you and me books and stories free download online pdf in Hindi

मैं - तुम से हम तक का सफ़र

❤❤

" सिया तुम्हें ये शादी करनी ही होगी। बेटी, तुम क्यों नहीं समझती।
माँ - बाप हैं हम तेरे बेटी, दुश्मन नहीं है। रवि तेरे लिये सही लड़का नहीं है बेटी।
तेरे पापा उससे मिलने गए थे। तेरी खुशी के लिये हम उसे अपना भी लेते ....पर बेटी तेरे पापा ने उसकी आँखों में लालच और धुर्रत्ता देखी है। तु समझ मेरी बेटी।"

सिया की माँ समझा रहीं थीं लेकिन सिया समझना तो दूर सूनने को तैयार नहीं थी।
"माँ! पापा शुरू से ही रवि को पसंद नहीं करते इसलिये वो उससे मिलने का दिखावा करने गए थे।
पर माँ , मैं शादी करूँगी तो सिर्फ रवि से।

सिया, रवि से प्यार करती थी। दो साल से वो रवि को जानती थी। रवि एक बैंक में क्लर्क था। सिया के पिता अच्छे पद पर आसीन थे। अपनी इकलौती लड़की की शादी वो किसी अच्छे घर में करना चाहते थे लेकिन सिया की ज़िद् के आगे झूककर वो रवि से मिलने गए।
वो रवि को क्लर्क की वजह से नही बल्कि उसकी लालची नज़रों को पहचान गए थे इसलिये वो उसके ख़िलाफ़ थे।
सिया के पापा जान - बूझकर सिया को गलत इंसान के साथ नही छोड़ सकते थे।

बस यहीं से घर में ये द्वंद शुरू हो गया था। एक दिन पापा ने सिया की शादी एक अच्छे घर के लड़के, जो वकालत की प्रैक्टिस कर रहा था, उससे तय कर दी।
पर सिया तो रवि की ही रट लिये बैठी थी।

पूरा निश्चय कर एक रात वो पूरा मन बनाकर , अपनी सीमा लांघकर, वो घर की दहलीज़ लांघने ही वाली थी कि अचानक बत्ती जली और वो ठिठक गयी।
सामने उसके पापा थे।
" बेटी! मैंने तुम्हें हर तरह से समझाने की कोशिश की पर अब तुमने जब ठान लिया है कि मेरी ईज़्जत तार - तार कर अपने मन की ही करोगी तो ठीक है जाओ, लेकिन सूबह अपने पिता की लाश देखने आ जाना।"

आख़िर सिया के संस्कारों ने उसे झकझोरा और वो ना चाहते हुए भी पिता के सामने झूक गयी।

थोड़े दिनों बाद बड़े ही धूमधाम से सिया की शादी संपन्न हुई और वो बूझे मन से समीर की दुल्हन बनकर उसके घर आ गयी।

समीर ने सिया को पूरे मन से अपनाया। सास-ससूर और छोटी ननद ने भी भरपूर प्यार दिया। पर सिया तो एक अलग ही दुनिया में उलझी हुई थी। उसके चेहरे की परेशानी और उसकी घबराहट समीर को साफ नज़र आती थी।

समीर पहले दिन से ही समझ गया था कि सिया कुछ असहज तो है। पहले उसने इसे अपने माता - पिता से दूर होने की वजह से सिया का दुखी होना समझा।
पर अब शादी के एक हफ्ते हो गए लेकिन सिया ने समीर से दूरी बनाए रखा। हाँ वो हर समय या तो फोन पर बात कर रही होती या फिर परेशान होती। इस बीच वो घरवालों के साथ फिर भी थोड़ा घुलती - मिलती नज़र आती लेकिन समीर के सामने आते ही नज़रें चूराने लगती। रात को तो वो ऐसे घबराकर खुद को इतना असहज दिखाती की समीर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पाता था।

