मकान नम्बर एक सौ पैंतालीस
कहानी
लेखक:सतीश सरदाना
सुदीप का 1992 मॉडल बजाज चेतक स्कूटर एक किक में स्टार्ट हो गया।कभी-कभी तीन चार किक में भी स्टार्ट नहीं होता।इस बात को शुभ लक्षण मानकर उसका हाथ एक्सीलेटर पर टाइट हो गया।स्कूटर साइबर सिटी की सड़क पर तेज भागने लगा।
अगला मोड़ सेक्टर 46 का था और उसके बाद इंदिरा मोड़ की तरफ़ उसे मुड़ जाना था।
सेक्टर 45 के एक सौ गज के तीन मंजिला मकानों की एक गली उसे दिखाई दी।शायद यहीं हो मकान नम्बर एक सौ पैंतालीस!
वहाँ कुछ और नम्बर था।एक सौ पैंतालीस दो तीन गलियों के बाद था।एक नया बना मकान ढलती धूप में लशकोरे मार रहा था।
सुदीप ने काले ग्रेनाइट की सीढ़ियों की तरफ़ देखा और सोचा,आजकल लोग किराये के लालच में ज़्यादा कमरे निकालते हैं।सीढ़ियों के लिए बड़ी कम जगह बचती है।ऊपर से यह चिकने ग्रेनाइट का फैशन।खड़ी सीढ़ियों पर फिसलने का ख़तरा बना रहता है।पता नहीं कौन से फ्लोर पर रहती है अक्षिता!
उसने अक्षिता का फोन मिलाया,"एक सौ पचहत्तर के नीचे खड़ा हूँ।कौन से फ्लोर पर आना है?
"थर्ड फ्लोर!ध्यान से आना।सीढ़ियों पर फिसलन है।"अक्षिता ने कहा तो वह मुस्कराया।मतलब लड़की को उसकी फिक्र है।
सुदीप ऊपर चढ़ने लगा।दो मंजिल चढ़ते ही उसकी साँस फूलने लगी।अभी वह पैंतालीस का ही हुआ है पिछले महीने।
शायद चिकनाई का ज़्यादा इस्तेमाल कर रहा है इन दिनों।
फिसलन और चिकनाई शब्दों के बहुअर्थी इस्तेमाल पर वह चौंका।कभी वह हिंदी का मेधावी छात्र था।उसी आदत के चलते ही अनायास उसका ध्यान शब्दों के विन्यास पर चला जाता है।अफसोस कि उसने डिफरेंट प्रोफेशन चुना।
कई बार वह समता,अपनी पत्नी से कह चुका कि पराँठे पर घी न लगाया करे।लेकिन वह कहती है, बग़ैर घी के कोई चीज़ स्वाद ही नहीं लगती।
अक्षिता सीढ़ी के दरवाज़े पर ही खड़ी थी।
उसे देखकर मुस्कराई।
"मैंने सोचा सर फिसल ही न गए हों।उम्र हो चली है।"
सुदीप को बुरा लगा।जवान लड़की के मुँह से उम्र बढ़ने का जिक्र हर मर्द को बुरा लगता है।
"अभी तो मैं जवान हूँ।मेरी फिजिक देखो!"सुदीप हँसा और अपनी आधी बाजू की शर्ट में से अपने डौले दिखाए।
"रहने दो!साँस फूल गयी है।"अक्षिता हँसी।
"बदमाश!वह तो मैंने फ्रिज का ठंडा पानी पी लिया था।अस्थमा तो बचपन से है मुझे।"उसने सच बताया मगर अपने सच पर सुदीप को खुद ही विश्वास न हुआ।
लड़की ने अजीब सी ड्रेस पहनी थी।एक कंधा ढका हुआ था दूसरा निरावृत!नए जमाने की लड़की है भई, थोड़ी मोटी है तो क्या हुआ।नए जमाने के फैशन करेगी।उसकी केले के तने जैसी जाँघों के ऊपर जीन्स ऐसे कसी हुई थी जैसी गेंहूँ की बोरी ठूँस-ठूँस कर भरी जाती है।
वह लड़की के पीछे-पीछे उसके कमरे में दाखिल हुआ।कमरे के भीतर कमरा था और उसके पीछे बाथरूम।शुरू के कमरे में ही जिसमें सोफ़ा सेट और कुर्सियां थी उसी में किचन की स्लैब और सिंक था।
लड़की सोफ़े पर नहीं बैठी।बेडरूम में चली गई।
सुदीप थोड़ी देर सोफ़े के पास ठिठका खड़ा रहा।फिर मन कड़ा करके सधे कदमों से बेडरूम में चल दिया।
लड़की बेड पर तकिये के सहारे बैठी दूसरे तकिये का गिलाफ़ ठीक कर रही थी।बेड पर नई चादर बिछी थी और खिड़की पर पर्दा खींच दिया गया था।
"अंधेरा है!नहीं?"सुदीप ने कहा तो उसने चुपचाप बत्ती जला दी।
वह एकटक उसकी तरफ़ देख रही थी।
"आपको एक काम कहा था?"
