भाभी काश तुम पुरुष हुई होतीं shalini singh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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भाभी काश तुम पुरुष हुई होतीं

माँ ने फ़ोन पर जब घबराई आवाज़ में बताया कि बेटा.. अपरा हम सबको छोड़ कर चली गई तो मेरे मुँह से बस इतना निकला कि माँ वो गई नही.. उसे मार डाला हम सबने मिलकर,हमारी खोखली मान्यताओं ने ..जीवन से भरी लड़की के जीवन से रंग छीन लिये और उसे उदासी के दलदल में अकेले धँसते जाने दिया...माँ वो हर पल ख़ुश-ख़ुश रहने वाली लड़की के पास दुख सहेजने के लिये कोई मन बाकी कहाँ था और फोन रखकर जड़ हो गई।मेरे अंदर दुख से अधिक गुस्सा भरा था।वहीं बैठ गई डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर और अपरा भाभी की यादों के सिरे खुद ब खुद मुझसे जुड़ते चले गए।अपरा भाभी मेरे मायके के पड़ोस में बहू बन कर आईं थीं।कितना सलोना रूप था उनका।जब वो घुँघरू वाली पायल पहन कर पूरे घर में इधर से उधर छम-छम की आवाज करती हुई चलती तो ऐसा लगता मानो पूरे घर में जैसे खुशियों से भरी कोई विंडचाइम बज रही हो।किचन से लेकर घर के तमाम काम करती हुई भी वो भइया के ऑफ़िस से आने से पहले सज संवर कर तैयार जरूर हो जातीं। जब छुट्टियों में मैं मायके रहने जाती तो हम उम्र होने के नाते मेरा अधिकांश समय उनके साथ बीतता।उल्टा मुझे अपने प्रति लापरवाह देखकर कहा करतीं जीजी तुम जरा सज संवर कर रहा करो ना .. कैसी बनी रहती हो और महावर लेकर लगाने बैठ जातीं।कहती कि जीजी सुहागन के पांव में हमेशा महावर लगा होना चाहिये।कभी कहती जीजी रोज नहाकर माँग काहे नहीं भरती..इससे पति की उम्र लम्बी होती है और मैं उनकी बात पर हँस देती कि भाभी ये सब बेकार की बाते हैं और वो मेरी इस बात पर आँखें फाड़ कर देखतीं..पर उन पर मेरी किसी बात का असर न होता।पूजा पाठ,व्रत इतने जतन और मनोयोग से किया करतीं कि कुछ छूट गया तो अनिष्ट परिवार को न झेलना पड़े।सास तो थी नही पर ससुर का एक पिता की तरह खूब ख़याल रखतीं।भइया के ऑफिस से आते ही ऐसे मुस्कुराती कि मानो अभी ब्याह कर आई हों।ख़ुश रहने का जैसे उन्हें कोई बहाना चाहिये होता पर मानो इस लड़की की शुभ हँसी पर ईश्वर का भी दिल आ गया था.. शायद तभी उसने इस हँसने वाली लड़की को अपने पास बुलाने का एक तरीका जो खोज लिया था।एक बार भइया ऑफिस के काम से दो दिन के लिये दूसरे शहर हेडऑफिस गये थे।मैं मायके में ही थी तो भाभी ने फोन कर दिया कि जीजी आज रात हमारे पास रूक जाओ ना!!कैसे भूल सकती हूं मैं वो रात।भाभी और मैंने खाना खाने के बाद कॉफी पीते हुए बातों की पिटारी खोल ली। भाभी अपने बचपन,अपनी सहेलियों और भइया के बारे में खूब मन से बतियाती रही।तभी बाहर से बारात जाने की आवाज आने लगी।शांत रात में बारात के बैंड बाजों की ध्वनि ऐसी कि अचानक भाभी बोली जीजी आओ ना...और इधर बारात बाहर से गुजर रही थी औऱ इधर घर के भीतर भाभी और मैं उस आवाज पर नाच रहे थे।जब आवाज आनी बन्द हो गई तो भाभी और मैं देर तक अपने इस बचपने पर हँसते रहे।जैसे लगा कि बरसो बाद कोई सहेली मिली हो वो इतना ख़ुश थीं कि मैं उनको देखे जा रही थी बस एकटक।अगले दिन भइया को आना था पर भइया तो नही आये.. आई तो वो मनहूस ख़बर कि भइया का एक्सीडेंट हो गया और सर में भयंकर चोट लगने की वजह से भइया चल बसे।शोर और रोने की आवाज सुनकर मैं और माँ जब बाहर आये तो अवाक रह गये।मैं लपकी भाभी की तरफ..जो बदहवास चीख चीख कर रोये जा रही थी कि अब मैं कैसे जियूँगी..सब खत्म हो गया।वो रोती रहीँ, मैं उनके आँसू पोंछती रही।आये तो उनके मायके वाले और दूसरे रिश्तेदार,पास पड़ोसी भी थे पर जानती थी उन्हें किसी की छाती में वो भरोसा नही मिलेगा,सबको इस बात का दुख ज्यादा था कि अब अकेली औरत कैसे जियेगी।यही बात हर आने वाला उनके सामने रो रोकर कहता।भइया के दाह संस्कार के बाद भाभी और उनके मायके वाले ,बहने और कुछ और रिश्तेदार थे तो मैं उनके भरोसे भाभी को छोड़ कर अपने ससुराल चली आई बेमन से।जिस दिन बिछिया उतारने और चूड़ी तोड़ने का रिवाज था..मैं ने धीमे स्वर में इस रिवाज को न करने का विचार रखा पर मैं थी कौन एक पड़ोसी तो किसी ने मेरी बात पर ध्यान नही दिया और घर की बातों में बाहर वाले दखल न दें ..ये फ़रमान सुना दिया गया,माँ ने मुझे चुप रहने का इशारा किया।