एक दिन सिया माँ के साथ मंदिर गयी थी और जल्दी में अपना फोन घर पर ही भूल गयी थी।
उसका फोन लगातार बज रहा था। समीर उसका फोन उठाना नही चाहता था वो भी सिया की ग़ैरमौजूदगी में। लगातार फोन बजने के बाद फोन बंद हो गया।
पता नही क्या दिमाग में आया और समीर ने सिया का फोन उठाकर देखा। उसने देखा कि उसके फोन में सारे काॅल्स, मिस्ड काॅल सब रवि के नाम से ही थे।
अभी समीर का दिमाग फट ही रहा था ये सब देखकर कि एक मैसेज ने उसके होश उड़ा दिये।
मैसेज रवि का ही था...
" अच्छा! तो अब फोन भी नहीं उठा रही मैडम मेरा। कोई बात नहीं मैं भी इस रोज़ की किच - किच से थक गया हुँ। आज तुम्हें आख़िरी बार बोल रहा हुँ। कल शाम तक मुझे दस लाख रूपये दे दो नहीं तो अपना अंजाम जानती हो ना। तुम्हारी सारी करतूत परसों सूबह तुम्हारे पति और ससूराल वालों के सामने होगी।और ये धमकी नही है।"

समीर को लगा जैसे उसका सर फट जाएगा। क्या है ये सब। अगर सिया उसके साथ किसी संबंध में थी तो ये क्या है? और सिया क्या चाहती है? क्या हो रहा है?

थोड़ी देर में सिया घर आ गयी। वो नाश्ता बनाने किचन में गयी कि तभी समीर की आवाज़ कानों में गुँजी।
समीर बोल रहा था
" माँ, मेरे एक दोस्त के यहाँ आज पूजा है। उसने मूझे और सिया दोनों को बुलाया है। कल बताना भूल गया था। अभी उसका फोन आया तो याद आया। क्या मैं सिया को ले जाऊँ?"
"हाँ- हाँ बेटा। इसमें पूछना कैसा "।
" सिया तैयार हो जा बेटी।" समीर की माँ ने कहा।

सिया तैयार होकर आयी। कार में बिठाकर समीर उसे दूर एक पार्क में ले गया। सिया असमंजस में थी। उसने धीरे से पूछा "ये कहाँ ले आए आप मुझे?"

समीर ने बिना किसी भूमिका के साफ शब्दों में पूछा

"रवि कौन है सिया? क्या रिश्ता है तुम्हारा उससे? और सबसे बड़ी बात कि वो तुम्हें ब्लैकमेल क्यों कर रहा है??

समीर ने फिर कहा " ना चाहते हुए भी आज मैंने तुम्हारा फोन देखा तो ये सब सामने आया। ये सब देखकर मैं सहज तो रह नही पाऊँगा तो अब अच्छा यही होगा कि अब तुम अपनी चुप्पी तोड़ो और मूझे सब सच बताओ"।

सिया धम्म से गिर जाती है बेंच पर।
उसने बिना कुछ छूपाए बोलना शुरू किया।

"मैं रवि से प्यार करती थी और शादी भी करना चाहती थी। पर पापा को वो पसंद नही था वो पापा की नज़रों में एक लालची इंसान था। मैं तो भागना चाहती थी पर पापा के आगे मजबूर होकर मुझे आपसे शादी करनी पड़ी।
शादी के बाद तुरंत ही मूझे एहसास हुआ कि मैंने ये शादी करके गलती कर दी है। मैं रवि के बिना नहीं जी सकती। पहली रात तो मैंने काट ली। दूसरे दिन सूबह ही मैंने रवि को फोन किया कि मैं सबकुछ छोड़कर रवि के पास आ रही हुँ।
पर तभी रवि की बातों ने मेरे सारे भ्रम तोड़ दिये जब उसने कहा कि
'अब मेरे पास आने कि ज़रूरत नही है सिया। खाली हाथ आकर क्या करोगी। मैंने तुमसे प्यार का नाटक इसलिये किया था कि तुमसे शादी करके मेरी ज़िन्दगी बदल जाएगी। मैं तुम्हारे पापा की दौलत का मालिक बनुँगा। अब वो तो होने से रहा।
लेकिन सिया, मैं अपनी मेहनत बर्बाद नही होने दुँगा। तुम अपने बाप से या कहीं से भी बीस लाख रूपये मुझे दे दो और बसाओ अपनी ज़िन्दगी अपने पति के साथ।"

"बस उसी दिन से ये सिलसिला चल रहा है। मैं तो ऐसे भँवर मे फँस गयी हुँ कि अब पार पाना नामूमकिन है।"

समीर ने सब सूना और फिर पूछा
"क्या तुम अब भी रवि से प्यार करती हो?"

