रिया की शादी बड़े ही अच्छे और रईस खानदान में हुई थी। इन सबसे अच्छी बात यह थी कि उसे एक बहुत ही प्यारा परिवार मिला था।
सारा परिवार प्यार के बंधन में बँधा था। सास - ससूर बेटी मानते थे तो देवर ( पवन ) बहन मानता था। पति (अमन ) तो हर तरह से अच्छे थे। इसी तर हँसी - खुशी छः महीने गुज़र गए। रिया राखी पर मायके से भी हो आई। यहाँ देवर ने प्यार भरी नाराज़गी जताई ...." उसकी कोई बहन नहीं , सोचा था इस बार भाभी वो शौक भी पूरा कर देगी पर भाभी तो मायके भाग गयी "
रिया भाव - विभोर हो गयी। प्रेम से पवन को गले लगाया और पूजा की मौली बाँथ दी उसकी कलाई पर।
सारा परिवार प्रेम के सागर में डूबा था।
घर में रात के खाने के बाद कभी - कभार सभी काॅफी पीते थे, जो हमेशा पवन ही बनाता था। और ज्यादातर काॅफी पीने का प्रोग्राम भी पवन का ही होता था।
आज भी काॅफी बनी हमेशा की तरह। सबने पी और सोने चले गये।
सूबह रिया उठी तो उसे कुछ अलग सा लगा। अपने शरीर के साथ हुई छेड़छाड़ उसे समझ तो आ रही थी पर पूरी तरह नहीं। उसने अमन को देखा और उसी के बारे में सोचकर मुस्कूरा दी। नहा - धोकर फिर वही दिनचर्या।
कुछ दिनों बाद फिर उसे सूबह कुछ अजीब लगा। पर दिमाग साथ नहीं दे रहा था। पर थोड़ी अदाओं के साथ उसने अमन से जब पूछा " रात नींद नहीं आ रही थी क्या जनाब को "?
तो अमन ने सर पर हाथ रखकर कहा " अरे यार रिया! मैं तो खुद परेशान हुँ। दो - तीन बार से सोकर उठने पर सर बहुत भारी हो रहा है।" " एक कप काॅफी पिलाओ यार। "
रिया का दिमाग थोड़ा ठनका , हो ना हो , काॅफी पीने के बाद ही ये अजीब हरकतें हो रही हैं। पर ये सब बोलना या समझना - समझाना असंभव सा लगा उसे।
वो अपने काम में बिज़ी हो गयी। कहीं ना कहीं शायद नाॅर्मल भी।
इस बार पवन ने करीब 10 -12 दिन बाद काॅफी के लिये कहा। सबने हाँ कहा। पर रिया ...रिया थोड़ा घबराई। क्यों ये तो वो भी ना समझ पाई पर इस बार वो काॅफी पीने के लिये तैयार नहीं थी। पर मना करना भी ठीक ना लगा उसे।
पवन काॅफी बनाकर लाया। सबने कप लिया । रिया ने कप उठाया और फ्रेश होने का बहाना बनाकर रूम में आ गयी। नहीं जानती थी कि वो क्या सोच रही है, क्या कर रही है पर वो काॅफी पी ना सकी और फेंक दी।
ख़ैर सभी सोने चले गये। अमन भी आये तो रिया ने प्यार से देखा। लेकिन अमन तो जैसे नींद के आगोश में समाया जा रहा था। रिया ने ध्यान दिया कि अमन बेसूध होकर सो रहे थे। कितना भी कुछ करो वो एकदम शिथिल थे। रिया का दिल धक्क से होकर रह गया। वो एक गहरी साज़िश के चक्र को समझने की कोशिश कर रही थी तभी.... रिया ने देखा
उसके बेडरूम की खिड़की खोलकर कोई अंदर आ रहा है। " ये क्या ! पवन? " ये तो पवन है"।
उसने चिल्लाने की कोशिश की मगर तुरत पवन ने उसका मुँह बंद कर दिया।
पवन " तूमने काॅफी नही पी आज। इसलिये इतनी मुश्किल हो रही है।" "इसकी तो भयानक सज़ा मिलेगी तुम्हें। "
" और हाँ ! चिल्लाने की कोशिश वैसे भी बेकार है। यहाँ कोई सूबह से पहले ना उठेगा।"
रिया क्या चिल्लाती। वो तो इसी सदमें में थी कि ये हो क्या रहा है उसके साथ। ये कौन सा सच है इस घर का , इन रिश्तों का। रिया बेसूध पड़ी रही और पवन उसके शरीर के साथ उसकी आत्मा को भी रौंदता रहा।
जाते - जाते कह गया " कोई नही मानेगा भाभी जान। बेहतर यही है कि इस बारे में किसी से ना कहना"
रिया अब सिर्फ जी रही थी। अब भी पवन कुछ दिनों पर काॅफी बनाता। रिया कोशिश तो करती कि या तो काॅफी बने ही ना या रिया बनाये या कैसे भी अमन नही पिये।पर सबके साथ बैठने की और पारिवारिक प्रेम के बीच उसकी कोई गुत्थी काम ना आती। हाँ खुद ना पिती पर कभी सोचती कि पी ही ले तो अच्छा , कम से कम ज़लील होगी। पर हिम्मत ना होती। पवन को कोई फरक ना पड़ता था।
हर 4 -5 दिन के बाद पवन उसे रौंदता और वही बात " किसी से ना कहना "।
आज फिर काॅफी बनी। पर आज रिया डरी हुई नहीं थी। आज रिया , बल्कि कई दिनों से रिया इस काॅफी का इंतज़ार कर रही थी। सभी सो गये। वही हुआ। पवन गंदी मुस्कान लेकर आया और कूद पड़ा रिया को छलनी करने।
पर ये क्या??? एक ज़ोरदार चीख़ के साथ छटपटा कर रह गया पवन। हाथ में खून। ओह! क्या हुआ ये। चीख़ से कराहता हुआ पवन समझ गया था की आज उसकी मर्दानगी को एक ज़ख्मी औरत ने रौंद दिया था। एक ऐसी चोट दी थी जिसका ना कोई ईलाज था ना कोई सुनवाई।
रिया संतोषप्रद एक जीत भरी मुस्कान लिये बिस्तर से उठी और कहा " तुम्हारी ये चीख़ सूबह से पहले कोई नहीं सूनने वाला। और सूबह भी ये बात कैसे बताओगे, क्या बताओगे? " " बेहतर यही होगा कि ये बात तुम जीवन भर " किसी से ना कहना ..... " ।
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