सुदीप ने जेब से निकाल कर दस हजार रुपये बेड पर रख दिये।दो हजार के पाँच नोट गिनकर उसने पर्स में डाले और बोली,"थैंक्यू वेरी मच!मुझे पैसों की सख़्त जरूरत थी।किराया देना है।"
पता नहीं सुदीप ने उसके कथन पर ध्यान दिया या नहीं।अगर दिया भी तो उसके चेहरे और आँखों से पता नहीं चला।
वह घूमकर उसकी तरफ़ आया।एक नज़र उसके भरे शरीर की तरफ़ देखा जैसे आदमी पिज़्ज़ा-बॉक्स खोलने से पहले आखिरी बार उसकी पैकिंग को निरुद्देश्य देखता है।फिर उसका चेहरा ठोड़ी से पकड़कर थोड़ा ऊँचा उठाकर होंठों पर गहरा चुम्बन दिया।
अक्षिता जोरों से उससे लिपट गई।
आधा घण्टा या उससे थोड़ा सा कम समय तक उनका मिलाप चलता रहा।
सुदीप तकिया टेढ़ा करके डबल बेड पर लेटा हुआ था।
उसकी छाती के बालों में कुछ काले थे कुछ सफ़ेद।
उसकी साँस फूल रही थी।एकबार वह हल्का सा खाँसा भी।
निरावृत लड़की ने खामोशी से उसकी तरफ़ देखा और पहनने के लिए ब्रा-पेंटी उठा ली।
सुदीप ने हाथ से इशारा किया और बोला,"रहने दो।ऐसे ही ठीक लग रही हो।"
लड़की ने आदेश का पालन किया और उसके लिए एक गिलास पानी लेने चली गई।
सुदीप ने पानी पिया।पानी थोड़ा गरम था।एक बार फिर सुदीप ने सोचा,लड़की समझदार है।उसका ख़्याल भी रखती है।
"आओ!मेरे पास बैठो!"उसने प्यार से कहा।वह चुपचाप आकर बैठ गई।सुदीप ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे और अपने क़रीब खींचा।वह बग़ैर विरोध किए खिंची चली आई।
"अक्षिता!मैंने तुम्हें एक ऑफर दी थी।"उसने लड़की के चेहरे की तरफ़ देखा।लड़की सिर झुकाकर बैठी हुई अपनी नेलपॉलिश देख रही थी।
"मैंने तुम्हें कहा था कि तुम मासिक चालीस हजार रुपये मुझ से ले लिया करो।बदले में हर वीकेंड पर तुम्हारे साथ रहूँगा।इससे मैं और तुम दोनों भटकने से बच जायेंगे।"सुदीप ने बात दोहराई जबकि उसे मालूम था कि लड़की इस बात को कम से कम भूली तो नहीं होगी।मानना न मानना तो उसके हाथ में है।
वह थोड़ी देर और नेलपॉलिश देखती रही फिर उससे चिपट कर बोली।
सुदीप उसके बालों में से उठ रही सुगंधि में खोया ही चाहता था कि उसकी बात सुनकर चौंका,"आप को मैंने बताया नहीं मैंने शादी कर ली है।यह है मेरे पति!"
