़े होकर अपने फोन को देखा ललित का नंबर निकाला फोन लगाने वाली थी कि अपने फोन पर अपनी निगाहों से दूर कर दिया अपने आप से सवाल पूछती हुई बोली क्या उसे फोन लगाना सही होगा? आज मैंने फिर उसे फोन लगा दिया तो फिर वह वापस से उसी राह पर चले जाएगा! फिर बोली उसे पर वो वहां से वापस लौटा भी तो नहीं ना। क्या करूं समझ में नहीं आ रहा है फोन लगाओ या नहीं सांवली अपने अंतर्मन से ही बातें कर रही थी तो फिर बहुत हिम्मत के साथ सांवली ने ललित को फोन लगाया अपने आंसुओं को पोछते हुए उसने कहां हो ललित?
तुम्हारे पास ही खड़ा हूं। कहो तो सामने आ जाऊ।
सांवली अपनी निगाहों को इधर-उधर देखती है वह ललित को ढूंढती है।
ललित सामने खंभे के पीछे खड़ा था क्या हुआ ढूंढो मत जब तक तुम नहीं कहोगी तब तक तुम्हारे सामने इस तरह नहीं आऊंगा ।
आओ प्लीज बहुत रोते हुए और तड़प के साथ में कहा था सावली ने।
ललित अपना फोन काटते हुए सांवली के सामने आ जाता है आंखें आंसुओं से भरी हुई थी।
सांवली भी उसकी अपनी आंखों में समंदर बसाए हुए थी।

अब आने से क्यों डर रहे थे इतने बड़े प्रोग्राम तो तुमने मेरे सामने ही किया ना ।
प्रोग्राम की बात अलग थी मैडम इस तरह से सामने आने के लिए जो हिम्मत जुटानी पड़ी वह तुम नहीं समझ पाओगी।

अच्छा जब मैं समझती नहीं फिर क्यों मुझे समझाने पर तुले हो ।
तुम्हें नहीं खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन क्या करूं हर बार हार जाता हूं ।
कहो क्या कहना है क्यों मिलना था आज क्यों जरूरी थी आज की मुलाकात ।

क्या कॉफी पीने चले ।

मैं कॉफी नहीं पीती हूं।
हां जानता हूं तुम तो चाय की शौकीन हो। लेकिन इस तरह बात नहीं कर सकते ना मेरी पसंदीदा प्लेस पे चलोगी मेरे साथ।
ठीक है चलो। ललित उसे एक पहाड़ की टेकरी पर ले जाता है जो शहर के शोर-शराबे से दूर थी चारों ओर हरियाली छाई हुई थी और एक शांति का वातावरण था ।सांवली को ऐसे ही जगह पसंद थी और ललित अब अपना समय यही बिताता था ।
सांवली ने उसे ऐसे ही सवालिया ...अंदाज में पूछ लिया कब कब आते हो यहां ???

यहां से जाता ही कौन है । सुकून के साथ हरियाली को देखते हुए ललित में जवाब दिया।

मतलब सब चौंक ते अंदाज में पूछा सांवली ने।
मतलब!,,,,,,, मतलब यही कि ड्यूटी पर जाना रहता है तो यहां से निकल जाता हूं मैं ड्यूटी के आने के बाद यही पौधे यही रात यहीं तारे जब चांद आ जाता है तो वह यहां की अंधेरी रात में ही मेरा सहारा होती है।

सांवली ने उसके चेहरे कि ओर बहुत ही मार्मिकता गेहरी और उदासी वाले भाव उसे देखा,, ललित क्यों अपने आप को इतनी सजा दे रहे हो अभी मुझ जैसे नालायक लड़की के कारण।

हां क्योंकि मैं भी नालायक हुं ना, तो नालायक को उसके जैसी ही मिले तो अच्छा है।

जानते हो तुम आज भी वही बात ले कर बैठे हैं जो संभव नहीं है समय के साथ आगे बढ़ो ललित ।

शालू क्या तुम आगे बड जाओगी। मुझे आज विश्वास दिला दो कि तुम आगे बड़ जाओगी मैं भी बड जाऊंगा।

मैं तो बढ़ चुकी हूं।

हां तभी तो 3 साल से अपने घर वालों से बात नहीं कि ना तुमने भी। सिर्फ अपनी मां से बात करती हो 3 साल से अपने घर नहीं गई हो तुम ना किसी त्योहार पर और ना किसी फैमिली फंक्शन में।

हां क्योंकि मुझे छुट्टियां नहीं मिलती ।

सरकारी नौकरी में भी छुट्टियों की समस्या नहीं होती और तुम जहां हो वहां तो तुम्हें छुट्टियों की कोई दिक्कत नहीं थी ।
खुद से झूठ बोल रही हो या मुझसे ।

