एक बूँद इश्क
(8)
"करीब पाँच बरस की रही होगी। तान्या नाम था उसका। एकदम गुडिया सी मासूम, मोटी-मोटी आँखें, चेहरे पर शरारत और गोल मटोल सी, बस रंग शावँला था उशका कृष्णा की तरह। बतूनी तो इतनी कि बश पूछो मत?" गणेश बोलते-बोलते खो गया है। जैसे वह उस सुख के अहसास को ताजा कर रहा हो।
करीब पन्द्रह दिन रूके थे वो लोग। रोज तान्या हमारे शाथ खेलने आ जाती, खूब उधम मचाती..कभी कन्धें पर चढ़ती तो कभी मेरा चश्मा उतार कर भाग जाती। चकरघन्नी की तरह घुमाती तब जाकर चश्मा मिलता हमारा...मेमशाव, एक नम्बर की शैतान लड़की थी वह। मम्मी-पापा अपने कमरे में होते पर उशका पैर न टिकता वह तो पूरे रिजार्ट कै अपने घर का आँगन शमझती। स्टाफ के सभी लोग उसे प्यार करने लगे थे। खाश कर हमारी आत्यमियता उश परिवार शे कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी थी। एक दिन हमने कह दिया -
"लीची खाओगी बिटिया? हमारे घर के पेड़ पर लदी पड़ी हैं।"
"बस अड़ गयी- "मुझे अपने घर ले चलो अंकल..मुझे खूब सारी लीची खानी है।"
"शबने समझाया और हमने भी कि- "हम ले आयेगें आपके लिये टोकरा भर के"
"मगर वह न मानी और फिर उशके मम्मी-पापा को भेजना ही पड़ा। वैसे हमारा बहुत इज्जत करते थे वो लोग और दिल की बातें भी करते थे शायद इशलिये विश्वास बढ़ गया था। शो उन्होंने भी एतराज नही किया। बल्कि डॉक्टर शाहब ने उशे शहर आकर रहने का न्योता भी दिया था। कहा था- "उन्हें अपने बंगले की देखभाल के लिये ईमानदार आदमी चाहिये, तुम चाहो तो हमारे शाथ चल सकते हो।"
हमनें भी खुश होकर उश शमय तो बात टाल दी थी यह कर-" कि पत्नी से पूछ कर बताता हूँ शाब"
बिटिया घर आई खूब खेली। घर में उश वक्त मीरा और हम दो लोग ही रहा करते थे, मीरा हमारी पत्नी। हमारे कोई औलाद नही थी,, शो मीरा ने उश पर दिल खोल कर प्यार लुटाया। पेड़ से लीची तोड़ीं मिल कर खाईं...... आधा दिन खूब मस्ती करी मीरा और तान्या ने। उशके बाद हमने उशे रिजार्ट छोड़ दिया। आज भी वह कंधें पर चढ़ कर ही गयी थी शैतान।
उशके बाद जब तक वह लोग रूके तान्या रोज हमारे घर आने लगी। दो -चार घण्टें तो पता ही नही लगते और फिर जब वापस जाने का नाम आता तो वह जी चुराती। एक बार तो मीरा की गोद में दुबक कर शो गयी, बस, बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ी उशको रिजार्ट तक छोड़ने में। यह भी शंभव नही था कि वह रात भर हमारे घर ही रूक जाती। हम ठहरे तो अदने शे वेटर ही न? बड़े लोग इतना मान दें यही बहुत है।"
"ऐसा क्यों सोचते हो दादा? बड़ा तो कर्म बनाता हैं इन्सान को, आप बड़े आदमी हो देखो न, मैं भी तो आपको अपना समझने लगी हूँ। ऐसा हर किसी के लिये होता है क्या?" रीमा ने उसका हौसला बढ़ाया।
गणेश आगे बोल रहा है- "मीरा को उशशे खासा लगाव हो गया था और हमें भी। वह उशके बगैर तड़पने लगी थी। यह सब हमारे बेऔलाद होने का नतीजा था। मीरा ने तान्या बिटिया के लिये दो फ्राक भी सी थीं अपने हाथों से, उस पर लाल और हरे रंग से फूल भी काढ़े थे।
उश दिन रोज की तरह तान्या बिटिया घर आई। मीरा ने अपनी सी हुई घेर वाली फ्राक उसे पहनाई जिसे पहन कर वह फूल के कुप्पा हो गयी। ताली बजा-बजा कर कूद रही थी। बिल्कुल परी लग रही थी वह गुलाबी रेशमी फ्राक में। मीरा उशे देख कर रहशने लगी- "कितनी शुन्दर गुडिया है मेरी? किसी की नज़र न लग जाये..आजा मेरी गुडिया मैं चूम लूँ तुझे"
शैतान तान्या मीरा को छकाने के लिये बाहर की तरफ दौड़ पड़ी। वह खिलखिला कर हँश रही थी और पीछे मुड़ कर मीरा को देखती जा रही थी। मीरा हौले-हौले उशको पकड़ने के लिये आगे बढ़ने लगी।
अभी झोपड़े से निकल कर आठ-दस मीटर ही आगे बढ़ी होगी कि बाई तरफ नीचें की तरफ जाती हुई ढलान पर उशका पैर रपक गया, जिसको देखते ही मीरा के प्राण शूख गये उशने तेजी से दौड़ कर तान्या की फ्राक पकड़ ली। तान्या अब ढलान पर लटकी हुई थी। मेमशाव अच्छा हुआ हम घर में ही थे हमने तान्या को खींच कर दबोच लिया। इस खीचा-तानी में मीरा का पैर फिशल गया उशने मिट्टी में हाथ गड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन मिट्टी भुरभुरी थी और उसका स्वभाव भी फिसलना ही होता है और वह पटखनी खाती हुई नीचें गहरी खाई में जा गिरी।
"पल भर में शब खत्म हो गया...शब खत्म हो गया मेमशाव" कहता हुआ गणेश सिसक पड़ा।
"सब्र करो दादा, जो ईश्वर को मंजूर था हो गया। वो तो वही करता है जो उसे मंजूर होता है। शायद आपका और काकी का साथ इतना ही हो?"