कहकर उसने अपने मोबाइल फोन में एक लड़के की तस्वीर दिखाई।अक्षिता उसके साथ माँग में सिंदूर भरे और हाथों में चूड़ा पहने खड़ी थी।लड़का वाकई स्मार्ट था।
"शादी कर ली है?"सुदीप हैरानी जताते हुए बोला,"कब?"
"पाँच महीने हुए!"
"कहाँ है तुम्हारा पति?"
"अपनी गर्लफ्रैंड के साथ बैंगलोर में लिव-इन में रह रहा है।मैं यहाँ हूँ"वह हँसी तो सुदीप का ध्यान गया कि वह अभी भी निर्वस्त्र है।
"मजाक तो नहीं कर रही न?"सुदीप को उसके एक शब्द पर भी विश्वास नहीं था।
"एक्चुअली उसे कोई लड़की चाहिए थी कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के लिए क्योंकि उसके पेरेंट्स मुस्लिम लड़की से शादी के लिए मान ही नहीं रहे थे।अंशुल की रिश्तेदारी में कोई डॉक्टर लड़की है उससे शादी के लिए सब उसके पीछे पड़े थे।वह मुझसे शादी करके मुझे अपने पेरेंट्स के घर ले गया।हम पंद्रह दिन वहाँ रहे।वह बैंगलोर चला गया अपनी नौकरी पर और अपनी गर्लफ्रैंड के पास ।मैं यहाँ आ गई।कभी-कभी अंशुल के मम्मी-डैडी मुझसे मिलने आ जाते हैं।बहुत प्यार करते हैं मुझसे।इतने गिफ़्ट दे जाते हैं,मना करते करते हुए भी।मन बहुत गिल्टी फील करता है।इसलिए मैं वीकेंड पर आपके यहाँ रहने की मना कर रही हूँ।जब मन करे तब आ जाया करना,दो तीन घंटे के लिए।फुल नाईट का प्रोग्राम हो तो आउट ऑफ स्टेशन चल पड़ेंगे।"
वह बोलते समय इतनी मासूम लग रही थी मानो कोई बेहद जायज़ बात बता रही हो।
"यह अंशुल मिला कहाँ तुम्हें?"सुदीप ने पूछा।
"फेसबुक पर!जैसे आप मिले!जब मन करता था आ जाता था।फिर वह बैंगलोर चला गया और वहाँ गर्लफ्रैंड बना ली।"
"तुमने अंशुल से कितने पैसे लिए कॉन्ट्रैक्ट मैरिज करने के?"सुदीप ने भरसक अपने शब्दों की धार को नरम किया ताकि उसे प्रश्न के तीखेपन से चोट न पहुँचे।लेकिन उसने आहत निगाहों से उसे देखा तो सुदीप को लगा कि उसे ऐसी बात पूछनी ही नहीं चाहिए थी।
सुदीप को पता है कि ऐसी बातों को वह डिस्क्रीट रखना पसंद करती है।पैसों के लिए सेक्स करती है लेकिन कोई उसे कॉलगर्ल समझे यह उससे बर्दाश्त नहीं होता।
वह भी उसकी इच्छा का सम्मान करता है।ऐसी लड़की उसे इस उम्र में और कहाँ मिलेगी।
"पाँच लाख!"वह नीचे देखती हुई बोली।दो साल की मैनेजमेंट कॉलेज की फ़ीस भरनी थी।कोई इंतजाम न हुआ।आपसे भी कहा था कि कहीं से एजुकेशन लोन करवा दो।आप भी उन दिनों बिजी थे।आपके पास होते तो आप मुझे दे देते इतना मुझे आप पर विश्वास है।पैसे की वजह से मुझे उसकी बातें माननी पड़ेंगी।एम बी ए हो जाएगी उसके बाद हम कोर्ट से तलाक़ ले लेंगे।तब तक ऐसे ही चलता रहेगा।"
सुदीप की रूचि अचानक उसकी बात में ख़त्म होकर उसके नग्न शरीर में जाग गई थी।
उससे लड़की को इशारा किया।लड़की और सुदीप कमर्शियल ट्रांसक्शन्स कम्पलीट करने में व्यस्त हो गए।