किसी से नहीं।

हमारे रिश्ते में ये परिवार बीच में आ रहा था, जिसे तुम कहीं ना कहीं छोड़ चुकी हो तुम्हारी मां के विश्वास को मैंने कभी डगमगाने नहीं दिया है और ना ही वह कभी टूटेगा मैं आज भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं और हमेशा करता रहूंगा।

मैं तुम्हें आगे बढ़ने की बात कर रही हूं और तुम उसी बात को लेकर बैठे रहोगे क्या...???? नहीं मिली जिंदगी में मैं तो क्या जिंदगी खत्म कर दोगे अपनी।

जिंदगी में बचा ही क्या है तुम्हारे आगे।
तुम्हें कैसे समझाऊं यार मैं ??

छोड़ो यह बातें कुछ और बात करते हैं ।।

बोलो क्या बात करने के लिए बुलाया था मुझे???

यह बातकरने को बुलाया था कि मुझसे शादी करोगी या नहीं मेरे साथ अपनी जिंदगी जीना चाहते हो या नहीं मुझे कोई परिवार समाज रिश्ते नाते इन सब को बीच में मत लाना तुम सिर्फ मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए तुम मुझसे प्यार करती हो या नहीं तुम मेरे साथ अपनी जिंदगी खुशी के साथ में बिताना चाहती हो या नहीं सिर्फ हां या ना उसके आगे और कुछ नहीं.....!।

इसका जवाब तुम्हें दे चुकी हूं ।।।

मैंने कहा ना परिवार रिश्ते समाज इन सब को परे रखकर तुम मुझे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे मन की बात मुझे बता दो।।

मैं ……¡नहीं दे सकती । प्लीज..….... मुझे जवाब के लिए दबाव में डालो ।

ललित और सांवली की निगाहें एक दूसरे को ऐसे ही कई पलों तक देखती रही और तभी ललित में इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा तुम्हें जवाब देने की जरूरत नहीं है तुम्हारा जवाब पढ़ लिया है। अब नहीं कभी दबाव डालूंगा ललित ने अपने हाथों से उसके चेहरे को पकड़ा और कहा बस इस चेहरे पर अब कभी उदासी मत आने देना इतना कर देना अपने ललित के लिए और उसके सर को चुम लिया । सांवली की आंखों से आंसू बह रहे थे ललित ने उन आंसुओं को पोछा। सांवली ने अपना सर ललित के सीने पर रखती हूं आंखों से आंसू की लड़ियां रुक नहीं रही थी ललित मैं उसके सिर पर हाथ रखते हुए बस उसे सहला रहा था ।बहुत देर तक दोनों ऐसे ही बैठे रहे उन दोनों के बीच में सिर्फ खामोशी थी और यह सुकून भरे पल तो शायद पूरी जिंदगी इन पलों के साथ अब जी सकते थे। तभी सांवली में खामोशी को तोड़ते हुए ललित से थोड़ा दूर हुई और कहा अब हमें चलना चाहिए।
ललित ने कहा क्या चाय पिला सकती हो तुम अपने हाथों से बनी हुई।

सांवली में उसकी तरफ मजाकिया अंदाज में कहा हमेशा मुझसे ही काम करवाते रहो तुम पहले भी मैं ही चाय बनाया करती थी तुम्हारे लिए दिन में 10 बार चाय पीते थे तुम जब मुझे पढ़ाते थे ।
तब हां बिल्कुल तुम्हारी चाय ,,,,तुम्हारे हाथों की बनी चाय मुझे बहुत पसंद थी और आज भी है।उसके बाद मैंने आज तक चाय नहीं पी जानती हो ।

बहुत अच्छा दूसरी चीजें जो पीने लगे हो तुम तो तुम्हें चाय कैसे याद आएगी।

नहीं सावली दूसरी चीजें नहीं पीने लगा हूं उस दिन मैंने जब फोन लगाया था उस दिन भी सिर्फ छुआ था शराब को पी नहीं थी तुम्हारी बातों ने इतना नशा कर दिया था कि पीने की जरूरत ही नहीं पड़ी बॉटल के टुकड़े आज भी यहां पड़े हुए हैं देखो जब पीने का मन करता है ना तो उन टुकड़ों को देख लेता हूं और फिर तुम्हारे नशे में डूब जाता हूं तुम्हारा ललित आज भी वैसे ही जैसे तुमने पहले देखा था कुछ नहीं बदला।।

तुमने मेरे से खुशी का वादा किया है क्या मैं कुछ कह सकती हूं तुम्हें।

हां कहो ना बिल्कुल।

इस तरह अब कभी नहीं बैठोगे यहां उदासी में कभी नहीं आओगे दुःखी रहोगे तो अकेले में कुछ भी नहीं सोचोगे।

