जीने के लिए - 1 Rama Sharma Manavi द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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जीने के लिए - 1

प्रथम अध्याय
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शोक संवेदना की औपचारिकता के निर्वहन हेतु आसपास के परिचित एवं रिश्तेदार आ-जा रहे थे।सामाजिक रूप से कल रात्रि आरती के पति विक्रम जी का देहावसान हो गया था जो आगरा में अपनी दूसरी पत्नी तथा दो पुत्रियों के साथ रहते थे।आरती का बेटा दीपक अपने पिता के दाह-संस्कार हेतु आज आगरा चला गया था, परन्तु आरती के जाने का तो प्रश्न ही कहां उठता था।
हां,बस सामाजिक रूप से नाम को ही तो विक्रम पति रह गए थे क्योंकि कानूनन उनकेे मध्य तलाक नहीं हुआ था इसलिए नाम को ही सही प्रथम आधिकारिक पत्नी तो वह थी ही।सिंदूर, बिछिया जैसे सुुुहाग चिन्हों का परित्याग तो वह तभी कर चुकी थी जब विक्रम उससे पति पत्नी का सम्बंध परिवार के सदस्यों के सामने तोड़ कर चले गए थे।आज तो वह बस दुनिया की नजरों में विधवा हुई है।'विधवा' शब्द सोचकर एक विद्रूप मुस्कराहट उसके होठो पर फैल गयी।लोगों के जाते ही वह अपने कमरे में जाकर लेट गई एवं विगत की स्मृतियां चलचित्र की भांति उसके मस्तिष्क पटल पर गतिमान हो गईं।
उस जमाने में लड़कोंं को तो फिर भी थोड़े अधिकार प्राप्त थे अपनी पसंद नापसंद व्यक्त करने का, किन्तु लड़कियों को तो एक-दो दिन पहले पूर्व बस सुुचना दे दी जाती थी कि फलां दिन-समय लड़के वालेे आ रहे हैं तैयार हो जाना।देखने-दिखाने की प्रक्रिया पूर्ण हो जानेे के पश्चात यदि 10-15दिनों में जबाब आ जाता था तो ठीक, नहीं तो वर पक्ष से परिणाम पूूूछ लिया जाता था।लड़की को कुछ कहने-सुनने का अधिकार कदापि नहीं था, समस्त निर्णय पिता, चाचा, ताऊ,फूफा,दादा या बड़े भाई के हाथ में होते थे।
आरती ठीक- ठाक नैन-नक्श की,मध्यम कद की एक सामान्य युुवती थी।यौवन जीवन का वह वसन्त काल है जो एक सामान्य व्यक्ति को भी कुछ अलग ही आभा,सुगंधयुक्त कर आकर्षण प्रदान कर देता है।उस समय महिलाओं के नोकरी का चलन तो था नहीं इसलिए लड़कियों को गृहकार्यों में पूर्ण पारंगत होना अनिवार्य था, साथ ही सिलाई- कढ़ाई-बुनाई,गाना- बजाना अतिरिक्त योग्यताएं हुआ करती थीं।
बीए की पढ़ाई पूरी होते ही इक्कीस वर्ष की आयु में उसका विवाह विक्रम के साथ सम्पन्न हो गया।वह नैनों में सुखी वैवाहिक जीवन के तमाम रंग- बिरंगे सपने सजा कर ससुराल गाजियाबाद आ गई। दूसरे दिन बड़े गानों में महल्ले की औरतों एवं रिश्तेदारों ने खूब धमाल मचाया।उसकी चोर निगाहें विक्रम जी को चारों तरफ तलाशती रहीं पर वे कहीं नजर नहीं आए।ततपश्चात उसे उसके शयनकक्ष में पहुंचा दिया गया।