"कैसी बात कर रहे हैं आप समीर....मुझे तो अपने आप से नफरत हो रही है कि मैंने कभी उस ज़लील इंसान से प्यार किया था।"
"समीर आप माने या ना माने पर यही सच है कि मैंने रवि को सच्चे दिल से प्यार किया था। पर इसके बावजूद मैंने अपनी मर्यादा कभी नहीं लांघी। बस कुछ प्रेम पत्र लिखे थे और उन्हीं से वो मुझे ब्लैकमेल कर रहा है कि वो प्रेमपत्र वो आपको दिखा देगा। बस"
रिया ने सारी सच्चाई बता दी।

समीर ने सिया का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा
"मैंने शुरू से यही माना था कि शादी घरवालों की मरज़ी से ही करूँगा और उसीको अपना सारा प्यार दुँगा।
तो ये बताओ क्या अब तुम अपने जीवन की नयी शुरूआत करना चाहती हो मेरे साथ? या नही ....तो भी कोई बात नही। मैं तुम्हें रवि से आज़ाद करवा दुँगा फिर तूम चाहो तो अपने पिता के घर भी जा सकती हो।
बस सिया अब जो भी फैसला करना पूरी ईमानदारी से करना"

सिया, समीर के सीने से लगकर रोने लगी।
"समीर , मुझे एक मौका दीजिये। मैं आपको एक अच्छी पत्नी बनकर दिखाऊँगी। मेरा विश्वास किजिये समीर मैं अब सही और गलत पहचान चुकी हुँ।"

समीर ने सिया को सीने से लगाकर अपनी मज़बूत पकड़ से सिया को आश्वासन दिया।

अगली सूबह समीर ने ही सिया के फोन से मैसेज करके रवि से मिलने का पता पूछा और शाम को तय स्थान पर रवि से मिलने पहुँचा ।

रवि वहाँ समीर को देखकर हैरान हो गया। समीर ने ही बताया कि वो सिया का पति है।
रवि गुस्से में सिया के प्रेम पत्र का ज़िक्र करने लगा और उसके विषय में अपशब्द कहने लगा।

समीर ने एक चाटा मारते हुए रवि को कहा

" अगर तुम्हारा प्यार सच्चा होता तो मैं ख़ुद सिया को छोड़ देता। पर तुम्हारा ये रूप देखने के बाद अब समझ मे आ रहा है कि कैसे तुमने एक भोली भाली लड़की को अपने प्रेम के झाँसे में फांसा और अब ये कर रहे हो।"

समीर ने फिर कहा
"जाओ! जिसे दिखाना है दिखा दो ये प्रेमपत्र। अगर किसी औरत का पति उसके साथ है तो दुनिया में कोई उस औरत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। और मैं पूरी तरह सिया के साथ हुँ। मुझे उसपर विश्वास है।
अब भी समय है संभल जाओ रवि वर्ना हो सकता है कि किसी लायक ही ना रहो।"

"सिया से दूर रहना। वो मेरी पत्नी है। अगर अब उसे परेशान किया तो झूठा केस बनाकर अंदर करवा दुँगा। जो थोड़ा बहुत बचा है ना वो भी नहीं रहेगा तुम्हारे पास"।

ये कहकर समीर चला गया। आगे सिया उसका इंतज़ार कर रही थी। समीर ने सिया को अपनी बाँहों में भरा और पूरे विश्वास के साथ उसका हाथ थामकर आगे चल दिया। दोनों ने ही पीछे मूड़कर नहीं देखा और आगे चल दिये अपने जीवन के नये सफर पर जहाँ अब उनके बीच कोई पर्दा और कोई अविश्वास नहीं था।

रवि उन्हें जाता हुआ देखता रहा। वो अब समझ गया था कि सच्चे प्यार में वाक़ई सच्ची ताकत होती है और ऐसे पति - पत्नी के रिश्ते में किसी "शक़" के लिये कहीं कोई जगह नहीं होती। ऐसे रिश्ते ही "मैं - तुम" से चलते हुए "हम" तक का सफ़र तय करते हैं।

अनिता पाठक
08-04-2020

For more amazing, motivational, romantic shayri, quotes , poem and stories plz follow me on
👉Instagram👉anitapathak1982
👉facebook page👉 #अनुभूति
👉#अनुभूति_anita1982
👉YouTube👉 अनुभूति अनिता पाठक
👉 Follow my thoughts on the YourQuote app at https://www.yourquote.in/babalikumari31

अन्य रसप्रद विकल्प