ये रिवाज़े घिन्न आती है ऐसी दकियानूसी रिवाजों से जो मरने वाले के बाद उसकी जीती जागती पत्नी को जीते जी मार देती है।भाभी कुछ नही बोलीं बस वो हिचकी ले लेकर रोती रहीँ उनका रोना सुनकर कलेजा कांप उठता पर नही पसीजा इस कठोर समाज का कलेजा।समाज के पास रीति रिवाजों को लेकर तमाम तर्क थे और इन तर्को से मरने वाले कि आत्मा को शांति मिलेगी ये तर्क सब तर्को पर भारी था।जैसे जैसे भाभी की देह से सुहाग के रंग उतर रहे थे वैसे वैसे भाभी के मन पर नीम उदासी के फीके रंग चढ़ रहे थे।26 साल की उम्र में कोई अगर मुस्कान उतार कर चुप्पी ओढ़ ले तो कैसा लगेगा।जब मैं एक महीने बाद उनसे मिली तो वो मुझे देखकर फफक कर रो पड़ीं।बोली जीजी अब जिया नही जा रहा मुझसे, किसी भी चीज़ से मोह बाकी न रहा।जब कागजी कार्रवाई के लिये कोई आदमी घर आता है तो मैं एक संकोच और डर से भर जाती हूं कि कही कोई गलत आरोप न लगा दे।कभी किसी बात पर हँसी आये भी तो हँस नही सकती कि कोई मेरी हँसी का गलत मतलब न निकाल ले कि देखो पति को गये अभी बरस भी नही हुआ और ये कैसे हंस रही।जब पहनने के लिये साड़ी निकालती हूँ तो कोई सादा रंग की साड़ी नही मिलती, चटख रंग मानो मुझे अपने रंग में देखने के लिये तड़प रहे हों और सादे रंग उन्हें चिढ़ा रहे हों।शीशे में अपना चेहरा देखकर सिहर जाती हूं।जब नहा कर आती हूँ और आदतन शीशे के सामने सिंदूर की डिब्बी जैसे ही हाथ मे लेती हूं सूनी मांग देखकर काँप जाती हूं।मुझे अपना सूना चेहरा काट खाने को आता.शीशे में अपना चेहरा देखकर चीखने का मन करता।जीजी बताओ ना कि कोई शादी ब्याह होगा तो अब मुझे काज परोजन से दूर रखा जायेगा ना।कही अगर नई ब्याहता ने मेरा मनहूस चेहरा देख लिया तो उसके साथ हुई अनहोनी के लिये मैं जिम्मेदार होऊँगी।जीजी मोहल्ले मे अब कोई जब देवी पूजी होगी तो सुहागिन के साथ एक विधवा को बुलाने में मेरे घर का दरवाजा खटखटायेंगे क्या!जीजी पल पल डरती हूँ।उनके जाने के दुख से ज्यादा ये विधवा होने की डाह का डर मुझे अंदर ही अंदर मारे डाल रहा।
जीजी सामने खाने की थाली होती है और उसमें मुझे अपना बेरंग चेहरा दिखता है।जीजी अब ताकत नही बची जीने की..
जीजी लगता है अब मैं भी उनके पास चली जाऊँगी वो रोज सपने में आकर बुलाते हैं मुझे।ये दर्द सहने से अच्छा होगा कि मैं उन्ही के पास चली जाऊँ, मेरे सारे धरम करम किसी काम न आये रोज उनकी उमर की कामना करती थी और वो पहले चले गए मुझसे ये भी न सोंचा कि पत्नी से पहले पति का चले जाना पत्नी को नरक जैसा जीवन दे जाता है।मेरे पास उनके सवालों के जवाब में बस इतना ही निकला कि भाभी सब सही हो जाएगा,अब मत रोओ..
और आज 6 महीने बाद भाभी चली गईं..ख़ैर मर तो वो उसी दिन गईं थीं जब भइया नही रहे थे बस आज सशरीर चली गई।
मेरा दम घुटने लगा था। मैं न जाने किस आस में छत पर आसमान देखने चली आई..आसमान पर सिंदूरी रंग में डूबते सूरज को देखकर लगा कि मानो भाभी की माँग का सिंदूर सूरज ने टीक लिया हो और मेरे पास अपरा भाभी के दूर आसमान से भेजे इस संदेश की टीस को महसूस करने के अलावा कोई और रास्ता कहां बचा था..मेरी आँखें और मन आंसुओ से भीग रहा था..काश कि अपरा भाभी एक पुरुष होतीं तो भी क्या ये जकड़न ऐसी ही होती उनके लिये और उन्हें घुट घुट करके मर जाने दिया होता।काश भाभी तुम पुरुष हुई होतीं!!