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डेढ़ कमरा


सुबह से ही कमर में तेज दर्द है।क्या नाम है इस नामुराद बीमारी का?सियाटिका!हां वही!एलोपेथिक,होम्योपैथिक,आयुर्वेदिक, यूनानी,नेचुरोपैथी सब करके देख लिया।कोई फर्क नहीं पड़ा।फिर भी नुस्खे बताने वालों की कोई कमी नहीं।
उठना ही पड़ेगा।भूख भी लग रही।इधर कुछ दिनों से कुछ ज़्यादा ही लग रही।कहीं डायबिटीज तो नहीं हो गया।
चार्जर पर लगा मोबाइल फोन बज उठा है।शायद बाबू होगा।इस वक़्त बाबू का ही फोन आता है।
कोई अनजान नम्बर था।उसका मन किया न उठाए।फिर यह सोचकर उठा लिया कि बाबू अलग अलग नम्बर से फोन करती रहती है।
"हेलो!"करते करते दर्द की एक लहर उसकी कमर से कंठ तक आ गई।
"सर!मैजिक ब्रिक्स से बोल रहा।क्या आपने मकान बेचने का विज्ञापन दिया है।"
वह नहीं कहते कहते रह गया है।शायद बाबू ने दिया हो।
"जी!कहिए!!"
"एक ग्राहक आपका मकान देखना चाहता है।कितने बजे भेजूं?"
"अभी नहीं!मैं इस नम्बर पर फोन करके बताता हूं कि कितने बजे भेजें!"कहकर उसने जवाब की इंतजार करे बगैर ही फोन रख दिया है।
पहले वह चाय बनाएगा।उसके साथ एक गोली और नमक परांठा सटकेगा।तब तक अगर बाबू का फोन न आया तो वह फोन करेगा।
इस तरीके से वह अपने गुस्से को ज़ज्ब करेगा।पत्नी जीवित थी तो वह बेखटके जब मर्जी गुस्सा करता था।आजकल गुस्सा आने पर उसे पहले ज़ज्ब करने का जरिया ढूंढता है।
अभी परांठा तवे पर ही था बाबू का फोन आया।
"पापा?"उसकी आवाज में प्रश्न मिश्रित नाराजगी थी।
"हां!बाबू!!"परांठा प्लेट में आ गया था।चाय छन गई थी और चीनी मिट्टी की प्लेट के नीचे रखे कप में ठर रही थी।
"पापा!मैजिक ब्रिक्स वाले का फोन आया था।मकान दिखाना था।"बाबू रुआंसा होकर बोल रही थी।
"बाबू!मेरी कमर में बहुत दर्द है।सीढ़ी उतरकर मेनगेट खोलने की भी हिम्मत नहीं बची मुझमें!"उसने हालात में अतिश्योक्ति इस्तेमाल कर बहाना बनाया।हालांकि उसे मालूम था कि बाबू मानेगी नहीं।
"पापा!चले जाना प्लाई!मेरे लिए पता है न आपको मैं कितनी परेशान रहती हूं आपके लिए!"
"ठीक है!अब तू गुस्सा न कर!"
"पापा!!"
वह हंसता है,बेमतलब!बेमानी!बहुत दिनों से वह ऐसी ही हँसी हँसता है।"
मकान देखने वाले आकर चले गए हैं।अब कपड़े धोने हैं।वह रसोई के बाहर बने खुरे में ही नहाना,कपड़े धोना कर लेता है।सिर्फ शौच के लिए ही नीचे जाता है।वह लैट्रिन उनकी है,लेकिन वे उसे नहीं रोकते।जब पत्नी जिंदा थी तब रोकते थे।मेहमान आने पर चुप रहते थे।दस साल हो गए उसे गुजरे।पांच साल से बाबू बाहर है।अब उस अकेले को कोई नहीं रोकता।
उसे मालूम है मकान बिकने में सबसे बड़ी रुकावट लैट्रिन बाथरूम का न होना है।लेकिन वह जानता है कि वह लैट्रिन बाथरूम कभी नहीं बनवाएगा।पत्नी जिंदा थी तो लगभग रोज कहती थी उससे लैट्रिन बाथरूम बनवाने के लिए।उसने जिद में नहीं बनवाया तो नहीं बनवाया।वह शुरू से ही हठी था।पहले मां,फिर पत्नी के प्यार ने उसे परले दर्जे का जिद्दी बना दिया था।