फिल्मों सरीखे साज सज्जा की कल्पना भी नहीं की थी उसने इसलिए एक ठीक -ठाक,अगरबत्ती की खुुुशबू सेे महकता कमरा भी उसे अत्यधिक मनभावन प्रतीत हो रहा था।वह गुलाब की पंखड़ियों से बने दिल के पास पलँग पर बैठकर घुुंघट निकाले शर्म से खुद में सिमटी , हदय में मीठी सी घबराहट लिए विक्रम का इंतजार कर रही थी। देर रात्रि में विक्रम आए एवं थक गया हूं,कहकर उसके सपनों को बिस्तर पर पड़े फूलों के साथ झाड़कर मुँह फेरकर सो गए।तब तो उसकी समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ क्योंकि सहेलियों- भाभियों ने तो तमाम रोचक कथाएं सुुहागरात की सुना रखी थीं।
किसी ने बताया था कि वे लोग पूरी रात हाथों में हाथ लिए बातेें करते ही रह गए थे।किसी ने कहा कि घुुंघट उठाने के बाद मुंहदिखाई में चेन देेेकर प्रेम की शुरुआत की थी।कोई मन के जुुुड़े बगैर सीधे अपने पति के अधिकार का उपयोग करने लग गया था।तमाम लोग तमाम अनुुुभव। परन्तु यहांं तो न प्रेम प्रदर्शन,न वार्तालाप, न कोई औपचारिकता,न अपनापन कुछ भी तो नहीं था।थे तो ढेर सारे अनुत्तरित प्रश्न, नाग की तरह फन उठाये अनगिनत आशंकाएं। किससे कहे,किससे पूछे, सभी तो अभी अजनबी थे।
खैर, तीन- चार रात्रि पश्चात विक्रम ने बिना कोई स्पष्टीकरण दिए पति धर्म पूर्ण करने की औपचारिकता का निर्वहन कर दिया।जिससे उसके चिंतित हृदय को थोड़ी राहत प्राप्त हो गई।उसने अपने मन को समझा लिया कि शायद वे अभी ठीक से परिचित नहीं है या शायद अंतर्मुखी व्यक्ति हैं।
विवाह को एक माह व्यतीत हो गया।घर में सास-ससुर,एक छोटी नन्द,देवर राहुल सभी उससे घुुुल-मिल गए किन्तु विक्रम थोड़े दूर दूर से ही प्रतीत होते।उनके मध्य नव-विवाहितों जैसा छेड़ छाड़ , मनुहार कुछ भी तो नहीं था।वह अक्सर कारण खोजने का प्रयास करती परन्तु असफल रहती।एक दिन बातों बातों में देवर ने कहा कि आप भइया को विशेष पसंद नहीं थीं, फिर वे पढ़ाई समाप्त कर नोकरी के पश्चात ही विवाह करना चाहते थे, मां पिता जी की जिद के कारण उन्हें विवाह करना पड़ा।तब विक्रम के ऊखड़ेपन का कारण समझ में आया।फिर भी उसे विश्वास था कि वह अपने प्रेम एवं सद्गुणों से एक न एक दिन विक्रम को प्रभावित करने में अवश्य सफल हो जाएगी।
दिन भर तो घर के कार्यों की व्यस्तता में व्यतीत हो जाता परन्तु रात को कमरे में आने में ऐसा प्रतीत होता जैसे किसी अजनबी व्यक्ति के साथ रात गुजारने जा रही हो।अक्सर हृदय चित्कार कर उठता था कि क्या वह इस घर में मात्र एक सेविका के समान है, कर्तव्य पूर्ति क्या सिर्फ उसके लिए है?क्या पति का धर्म सिर्फ खाना-कपड़ा देकर पूर्ण हो जाता है?जब जीवन में प्रेमसरिता ही न बहे, जिंदगी तपते मरुस्थल की भांति वीरान सी हो जाती है।किससे कहे अपनी पीड़ा,जबकि जीवनसाथी ही उसके दुःख का मुख्य कारण था।

क्रमशः......।