यह वादा है या सजा है शालू।

वादा ही है सजा तुम्हें वैसे भी बहुत दे चुकी हुं बिना गलती की।

नहीं शालू!! तुमने कुछ ऐसा कुछ नहीं किया। मैंने तुम्हें कभी गलत नहीं समझा ना ही गलत कभी जाना कि तुमने कुछ गलत किया तुम्हारी यही समझदारी यही जिम्मेदारी परिवार के रिश्ते को निभाने की जो यहीं समझ तो मुझे भा गई थी। इसके लिए तो मैंने तुम्हें कब प्यार किया था पता नहीं चला।पर न जाने क्यों मैं रिश्तो में कभी शामिल नहीं हो पाया।।

नहीं ललित तुम्हारा और मेरा रिश्ता ऐसे रिश्तों से बहुत परे था,और अलग था यहां स्वार्थ नहीं था। क्या अब हम चलें मुझे चाय की याद आ रही है।

हां तुम्हारा टाइम भी तो हो गया चाय पीने का चलो।

दोनों रूम पर आ गए अब दोनों के बीच में हंसी मजाक फिर से चालू हो गई थी चाय पीते पीते ललित ने कह दिया था चाय का स्वाद आज भी वही बरकरार है ।
हां और हमेशा रहेगा

अच्छा मेरा जब चाय पीने का मन होगा तो मैं आ जाऊं ।

चाय पियो अभी सांवली ने कहा ।

चाय पि कर ललित को सांवली ने कहा तुम्हें जाना चाहिए बहुत टाइम हो गया ।

हां 3 साल के इंतजार के बाद में 3 घंटे बहुत टाइम हो जाता है ।

नहीं ,!नहीं !ऐसी बात नहीं है रात हो गई है और तुम्हें जाना चाहिए।

ठीक है शालू पर मेरे एक बात का जवाब नहीं दिया तुमने क्या मेरा चाय पीने का मन होगा तो मैं आ सकता हूं या नहीं.....???

सांवली ने जवाब देने के लिए हां बोलने ही वाली थी कि फिर अचानक खुद को रोक दिया और कहने लगी अब जाओ ललित अपना ध्यान रखना ।

ललित ने आगे कुछ पूछा नहीं उससे चले गया सिर्फ इतना कह कर तुम भी अपना ध्यान रखना और खुश रहना।

ललित समझ गया था कि सावली फिर से मिलना नहीं चाह रही थी उसके मन में आज भी बहुत डर बैठा हुआ था मेरे रिश्ते को लेकर ।

ललित अब जो खुशी के पल थे उसके साथ में पूरी जिंदगी बिताने को तैयार था, उसने अपना ट्रांसफर अनुभव के शहर में करवा लिया अब वो और अनुभव एक साथ रहते थे जब भी मन होता था सांवली से बात करने के लिए वह अनुभव को कहता था अनुभव स्पीकर पर रह कर बात करवाता था ललित उसे लिख लिख कर देता था कि यह पूछो उससे ऐसा किया या नहीं सांवली इस बात से बेखबर होकर भी जान जाती थी ललित आवाज सुनना चाहता था। जब परेशान होती थी वह भी अपनी बात ललित तक पहुंचाना चाहती थी लेकिन अब दोनों के बीच में नज़दीकियों का एहसास था उसमें दूरियां भी पनप थी सांवली अनुभव के फोन पर कॉल लगाती थी जब वह परेशान होती थी और इधर ललित अनुभव को जवाब देता था कि उसे क्या कहना अजीब रिश्ता चल रहा था 15 साल हो गए हैं ऐसे आज भी सांवली ललित से बात करने के लिए अनुभव को फोन लगाती है ललित सांवली को अनुभव के साथ जवाब देता है के सोशल वर्क जो सांवली ने शुरू किए हैं उसमें ललित ने पूरा पूरा साथ दिया है बस कभी डायरेक्टली नहीं इनडायरेक्टली उसने सावली का हमेशा सपोर्ट किया 15 साल से उन दोनों के बीच में मुलाकात नहीं है एक मुलाकात इस रिश्ते में जो नया मोड़ लेके आई वह ""एक पवित्र रिश्ता था "!।

सांवली की सफाई को छोड़ और अपने कंप्यूटर पर फिर से उसने वही गाना चालू कर दिया।कंप्यूटर पर सांवली गाना सुन रही थी जो उसका फेवरेट सॉन्ग हैं आज थोड़ी उदास थी ललित को याद करके लेकिन उसके चेहरे पर सुकून की हंसी भी थी तो सोचा वही गाना सुन लिया जाए ।
तुझसे मिलने के लिए तेरी कसम
एक मुलाकात जरूरी है सनम।,🎼🎶🎵🎶🎵🎼📻

बस दोस्तों इतनी सी थी ऐ कहानी...........


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