अब पत्नी नहीं थी।जिद भी नहीं थी।बच्चों के सामने बड़ों की जिद कहां चल पाती है।फिर उसकी तो ले देकर एक ही संतान है बाबू!बाबू ने जिद करना पापा से ही तो सीखा है।ऐसा पत्नी कहती थी,जब जिंदा थी।नौ साल हूए वह मर गई।उसके मरने के बाद इस वीरान डेढ़ कमरे में उसकी निःशब्द आवाज गूंजती है।कहते हैं कि शब्द ब्रह्म होता है और निःशब्द ब्रह्म की अर्धांगिनी!वह अकेला क्या दीवारों से बोले-बतलाए।नीचे वाले तो कहने को लोग हैं।भीड़ के लोग।वरना तो इस डेढ़ कमरे के मकान में उछीड ही उछीड है।
कपड़े धो पखार दिए हैं।डेढ़ कमरे के सादा काली सीमेंट के फर्श पर साबुन के पानी का पोंछा लगा दिया है।वह हर चीज का इस्तेमाल जानता है।कोई भी चीज उसके लिए फालतू नहीं है।बचपन से ही मितव्ययी रहा है।केवल उसे अपनी जिंदगी का उपयोग करना नहीं आया।
[05/01, 18:49] Satish Sardana: दोपहर में साले का फोन आया है।वह बाबू के लिए कोई लड़का बता रहा है।
"जीजा जी!एक लड़का है,बैंक में स्केल थ्री मैनेजर है।अभी बत्तीस का भी नहीं हुआ।स्मार्ट लड़का है,आपको पसंद आएगा।कोई डिमांड भी नहीं है।सिंपल फैमिली है।"
"भाई!तुम जानते हो बाबू किसी की बात सुनती नहीं है।वह मकान बेचना चाहती है।कहती है पापा आपके लिए दिल्ली में फ्लैट लूंगी।फिर शादी की बात करना!उसके लंबे प्लान हैं।यह मकान आसानी से बिकने वाला नहीं है।"
"आप समझाओ उसे!छब्बीस की हो चुकी है वह!उम्र बढ़ जाएगी तो रिश्ता नहीं मिलेगा।"
"हां, भाई,यह तो सही है!लेकिन वह माने तब न!"
रिश्ते की बात तो हर रिश्तेदार करता है लेकिन बाबू हर बार इनकार कर देती है।
पिता का सूनापन दूर करना चाहती है वह!पिता अपनी पिछली यादों के सहारे चिपका रहना चाहता है।तारकोल में सने पिल्ले की भांति तारकोल को ही अपना जिस्म समझ बैठा है।
काला अतीत हो या बीत चुके सुखद दिन!दिन जो बीत गए उन्हें भूल जाना चाहिए।लेकिन इन्हीं बीते दिनों में एक वो दुःखद दिन रहा था जब उसकी प्यारी पत्नी निर्मला अपना लंबा सुगठित स्वस्थ शरीर लिये मर गई थी।जिसे कभी बुखार तक नहीं आया था पुलिसया लाठी के एक बेरहम प्रहार से वह जीवित से मृतक एक पल में बदल गयी थी।दोस्तों रिश्तेदारों ने कितना समझाया था।कम से कम पचास लाख का दावा ठोक दे पुलिस पर!लेकिन वह अपनी निर्मला की जान की कीमत लगाने को तैयार न हुआ था।वह समन मिलने पर एक बार भी गवाही के लिए नहीं गया था।मजिस्ट्रेट ने दोषी पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।जुर्माने के दो लाख निर्मला के बच्चों को देने का आदेश दिया था।वह उन दो लाख को लेने भी कभी नहीं गया था।
अपने इस डेढ़ कमरे के मकान में वह खामोशी से छत को ताकता लेटा रहा था।
प्यार आदमी को कितना निर्द्वन्द्व कर देता है।
वह न लेट्रिन बाथरूम बनवाएगा।न मकान बेचेगा।इसी डेढ़ कमरे के मकान में जिंदगी गुजार देगा।
शाम हो गई है।उसने पत्नी के द्वारा स्थापित छोटे से मंदिर में जोत जला दी है।पत्नी की तस्वीरों को एक बार सूनी आंखों से निहारा है।फिर अचानक उसकी निगाह मोबाइल फोन में डेट पर गई है।आज तीस जून है।उस दिन भी तीस जून था जब पुलिस एम्बुलेंस में निर्मला का मृतक शरीर घर लाई थी।
उस बात को दस साल हो गए हैं।
ये दस साल नहीं दस युग थे जिनमें वह हजार बार जिया व मरा है।

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