गणेश ने भीगी आँखों को पोछते हुये आगे कहा-
"मीरा हमारी आँखों के शामने पड़ी थी और हम कुछ नही कर पाये। हमारी गोद में तान्या बिटिया थी जो बुरी तरह शहम गयी थी। उशने हमें कश कर पकड़ रखा था। हमारे हाथ-पैर शिथिल हो गये थे। हमें शमझ नही आ रहा था तान्या को शंभालें या मीरा को देखें, शायद कोई शाँश बची हो?"
दो-चार लोग जमा हो गये थे तब तक, जो मीरा की लाश को उठा लाये थे।
"रिजार्ट में बिटिया को पहुँचवा दिया था। अन्तिम क्रिया के वक्त तान्या बिटिया के मम्मी-पापा भी आये थे। पूरी कहानी उन्हें पता चल ही चुकी थी। वह लोग सहमें हुये थे। हम ये तो नही कह शकते कि उन्हें कितना दुख था मीरा के मरने का? हाँ ये जरुर तय था कि वह लोग बहुत दुखी और भयभीत से थे। हो शकता हो उन्हें तान्या के गिरने और फिर....आगे हादसे की कल्पना ने बुरी तरह डरा दिया था, जो नही होने दी मीरा ने और खुद को कुर्बान कर गयी। ईश्वर न करे अगर तान्या को कुछ हो जाता तो ये कलंक हम शारी जिन्दगी नही धो पाते। एक तरह शे जो हुआ अच्छा ही हुआ। मीरा ने हमारे माथे पर कलंक नही लगने दिया। लेकिन हमारी मीरा.........." फिर से सुबुक पड़ा गणेश।
अगले ही दिन वो लोग शहर लौट गये, समय से पहले ही। शायद वो लोग उस हादसे को भूलना चाहते हों। इसलिये उन्होनें आगे की बुकिंग कैंसिल करा दी। जाने से पहले मिल कर गये अफसोस भी जताया मीरा के लिये और ये वायदा भी किया कि जब भी आयेगें जरुर मिलेगें। अपने शहर आने को फिर दोहराया- "अब तुम अकेले हो गये हो गणेश चाहो तो शहर आकर बस जाओ।"
मगर हम उनका निमंत्रण स्वीकार न कर शके-
"साब मीरा की यादें हैं यहाँ पर, अपना घर है जिसका मालिक हैं हम..शुख-दुख के लिये विरादरी है...अब किशके लिये जायें शहर? और किशके लिये कमायें? अब तो यहीं मरेगें बस...हाँ बिटिया की याद आई तो जरुर आयेगें मिलने।
तान्य चलते समय रोती रही हमें देख कर शुबकती रही। बार-बार हमें देखती और माँ के पीछे छुप जाती। मगर वह हमारे कंधें न चढ़ी। गोद भी न आई। बस इसी बात का दुख है। एक बार उशे शीने से लगा कर आत्मा तृप्त कर लेते......आज बीश बरश हो गये, कभी तान्या बिटिया नही आई और न ही कोई खबर मिली...रिश्ता ऐसा जुड़ा कि एक झटके में टूट भी गया...न जाने किशकी नज़र लगी .....ईश्वर करे वो सब लोग सही सलामत हों।"
रीमा की आँखों में भी पानी तैर गया......वह भी भावुकता के द्वार पर खड़ी है।
काबेरी चुपचाप सब सुन रही है। वह तो उन्हें चाय के लिये बुलाने आई थी और ढूँढते-ढूँढते यहाँ तक पहुँच गयी। उसकी आँखें भी गीली हो गयीं हैं। हलांकि मीरा और उन में गहरी दोस्ती थी वह अक्सर उसे याद कर रोती भी है परन्तु आज वही कहानी दोबारा सुन कर वह खुद को रोक नही पाई।
गमगीन माहौल में सब चाय के लिये झोपड़े की तरफ बढ़ रहे हैं।
क्रमशः